निवेदन।


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बुधवार, 31 मार्च 2021

2084..झरें होंगे चाँदनी मे , हरसिंगार...

 ।। उषा स्वस्ति ।।

"तुम बंजर हो जाओगे...

यदि इतने व्यवस्थित ढ़ँग से रहोगे 

यदि इतने सोच समझकर 

बोलोगे ,चलोगे, 

कभी मन की नहीं कहोगे ,

सच को दबाकर झूठे प्रेम के गाने गाओगे 

तो मैं तुमसे कहता हूँ ,तुम बंजर हो जाओगे..!!"

भवानी प्रसाद मिश्रा ..हिन्दी के प्रसिद्ध कवि तथा गांधीवादी विचारक, दूसरा सप्तक के प्रथम कवि, गांंधी-दर्शन का प्रभाव तथा नम मिट्टी की अभूतपूर्व झलक अपनी कविताओं में रखने वाले साहित्यकार आ० भवानी प्रसाद मिश्रा..  विनम्र नमन.. 

जिनके लिए कविता अभिव्यक्ति नहीं बल्कि अनुभव का माध्यम है..✍️

इसी क्रम को आगें बढ़ातें हुए आज कुछ कवित्त लेखनी से रूबरू होते हैं.. रचनाकारों के नाम क्रमानुसार पढ़ें...

⚜️⚜️


झरें होंगे चाँदनी मे , हरसिंगार...

झरें होंगे चाँदनी मे ,

 हरसिंगार...

निकलेंगे अगर घर से,

तो देख लेंगे ।

नीम की टहनी पर,

झूलता सा चाँद..

 मिला फिर से अवसर

 ⚜️⚜️


संस्कृत और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस: समय है अपनी जड़ों की ओर वापसी का

प्लास्ट‍िक से न‍िर्म‍ित डेकोरेट‍िव पौधे चाहे क‍ितने ही सुंदर क्यों ना हों, उनको देखकर न तो मन शांत होता है और न ही प्रफुल्ल‍ित, जबक‍ि वास्तव‍िक पौधों की देखभाल में अनेक झंझट रहते हुए भी सुकून उन्हीं से म‍िलता है। यही बात देवभाषा संस्कृत के बारे में है, जहां हमारे हीनभाव ने अंग्रेजी जैसी डेकोरेट‍िव भाषा को तो घरों में सजा ल‍िया और वास्तव‍िक आनंद देने वाली ‘संस्कृत’ को गंवारू भाषा ठहरा द‍िया। ..

 ⚜️⚜️


 अबके होली, ना रंग लगाना

ना टोली बनाना

ये मौसम करोना का है-२

श्याम दूर से ही फाग गाना,

ना मौज मनाना..

⚜️⚜️

कविता

बड़ी ही अजीब होती है ख़यालों की दुनियां

वास्तविकता से परे तो आभाषी में भी जीवंत सी

लाखों ख्वाहिशों में लिपटी सी

मन मे अलग उथलपुथल रख दे

बिना बात धकड़नों  के तीव्र वेग..

⚜️⚜️


अच्छा नहीं आया!!

बताएँ क्यूँ के हमको अब तलक क्या क्या नहीं आया

हाँ ये है सामने वाले को भरमाना नहीं आया

जो कहना था न कह पाए हों शायद हम सलीके से

है मुम्क़िन यह भी शायद उनको ही सुनना नहीं आया..

