निवेदन।


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बुधवार, 9 जुलाई 2025

4444...बस्ती में रौशनी है अभी..

 ।।प्रातःवंदन।।

"तेरी साजिश में कुछ कमी है अभी

मेरी बस्ती में रौशनी है अभी

चोट खाकर भी मुस्कुराता हूँ

अपना अंदाज़ तो वही है अभी

हस्तीमल हस्ती

जिंदगी इन्हीं साजिशों के बीच कुछ पल बिताइए सुकून के चुनिंदा लिंकों पर..

कीमत ( लघुकथा)

हरे धनिए का डिब्बा खोला तो देखा काफी सड़ा पड़ा था। मेरी त्योरियाँ चढ़ गईं। कल ही तो आया था, गुड्डू से कहा था, जा भागकर एक गड्डी हरा धनिया ले आ।सोचा दस- बीस का होगा , लेकिन सब्जी वाला निकला महाचतुर, बच्चा समझ कर सौ का नोट धरा और मोटी सी गड्डी हरे धनिए की थमा दी।

"बताओ फ्री में मिलता है, सौ का नोट रख..

✨️

अहमदाबाद टु लंदन

 •एक उचाट सा मन लिए

कोने कोने घूमता हूँ

मैं गैटविक हवाई अड्डा

हर गुज़रने वाले चेहरों मे

ए आई वन सेवन वन के यात्रियों को खोजता हूँ..

✨️

"पहाड़ों की गोद में बसा एक दिल "

रानीखेत….रानीखेत से यूँही कुछ 20 किलोमीटर की दूरी पर एक गाँव है सौनी, वही सौनी जिसकी हर एक ईंट पर स्वर्गाश्रम बिनसर महादेव का आशीर्वाद है। 

जहाँ हवा में ठंडक और स्मृतियों में गर्माहट बसती है, इस गाँव ने देश को अच्छे इंजीनियर, डॉक्टर , सरकारी अधिकारी और शिक्षक दिए है। 

गाँव की शुरुआत की पहली इमारत ही शिक्षा का मंदिर है। एक सरकारी स्कूल जहाँ मेरी माँ ने अपने जीवन के कई साल सहायक अध्यापक के तौर पर दिए है। 

इसी प्राइमरी स्कूल के एक छोर पर है आँगन बाड़ी..

✨️

अधूरा अभियान - -

ऐनक की खोज में नज़र खो आए हम,

बंजर ज़मीन थी या खोखले बीज,

मुद्दतों से तकते रहे कोई अंकुर

तो उभरे सुबह की नरम

धूप में, उम्मीद का

पसारा ले कर..

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह ' तृप्ति '...✍️

मंगलवार, 8 जुलाई 2025

4443...उपेक्षाओं का ढेर...

मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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शीशा है ज़िंदगी यारो
जैसी सूरत बनाओगे
वैसी ही तस्वीर पाओगे
जीना तो  है हर हाल में 
गम़ रोको हँसी की ढाल में
चुनना हो गर जीवनपथ पे
 अनदेखा कर के आँसू यारों
प्यारी-सी मुस्कान उठा लो
बच्चे,बूढ़े,जवान,स्त्री या पुरुष हर किसी के चेहरे पर सबसे
प्यारा लगता है मुस्कान का गहना।
तन का बहुमूल्य श्रृंगार जिससे व्यक्तित्व निखर जाता है जिसे
 देखकर सुखद अनुभूति होती है।
आपने कभी महसूस किया है प्रकृति की मुस्कान,
फूल,तितली,पेड़,बादल ,झरने,बारिश,धूप
हवाएँ,चिड़िया, सब मुस्कुराते है और
जगत में प्राण की संजीवनी 
प्रवाहित करते हैं।
मन अगर उदास हो तो किसी मासूम-सी
मुस्कान का जादू चल ही जाता है।
तो चलिए प्यारी सी मुस्कान के साथ
पढ़ते हैं-
आज की रचनाएँ-


