माह अप्रैल का अंतिम दिन
अभिवादन स्वीकारें....
सूचना है कि एक तूफान आ रहा है
नाम है फ़नी
देखें केसे फैलाता है वो सनसनी
जो भी आए या जाए...
आप ज़रूर आइएगा....
ख़त हवा में अध्-जले जलते रहे ...
मील के पत्थर थे ये जलते रहे
कुछ मुसफ़िर यूँ खड़े जलते रहे
पास आ, खुद को निहारा, हो गया
फुरसतों में आईने जलते रहे
कश लिया, एड़ी से रगड़ा ... पर नहीं
“बट” तुम्हारी याद के जलते रहे
निष्ठा और समर्पण ....
निष्ठा और समर्पण
प्रेम और विश्वास
रिश्तों को रखें बाँध कर
तब बनता है परिवार
स्त्री पुरुष के त्याग से
पुरुष की निष्ठा
परिवार का विकास
तुझमें ही ...
बरबस ही सोचने लगी हूँ
उम्र की गिनती भूलकर
मन की सूखती टहनियों पर
नरम कोंपल का अँखुआना
ख़्यालों के अटूट सिलसिले
तुम्हारे आते ही सुगबुगाते,
धुकधुकाते अस्थिर मन का
यूँ ही बात-बेबात पर मुस्कुराना
हजारों यूँ ही मर जाते हैं .....
रूप तुम्हारा महका महका
जिस्म बना संदल सा
क्या समा बंधता है
जब तुम गुजरती हो उधर से |
हजारों यूँ ही मर जाते हैं
तुम्हारे मुस्कुराने से
जब भी निगाहों के वार चलाती हो
अधूरा प्रणय बंध ....
बेजुबान लब्ज
झुकी डाल
ढीठ सी लाज
चीरती जब मधुर भय को
रचती अधलगी महावर
तुम विवश
मैं अवश
एक पैगाम आकाश के नाम .....
आकाश !
कब तक ओढ़ोगे
परंपरा की पुरानी चादर,
ढोते रहोगे
व्यापक होने का झूठा दंभ,
तुम्हारा उद्देश्यहीन विस्तार
नहीं ढक सका है
किसी का नंगापन
एक खबर उलूकिस्तान से
असुर तो
हमेशा से ही
अल्पसंख्या
में पाये जाते हैं
मौका
मिलता है कभी
अपने काम के लिये
देवता हो जाने में
नहीं हिचकिचाते हैं
बेवकूफ
लेकिन हमेशा
ही नहीं बनाये जाते हैं
समझते हैं
सारे असुर
अगर देवताओं के
साथ चले जायेंगे
-*-*-*-
रचनाएँ बस यहीं तक
बारी है हम-क़दम की
उनहत्तरवाँ क़दम
विषय
निष्ठा
उदाहरण
इसी अंक से
पूरी निष्ठा ईमानदारी से
स्त्री बाँध कर रख देती
ख्वाहिशों को अपनी
भूल जाती सपने सारे
कर्त्तव्यों का पालन करने में
निष्ठा से निभाती रिश्ते
बड़ों का सम्मान
पति के लिए समर्पित
रचनाकार है अनुराधा चौहान
अंतिम तिथि- 04 मई 2019
प्रकाशन तिथि - 06 मई 2019
आदेश दें
यशोदा ..
सूचना है कि एक तूफान आ रहा है
नाम है फ़नी
देखें केसे फैलाता है वो सनसनी
जो भी आए या जाए...
आप ज़रूर आइएगा....
ख़त हवा में अध्-जले जलते रहे ...
मील के पत्थर थे ये जलते रहे
कुछ मुसफ़िर यूँ खड़े जलते रहे
पास आ, खुद को निहारा, हो गया
फुरसतों में आईने जलते रहे
कश लिया, एड़ी से रगड़ा ... पर नहीं
“बट” तुम्हारी याद के जलते रहे
निष्ठा और समर्पण ....
निष्ठा और समर्पण
प्रेम और विश्वास
रिश्तों को रखें बाँध कर
तब बनता है परिवार
स्त्री पुरुष के त्याग से
पुरुष की निष्ठा
परिवार का विकास
बरबस ही सोचने लगी हूँ
उम्र की गिनती भूलकर
मन की सूखती टहनियों पर
नरम कोंपल का अँखुआना
ख़्यालों के अटूट सिलसिले
तुम्हारे आते ही सुगबुगाते,
धुकधुकाते अस्थिर मन का
यूँ ही बात-बेबात पर मुस्कुराना
हजारों यूँ ही मर जाते हैं .....
रूप तुम्हारा महका महका
जिस्म बना संदल सा
क्या समा बंधता है
जब तुम गुजरती हो उधर से |
हजारों यूँ ही मर जाते हैं
तुम्हारे मुस्कुराने से
जब भी निगाहों के वार चलाती हो
अधूरा प्रणय बंध ....
बेजुबान लब्ज
झुकी डाल
ढीठ सी लाज
चीरती जब मधुर भय को
रचती अधलगी महावर
तुम विवश
मैं अवश
एक पैगाम आकाश के नाम .....
आकाश !
कब तक ओढ़ोगे
परंपरा की पुरानी चादर,
ढोते रहोगे
व्यापक होने का झूठा दंभ,
तुम्हारा उद्देश्यहीन विस्तार
नहीं ढक सका है
किसी का नंगापन
एक खबर उलूकिस्तान से
असुर तो
हमेशा से ही
अल्पसंख्या
में पाये जाते हैं
मौका
मिलता है कभी
अपने काम के लिये
देवता हो जाने में
नहीं हिचकिचाते हैं
बेवकूफ
लेकिन हमेशा
ही नहीं बनाये जाते हैं
समझते हैं
सारे असुर
अगर देवताओं के
साथ चले जायेंगे
-*-*-*-
रचनाएँ बस यहीं तक
बारी है हम-क़दम की
उनहत्तरवाँ क़दम
विषय
निष्ठा
उदाहरण
इसी अंक से
पूरी निष्ठा ईमानदारी से
स्त्री बाँध कर रख देती
ख्वाहिशों को अपनी
भूल जाती सपने सारे
कर्त्तव्यों का पालन करने में
निष्ठा से निभाती रिश्ते
बड़ों का सम्मान
पति के लिए समर्पित
रचनाकार है अनुराधा चौहान
अंतिम तिथि- 04 मई 2019
प्रकाशन तिथि - 06 मई 2019
आदेश दें
यशोदा ..