⚜️⚜️

।। इति शम ।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️

मंगलवार, 30 मार्च 2021

2083......कि मौसम करोना का है-२

जय मां हाटेशवरी.....
सादर नमन......
करोना के कहर के कारण...... 
इस बार की होली का रंग भी फीका ही था......
काश! होलिका दहन के बाद अब......... 
करोना रूपी हिरनाकशप का संहार भी हो जाता.......
अब तो असंभव लगता है...... 
कोई घर को चला और पहुंचा नहीं. 
किसी की गोद में नन्ही बिटिया. कोई नंगे पैर.... 
किसी का बेटा मरा था और 
वो घर से दूर सुनसान 
सड़क पर बैठके रोए जा रहा था. 
कितने ही बच्चे छोटे-छोटे हाथों में 
कोल्ड ड्रिंक की खाली बड़ी बोतल में 
पानी भरे लिए जा रहे थे. 
इस बात से बेख़बर कि 
आगे के किसी ज़िले में कोई प्रशासन 
कीटनाशक की बौछार करेगा. 
चोट लगने पर 'चींटी मर गई' 
सुनने वाले बच्चे बदन की चींटियां खोजते रहे. 
कितनों को लाठियां पड़ी, थप्पड़ खाए. 
क्योंकि उनका गुनाह ये था कि 
वो अपने ही घर लौट रहे थे. 
कितनों को ही पहली बार ये पता चला कि 
आपका नाम, धर्म किसी गैर की सोसाइटी में 
घुसने के लिए कितना ज़रूरी होता है. 
 कितने ही लोगों को चंद दिनों में 
वहां से नौकरी से निकाल दिया गया, 
जहां सालों साल अपना खून पसीना बहाया था. 
होली, दिवाली की घर वाली खुशियों को 
जहां रहकर गँवाया  था. 
2020 में कोरोना लॉकडाउन के बाद पलायन ने 
ना जाने कितने ही लोगों के जीवन में दुख बढ़ा दिए थे. 
कुछ अच्छा भी रहा था, कुछ लोग भी अच्छे रहे थे 
जिन्होंने सब ठीक करने में अपना पूरा ज़ोर लगा दिया. 
लेकिन 'सब ठीक हो जाएगा...'  
जैसी लाइनें कई बार कितनी झूठी जान पड़ती हैं. 
वो सच्ची तभी जान पड़ती हैं, 
जब सब ठीक हो जाता है. 
पर सब...ठीक कहां होता है? कम ठीक की आदत पड़ जाती है. 
वो साल 2020 था, ये साल 2021 है. 
विकास त्रिवेदी, बीबीसी संवाददाता

अबके होली
कान्हा दिल में करो ना मलाल अरे अगले साल मचेगा धमाल उडेगा फिर सतरंगी गुलाल बनवारी, ओ बनवारी जरा घर तो आना है टीका लगाना कि मौसम करोना का है-२ राधे, मनवा तो माने नही है मगर बतिया सही है ये मौसम करोना का है-२ अबके होली, ना रंग लगाना ना टोली बनाना ये मौसम करोना का है-२

मेरा गांव कहीं खो गया है
होली की घीनड़  गणगौर का मेला  कहीं खो गया है  मेरा गांव कहीं ---- बनीठनी पनिहारिन  ग्वाले का अलगोजा  कहीं खो गया है  मेरा गांव कहीं ---- आँगन में मांडना  सावन में झूला  कहीं खो गया है

 

थोडी संजीदा होते हुये समीरा बोली 

आप यहाँ के बारे में कितना जानती हैं, ये औरत जिसको अपना शौहर कह रही थी दरअसल वो उसका शौहर है ही नही, वो है लडकियों का सौदागर, ये दूसरे दूसरे मुल्कों से मजलूम लडकियों को जाता है, उनसे निकाह करता है, और फिर अगर लडका हुआ तो ठीक अगर लडकी हुयी तो, औरत को मार दिया और लडकी को अनाथाश्रम के रास्ते उसको अनाथ बताते हुये पहुँचा दिया बाजार। मैडम जी वो जानती थी कि अगर बेटी हुयी तो उसकी जिन्दगी में मरना तो तय है, चाहे जन्म से पहले मरे या जन्म के बाद रोज मर मर कर जिये और एक दिन फिर उसी की तरह किसी लडकी को जन्म देकर मर जाय। रात भर मैं परेशान रही ये सोच कर कि मैने सही किया या गलत, क्या उसका औरत होना कुसूर था? क्या वो यहाँ से भाग नही सकती? क्या वो पुलिस की मदद नही ले सकती थी? बडी मुश्किल से सो पायी थी उस रात। सुबह देर से नींद खुली, विवेक अस्पताल जा चुके थे, मेरा सिर भारी हो रहा था, सोचा एक कप चाय पी लेती हूँ, चाय बना कर टेलीविजन ऑन किया, न्यूज का जो सीन मेरी आँखों के सामने था उसे देखकर हाथ में आ गयी मेज को अगर कस कर पकड ना लिया होता तो चक्कर खा कर गिर ही जाती। बीच बाजार में दो लोगों ने, पुलिस वालों की मौजूदगी में एक महिला का सरेआम कत्ल कर दिया था। न्यूज वाले बता रहे थे, उस पर अपने गर्भ में पल रही लडकी को मारने का इल्जाम था। और इसी कत्ल की उसे सजा दी गयी थी।

