निवेदन।


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शनिवार, 31 मई 2025

4405 ... तम्बाकू ऐसी मोहिनी जिसके लम्बे-चौड़े पात

 सादर अभिवादन

कुछ सोच .....
आज
शनिवार, 31 मई 2025



31 मई 2025 को  विश्व तम्बाकू निषेध  दिवस (WNTD) के राष्ट्रव्यापी आयोजन के अंतर्गत, शिक्षा मंत्रालय के स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग द्वारा माईगव के सहयोग से एक ऑनलाइन तंबाकू जागरूकता क्विज़ शुरू की जा रही है।

इस पहल का उद्देश्य  WNTD 2025 थीम  : “ अनमास्किंग द अपील: तम्बाकू और निकोटीन उत्पादों पर उद्योग की रणनीति को उजागर करना” (आकर्षण को बेनकाब करना: तंबाकू और निकोटीन उत्पादों पर उद्योग की भ्रामक रणनीतियों का खुलासा)  के अनुरूप स्कूल/कॉलेज के छात्रों में तम्बाकू के हानिकारक प्रभावों और तम्बाकू और निकोटीन उद्योग द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली भ्रामक मार्केटिंग रणनीतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।

देखें कुछ रचनाएं




“ तम्बाकू नहीं हमारे पास भैया कैसे कटेगी रात,
तम्बाकू ऐसी मोहिनी जिसके लम्बे-चौड़े पात,
लाख टके का आदमी, अरु जाय पसारे हाथ।

हुक्का करे गुड़-गुड़-गुड़-गुड़ चिलम करे चतुराई,
तम्बाकू सारा खत्म हुआ अब तो लाओ भाई।
तम्बाकू नहीं....





भण्डारे की आड़ दिख रहा अहं युक्त मन।
जब भूखा मिल जाए करा दो उसको भोजन।।




अरे! हस्तिनापुर के वासी,
तुमने दुर्योधन को झेला।
तुम भी उतने ही दोषी हो,
कुरुक्षेत्र में लगा झमेला।
सत्ता का आस्वाद लगा है,
तुम लोगों की दाढ़ों में भी।
इसीलिए हर ओर जहर है,





धूप में
झुलसे हुए
चेहरे प्रसूनों के ,
घर -पते
बदले हुए हैं
मानसूनों के ,
कहीं देखा
गाछ पर
गाती अबाबीलें |


प्यार तो एक फूल है .....

फूल तो एक प्यार है
हम- तुम :
इसकी दो पंखुरियाँ हैं
समय रहते न रहते
पंखुरियाँ झर जाएँगी
शेष रह जाएगी
महक :
हमारे- तुम्हारे प्यार की
दिल के इसरार की
मन के इकरार की
जो रच- बसकर वातावरण में
छा जाएगी अरसों तक
महकेगी बरसों तक
प्यार तो एक फूल है .....



****
आज बस
सादर वंदन

शुक्रवार, 30 मई 2025

4504... अब जाना चाहता हूँ...

शुक्रवारीय अंक में 
आप सभी का हार्दिक अभिनंदन।
--------
आओ साथ मेरे
बढ़ते तापमान से 
न घबराओ,
 दया,ममता,परोपकार
के अभाव से झुलसती,बंजर होती
 धरती पर
आओ न मिलकर
अपना स्नेह युक्त स्वेद बहाये,
ढेरों क्यारियां बनाये 
बारिश के पहले
बोये प्रेम के असंख्य बीज,
इनसे फूटने वाले प्रेम के 
पुष्प ही
ही आख़िरी आस है
ठूँठ,उदास,जलती धरती की
ज़हरीली होती हवाओं में
स्नेह सुगंध भर
नवजीवन प्रदान करने के लिए।
-----------
आज की रचनाएँ-

जब मैं हँसूंगा, तो कौन कहेगा,
अब बस भी करो,
मुझे दिखता कम है ,
पर इतना तो मैं जानती हूँ,
कि तुम हँस नहीं रहे 
हँसने का नाटक कर रहे हो.



मृत्यु    का    बादल    घनेरा   ?    ध्यान    धरो    और    जानो
हर    क्षण     के     दो    पहलू     इन्हें    पहचानों  
अंतर     में      ही      है     उत्तर     छिपे  ,
तुम्हारे    मा  !    विषाद      में      सजल    नेत्रों    में
सबकुछ      शुध्द     मोती     सा     स्पष्ट     है  
इसे     कहने      की     जरुरत    नहीं  ,   साथ   अनंतर   है ।




नौशेरवां को झोपड़ी वाली जमीन की जरूरत थी क्योंकि उसका महल चौरस नहीं बन पा रहा था। बादशाह ने बुजुर्ग महिला को बुलाया और कहा कि वह जमीन की कीमत ले ले और वह जमीन उसे दे दे। महिला ने जमीन बेचने से इनकार कर दिया। कुछ दिन बाद बादशाह ने उसे फिर बुलाया और कहा कि वह जमीन उसे दे दे और उसकी जगह वह एक बहुत बढ़िया मकान बनाकर वह उसे दे देगा। 