कहीं दूर वादियों में उतरते हैं घने बादलों के डेरे,
बियाबां के बाशिन्दे आख़िर जाएं तो कहाँ जाएं,

फूलों की रहगुज़र में हम छोड़ आए दिल अपना,
कोहसारों के दरमियां भटकती हैं ख़ामोश सदाएं



थोड़ा सोचिए कि वाशिंग मशीन और हमारा जीवन भी कुछ मिलता जुलता है। कितनी अपेक्षाओं, आकांक्षाओं और उपेक्षाओं का ढेर हमने भर रखा है मन की टंकी में। प्रतिक्षण किनारे तक भरी हुई और क्षण क्षण रीतती हुई मन की टंकी । इसका पानी का लेवल सही बना रहे इसके लिए अथक प्रयासों का बिलोना करता हमारा शरीर, मन और प्राण। पता ही नहीं चलता , कब पानी ज्यादा भर गया तो मशीन अटक गई, पानी कम पड़ गया है तो भी अटक गए। 


जो भ्रमित करता रहा है 
 पकड़ी है प्रकाश की डोरी
जीवन जैसे एक किताब कोरी 
जिसमें लिखा जाना है 
हर पल एक शब्द नया
 हो चाह कोई भी 
मन सरवर कर देती है गंदला


उन यादों के झुरमुट से कुछ खुशियाँ, कुछ अच्छे अनुभव और ज्ञान लेकर झटपट वर्तमान की झोली में डाल नकारात्मक अनुभवों की यादों को लेट गो करके तटस्थ भाव से वर्तमान पर ध्यान केन्द्रित कर पाएं तो ठीक वरना 'बीती ताहि बिसार दे'  की कहावत ही सही क्योंकि कहीं हमारे अतीत से जुड़ी ये कुछ नकारात्मक यादें हमारे अवेयरनेस को बोझिल कर हमारे आज की खुशियों को भी फीका ना कर दें ।



इस पवित्र पर कठिन यात्रा में भाग लेने वाले कांवड़िए अपनी पूरी यात्रा के दौरान नंगे पांव, बिना कावंड को नीचे रखे, अपने आराध्य को खुश करने के लिए सात्विक जीवन शैली अपनाए रखते हैं ! यात्रा में तामसिक भोजन, दुर्व्यवहार, कदाचार पूर्णतया निषेद्ध होता है ! यहां तक कि एक-दूसरे का नाम तक नहीं लेते ! सब ''बोल बम'' हो जाते हैं ! शिवमय हो जाते हैं ! उनके बीच का फर्क मिट जाता है ! आपसी एकता, सहयोग, समानता की भावना मजबूत होती है ! पहचान, जाति, वर्ग सब तिरोहित हो जाते हैं ! हर कांवड़िया एक दूसरे का भाई बन जाता है !



--------------
आज के लिए इतना ही 
मिलते हैं अगले अंक में।

सोमवार, 7 जुलाई 2025

4442 ...इटली का गार्डन ऑफ लाजियो, राक्षसों के पार्क

 सादर अभिवादन


कृपया तलाशें
इटली का प्रसिद्ध शहर
लाजियो ..
गार्डन ऑफ लाजियो


इटली का गार्डन ऑफ लाजियो, राक्षसों के पार्क भी कहा जाता है. 
यह बागीचा गार्डन जानबूझ कर सुंदर नहीं बनाया है 
इसकी अनोखी कलाकृतियां डरावना या शोक का भाव पैदा करती हैं. 
इसके इस तरह बनने के पीछे अपना इतिहास है. 
लेकिन यह अपनी तरह का दुनिया में इकलौता बागीचा है.
कल दिनाक 6 जुलाई के नवभारत के पेज नम्बर छः पर देखें

कुछ सोचो

और भी है... ब्लॉग पर जाकर पढ़िेएगा



पनीली भोर में
लौह दरवाज़े के
एक खांचे में बैठी
कलछौंही
नन्हीं चिड़िया का स्वर
जब लगे
राग आसावरी-सा






किया समर्पण त्याग,जले बाती जैसे,
करे भाव अँकवार,तुम्हारी आँखों में।।

जीवन की जब धूप,जलाती थी काया
पीड़ा का उपचार,तुम्हारी आँखों में।।




बिजली की दे दो चपलता
और मेघ की गर्जना
सितारों की दे दो चमक
और चांद की शीतलता ,
बूंदों को उपहार की
देकर यह श्रृंखला
करने फिर से धरा तृप्त
कर दो विदा ए आसमां



छन में यह गिर जाएगा .. . . . . . . . . 