       

मैं इन बातों को सुनकर हैरान हुई, 

और सोचने लगी कि इस तरह तो गाँव को महिला प्रधान होने का कोई फ़ायदा नहीं मिल सकता, और महिला प्रधान अपनी प्रतिभा के द्वारा कोई कार्य कर ही नहीं पाएगी, इसके लिए सरकार को और समाज को कोई न कोई ठोस कदम उठाने होंगे ।जिससे महिला प्रधान अपने हिसाब से अपने कार्य को करे और ग्रामीण जीवन की हर छोटी बड़ी समस्या का निराकरण कर सके तथा गाँव के  साथ साथ ग्रामीण महिलाओं और उनके बच्चों के जीवन स्तर में सुधार ला सके । तभी गाँवों को महिला प्रधान होने का फ़ायदा मिलेगा।

बस गयी बारूद की खुशबू हवा में
इस तरह से सड़ चुका पर्यावरण है भूख से वो उम्र भर लड़ता रहेगा जिसने ढूंढा ताल छंद और व्‍याकरण है हैं मेरे भी मित्र क्या तुमको बताऊँ सांप से ज्यादा विषैला आचरण है प्रेम के दो बोल हैं सपनों की बातें विष में डूबा आज हर अन्तःकरण है

आन पे जब आँच पड़ी शमशीर निकाला हमने! समुन्दर जैसी खारी ,पर पावन गंगा जल मै हूँ ;
पति की  अंकशायनी  पर सहचरी  भी  मैं हूँ !
दहेज की बलि वेदी पे उत्सर्ग करूँ स्वयं को;
इतनी लाचार नही,नव युग की शक्ति,चण्डी मै हूँ!

बिटिया पढ़कर घर आयेगी--
आकर गले से लग जायेगी ,
उस पल याद तुम्हारी आती है -
एक छवि मुखर हो जाती है --
जब थकी -
थकी मेरी प्रतीक्षा में तू -
आंगन में बैठी होती थी ;
देख के मेरा मुखड़ा माँ
तू ख़ुशी के आंसू रो देती थी ;

अगली बार......
होली के सभी रंगों के साथ........
मचाएंगे धमाल......
करोना का नाम तक नहीं होगा......
इसी शुभकामना के साथ......
धन्यवाद।

सोमवार, 29 मार्च 2021

2082 ----- होली का त्योहार ..... और .... अखबार ही अखबार ..

  होली है ....... होली है ...... होली है .....

आज तो हमें न पता कि यहाँ क्या चर्चा कर  रहे और क्या लिंक लगा रहे । भई होली है ...... जोगी सारा रा रा रा रा।

होली के चक्कर में कल एक पड़ोसी थोड़ी ठंडाई ले आये  कि भाभी बहुत बढ़िया बनाई आप पी कर देखो ।कहा भी हमने कि भैया सुना तुम बूटी बहुत बढ़िया छानते , हम न पियेंगे । तो बोले अरे आपको थोड़े ही पिला देंगे बूटी , ये तो ठंडाई है । उनका लिहाज करते हुए जैसे ही ठंडाई पी , जोर से  बोले बुरा न मानो होली है ......  जीत गए जी जीत गए हम तो शर्त जीत गए ....
 
