निवेदन।


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सोमवार, 2 अक्तूबर 2023

3898 ..एक तो रोते थे मुसलमानो पर ज़ुल्म ढाने पर और दूसरे देश प्रेम में

 सादर अभिवादन

सोच रही हूं इस अक्टूबर माह से कुछ नया किया जाए
सबसे पहले शुभकामना दे दी जाए
आज गाँधी जी और लालबहादुर जी को
शुभकामनाएं दी जाए
दोनों ही अविवादित  रहस्यों का शिकार थे
एक तो रोते थे मुसलमानो पर ज़ुल्म ढाने पर
और दूसरे देश प्रेम में....ये दोनो वाकया जैसा मैंने पढ़ा
बहरहाल शुभकामनाएं तो बनती ही है.....


.....
रचनाए देखें, पितृपक्ष चालू आहे....

रिश्तों की एक नदी ..... सीमा सदा



पिंडदान करते हुए
पापा आपके साथ
दादा का परदादा का
स्मरण तो किया ही
माँ के साथ
नानी और परनानी को
स्मरण करने पे
श्रद्धा के साथ गर्व भी हुआ


पिता की भूमिका में एक भाई


कल देखा है मैंने एक ऐसे ही पुरुष को
जिसके माथे पर ढुलकी गंग-स्वेद बिंदु
दमकती चिंताओं का अभिषेक कर रहीं थी
और बता रही थी सबको कि
वात्सल्य का भाव जगत में सबसे सुंदर होता है,
पिता की भूमिका में एक भाई
पिता से बढ़कर होता है।



महात्मा ....ओंकार केडिया


इतनी हिंसा,
इतनी नफ़रत,
इतना उन्माद!
बापू,
बहुत खलता है इन दिनों
तुम्हारा नहीं होना.



उत्तर है इसके हल में ... दिगम्बर नासवा


क्यों अटके बीते पल में.
जब सब आज है या कल में.

रब, रिश्ते, मय, इश्क़, नज़र,
फँस जाओगे दलदल में.



बापू की स्मृति में
शास्त्री जी की याद में
चलो हम भी
कुछ कर के देखें,
उनके कहे पर
चल कर देखें,
क्या सच में
कुछ बदलता है ?

......
कुछ पंक्तिया दे रही हूँ
रचना लिख कर रविवार को सुबह ब्लॉग रख दीजिएगा
ख्याति प्राप्त लेखक की रचना है

नील-नीर-पान-निरत,
जगती के जन अविरत,
नील नाल से आनत,
तिर्यक-अति-नील अलक,

इसमें एक शब्द आया है तिर्यक
इसी के आधार पर लिखिएगा
ख्याल रक्खें
.....
कल मिलिएगा  सखी से
सादर


रविवार, 1 अक्तूबर 2023

3897 ..मै क्यों अपना कुत्ता ठीक करूं वो अपना कुत्ता ठीक करे

 सादर अभिवादन

भाई कुलदीप जी कोई
मीटिंग मे शिमला गए है
आज छुट-पुट रचनाएं देखिए

कोई बहाना चलो खोंजे, मधुमास की
वापसी में है, बहुत देर अभी, इक
अहसास जो भर जाए रिक्त
ह्रदय में हरित स्पर्श,
फिर है मुझे
तेरी
आँखों में कोई तलाश,






जिन्दगी जीने के लिए
हम सफर ऐसा हो
जब कोई समस्या आए
उसमें उसे  हल करने की क्षमता हो |
वह सक्षम हो इतना कि
सीधी राह खोज पाए




घर की दीवारों से टकराते विचार
वे पहचानने से इंकार करती हैं
आँगन भी बुझा-बुझा-सा रहता है!
मैंने कब उससे
अपनी कमाई का हिसाब माँगा है?




