सादर अभिवादन
पाँच लिंकों का आनन्द
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
निवेदन।
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मंगलवार, 3 दिसंबर 2024
4326 .. मन ने तन पर लगा दिया जो वो प्रतिबंध नहीं बेचूँगा
सोमवार, 2 दिसंबर 2024
4325..परछाई और मैं..
वे रंग बिरंगे रवि की
किरणों से थे बन जाते
वे कभी प्रकृति को विलसित
नीली साड़ियां पिन्हाते।।
वे पवन तुरंगम पर चढ़
थे दूनी–दौड़ लगाते
वे कभी धूप छाया के
थे छविमय–दृश्य दिखाते।।
हरिऔध
प्रकृति की बदलती तस्वीरे के साथ आज नजर डालिए..
कोई न शृंगार हुआ,
बाग़-बाग़ में बिन फूलों के
अबकी बरस मधुमास लगा,.
✨️
हर जगह नहीं हो सकते हम
हो सकती है एक शुभेच्छा
एक सद्भावना सारे विश्व के लिए
पहुँच सकते हैं जहाँ तक कदम
जाना ही होगा
✨️
मोबिकेट" यानी मोबाइल शिष्टाचार
आज मोबाइल शिष्टाचार पर बात करना करना ठीक ऐसा ही है जैसे किसी कॉलेज के छात्र को पांचवीं क्लास का कोर्स समझाया जा रहा हो ! अधिकाँश लोग इन सब बातों को जानते भी हैं,
✨️
देखते हैं बिगबॉस की कहानियाँ बच्चे टीवी पर / शायद घरों में अब वे दादी-नानियाँ नहीं होती
जिंदगी में हमारी अगर दुशवारियाँ नहीं होती
हमारे हौसलों पर लोगों को हैरानियाँ नहीं होती
चाहता तो वह मुझे दिल में भी रख सकता था
मुनासिब हरेक को चार दीवारियाँ नहीं होती
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अकेले चलते-चलते
अपनी परछाई से
बातें करते-करते
अनंत युगों से
करता आ रहा हूं पार
एक समय चक्र से..
✨️
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️
रविवार, 1 दिसंबर 2024
4324 ...जब उन्हें बताया गया कि यहां पानी बिकता है
शनिवार, 30 नवंबर 2024
4323 ... प्रेम का वह मोती सागर में गहरे छिपा है
सादर अभिवादन
शुक्रवार, 29 नवंबर 2024
4322 ..कई वर्षों से भारत में भी ब्लेक फ्राइडे को मान्यता दी है
सादर अभिवादन
गुरुवार, 28 नवंबर 2024
4321...यूं सुलगते, बंजर मन के ये घास-पात...
शीर्षक पंक्ति: आदरणीय पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पढ़िए पसंदीदा रचनाएँ-
उसके हरे-हरे पत्ते
हवाओं में मचलते हैं,
उसकी टहनियों पर बैठकर
पंछी चहचहाते हैं।
*****
जो धरा है वही चाँद
और सभी निरंतर होना चाहते हैं
वह, जो थे
जाना चाहते हैं वहाँ
जहाँ से आये थे!
*****
यूं सुलगते, बंजर मन के ये घास-पात,
उलझते, खुद ही खुद जज्बात,
जगाए रात,
वो करे, यकीं कैसे?
*****
बुधवार, 27 नवंबर 2024
4320..छांव में छिपे रंग..
।।प्रातःवंदन।।
नये-नये विहान में
असीम आस्मान में-
मैं सुबह का गीत हूँ।
मैं गीत की उड़ान हूँ
मैं गीत की उठान हूँ
मैं दर्द का उफ़ान हूँ
मैं उदय का गीत हूँ
मैं विजय का गीत हूँ
सुबह-सुबह का गीत हूँ
मैं सुबह का गीत हूँ..!!
डॉ धर्मवीर भारती
बुधवारिय प्रस्तुतिकरण में शामिल रचना...✍️
क्या सन् सत्तावन के बाद किसी
सिहनी ने तलवार लिया नहीं कर मे
या माँ ने जननी बन्द कर दी
लक्ष्मीबाई अब घर-घर में..
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नदियां
नहीं निकलती
किसी एक स्रोत से
कई छोटी बड़ी धाराओं के मिलने से
बनती है नदी
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एक दिन तुम
गहरी नींद से जागोगे
और पाओगे
मिथ्या, कल्पना जैसा कुछ नहीं होता,
जो सभी कुछ होता है, यथार्थ होता है।
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आजकल एक पोस्ट बहुत वायरल हो रही है कि प्राकृतिक चिकित्सा से फोर्थ स्टेज का कैंसर ठीक हो गया। मैं ऐसे बहुत से लोगों को जानती हूँ जिन्होंने अपना एलोपैथी इलाज बीच में छोड़कर आयुर्वेदिक या नेचुरोपैथी अपनाया और नहीं बच सके। मेरी राय है कि कैंसर पेशेंट को पहले किसी अच्छे डॉक्टर से पूरा इलाज सर्जरी, कीमोथेरेपी, रेडिएशन वगैरह जो वो बताएं वह करवाना चाहिए,
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“ वक़्त ”
मैंने बचपन से कहा -
“चलो ! बड़े हो जाए !”
उसने दृढ़ता से कहा -
ऐसा मत करना !
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️