डग भरते मग कहिअ एक मिलआ सुबुध सुजान ।
सुनहु राजन मरनि निकट नहि कछु तुमहि भयान ll

जीवन दिवस साति है मम मरनि अजहुँ दूर l
छन भँगुराहि तव जिउना सोच करौ आतूर ॥




उनके साथ प्रैम में छोटे बच्चे को लेकर आई  बारह तेरह साल की एक लड़की भी थी। वेशभूषा से वो बच्चे की सेविका लग रही थी। बच्चा प्रैम में सो रहा था और वो लड़की दूसरी छोटी मेज पर बैठी उन सबको खाते टुकुर-टुकुर देख रही थी। उसके सूखे होंठ, मुरझाया चेहरा और कातर बड़ी-बड़ी आँखें देख कर मन बहुत बेचैन हो उठा। मेरा मन कर रहा था उसे अपनी टेबल पर लाकर पेट भरके खिला- पिला दूँ, परन्तु यह संभव नहीं था।उन सबकी प्लेटें मंहगे, लजीज बुफे के पकवानों से भरी थीं, जिसे वे भर-भर कर लाते और आधा खाते, आधा छोड़ते और फिर दूसरी और  तीसरी प्लेट भर लाते।


आज बस
सादर वंदन

रविवार, 6 जुलाई 2025

4441...यह पृथ्वी तब भी थी जब नहीं थे वृक्ष

 सादर अभिवादन


सुना है सावन आने वाला है
झूले भी लगाने की चेष्टा हो रही है

कैलेंडर के अनुसार आज देव शयनी एकादशी है ..और



ताजियों का महीना मोहर्रम भी है
मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है जिसे शोक और गम के रूप में मनाया जाता है



धर्मनिष्ठ लोगों का चातुर्मास भी आज ही से लागू हो रहा है

और भी है... ब्लॉग पर जाकर पढ़िए

चातुर्मास के नियम

माना जाता है कि चातुर्मास के दौरान थाली की बजाए पलाश के पत्ते पर भोजन करना चाहिए। ऐसा करना बेहद शुभ और फलदायी माना जाता है। अगर आप चार महीनों तक इस नियम का पालन करते हैं तो कई बड़े पापों का नाश हो सकता है और जीवन में सकारात्मकता आने लगती है। माना जाता है कि चातुर्मास में पलाश के बने पत्तल में भोजन करने से स्वर्ण के बर्तन में भोजन करने बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है। साथ ही, इस नियम का पालन करने से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती है और व्यक्ति को उनकी विशेष कृपा भी प्राप्त हो सकती है। इसके अलावा, इन चार महीनों में मांस, शहद, और दूसरे द्वारा दिए गए अन्न का सेवन भी नहीं करना चाहिए

मान्यता है कि आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से भगवान विष्णु अगले चार महीनों के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। ऐसे में इस अवधि के दौरान बिस्तर को त्यागकर भूमि पर शयन करना अति उत्तम माना जाता है। माना जाता है कि इस विशेष नियम का पालन करने से रोगों से मुक्ति मिल सकती है और जीवन में धन लाभ के योग बनने लगते हैं। साथ ही, जातक के घर में कभी भी अनाज की कमी नहीं होती है और संतान सुख की भी प्राप्ति हो सकती है।




साथ जो
समय के साथ
गहरे होते जाएँ
वही प्रेम है








प्रेम
का अंकुरण
मन की धरती पर होता है।
शरीर
केवल मन की अभिव्यक्ति का एक
मूक पटल है।
शरीर और मन के बीच
कहीं
कोई
भाव जन्मता है और गुलाब की भांति