इतना सोचते विचारते हम उसके पास तक आ गये थें । तो हमने कहा रिस्क ले लेते है 
अबआंटी की ऊमर मे आ कर आंटीगीरी तो की ही जा सकती है ।

तो उसे बताने के लिए उसके पास तक गयें कि धीरे से बोल दूंगी ताकि कोई और ना सुने । 
अपने कान से इयरफोन भी निकाल दिया ताकि बातचीत कान बंद होने के कारण तेज से ना हो 
और वो धन्यवाद कहे तो मै मुस्कराहट के साथ जवाब भी दे दूं । 
उसे ना लगे कि नौकरानी है तो मैने भाव ना दिया ।

उसके पास गयी और धीरे से कहा अपना कुर्ता ठीक कर लो । 
उसने मेरी तरफ देखा नाक सिकोड़े , भौवे ऊपर कर बुरा सा मुँह बनाते बोली  " 
मै क्यों अपना कुत्ता ठीक करूं वो अपना कुत्ता ठीक करे । 
उनका कुत्ता ज्यादा भौक रहा था । वो टहल रहे थें आगे क्यों नही गये

आज बस
कल फिर
सादर

शनिवार, 30 सितंबर 2023

3896... कल्पना

        हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...   

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने बीते 19 मई 2023 को देश में सबसे बड़े करेंसी नोट यानी 2,000 रुपये के नोट को बंद करने का ऐलान करते हुए इसे सर्कुलेशन से बाहर कर दिया था। बाजार में मौजूद इन नोटों की वापसी की सुविधा देते हुए आरबीआई ने बैंकों के जरिए लौटाने या बदलवाने के लिए 30 सितम्बर 2023  की तारीख तय की थी... मैं दीपक हूँ

है मुझको मालूम!

पुतलियों में दीपों की लौ लहराती,

है मुझको मालूम कि

अधरों के ऊपर जगती है बाती,

उजियाला कर देने वाली

मुस्कानों से भी परिचित हूँ,

साहित्य

रचनात्मक लेखन एक यात्रा है!

यह एक ऐसी प्रक्रिया है

जो लेखकों को उनकी कल्पना को

कागज पर उतारने में मदद करती है

बुद्धि तत्व के आधार पर

विशिष्ट विचारों का निर्माण किया जाता है।

कल्पना

पात्र जीवंत हो उठते हैं इस अभ्यास में, अपनी पसंदीदा पुस्तक या लघु कहानी के एक पात्र के बारे में सोचें। आप चाहें तो कुछ कहानी या उपन्यास दोबारा पढ़ सकते हैं।

अब आओ न पापा

आपके न होने का भार ढो रही हूँ

दिन-प्रतिदिन आंसुओं के बीच जी रही हूँ

जहाँ अकेली थी, वहाँ आप आए थे

मेरी पीठ के पीछे मेरा हौसला बढ़ाए थे

पर आपके गले लगकर रोने का भी मन था

तकलीफों के जाल में लिपटा ये तन मन था

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पुनः भेंट होगी...
>>>>>><<<<<<

शुक्रवार, 29 सितंबर 2023

3895....प्राण का दीपक जलाओ

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
-------
संसार में अच्छाई ,सच्चाई, करूणा और मानवता है,
यह सृष्टि में ईश की ही पहचान है।
जो मुझे रोकता,टोकता है गलत करने से,
वो ईश ही है,जो मुझ में प्रेम रूप में विद्यमान है।

ईश्वर का अस्तित्व मनुष्य की चेतना को थामे रखने के लिए बुना गया, जबतक मनुष्य के कर्म बंधे हुए हैं पाप-पुण्य,कर्मफल के तथ्यों को मानते हुए,मनुष्य में दया और प्रेम अंर्तमन की सहज ऊर्जा है जो मनुष्य को संसार के संचालन के लिए संतुलित करती है, किंतु मनुष्य के विचारों एवं व्यवहारों की निरंकुशता असहज करती है ऐसे में एक प्रश्न अक्सर उठता है मन में कि
 ईश्वरविहीन संसार में मनुष्य की नैतिक भूमिका कैसी होगी?
आजकल बौद्धिक समृद्धशाली होने की पहली शर्ते है
ईश्वर के अस्तित्व पर सवाल उठाना और क्षुद्र विश्लेषण करना...। 