और हम  हक्के बक्के मुँह फाड़े देख रहे उनको ..

 हम बोले , जे तो बहुत ही गलत बात कर दिए भैया आप ।अब बताओ सोमवार को पाँच लिंक का आनंद पर लिंक लगाने और तुम हमको टुन्न कर दिए । हो गया न सब गड़बड़ । अब हम क्या तो लिखेंगे और क्या चर्चा करेंगे .... सब तुम्हारी गलती ... लगे जार जार रोने ....

 भैया बोले काहे परेशान हो रहीं आप , ऐसा करो जिसकी पोस्ट लगानी न वो हमें दे दो ,हम अपने प्रकासक मित्र से छपवा लाते हैं अखबार में , तुम्हें  कछु न लिखना पड़ेगा । 
बस वो अखबार ही लगा देना  , अपने आप पढ़ लेंगे अखबार ।  हमें भी लगा ये बढ़िया । वैसे भी सबको ही अखबार में छपना बहुत ही पसंद ....न कुछ लिखना पड़ेगा न सोचना । हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा ......  आइडिया बढ़िया दिया । बस फटाफट हमने उनको पोस्ट पकड़ाईं और लगे इन्तज़ार करने । थोड़ी देर में देखा प्रफ्फुलित मन चले आ रहे भैया हाथ में अखबार लिए । चेहरे पर हमारे भी मुस्कान दौड़ गयी लो जी हो गया काम ....पर ये क्या सारे अखबार अंग्रेजी में  । मैंने पूछा भैया जी ये हिंदी के ब्लॉग की पोस्ट अंग्रेजी में छपवा दी , ये क्या गज़ब किया ? 
बड़े इत्मीनान से बोले , हमारे जो मित्र हैं न प्रकासक उनके  हिंया अंग्रेजी में ही छपता अखबार । तो हम सब हिंदी का अनुवाद  अंग्रेज़ी में करा  दिए हैं। 
अब हम पर तो धीरे धीरे बूटी असर कर रही थी.... कुछ समझ आ रहा था कुछ नहीं .... तो बस अखबार उठा जैसे तैसे आज लिंक लगा दिए हैं । अब खुद ही पहचान लो कि किसकी रचना किस अखबार में छपी । हम तो बस होली की तरंग में बैठे । 

बस इतना बताये दे रहे कि न जाने काहे जिद्दी शर्त ले     रिश्तों के पीछे पड़ गए लोग .... और फिर कर रहे खुद      ही में आत्म मंथन  .... अब भला बताओ  त्योहार पर करता  कोई   ऐसा ?   नहीं न ... तो चलो हम तो फगुनाहट ही कर लें ....क्या गज़ब होली के गीत लिखे  और सबसे ज्यादा  तो चमत्कार जो हुआ वो जानने लायक ......खेली तो सूखी  होली  पर भीगे ज़बरदस्त अंतस तक ......









अब भैया अपना अपना अखबार छांटो  और पढो खोल कर ....  किसके हाथ कौन सा अखबार आये ..... मुझे कुछ नहीं मालूम ....  लिंक तक पहुँचने के लिए  ज़रा उलटिए  - पलटिये अखबार ..... अरे वही मतलब न कि.... करिए क्लिक  अखबार पर ...... 


होली की हार्दिक शुभकामनाएं 

मिलते हैं अगले सोमवार को 

नमस्कार 
संगीता स्वरुप 






रविवार, 28 मार्च 2021

2081 ...कपड़ा चला जायेगा बाबूजी! पर रंग हमेशा आपके साथ रहेगा

सादर नमस्कार
अचानक हम क्यों
है न सर पर आईज
देर न करें चलिए चलें


सखि रे! गंध मतायो भीनी
राग फाग का छायो

राग-द्वेष का होम करें
होलिका हुलस हुमकायो
प्रीत भरी पिचकारी धार
मन के मैल छुड़ायो


खेलता है रास कान्हा
आज भी राधा के संग,  
प्रीत की पिचकारियों से
डाल रहा रात-दिन रंग !