सुख-दुःख
धैर्य और लालच सब 
साथ ले जाना चाहता हूँ। 

पतझड़ में 
झड़ते पत्तों की तरह 
उड़ जाना चाहता हूँ। 



 

--------
आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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गुरुवार, 29 मई 2025

4503...कलुषित भावनाएं औंधे दिए-सी ढांक देती है मन के हर कोने को...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया डॉ. (सुश्री) शरद सिंह जी की रचना से।

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में आज पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-

कविता | प्रेम | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

वहीं

कलुषित भावनाएं

औंधे दिए-सी

ढांक देती है

मन के हर कोने को

अंधेरों से

बस, परखना

कलुष और पवित्रता को

छल को, छद्म को, कपट को

*****

सौभाग्यवती भव!

सिंदूर मेट कर छल-कपट कर

छद्म की ढाल के पीछे छुप कर ..

तुमने जो किया पीठ पर वार!

थपथपाओ न अपनी पीठ अरे ढीठ!

उजङे सुहाग पर अक्षय है सौभाग्य!

*****

चुनाव हमारा है

लोग हमें भूल जायेंगे

इस तरह

जैसे कि कभी था ही नहीं

अस्तित्त्व हमारा

इस दुनिया में

हमारे हाथ में है आज

*****

वक्त

होते हैं कुछ लोग

व्यस्त बहुत

या करते हैं दिखावा

व्यस्तता का।

*****

बांग्लादेश में अराजकता और संशयों की लहरें

पार्टी के उद्घाटन समारोह में नाहिद इस्लाम ने कहा था, बांग्लादेश का फिर कभी विभाजन नहीं होगा और देश में भारत या पाकिस्तान समर्थक राजनीति के लिए कोई जगह नहीं होगी. पार्टी का प्राथमिक लक्ष्य बांग्लादेश में 'दूसरे गणराज्यकी स्थापना के लिए एक नया संविधान तैयार करना है, जिसके लिए संविधान सभा का गठन किया जाएगा.

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

 


बुधवार, 28 मई 2025

4502..रोज़ सुबह की ख़बर है..

।।प्रातःवंदन।।

"हँस देता जब प्रात, सुनहरे

अंचल में बिखरा रोली,

लहरों की बिछलन पर जब

मचली पड़तीं किरनें भोली"

~महादेवी वर्मा

भोर की शुरुआत और बुधवारिय प्रस्तुतिकरण  ..

तो हो जाए…एक कप अदरक इलायची वाली चाय!!




गरमागरम चाय की चुस्की के साथ अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस की शुभकामनाएँ..हर साल आज के दिन यानि 21 मई को अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस (International Tea Day) मनाया जाता है, जो न केवल एक पेय की महिमा का उत्सव है,

✨️

तलाक़ की लड़ाई

जब नहीं चला गृहस्थ , तो वह हो गयी वापस | 

वैसे ही , जैसे ग्राहक लौटा दे ,कोई नापसन्द आया सामान | 

फिर उलझ गयी बड़ों की मूछें , बिगड़ गयीं जुबान | 

दिखा देंगे , दिखा दो , माँ बहन के रिश्ते हुए तार तार |  

✨️

दुनिया ज़ालिम है —

ये कोई शायर की शेख़ी नहीं,

बल्कि रोज़ सुबह की ख़बर है,

जिसे अख़बार भी छापते-छापते थक चुका है।

यहां आँसू ट्रेंड नहीं करते,

दर्द को 'डिज़ाइन' किया जाता है,

और सच्चाई?..

✨️

किरदार

थक गई हूँ अपने किरदार से

इस किरदार को बदलना होगा

ढेरों शिकायत है वक़्त से

कुछ तो उपाय करना होगा

वक़्त न लौटता है, न थमता है..

✨️

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️

मंगलवार, 27 मई 2025

4501.... युद्ध में सिर्फ़ वे ही नहीं मरते मरती है भाषा की देह

मेरे समस्त स्नेही पाठक वृंद
 और ब्लॉगर साथियों का
 सादर और सप्रेम अभिवादन।
अचानक पाँच लिंकों से प्रस्तुति का सस्नेह आमंत्रण मिला, सो हाजिर हूँ।
कल ही युद्ध पर  ' प्रदीप त्रिपाठी'  जी की एक कविता पढ़ी।


युद्ध महज़ युद्ध नहीं होते
युद्ध में सूख जाती हैं
नदियों की आत्मा
पहाड़ों का जिस्म
रत्ती भर
सपनों का समुद्र भी।
युद्ध में सिर्फ़ वे ही नहीं मरते
मरती है भाषा की देह
और इस तरह
मर जाती है
पूरी की पूरी सभ्यता।
**  **  **  **