आइये पढ़ते हैं आज की रचनाएँ-



समुद्र की मचलती लहरें
किनारों से मिलने
बेसुध होकर भागती हैं 
और जलतरंग की धुन
सजने संवरने लगती है

इस संधि काल में
सूरज को धकियाते
उगने लगता है चांद

अब भी समय है
आग को अपनी जलाओ।
बाट मत देखो सुबह की
प्राण का दीपक जलाओ।
  
 मत करो परवाह
 कोई क्या कहेगा
 इस तरह तो वक्त का दुश्मन
  सदा निर्भय रहेगा।


रहे साधते वीणा के स्वर

श्वास काँपती ह्रदय डोलता 
हौले-हौले सुधियाँ आतीं,
कितनी बार कदम लौटे थे 
रह-रह वे यादें धड़कातीं !

निज पैरों का लेकर सम्बल
इक ना इक दिन चढ़ना होगा,
छोड़ आश्रय जगत के मोहक 
सूने पथ पर बढ़ना होगा !



उस पल केवल,
वह बच्ची नहीं हुई थी लहूलुहान,
उस पल समस्त,
मनुष्यजाति का हुआ था अपमान।
 
क्या जग में किसी की वेदना,
नहीं जाग पायी थी ?
इसी जग के द्वारा वह लड़की गयी सतायी थी।



प्रकृति का एक अर्थ मनुष्य का स्वभाव भी है  स्वाभाविक लगनेवाला मनुष्य का बरताव एवं अन्य अदृश्य कारक सार्वजनीन जीवन में असंतुलन लाता रहता है। हाँ, यह भी कि मनुष्य का  व्यवहार और अदृश्य कारक इसे संतुलित भी करता रहता है  असंतुलन-संतुलन की मूल द्वंद्वात्मक प्रक्रिया निरंतर जारी रहती है। मनुष्य इस अदृश्य कारक को महसूस करता है, लेकिन इसकी व्याख्या नहीं कर सकता है  इस अदृश्य कारक की अमूर्त्त शक्ति को ईश्वर माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि ईश्वर अपना उपादान और निमित्त दोनों है।

इधर मजदूर का पेट भरता, उधर कवि की कविता की भूख जाग जाती! मजदूर पेट भर खा कर चैन की नींद सोना चाहता लेकिन कविता की भूख का मारा कवि उल्लू की तरह जाग कर मजदूर से अपनी नई कविता सुनने और आज के काम का दर्द बयान करने को कहता।


--------
आज के लिए इतना ही
कल का विशेष अंक लेकर आ रही हैं
प्रिय विभा दी।

गुरुवार, 28 सितंबर 2023

3894 ..बूँद का अभिशाप मत लो

 सादर अभिवादन

आज गुरुवार है
शायद रवीन्द्र जी भूल गए
कोई बात नहीं
रचनाएं देखें ...

छोटी भाभी को उलाहने और फटकार लगाने वाली अम्मा उनके द्बारा बनाए गए सजावट के सामानों को मुहल्ले की औरतों को दिखा रही थी।उनकी कलाकारी को देख सभी ने दाँतों तले अंँगुली दवा ली। शोकेस में करीने से रखें पेंटिंग्स को देख सभी हतप्रभ रह गई। कहा -"कसीदाकारी के ऐसे नमूने नहीं देखे।"





आँगने का दीप रोया,
चार दिन से मुँह न धोया।
आँख में कीचड़ सजोया,
चुप्पियों का ताप मत लो॥

सुन सको तो ये सुनो न,
जो लिखा है वो पढ़ो न।
या कहा उसको बुनो न,
बिन कहे का चाप मत लो॥





