नमस्कार
पाँच लिंकों का आनन्द
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
निवेदन।
---
फ़ॉलोअर
शनिवार, 27 जुलाई 2024
4199 बिन्दी वापस लौट नहीं पाई चुटकी, झुमके, पायल ले गई
शुक्रवार, 26 जुलाई 2024
4198...तेरी.मिट्टी में मिल जावा...
भारतीय सैनिकों की शौर्यगाथा से जुड़ा
एक अविस्मरणीय दिन है।
60 दिन तक चले भारत-पाक युद्ध का अंत
26 जुलाई 1999 को हुआ।
कारगिल में शहीद हुये
सैनिकों के सम्मान और विजयोपहार
को याद करने के लिए यह दिन
कारगिल दिवस के रुप में
घोषित किया गया।
वैसे तो हम देशवासियों का
हर दिन हर पल
इन वीर जवानों का कर्ज़दार है।
सैनिकों के त्याग और बलिदान
के बल पर हम अपनी सीमाओं में सुरक्षित
जाति-धर्म पर गर्व करते हुये
सौ मुद्दों पर आपस में माथा फुटौव्वल करते रहते हैं।
अपने देश में अपनी सुविधा में उपलब्ध चारदीवारी में
चैन की नींद सो पाते हैं
तो बस हमारे सीमा प्रहरियों की वजह से।
सिर्फ़ दिन विशेष ही नहीं
अपितु हर दिन एक बार
हमारे वीर जवानों का उनके कर्तव्य के नाम पर किये गये बहुमूल्य बलिदानों के लिए हृदय से हमें धन्यवाद
अवश्य करना चाहिये।
-हरिओम पंवार
तुम याद आती हो,
जैसे आते हैं
लू के मौसम में बादल,
जैसे आती हैं
सावन के मौसम में फुहारें,
जैसे वसंत में आती है
बाग़ों में ख़ुश्बू,
जैसे किसी ठूँठ पर
बैठती है चिड़िया,
जैसे आता है
सूखी नदी में पानी.
गुरुवार, 25 जुलाई 2024
4197...लीपपोतकर लीक-वीक, ये लोकलाज भी लील गए...
शीर्षक पंक्ति: आदरणीय विश्वमोहन जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पाँच पसंदीदा रचनाओं के साथ हाज़िर हूँ-
लीपपोतकर लीक-वीक,
ये लोकलाज भी लील गए।
इंसाफ़ के अंधे बुत के,
कल-पुर्ज़े सारे हिल गए।
बूढ़ा होता अखबारवाला और घटती छोटी बचत
देश की अर्थव्यवस्था बदली
उसे पता चला विज्ञापनों से
जबकि उसकी अर्थव्यवस्था
थोड़ी संकुचित ही हुई इस दौरान
घटते अखबार पढ़ने वालों के साथ।
*****
आप जेल में
क्यों रहते हैं- रूमी
रात में, आपका प्रिय भटकता है।
सांत्वना स्वीकार नहीं करते।
तुम विलाप करते हैं, "उसने मुझे छोड़ दिया।" "उसने मुझे छोड़
दिया।"
बीस और आएंगे।
*****
बड़े धोखे हैं इस राह में...IAS, IPS बनने के लिए ऐसे उड़ाते हैं आरक्षण के
नियमों की धज्जियां
मान लीजिए मेरे पिता IAS ऑफिसर हैं, दो साल में रिटायर होने वाले हैं। मैं ओबीसी में हूं। लेकिन
मेरे पिता क्लास-1 जॉब में हैं तो मुझे आरक्षण नहीं मिलेगा। उन्होंने खूब पैसा कमा लिया है। इतना
कि जीवनभर काम चल जाएगा। कई बिल्डिंग्स खरीद ली हैं, किराया हर महीने लाखों में आता है। मुझे आईएएस बनना है।
मैंने पापा से कहा कि जेनरल से नहीं बन पाऊंगा, ओबीसी से बनना है, आप सपोर्ट करो। आप रिजाइन कर दो। उन्होंने रिजाइन कर दिया। अब मुझपर ये सीमा
लागू नहीं होती कि मेरे पिता ग्रुप 1 जॉब में हैं।
*****
बुधवार, 24 जुलाई 2024
4196..पड़ रही फुही झीसी झिन–झिन..
