सादर अभिवादन
जनवरी का अंत तुरंत
कल से माह फरवरी
लेकर आ रहा है
काफी सारे उत्सव
और ढ़ेर सा कर
बजट माह जो है
आज सखि श्वेता नहीं है
सो हमे झेलिए...
हंसी-मजाक
धूम-धमाके
जनवरी का अंत तुरंत
कल से माह फरवरी
लेकर आ रहा है
काफी सारे उत्सव
और ढ़ेर सा कर
बजट माह जो है
आज सखि श्वेता नहीं है
सो हमे झेलिए...
हंसी-मजाक
धूम-धमाके
का मौसम सुरु हो गया है
ये गलती नही है
सुरूर से सुरु हो गया शुरु
चलिए वासंती रचनाओं की ओर...
ये गलती नही है
सुरूर से सुरु हो गया शुरु
चलिए वासंती रचनाओं की ओर...
शुरुआत एक गीत से ...
मात जननी वागीश्वरी वीणावादिनी
धवल सरल सुमुखि चंद्र मालिनी
कर में धारण वेद पुराणन ज्ञानिनी
झरे मृदु गान अधर स्मित मुस्कान
स्निग्ध निर्मल कोमल पतित पावन
निःशब्द जगत की मुखरित वाणी
वीणा से बरसे स्वर अमृत रागिनी
रंग की बरखा हिय आहृलादित
ऋतु मधुमास धरा केसरी शृंगारित
द्वेष,क्लेश,मुक्त कला,ज्ञान युक्त
शतदल सरोज हंस वाहन साजिनी
कर जोड़ शीश नवा करूँ विनती
विद्या बुद्धि दे दो माँ ज्ञानदीप प्रकाशिनी
-श्वेता सिन्हा
बहती बयार का सुरम्य झोंका हूँ,
नील गगन में उड़ता पाखी मैं,
चाँद निहारे चातक-सी आकुल हूँ
पावस ऋतु में सतरंगी आभा मैं,
दिलों में बहती शीतल हवा मैं... हवा हूँ...
वो बहती, सी धारा,
डगमगाए, चंचल सी पतवार सा,
आए कभी, वो सामने,
बाँहें, मेरी थामने,
कभी, मुझको झुलाए,
उसी, मझधार में,
बहा ले जाए, कहीं, एक लम्हा मेरा,
खाली या भरा!
उतरी हरियाली उपवन में,
आ गईं बहारें मधुवन में,
गुलशन में कलियाँ चहक उठीं,
पुष्पित बगिया भी महक उठी,
अनुरक्त हुआ मन का आँगन।
आया बसन्त, आया बसन्त
आज प्रफुल्लित धरा व्योम है
पुलकित तन का रोम रोम है
पिक का प्रियतम पास आ गया
बसंती मधुमास आ गया
डाल डाल पर फुदक फुदक कर
कोकिल गूंजा रही है
मौसम ने अब ली अँगड़ाई,शीत प्रकोप घटे,
नव विहान की आशा लेकर,अब ये रात कटे।
लगे झूलने बौर आम पर,पतझड़ बीत रहा ,
गुंजन कर भौंरा अब चलता ,है मकरंद बहा।
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