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अब बस
कल आएगी पम्मी सखी
सादर
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
हाजिर हूँ/उपस्थिति स्वीकार करें...
जब बहुत सी परेशानियों से होकर जीतना, वह इतिहास रचना कहलाता है
भूत के अनुभव से भविष्य की सावधानी में वर्त्तमान सुखद बनाया जा सकता है
जिनका तदवीर पर वश होता तक़दीर कभी उनका साथ नहीं छोड़ती
जब आंधी‚ नाव डुबो देने की
अपनी ज़िद पर अड़ जाए‚
हर एक लहर जब नागिन बनकर
डसने को फन फैलाए‚
ऐसे में भीख किनारों की मांगना धार से ठीक नहीं‚
पागल तूफानों को बढ़कर आवाज लगाना बेहतर है।
बढ़ते बढ़ते
रुक जाओगे तब तुम
झिझकोगे
निहारोगे मेरी ओर
पर नहीं पकड़ पाओगे
शब्दों का छोर
धूप में जगमगाती हैं चीजें
धूप में सबसे कम दिखती है
चिराग की लौ
कभी-कभी डर जाता हूँ
अपनी ही आग से
जैसे डर बाहर नहीं
अपने ही अन्दर हो
मेरी माँ बहुत कम खाती है
बहुत कम बोलती है
कम देखती है
कम ही सुनती है
हरदम जाने क्या क्या मन ही मन गुनती है
मेरी माँ घर में
सबसे कम जगह घेरती है।
शरीर को अपने होने पर
कोई संदेह नहीं हैं ,
संदेह से भरी आत्मा ही
अनुमोदन चाहती है
और तरह -तरह के
प्रश्न करती है !
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पुनः भेंट होगी...
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अम्मा का निजी प्रेम...ज्योति खरे
पापा की हथेली से
फिसलकर गिर गया सूरज
माथे की सिकुड़ी लकीरों को फैलाकर
पूंछा क्यों ?
अम्मा ने
जमीन में पड़े पापा के सूरज को उठाकर
सिंदूर वाली बिंदी में
लपेटते हुए बोला
तुम्हारा और मेरा प्रेम
समाज और घर की चौखट से बंधा है
जो कभी मेरा नहीं रहा
कुछ नया रचना है...अपर्णा वाजपेयी
होशियार से होशियारी की
लोहार से लोहे की
पेड़ों से लकड़ी की
शिकायत नहीं करते हैं।
आंखों से पानी को
भरे घर से नानी को
बैलों से सानी को
अलग नहीं करते हैं।
स्वामी विवेकानंद...बजेन्द्रनाथ
वह योगी निर्लिप्त, निष्काम,
वह योगी समेटे करुणा तमाम।
वह सन्यास की अग्नि में
स्वयं को तपाया करते थे।
वह युवाओं में आगे बढ़ने को
विश्वास जगाया करते थे।
तब मैं गीत लिखा करता हूँ...आलोक सिन्हा
पेरवा घाघ का जल..रश्मि शर्मा
दिसंबर के अंतिम दिनों में भी। ऊपर से दिखा कलकल करता सफेद झरना और नीचे हरा पानी। अद्भुत दृश्य। ऐसे हरे रंग का झरना मैंने झारखंड में पहली बार देखा था।हम कुछ देख बैठकर वहां की सुंदरता निहारते रहे। ऊंचे-ऊंचे चट्टान से बहकर आता पानी और उस पर तैरती एक लकड़ी की नाव जिसे दोनों ओर से रस्सियों से बांधकर खींचा जा रहा था। पर्यटक मित्र जयसिंह ने बताया कि यह अनूठा आइडिया उनका ही है जिससे सैलानी पानी के नजदीक तक जा सकते हैं। दो साल पहले इस नाव का निर्माण किया गया था। अभी एक ही नाव है मगर पहली जनवरी से एक और नाव उतारा जा रहा है क्योंकि अब बहुत भीड़ होने लगी है। पांच वर्ष पूर्व ग्रामीणों ने समिति बनाकर पेरवा घाघ को संवारने का कार्य शुरू कर दिया था।
आज यहीं तक
कल मिलिएगा विभा दीदी से
-श्वेता
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय प्रस्तुति में
आपका
स्वागत
है।
मकर संक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।
मकर संक्रांति, लोहिड़ी, बीहू एवं पोंगल आदि पर्व लगभग एक ही समय पर मनाए जाते हैं किंतु इनको मनाने के तरीक़े अलग-अलग हैं।
भारतीय ज्योतिष के अनुसार आज सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है और दक्षिणायन से उत्तरायन दिशा में आने लगता है।
भारतीय पंचांग के अनुसार सभी बारह महीने 30 दिन के होते हैं अतः वर्ष में कुल 360 दिन। जबकि अंतरराष्ट्रीय कलेंडर के अनुसार साल में 365 या 366 दिन होते हैं इसलिए भारतीय त्योहारों की तारीख़ें बदल जातीं हैं। यहाँ गौर तलब है कि मकर संक्रांति हमेशा 14 जनवरी को ही मनाया जाता है।
आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-
सुनहरा लड़कपन...कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
मोहक नव रचना करते
महल सिपाही इक खाई
शेर चिते भालू भरते
बोल घरोंदा नित कुछ कहता
स्वप्न रात ठहरे ठहरे।।
अधिकार से वंचित कभी
कोई न अब बेटी रहे।
मान उसको भी मिले फिर
हर्ष की यह गाथा कहे।
संचालिका यह सृजन की
सीख ये सबको सिखाना।
रीतियों के जाल......
नींव ही
हिलने
लगी
थी
द्वेष दीवारें बना
जब
दूरियाँ मन
में
जगी
थी
बोझ बनते
इन
पलों
को
चाहते थे
सब
भुलाना।
फिर न कोई मानवी बच पाएगी
इस जगत के सामने दुष्कर्म की
नित नई दस्तान लिक्खी जाएगी
आओ मिल संक्रान्ति मनाएँ...अनंता सिन्हा
अनेकता में एकता का संगम ,
मेरा भारत देश अनुपम।
एक साथ त्यौहार मना कर ,
विविधता का आनंद उठायें।
जुड़ कर भारत की मिट्टी से ,
भारतीय होने का गौरव पायें
आओ मिल संक्रान्ति मनाएँ।
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आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले गुरूवार।
रवीन्द्र सिंह यादव