।।प्रातःवंदन।।
"सावन का हरित प्रभात रहा
अम्बर पर थी घनघोर घटा।
फहरा कर पंख थिरकते थे
मन हरती थी वन–मोर–छटा॥
पड़ रही फुही झीसी झिन–झिन
पर्वत की हरी वनाली पर।
'पी कहाँ' पपीहा बोल रहा
तरु–तरु की डाली–डाली पर॥"
श्याम नारायण पांडेय
बुधवारिय प्रस्तुतिकरण और चंद वैचारिक शब्लिशब्द कोश लिए हम..✍️
बड़े बेआबरू होकर ......!
बुक शेल्फ से किताबें उठा उठा कर जमीन पर पटकी जा रही थी। कबाड़ियों को क्या सब धान बाइस पसेरी लेना है। घर वाले भी इस रद्दी से मुक्ति पाएंगे और सेल्फ उनके शो पीस रखने के काम आएगी या फिर क्रॉकरी।..
✨️
खजूर तले जा रहे हैं
खजूर एक फल होता है— यह सभी जानते हैं, लेकिन कुरकुरे, हल्के मीठे, तले हुए बिस्कुट-जैसे एक व्यंजन का नाम भी “खजूर” होता है— यह बहुतों को शायद नहीं पता होगा।
हम लोग जब छठी कक्षा में हाई स्कूल गये, तब हमने इसके..
✨️
होती हूँ जब-जब निराशा के गर्त में
तुम आ कर सहला जाती हो
कौन आस-पास घूमा करता है
दुआएँ तुम्हारी मेरा माथा चूमा करती हैं
✨️
छुने से अल्फाजों को मेरे पंख लग गये अर्ध चाँद नयनों को तेरे l
लहरें दीवानी कहानी रचने लगी घटाओं की जज्बाती तरंगों पे ll
साँझ गुलाबी रिमझिम सिंदूरी बारिश खत लिखे बादलों कागज ने l
काजल गलियाँ आईना वो रंजिशें रक्स साँझा हो गयी फिर चाँद से ll
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह ' तृप्ति '..✍️
मंगलवार, 23 जुलाई 2024
4195...जीवन के सभी मौसम..
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
कर्मकांड को कर्म कहने वाले हम
धार्मिक होना अध्यात्मिक होना कहने वाले हम
धर्म को प्रतिष्ठित करने में
मानवता को सहजता से अनदेखा करने वाले हम
कब साम्प्रदायिक हुए पता न चला
क्या इतने मासूम हैं हम?
धर्म का परचम लिए रटे-रटाये
नारों को दुहराते हुए
उन्माद में बौराए हुए हम
शिक्षित होकर भी
सूचनाओं के आधार पर
ज्ञान अपडेट करने वाले हम
भ्रमित ,मूढ़,अतार्किक ,जिसे
आसानी से बरगलाया जा सकता है
अंधकारमय भविष्य से अंजान
न जाने किस नशे में चूर है हम...?
कर रही हूँ आह्वान पुन:-पुन:
हे असुरों आओ
जा न सकूँगी आगे
तुम्हारी इन अमानतों सहित
ले लो वापिस ये नख,ये तीक्ष्ण दन्त
ये आर - पार चीरती कटार
मुक्त करो इस दानवता से
पर नदारद हैं असुर !
मैं भी
नारियल का वह वृक्ष खड़ा /झूमता /तना हुआ
तुम्हारे लिए
जीवन के सभी मौसम में
तुम बनो नदी
-----