इंटरनेट कंप्यूटर आए,करने जीवन को आसान।
साइबर अपराधी पनपेंगे,इसका था तब किसको भान।।

करें फिशिंग हैकिंग से शोषण,भेज रहें हैं फर्जी मेल।
झूठे सरकारी कर्मी बन,खेलें कपट घिनौने खेल।।

चुरा जानकारी लोगों की,करते जब ये नित्य गुनाह।
धोखा खाती भोली जनता,उनको करना अब आगाह।।





यह पृथ्वी तब भी थी जब नहीं थे वृक्ष
जब नहीं लगी थी जंगलों में आग  
तब मैं भी नहीं था ।

और जब हिरण  वनों में जल रहे
अपने घर में मैं देख रहा हूँ  सपने।  





बूंदों को भी क्या हासिल
एक पल का जीवन
हजार ख्वाहिशों पर
हर बार कुर्बान।
काश कोई बूंद
जी पाती
एक सदी
ठहर पाती एक पूरी उम्र


आज बस
सादर वंदन

शनिवार, 5 जुलाई 2025

4440..एक अनसुनी चीख..

।।प्रातःवंदन।।

" सखी !

बादल थे नभ में छाये

बदला था रंग समय का

थी प्रकृति भरी करूणा में

कर उपचय मेघ निश्चय का।।

वे विविध रूप धारण कर

नभ–तल में घूम रहे थे

गिरि के ऊँचे शिखरों को

गौरव से चूम रहे थे..!!"

 हरिऔध 

प्रकृति की बदलती तस्वीरे और भीगे भीगे दिन की शनिवारिय  शुभकामना के साथ शामिल रचनाओ का आनन्द ले..

राइटर्स रेजीडेंसी , पटना में यौन अपराध के आरोप के बहाने और मायने

दयानंद पांडेय 


✨️

"भड़ास : एक अनसुनी चीख़"

 कोई नहीं पढ़ता मेरी लिखी कहानियां

बातें भी मेरी लगती उनको बचकानियां

लहू निचोड़ के स्याही पन्नों पे उतार दी.. 

फिर भी मेहनत मेरी उनको लगती क्यूँ नादानियां? 

कल जब सारा शहर होगा मेरे आगे पीछे..... 

शायद तब मेरी शोहरत देगी उनको परेशानियां

मैं उनको फिर भी नहीं बताऊँगा उनकी हकीकत

मैं भूल नहीं सकता खुदा ने जो की है मेहरबानि

✨️

आलिंगन

विभोर स्पर्श पलकों बंद आँखों स्पन्दन राज का l

विरह ओस बूँदों सी अधखुले नयनों साँझ का ll

विशृंखल कोमल अंकुरन सांझी हृदय राह का l

व्यग्र उच्छृंखल मन ढूंढ रहा साथ माहताब का ll

✨️

ऊपर-नीचे जग है क्रीड़ा


गहराई में जाकर देखें 

एक धरा से उपजे हैं सब, 

ऊँचाई पर बैठ निहारें 

सूक्ष्म हुए से खो जाते तब !

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह ' तृप्ति '...✍️


शुक्रवार, 4 जुलाई 2025

4439...दरारों में बसती ज़िंदगी

शुक्रवारीय अंक में 
आप सभी का हार्दिक अभिनंदन।
-------
क्यों चीजों का यथावत स्वीकार करना जरूरी है?
व्यवस्थाओं के प्रति असंतोष और प्रश्न सुरूरी है?
कुछ बदलाव के बीज माटी में छिड़ककर तो देखो
उगेंगी नयी परिभाषाएँ काटेंगी बंधन मानो छुरी हैंं 
प्रथाओं के मिथक टूटेगें और तय होगा एक दिन
धरती की वसीयत में किसके लिए क्या जरूरी है।
#श्वेता
आज की रचनाएँ-

कोई बीज 
जीवन की जददोजहद के बीच
कुलबुलाहट में जी रहा होता है।
बारिश, हवा, धूप 
के बावजूद
दरारों में बसती जिंदगी
खुले आकाश में जीना चाहती है।



शुक्र है आँखों कि भाषा सीख कर हम आये थे,
वरना मुश्किल था पकड़ना बेईमानी आपकी.