मैं सीढ़ी चढ़ूं
तुम्हें सांप काटे
मैं ताली बजाऊँ
आओ चलो
साँप-सीढ़ी खेलें


चाहे बुरका हो या
घूँघट
दोनों में ही
महिलाओं को
चेहरा ढकना पड़ता है।
बुरके का इस्तेमाल
मुस्लिम महिलायें या
लड़कियाँ पुरुषों की निगाहों से
बचने के लिए उपयोग करती हैं।


लो! फागुन आया है
 सरहद पर सजना
ये मन बौराया   है।

ये ढोलक, मंजीरे
सखियों  की टोली
गाती  धीरे- धीरे।


चलते-चलते दो रचनाएँ बंद ब्लॉग से

मित्रों,
एकाएक मेरा विलगाव आपलोगों को
नागवार लग रहा है, किन्तु शायद आपको यह पता नहीं है कि
मैं पिछले कई महीनो से जीवन के लिए मृत्यु से जूझ रही हूँ ।
अचानक जीभ में गंभीर संक्रमण हो जाने के कारण यह
स्थिति उत्पन्न हो गयी है। जीवन का चिराग जलता रहा तो
फिर खिलने - मिलने का क्रम जारी रहेगा।
बहरहाल, सबकी खुशियों के लिए प्रार्थना।
- संध्या जी की अंतिम रचना

मैं उसके रक्त को छूना चाहती हूं
जिसने इतने सुन्दर चित्र बनाये
उस रंगरेज के रंगों में घुलना चाहती हूं
जो कहता है-
कपड़ा चला जायेगा बाबूजी!
पर रंग हमेशा आपके साथ रहेगा


अपने-आप से बात करना बेहद पसंद है मुझे ..
अपने-आप में जीना उससे भी ज्यादा। छोटी -छोटी ख्वाइशयें हैं मेरी ..
उनको पूरा करना चाहती हूँ, ज़िन्दगी रहने तलक। अपने-आप को,
ज़िन्दगी को, महसूस करना चाहती हूँ .. पूरी शिद्दत के साथ।
एक साँस लेना चाहती हूँ .. जो सिर्फ मेरी हो ..
मेरे खुद के लिए हो। इसलिए लिखती हूँ .. "मैं" -गुंजन

पर क्यूँ .. मैं तो वहीँ थी
हरदम तुम्हारे आस-पास
फिर क्यूँ तुमने .. मुझे नहीं पुकारा ?
फिर क्यूँ मेरी यादों से
अपने मकां को सजाया ?
....
आज बस
कल मिलिए बड़ी दीदी से
सादर

शनिवार, 27 मार्च 2021

2080...मन्मथोत्सव


हाज़िर हूँ...! उपस्थिति दर्ज हो...

बरगद

परिवार तो बरगद की छाँव है

तुम जो ठीक समझो...

खुश रहो, मगर सुनते भी जाओ -

तुम सागर को छोड़ एक्वेरियम में जा रहे हो

अंग्रेजों की लाठी खाई है

और इंगलिश सीखी है उनसे ही...

कभी अपने आपको अकेला महसूस करो

तो...तुम्हारे इसी एक्वेरियम के सामने बैठकर

मछलियों की आंखों में झांकना

पढ़ना उनकी व्यथा को

बरगद

कभी कभी

मैं सोचता हूं

काश इंसान भी न बदलते

लेकिन

फिर अचानक

हवा का एक  झोंका आता है

कल्‍पना से परे

हकीकत से सामना होता है

बरगद

बरगद का वो बूढ़ा पेड़,

खड़ा चुपचाप सड़क किनारे,

आने जाने वालों को जाने

 कब से रहा निहारे . कितने ... 

