नमस्कार ! आज वार के अनुसार बहुत दिनों बाद सोमवार की प्रस्तुति लगा रही हूँ . उम्मीद है इतने दिनों में भूले तो न होंगे ? वैसे याद दिलाने के लिए पिछले सप्ताह ही एक प्रस्तुति लगायी थी ...... वैसे कितना अपनापन सा मिलता है न जब कोई ये कहे कि आप हमें भूले तो न होंगे ........ खैर ...... हम तो इसी उम्मीद में गुज़ार देते हैं वक़्त कि ----
रहें , न रहें इस जहाँ में हम
करोगे अक्सर हमें याद तुम |
ब्लॉगिंग का जहाँ ज़िक्र होगा ,
उनमें एक नाम मेरा भी होगा ..|
एक बात बताइए कि यदि कोई आपसे आपका परिचय पूछे तो क्या जवाब होगा आपका ? नाम , काम , धाम , घर गृहस्थी आदि या ज्यादा से ज्यादा अपनी पढाई और उम्र बता कर सोच लेंगे की परिचय का आदान प्रदान हुआ ..... लेकिन कभी कभी इतना गूढ़ , और बिंदु बिंदु छूता हुआ , अपने आप को हर कसौटी पर उतारते हुए जो परिचय मिले तो बस उसमें डूब कर ही जाना जा सकता है ........ बानगी देखिये ...
"अपेक्षाकृत वह एक धीर-गंभीर श्रोता ही है और अपने समभागियों की निजी अनुभूतियों के भेद को भी स्वयं तक रखती है। वह निजता की मर्यादा को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए खींची गई सीमा तक अस्पृश्य ही रहती है। वह न तो अन्य के जीवन में हस्तक्षेप करती है और न ही किसी को स्वयं के जीवन में हस्तक्षेप करने देती है। वह जितनी स्वतंत्रता औरों से चाहती है, उससे कहीं अधिक औरों को देती भी है। "
परिचय पढ़ते पढ़ते ऐसा लगा की बहुत कुछ " गीता " के ज्ञान से प्रभावित व्यक्तित्त्व है ..... काश ऐसा कुछ रंच मात्र भी जीवन में अपना लें तो जीवन सरल हो जाए ..... लेकिन कर्मों का हिसाब तो होना ही है ........ जब गीता ज्ञान की बात चली है तो कृष्ण का होना तो ज़रूरी है ......... महाभारत के सभी पात्र मुझे बहुत आकर्षित करते रहे हैं ........ विशेष रूप से "कर्ण . ' लेकिन आज तक कभी कर्ण पर कुछ लिख नहीं पायी ...... आज आपके समक्ष लायी हूँ कर्ण और कृष्ण का वार्तालाप ......
कल रात
दिखा कुरुक्षेत्र का शमशान
कर्ण की रूह
अश्रुयुक्त आँखों से
धंसे पहिये को निहारती
जूझ रही थी
ह्रदय में उठते प्रश्नों के अविरल बवंडर से ...
- ऐसा क्यूँ . क्यूँ , क्यूँ ???
रश्मि प्रभा जी का लेखन बहुत गहन चिंतन की मांग करता है ....... कोई भी बात या काम अकारण नहीं होता , श्री कृष्ण का यही सन्देश है ..... तो यही मानते हुए कि जो हो रहा है सही है -- बेचैन आत्मा उर्फ़ देवेन्द्र जी भी अपनी बात रख रहे हैं .....
आम आदमी
चिड़ियों की तरह
चहचहाता है..
वो देखो
चांद डूबा,
वो देखो
सूर्य निकला!
जहाँ सत्ता की बात आती है वहीँ न जाने कितनी प्रकार की चिंगारियाँ प्रस्फुटित होने लगती हैं ....... अब इनको कुछ लोग हवा देते हैं तो कुछ बुझा देते हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो ऐसा ही छोड़ देते हैं ...... तो कवि दीपक जी ऐसे लोगों को सन्देश दे रहे हैं कि या तो हवा दो या बुझा दो .....
गर कहीं कुछ सुलग रहा है ,
तो उसे हवा दो या बुझा दो ।
यूं ही बेपरवाह न छोड़े #चिंगारी को ,
पर उसे उसका सबब बता दो ।
चलिए चिंगारी का तो इलाज हो जाएगा लेकिन जो लोग निराशा के सागर में डूबते -उतरते रहते हैं उनका क्या ? उनके लिए भी एक सार्थक सन्देश है .... मन की वीणा पर एक सुर मुखर हुआ है -----
चारों ओर जब निराशा
के बादल मंडराए
प्रकाश धीमा सा हो
अंधेरा होने को हो
कुछ भी पास न हो
किसी का साथ न हो.