हम सबके प्यारे गूगल बाबा
सारे जग से न्यारे गूगल बाबा

सबको राह दिखाते गूगल बाबा
दुनिया एक सिखाते गूगल बाबा

सबकी खबर लेते गूगल बाबा
सबको खबर देते गूगल बाबा




तब देवर्षि नारद ने उन्हें धन्यवाद तो दिया किन्तु फिर भी उनके मन से वो बात गयी नहीं कि उनके पिता ने उन्हें अकारण ही श्राप दे दिया है। इसी कारण उन्होंने ब्रह्मदेव से कहा - "हे पिताश्री! आपने मुझे अकारण ही श्राप दे दिया है। आपने अपने ही पुत्रों में भेद किया है। मेरे अग्रज (सनत्कुमार) को आपने वन जाकर तप करने की आज्ञा दे दी किन्तु मेरी भी वैसी इच्छा होने पर आपने मुझे अकारण ही श्राप दिया। इसीलिए मैं भी आपको श्राप देता हूँ कि तीन कल्पों तक आप पृथ्वी पर अपूज्य बने रहेंगे। तीन कल्पों के पश्चात ही पृथ्वी पर आपकी पूजा पुनः आरम्भ होगी।"

इस प्रकार पिता और पुत्र को एक दूसरे का श्राप भोगना पड़ा। नारद ने अनेक अधम योनियों में जन्म लिया और अंततः ब्रह्माजी के वरदान के कारण पुनः उनके पुत्र के रूप में जन्में और संसार के सभी ज्ञान को प्राप्त किया। ब्रह्मदेव को भी पृथ्वी पर ना पूजे जाने का श्राप भोगना पड़ा और यही कारण है कि आज भी उनकी पूजा बहुत ही कम की जाती है।

आज बस इतना ही
कल आएगी सखी
सादर

बुधवार, 27 सितंबर 2023

3893.. एकांत एक नदी है..


।। प्रातः वंदन।।

' कठिन होगी राह मगर

कुछ नया सृजन होगा

विचारों का अतिरेक होगा

एक नया स्पंदन होगा !

प्रखरित होंगे नये कुसुम

दूर क्षितिज में

नए सूर्य का आगमन होगा

सुहानी-सी भोर होगी

देखो प्रस्फुटित फिर से जीत होगी..'

मनीष मूंदड़ा

 इसी सुहानी भोर संग आनंद लीजिए   'एक बोर आदमी का रोजनामचा'से

एकांत एक नदी हैं 

जिसमे मै पड़ा रहना चाहता हूँ

किसी मगरमछ की तरह

या फिर बहता रहना चाहता हूँ, 

चुपचाप, किसी टूटे पेड़ के तने

या लट्ठे जैसा

या फिर..

🌟

घराना एक ही है हमारा, एक ही घर है हमारा 

एक ही घर से आये हैं ,एक ही जगह जाना है 
 
एक घर हमारा ,बहुत ही प्यारा बहुत  ही न्यारा 

सजाना संवारना इसे ही है ,यही अपना ठिकाना

🌟

वक्त मिला नहीं अकसर बहाना होता,

वक्त का आना-जाना तो रोजाना होता।

वक्त नहीं करता किसी का इंतजार,

पकड़ो तो याराना, छोड़ो तो वेगाना होता।

नहीं होती भेंट अकल और उमर की,

एक का आना तो, एक का जाना होता।

🌟

क्या मिला....ये छोड़िये

खुद क्या किया...ये सोचीये

आज दुपहरी क्रोशिया चलाते हुए एक पोडकास्ट सुना। इतना सकारात्मक कि मेरे पास शब्द नहीं है।

     पोडकास्ट में एक व्यक्ति अपने साथ हुए एक दुखद हादसे को यह कहकर परिभाषित कर रहा है कि जो भी होता है अच्छे के लिये होता है ।

         इंटरव्यू लेने वाली महिला..

