निवेदन।


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शुक्रवार, 7 नवंबर 2025

4564.... अंकुरित होने की आशा...

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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 असली प्रश्न यह नहीं कि मृत्यु के बाद
जीवन का अस्तित्व है कि नहीं,
असली प्रश्न तो यह कि 
क्या मृत्यु के पहले तुम
जीवित हो?
उपरोक्त कथन 
 किसी भी महान उपदेशक,विचार या चिंंतक का हो,
किंतु इन पंक्तियों में निहित संदेश
की सकारात्मकता आत्मसात करने योग्य है।
आज की रचनाऍं-

धरती का प्रेम
धैर्य में है
जो बंजर होने के बाद भी
अंकुरित होने की आशा
नहीं छोड़ती ! 


आग सिर्फ़ जंगल नहीं खाती,
वो भरोसा भी जलाती है —
कि कल भी हवा में हरियाली होगी,
कि पंछी लौटेंगे अपने घर,
कि धरती अब भी ज़िंदा है।

और अजीब बात यह है —
ये आग पेड़ों ने नहीं लगाई,
हमने लगाई थी…
अपनी ज़रूरतों, अपनी जल्दी,
और अपने अहंकार की तीली से।


विडंबना अक्षरः सत्य बदल गयी गजगामिनी हंस चालों को l
वैभव मधुमालिनी कुसुम रसखानी भूल गयी मधुर तानों को ll
अपरिचित सा ठहराव यहां रफ्तार आबोहवा बीच रातों को l
अदृश्य विचलित मन सौदा करता गिन गिन साँस धागों को ll



स्कूटर भाई, अब चलते हैं,

किसी कबाड़ी के यहां रहते है,

तुम भी पुराने, मैं भी पुराना,

बीत चुका है हमारा ज़माना। 



 

क्योंकि .. 

ब्याह लाए हो उसे तुम

साथ इक भीड़ की गवाही के,

तो तुम बन गए हो उसके ..

तथाकथित पति परमेश्वर,

या ख़ुदा जैसे ख़ाविंद।

है ना ? .. 

हे चराचर के स्वघोषित सर्वोत्तम चर जीव- नर !



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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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गुरुवार, 6 नवंबर 2025

4563...सोन, नर्मदा, चंबल, क्षिप्रा, सिंचित प्यारा मध्यप्रदेश...

 शीर्षक पंक्ति: आदरणीया कविता रावत जी की रचना से। 

सादर अभिवादन। 

पढ़िए आज की पसंदीदा रचनाएँ-

हाइकु मुक्तक-२

*****

बाग घर आँगन लिपवा लो

भाभी यह दालान लिखवा लो

पर अपने हिस्से भैया का प्यार नहीं दूँगा

 घुटनों के बल चले जहाँ पर खाए खील बताशे

दीवाली में लपट लाँघते खुब बजाए ताशे

यह माँ का कंगन बिकवा लो

भाभी यह अनबन मिटवा लो

पर इस आँगन में बनने दीवार नहीं दूँगा।

*****

मेरे ग़ज़ल संग्रह का द्वितीय संस्करण

मेरे ग़ज़ल संग्रह का द्वितीय संस्करण छप गया. नए कवर को डिजाइन किया है प्रोफ़ेसर अरुण जेतली जी ने. प्रकाशक लोकभारती. मूल्य 250 रूपये मात्र.

*****

हृदय देश का मध्यप्रदेश: महेश सक्सेना

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फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


बुधवार, 5 नवंबर 2025

4562..भला हुआ कब ऐब से?

प्रातःवंदन 

 उठो सोनेवालो, सबेरा हुआ है,

वतन के फकीरों का फेरा हुआ है।

जगो तो निराशा निशा खो रही है

सुनहरी सुपूरब दिशा हो रही है

चलो मोह की कालिमा धो रही है,

न अब कौम कोई पड़ी सो रही है।

तुम्हें किसलिए मोह घेरे हुआ है?

उठो सोनेवालो, सबेरा हुआ है।

अज्ञात


देव दीपोत्सव की शुभकामना के साथ,चलिए आज शुरुआत करते हैं ब्लॉग नया सवेरा की खास पेशकश...

बस इतने भर के लिए मिलना...




ना आँखों में पानी,

ना लफ्ज़ों में शिकवा…

बस एक ख़ामोश देख लेना है तुम्हें

जैसे रूह देखती है

अपना छूटा हुआ शरीर…

✨️

देसी विदेशी।

जेब में रूमाल, हाथ में घड़ी, और


पैंट की बैक पॉकेट में पर्स नजर आए,


तो समझ जाओ कि बंदा हिंदुस्तानी है।


ऊंची बिल्डिंग को ऊंट की तरह सर उठाकर देखे,


और उंगली हिलाकर मंजिलें गिनता नजर आए,


तो समझ जाओ कि.... भाई..

✨️

राह कटे संताप से !

फिर झुंझलाकर मैने पूछा


अपनी खाली जेब से


क्या मौज कटेगी जीवन की


झूठ और फरेब से


जेब ने बोला चुप कर चुरूए


भला हुआ कब ऐब से ..

✨️

चलती रही , मुश्किल सफ़र पे , ज़िंदगी मेरी

माँगा न कुछ , फिर क्यों भला तू ने , नज़र फेरी

तू भी तो कर, नज़रे इनायत , ओ खुदा मेरे

करती रहूँ , कब तक यूँ ही मैं , बंदगी तेरी..