युद्ध पर बहुत कुछ लिखा गया।  इसके विरोध में कवियों ने आर्त रचनाएँ लिखी। मानवाधिकार कार्य कर्ताओं ने आंदोलन किये। हिंसा के विरोध में अहिंसक धर्म- संप्रदाय बने। पर सबके समानांतर  कभी धर्म कभी सत्ता के नाम पर युद्ध  सदैव चलता रहा। यदि युद्ध  तनिक थमा तो अराजक  तत्व सक्रिय हो  शांत लोगों की नाक में दम करने लगे। अंततः निचोड़ यही कि शांति के लिए युद्ध  जरूरी है। इसके परिणामों की भयावहता से कौन वाक़िफ़ नही। बहरहाल आज का समय भी युद्ध का समय है। उसे भूल प्रेम  और सौहार्द की बात करें। क्योंकि प्रेम रत  व्यक्ति कभी युद्ध का पथ नही अपनाता।
******

आज की विशेष रचना
प्रथम रचना  ब्लॉग चिड़िया से 
जिसमें अंतिम विदा में कातर हृदय का हृदय विदारक प्रश्न है

डाल से, टूटकर गिरता हुआ

फूल कातर हो उठा।
क्यूँ भला, साथ इतना ही मिला ?
कह रहा बगिया को अपनी अलविदा,
पूछता है शाख से वह अनमना -
"क्या कभी हम फिर मिलेंगे ?"

*****
दूसरी रचना ब्लॉग' मन के पाखी 'से। 
जिसमें प्रकृति से एक विकल कवि हृदय की क्षमा याचना है


इन दिनों सोचने लगी हूँ
एक दिन मेरे कर्मों का हिसाब करती
प्रकृति ने पूछा कि-महामारी के भयावह समय में
तुम्हें बचाये रखा मैंने
तुमने हृदयविदारक, करूण पुकारों,साँसों के लिए
तड़प-तड़पकर मरते
बेबसों जरूरतमंदों की क्या सहायता की?


****
तीसरी रचना ब्लॉग' 'पुरवाई' से
कभी कोई सुखती, सुबकती नदी के मन को भी तो पढ़े।
आखिर वो कौन है जो उसके भीतर उतरकर
उसे पढ़ पाता है सिवाय एक कवि के

नदी

अंदर से जानी नहीं गई
केवल
सतही तौर पर देखी गई।
उसकी भीतरी हलचल
का कोई साझीदार नहीं है


प्रेम के पर्याय हैं श्री कृष्ण ।
श्री कृष्ण के प्रेम की भव्यता को दर्शाता
सखी कामिनी का एक भावपूर्ण लेख उनके
ब्लॉग "मेरी नज़र से' से

प्रेम और करुणा के पर्याय है " कृष्णा " 

जिन्होंने बताया "जिसके हृदय में प्रेम के साथ करुणा का भी वास है
सही अर्थ में वही सच्चा धर्माचार्य है,
वही सच्चा भक्त है, वही सच्चा प्रेमी है।


अंत में   प्रेम की सर्वोच्चता को इंगित करती एक हृदयस्पर्शी  रचना
'अमृता तन्मय' जी के ब्लॉग से



लागे है मुझ को बड़ा आन सखी !
उसको मत कहना तू पाषाण सखी !   
इस मंदिर का है वही भगवान सखी ! 
उससे ही तो है मेरा ये प्राण सखी !

शेष फिर...
-रेणु बाला 

सोमवार, 26 मई 2025

4500 ...अचानक पाँच लिंकों से प्रस्तुति का सस्नेह आमंत्रण मिला, सो हाजिर हूँ।

 सादर अभिवादन

 कल आपको 

आदरणीय रेणु जी पसंदीदा रचनाएँ 
पढ़ने को मिलेंगी।

आज की रचनाएँ



किसी काम के नहीं निकले तुम भी
भुवन भास्कर !
हैरान हूँ, दुखी हूँ, कुपित हूँ तुम्हारा यह
लिजलिजा सा रूप देख कर !
जब आया समय परीक्षा का
हो गए तुम भी बुरी तरह फेल,






जल स्पर्श से गहराई का अंदाज़ नही होता,
टोह पाने के लिए पानी में उतरना है
ज़रूरी, ये दुनिया है सितमगर
सरल रेखा पर चलने नहीं
देगी, साहिल न सरक
जाए बहोत दूर,
वक़्त से
पहले