🌟

भ्रष्ट आचरण का लगानेताजी को रोग,

फल इनकी करतूत काभुगतें बाकी लोग, 

जंगल के इस राज में खुदगर्जी आबाद,

जनता भूखी डोलती, नेता छप्पन भोग...

दोहा मुक्तक के साथ ,आज यही तक मिलते कल फिर नये प्रस्तुतकर्ता रवीन्द्र जी के संग।

।। इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️

मंगलवार, 26 सितंबर 2023

3892....धूप देह पर मद्धम-मद्धम होती है

 मंगलवारीय अंक में आप
 सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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खुला आसमान और विशाल धरती के बीच इंसान प्रकृति का एक अदना सा हिस्सा है। इंसान कितना भी ज्ञान अर्जित कर ले, कितना भी विज्ञान को जान जाये लेकिन प्रकृति हर बार कुछ ऐसा कर जाती है कि हर बार उसके करिश्मे के आगे विज्ञान भी घुटने टेक देता है।
इस दुनिया की सभी नकारात्मक शक्तियां मनुष्य जनित ही हैं। यदि मनुष्य प्रलोभनों, लोभ व स्वार्थ के अंधेरों में न भटकता तो उसे कृत्रिमता पर आधारित जीवन नहीं अपनाना पड़ता। इसी व्यवहार के कारण मानव और प्रकृति के बीच का तारतम्य टूट गया है। परिणामस्वरूप मानवीय विचार, भावनाएँ तथा ज्ञान पारदर्शी न रहकर द्वंद्वात्मक हो गए। अप्रत्याशित प्राकृतिक आपदाएँ स्वार्थी मानवीय कृत्यों का दंड ही तो है।


आइये आज की रचनाओं के संसार में-


सिद्धि विनायक हे गणनायक 
विघ्नहरण मंगलकर्ता ।
एकदंत प्रभु दयावंत तुम
करो दया संकटहर्ता ।

चौदह लोक त्रिभुवन के स्वामी
रिद्धि सिद्धि दातार प्रभु  !
बुद्धि प्रदाता, देव एकाक्षर
भरो बुद्धि भंडार प्रभु  !



धूप देह पर मद्धम-मद्धम होती है.

माँ की डाँट-डपट भी मरहम होती है.


आशा और निराशा पल-पल जीवन-रत,

माँ तो माँ है हर पल हर-दम होती है.




बाहर फूलों के धोखे में 

काँटों से पाँव छिलवाये 

ख़ुद पे यक़ीन कर 

ख़ुदा में छिपा है ख़ुद 

वह यक़ीन ही छू सकता उसे 

 जर्रे-जर्रे में जो मुस्कुराए 

तू खुश है ही बेवजह 

जैसे दुनिया की वजह नहीं 

तलाश ख़ुशियों की 



लहरें भी तो घूम घूम के वहीं आती है 
तो क्या बेमतलब हो गयीं वो 
शब्दों का पूरा समंदर है 
और उनका निकलना 
लहरों की संगत सा है 
रूठ के शब्द चले गये 
गले से कहीं दूर 
नीचे उतर गये 
उस दिन बिना मौन 



इधर-उधर बिचड़ते और ध्यान लगाते कई तांत्रिक और साधु संत भी दिखाई दिए। इसी बीच कुछ चीज कौतुक का कारण बना । मंदिर में कबूतर और बकरे के बिचड़ने की प्रचुरता थी। रेलगाड़ी पर गया निवासी बड़े भाई अधिवक्ता मदन तिवारी मिले थे । उन्होंने मंदिर में बलि प्रथा को लेकर नकारात्मक बातें कही थी। मैं स्वयं माता के नाम पर जीव हत्या का आलोचक रहा हूं। कई मंदिरों में इसीलिए नहीं जाता ।

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आज के लिए इतना ही
फिर मिलते है 
अगले अंक में।


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