सादर अभिवादन
पिंडदान करते हुए
पापा आपके साथ
दादा का परदादा का
स्मरण तो किया ही
माँ के साथ
नानी और परनानी को
स्मरण करने पे
श्रद्धा के साथ गर्व भी हुआ
पिता की भूमिका में एक भाई
कल देखा है मैंने एक ऐसे ही पुरुष को
जिसके माथे पर ढुलकी गंग-स्वेद बिंदु
दमकती चिंताओं का अभिषेक कर रहीं थी
और बता रही थी सबको कि
वात्सल्य का भाव जगत में सबसे सुंदर होता है,
पिता की भूमिका में एक भाई
पिता से बढ़कर होता है।
महात्मा ....ओंकार केडिया
इतनी नफ़रत,
इतना उन्माद!
बापू,
बहुत खलता है इन दिनों
तुम्हारा नहीं होना.
उत्तर है इसके हल में ... दिगम्बर नासवा
बापू की स्मृति में
शास्त्री जी की याद में
चलो हम भी
कुछ कर के देखें,
उनके कहे पर
चल कर देखें,
क्या सच में
कुछ बदलता है ?
......
कुछ पंक्तिया दे रही हूँ
रचना लिख कर रविवार को सुबह ब्लॉग रख दीजिएगा
ख्याति प्राप्त लेखक की रचना है
नील-नीर-पान-निरत,
जगती के जन अविरत,
नील नाल से आनत,
तिर्यक-अति-नील अलक,
इसमें एक शब्द आया है तिर्यक
इसी के आधार पर लिखिएगा
ख्याल रक्खें
सादर