कुसुम जी --- माना कि निराशा को हम धकेल दें लेकिन जो कुछ समाज में हो रहा है क्या उसे भी बदल सकते हैं ..... बराबरी की होड़ में कौन कहाँ पहुँच रहा जरा देखिये इस लघु कथा में ----
यहाँ घर में,कांता के मोबाइल में भी आठ आँखें बड़े गौर से उस वीडियो को देखने में व्यस्त हैं ।
ये लघु कथा इतनी लघु है कि इससे ज्यादा पंक्तियाँ मैं दे नहीं सकती ...... हाँ एक बात कि पढ़ते हुए कांता की जगह शांता पढियेगा ......
आज समाज में इतनी विसंगतियां देखने को मिलती हैं कि सीधा साधा व्यक्ति तो स्वयं ही कीचड़ से किनारा करके चलता है ..... गिरीश पंकज जी अपनी रचना से दूसरों को भी सन्देश दे रहे हैं .....
ऊपर उठने की ख्वाहिश में कुछ नीचे गिर गए
मन है मैला लेकिन बंदा तन को सजा रहा
जो सत्ता में आया समझो तानाशाह बना
हर कोई चमड़े का अपना सिक्का चला रहा|
इस सन्देश के साथ एक और सलाह ........ बहुत खूबसूरत सलाह दे रही हैं अनिता जी ...... काश सब उपवन सा खिले रहें ....
उलझ न जाएँ किसी कशिश में
नयी ऊर्जा खोजें भीतर,
बहती रहे हृदय की धारा
अंतर में ही बसा समुन्दर !
दो दिन पूर्व चाय दिवस था ...... विभा जी ने बहुत खूबसूरत प्रस्तुति लगायी थी ........ उस दिन चाय दिवस मनाते हुए बहुत सारी पोस्ट आयीं पढने में बहुत आनंद आया और पढने से ज़्यादा यादों को सहेजने में आया ....... अब कुछ ने तो यादों की गुल्लक ही फोड़ दी ......... वैसे गुल्लक सोनी टी वी पर एक अच्छी सिरीज़ भी है ....... वो भी यादों की गुल्लक है ....... खैर ..... हम अभी बात कर रहे हैं ज्योति खरे जी की , उन्होंने गुल्लक में से क्या निकाला है ---
हांथ से फिसलकर
मिट्टी की गुल्लक क्या फूटी
छन्न से बिखर गयी
चिल्लरों के साथ
जोड़कर रखी यादें
इन यादों के साथ चलते चलते ज़रा बच्चों की सोच पर भी ध्यान दे लिया जाय ........ बड़े लोगों की बड़ी बातें तो हम समझना चाहते हैं लेकिन बच्चों के मनोभाव पर भी थोडा सोचें .........
बिटिया हिंदी की एक कहानी पढ़ते जब चौरासी लाख योनि पढ़ी तो उसका मतलब पूछने लगी | हमने तमाम जीव जंतु कीड़े मकोड़े की प्रजाति का नाम लेते , बात का मतलब बताते एक छोटा सा लेक्चर भी साथ दिया कि मनुष्य के रूप मे जन्म लेना कितना महान हैं |
अब सोचिये कि मनुष्य जन्म कितना महान है ............. और अभी अभी एक पोस्ट आई है जिसे आप लोगों के साथ बाँट कर मुझे ख़ुशी होगी ........ परिचय से बात शुरू हुई थी और जिस शख्स के बारे में पोस्ट है वो किसी परिचय का मोहताज नहीं ....... गगन शर्मा जी लाये हैं कुछ अलग सा .....
आज एक ऐसे भारतीय पहलवान का जन्म दिन है जो अपने जीवन काल में कभी भी कोई कुश्ती का मुकाबला नहीं हारा ! विश्व विजेता गामा एक ऐसा नाम, जो किसी परिचय का मोहताज नहीं है, जो जीते जी किंवदंती बन गया था। कुश्ती की दुनिया में गामा पहलवान का कद कितना बड़ा था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जन्मदिन के मौके पर गूगल ने भी डूडल बनाकर उन्हें सम्मान दिया है।
आज की शीर्ष पंक्ति अनीता जी की कविता का शीर्षक है ....
आज बस इतना ही ............ मिलते हैं अगले सोमवार को इसी मंच पर कुछ नए और पुराने सृजन ले कर ....... तब तक के लिए इजाज़त दें ......
नमस्कार
संगीता स्वरुप