✨️

।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह ' तृप्‍ति '

मंगलवार, 4 नवंबर 2025

4561...इतना ऊब गया हूॅं अब ज़िंदगी...

 मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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किसी से किसी भी तरह की प्रतिस्पर्धा की आवश्यकता नहीं है। आप स्वयं में जैसे हैं एकदम सही हैं। खुद को स्वीकारिये।-ओशो
और हाँ, मुझे ऐसा लगता है कि
समय-समय पर आत्ममंथन भी करते रहना
अंतर्मन की शांति के लिए औषधि है आत्ममंथन।
मन में उत्पन्न अनेक नकारात्मक विचारों की दिशा परिवर्तित कर जीवन की दशा में सकारात्मक ऊर्जा
प्रवाहित की जा सकती है।
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आज की रचनाऍं- 

अब मन से भी चीज़ें बेमन सी हो जाती हैं,
बस पग गिन-गिन कर सफ़र कर पार रहा हूँ मैं।
इतना ऊब गया हूँ अब ज़िंदगी के ऊहापोह से,
शांति की ख़ातिर ख़ुद को न्यौछार रहा हूँ मैं।



बहुत सूकुन है तुम्हारी सोहबत में
शायद तुम दरिया का किनारा हो

बेचैन 'नैन' तुम्हारे कर रहे चुगली
संदेशों के शायद तुम हरकारा हो



धूप दिन-भर
परछाई बुनती रहती है;
उसकी उँगलियों पर अब भी
मदार की छाया ठहरी है —
छाया,
थोड़ी-सी ठंडी,
थोड़ी बुझी-बुझी,
थकान में बंधी।


एक समंदर है आँखों में ।
दिल मगर प्यासा रहता है।।

ज़ख़्म जो हो गर सीने में।
उम्र-भर ताज़ा रहता है।।

रात जब सब सो जाते हैं ।
ख़्वाब तब जागा रहता है।।


मुख्य अतिथि या वरिष्ठ अतिथि वह बन सकता है जिसका समारोह से कोई स्वार्थ हो या वह संस्था का आर्थिक भला चाहता हो। वह इतना आदरणीय भी हो सकता है जिसको देखकर ही मन में आदर का भाव जगे और चरण वंदन का मन करे। जिसके आने की खबर सुनकर समारोह में चार चाँद लग जाय।

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आज के लिए इतना ही 
मिलते हैं अगले अंक में।

सोमवार, 3 नवंबर 2025

4560 .." प्रेम में कसम तोड़ना पाप होता है " एक बार कहा था उसने

 सादर अभिवादन

रविवार, 2 नवंबर 2025

4559 रज-कण पर जल-कण हो बरसी नवजीवन-अंकुर बन निकली

 सादर नमस्कार



राज्योत्सव चालू आहे
प्रधान मंत्री माननीय मोदी जी
का आगमन हुआ था कल
मन प्रफुल्लित हुआ

और आज से ही चातुर्मास का
समापन हो रहा है

रचनाए देखिए ...

आज पढ़िए बुकमार्क कविताएं




जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।।

सरल तामरस गर्भ विभा पर,
नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर,
मंगल कुंकुम सारा।।

लघु सुरधनु से पंख पसारे,
शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किए,
समझ नीड़ निज प्यारा।।






मैं क्षितिज-भृकुटि पर घिर धूमिल,
चिंता का भार, बनी अविरल,

रज-कण पर जल-कण हो बरसी
नवजीवन-अंकुर बन निकली!

पथ को न मलिन करता आना,
पद-चिह्न न दे जाता जाना,

सुधि मेरे आगम की जग में
सुख की सिहरन हो अंत खिली!





है अमानिशा; उगलता गगन घन अंधकार;
खो रहा दिशा का ज्ञान; स्तब्ध है पवन-चार;

अप्रतिहत गरज रहा पीछे अंबुधि विशाल;
भूधर ज्यों ध्यान-मग्न; केवल जलती मशाल।

स्थिर राघवेंद्र को हिला रहा फिर-फिर संशय,
रह-रह उठता जग जीवन में रावण-जय-भय;



आज महामूर्ख सम्मलेन अपनी पराकाष्ठा पर था।  सम्मलेन में  मौजूद मूर्खो की संख्या देखकर हम सम्मेलन के मुरीद हो गए. हमें  एहसास हुआ कि हम मूर्खानगरी के नागरिक है , दुनिया ही मूर्खो की है तो हम कहाँ से पृथक हुए।  खरबूजे को देख खरबूजा ही रंग बदलता है , किन्तु यहाँ हर रंग अपने सिर पर मूर्खो का ताज सजाने को आमादा है।




भुनभुनाओ नहीं, गुनगुनाते रहो
पंछियों की तरह चहचहाते रहो

रोने धोने को ना, है ये जीवन मिला
ना किसी से रखो कोई शिकवा गिला
प्रेम का रस सभी को पिलाते रहो
भुनभुनाओ नहीं ,गुनगुनाते रहो





वह व्यस्त था
अपने कारोबार में
वह खुश था
अपने परिवार में
वह रात को देर से सोया था
सुमधुर सपने में खोया था
अचानक वह झिझोड़कर उठाया गया
और उसे बताया गया
‘‘सोओ मत’’  
‘‘अगले चौराहे पर तुम्हारा धर्म खतरे में है’’




आज बस
सादर वंदंन
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