फैंकना हर चीज़ को आसान होता है सनम,
दिल से पर तस्वीर पहले है मिटानी आपकी.

जोश में कह तो दिया पर जा कहाँ सकते थे हम,
गाँव, घर, बस्ती, शहर है राजधानी आपकी
.



भूलना उसको तिरे बस में नहीं ।
ढूँढ ऐसा भी हुनर होता है क्या ।।

अश्क भी तो ज़हर है, बहता हुआ।
देखिए इसका असर होता है क्या।।

लब जले, साँसें जलीं, दिल भी जला ।
खाक होने से मगर होता है क्या ।।





माताजी की उठावनी में जाना है ना ! वहाँ शादी ब्याह में पहनने वाली तड़क भड़क की साड़ी पहन कर थोड़े ही जाउँगी ! कितने बड़े-बड़े लोग आएँगे उनके यहाँ ! सुना है दिल्ली से भी पार्टी के उच्चाधिकारी आने वाले हैं 



तिहाई का शिखर छू कर बनना तो था

शतकवीर ..,

मगर  वक़्त का भरोसा कहाँ था ?

कठिन रहा यह सफ़र …,

“निन्यानवें के फेर में आकर चूक जाने की”

बातें बहुत सुनी थीं ।


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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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गुरुवार, 3 जुलाई 2025

4438...‘बच्चों को चालू-बदमाश बनाने के लिए ये फ़िल्म दिखाने की क्या ज़रुरत है?

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय प्रोफ़ेसर गोपेश मोहन जैसवाल जी की रचना से।

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पढ़िए ब्लॉगर डॉट कॉम पर प्रकाशित रचनाएँ-

प्रेम कविता | इतराता है प्रेम | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

उस पल

इतराता है प्रेम

खुद पर,

जब गुज़रता है

एक भिखारी के

हृदय से हो कर

और

पाता है

मधुर संकेत

एक भिखारिन से

*****

813. चढ़ूँगा, तभी तो पहुंचूंगा

चढ़ रहे हैं यात्री

अपनी-अपनी ट्रेनों में

पहुँच ही जाएंगे गंतव्य तक,

पुराने यात्रियों की जगह

आ गए हैं अब नए यात्री,

पर मैं वहीं खड़ा हूँ, जहां था।

 *****

प्रेम

किताब के पन्नों में

महानता का दर्जा पाकर

लेटी है

शब्दों को सिराहने लगाए

सदियों से

प्रेम के इंतजार में।

*****

अन्तर्कथा

तो आगे भी सैदव अँधेरे में रहने के लिए तैयार रहो- जाल में फँसी हजारों गौरैया-मैना की आजादी का फ़रमान जारी हो सकता था…! तुम उदाहरण बन सकती थी। लेकिन तुमने ही स्वतंत्रता और स्वच्छंदता की बारीक अन्तर को नहीं समझा।

*****

16 एम० एम० का रुपहला पर्दा

चलती का नाम गाड़ीफ़िल्म का तो नाम सुन कर ही पिताजी का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया था.

इस फ़िल्म को बच्चों को दिखाए जाने से साफ़ इंकार करते हुए हमारे न्यायाधीश पिताजी ने माँ से कहा था

बच्चों को चालू-बदमाश बनाने के लिए ये फ़िल्म दिखाने की क्या ज़रुरत है?

मैं उनको सीधे-सीधे पॉकेटमारी की ट्रेनिंग दिलवा देता हूँ. आए दिन मेरे कोर्ट में पॉकेटमार तो पकड़ कर लाए ही जाते हैं.

*****

फिर मिलेंगे।

रवीन्द्र सिंह यादव


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