सत्ता को स्थापित करने के लिए अजब -गजब कहानियों का यह दौर आधुनिक और नए भारत में नहीं चलना चाहिए। देवदत्त पटनायक के अनुसार पश्चिम भारत की एक कहानी में ऋषियों की मुलाक़ात ऐसे पुरुष से हुई थी जो नाग के फन के नीचे सोए रहकर धूप से बचते थे या फिर कुछ शेर से दो-दो हाथ कर लेते थे। गुजरात के चावड़ा राजवंश के अनुसार एक राजकुमार इसलिए अलौकिक बताए गए क्योंकि वह झूले में पड़े रहते थे और धूप उन्हें स्पर्श भी नहीं कर पाती थी जबकि ऐसा पेड़ की छाया के स्थिर रहने के कारण होता था। आज ऐसी हर कहानी के जवाब विज्ञान के पास हैं। आज़ाद भारत में सब नागरिक बराबर और समान हैं। सब में देवत्व है क्योंकि सबके जन्म लेने की प्रक्रिया भी एक है। हां, प्रशिक्षण और अभ्यास ज़रूर किसी को भी खास बना सकता है। नए भारत को जो चकमा देने वाली कहानियों  की बजाय उड़िया कहानीकार बानू मुश्ताक़ के कहानी संग्रह 'हार्ट लैंप' को पढ़ना चाहिए जिन्हें अनुवादक के साथ अंतर्राष्ट्रीय बुकर सम्मान मिला है।





सिलसिला यही चला उम्र भर
इसी के चलते वह पुल हाथ नहीं लगा
जिसपर चलकर
किसी अदृश्य को दृश्य में तब्दील कर
उसके भीतर के यथार्थ की चिंगारी को
हवा दी जा सके






कहना ये था कि मुझे तुमसे प्यार है,
पहले तुम इजहार कर पाओगे क्या।

 जीवन सरल बनाने का एक तरीका है,
 तुम मेरी अर्धांगिनी बन जाओगे क्या।

आज के लिए इतना ही

सादर वंदन

रविवार, 25 मई 2025

4499 ..धोखा देने वाले आपके अपने ही होते हैँ

 सादर अभिवादन

शनिवार, 24 मई 2025

4498 ..हमारी छाया हमें प्रकाश की ओर धकेल ही देगी

 सादर अभिवादन

कुछ सोच .....

हम अपनी छाया का अनुसरण कर रहे हैं या यह है कि हमारी छाया हमें धक्का दे रही है,वास्तव में हम अपने अतीत से नियंत्रित होते हैं और हम पूर्व धारणा,शिकायत,शत्रुता और कभी-कभी आत्म घृणा जैसी नकारात्मक भावनाओं को विकसित करते हैं। और उस स्थिति में हम अपनी छाया का पालन कर रहे हैं। लेकिन अगर हमारे पास एक अच्छी इच्छा है, तो हमारी छाया हमें प्रकाश की ओर धकेल देगी

देखें कुछ रचनाएं




रात गहराते ही कोलाहल को विराम मिला,
ऊंघता अंध गायक, अर्धसुप्त सारमेय,
जन शून्य रेल्वे प्लेटफार्म, अंतहीन
नीरवता का साम्राज्य, ज़िन्दगी
को चंद घड़ियों का आराम
मिला, रात गहराते ही
कोलाहल को विराम मिला ।





हमारे देर में धूप की कोइ कमी नहीं है ! हमें अपने घरों में सोलर पैनल लगा कर बिजली बनाने के लिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करना चाहिए ! बच्चों को बिजली का दुरुपयोग करने से रोकना चाहिए और उनसे सख्ती के साथ इस बात का पालन करवाना चाहिए कि वे जब भी कमरे से बाहर निकालें तो बिजली के स्विच ऑफ़ करके ही निकलें ! ध्यान रखा जाएगा तो बिजली के बिगड़े बजट को कुछ हद तक नियंत्रित किया जा सकेगा !




जगे प्राणशक्ति बन प्रबल
उर भाव सारे शुद्ध हों,
मन समर्पित हों हमारे
सभी सर्वदा प्रबुद्ध हों !

हर दिशा में वह हमारा
मार्ग दर्शन मंगल करें,  
देवी कवच सी बन सदा  
नित भक्ति की रक्षा करें !



(काफी से अधिक पुरानी रचना)


पत्ते पर  परे ओस की बूंदे
मोती नहीं होती
पर किसी पपीहे ,किसी भौरें
की प्यास बुझा सकती है

किसी राहगीर को जीवन दान
और स्फूर्ति  दे सकती है

मोतियों के  माला की
कीमत नगण्य हो जाती हैं





अपनी प्यार पर प्रतिक्रिया देने में
मैं हमेशा देर कर देती हूँ
जब ये कहना था कि हमें भी तुमसे प्यार है
तब भी मैं चुप ही रही
अपने फ़र्ज़ को ही महत्व दिया
ख़ामोशी से ही अपने प्यार को दफना दिया

 
****
आज बस
सादर वंदन
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