इसने बांधे थे कभी

बरगद पर सुहाग के धागे

बरगद

जर्जर होकर कहीं से ख़त्म होता है बरगद

पर ठीक उसी वक़्त होता है पुनर्जीवित भी

अपने तनों की लड़ियों को

पत्तियों के संसार से धरती की यात्रा कराता है

फिर समानांतर  कई तने विकसित करता है

यही स्वनिर्मित दुनियावी सहारे हैं

और अन्ततः यही हमें बचाते हैं

बरगद

बगीचे को निहारते हुए जब अनीता आगे बढ़ी तो अचानक एक पेड़ को देखकर कहने लगी ये क्या भैया मैंने पिछली बार भी आपको इस पेड़ को काटने को कहा था, इस बार भी आपने आलस दिखा दिया ।

माली ने कहा :- मैं आलसी नहीं हूँ बीबीजी मै आज इस पेड़ को काट देता पर जैसे ही मैंने कुल्हाड़ी उठाई ऐसा लगा इस पेड़ ने मेरे हाथ पकड़ लिए हैं और कह रहा है कि पुराना हूँ तो क्या हुआ, माना कि फल फूल नहीं देता ,लेकिन इस बगीचे और लॉन को कड़ी धूप से तो बचाता हूँ ,कुछ साल बाद कमजोर होकर मैं खुद ही गिर जाऊँगा ।

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पुनः भेंट होगी...

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शुक्रवार, 26 मार्च 2021

2079....सखि रे!!

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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हमारी प्रिय कवयित्री
महादेवी वर्मा का आज जन्मदिन है।

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कचनारी रतनारी डाली 
 लचक मटक इतरायो
 सारंग सुगंध सुधहीन भ्रमर
 बाट बटोही बिसरायो
सखि रे! गंध मतायो भीनी
राग फाग का छायो !!

श्वेता

रंगोत्सव की इंद्रधनुषी सुगंध और
मौसम के बदलाव का एहसास करते हुये आज की विविधापूर्ण 
रचनाओं का आनंद लेते हैं। 

-----////-----

चाय पर चर्चा तो बहुत सुनी होगी आपने, 
चित्र-आधारित
 यहाँ जो चाय परोसी गयी है 
उसके पात्र पति-पत्नी को
 भले ही बाघ और बकरी के बिंबात्मक संदर्भ में
चित्रित किया गया है किंतु यकीन मानिये मैंने इस रचना को जितनी बार पढ़ा हर बार एक नया अर्थ मिला आप पढ़कर अपना मतंव्य जरूर बताइयेगा-

बाघ-बकरी चाय



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प्रेम एहसास है, मन का अलौकिक स्पंदन, जिसे भौतिक रूप से प्राप्त करने की लालसा वेदना का कारण बनती है, 
प्रेम और रिश्तों का संबंध स्पष्ट करती
बेहद गहन भावों से गूँथी गयी रचना -



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 जीवन में खुशियों के 
इंद्रधनुषी रंग और दिलों में मिठास भरती,
 रंगोत्सव पर अपने मनमीत को
प्रेम पगी पत्र लिखती नायिका की खूबसूरत अभिव्यक्ति


-----///----

समसामयिकी परिस्थितियों पर
लिखी बेहतरीन गज़ल,जिसके हर शेर पर आप दाद दिये बिना
नहीं रह पायेंगे- 

अच्छी नहीं लगती 


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 फलों के राजा आम की आत्मकथा,आम पर अनगिनत रचनाएँ पढ़ी होंगी आपने,परंतु इस आम की गुठली की 
मासूमियत,आप पथिक को कुछ क्षण रूककर विचार मंथन के लिए आमंत्रित कर रही पढिए एक 
 अद्भुत रचना-



-------/////----

आज बस इतना ही
कल आयेंगी विभा दी अनूठे संकलन के साथ।

#श्वेता सिन्हा

गुरुवार, 25 मार्च 2021

2078...पीपल की कोमल कोंपलें बजतीं हैं डमरू-सीं पुरवाई में...

 सादर अभिवादन। 

गुरुवारीय अंक में आपका स्वागत है। 


पीपल की कोमल कोंपलें 

बजतीं हैं डमरू-सीं पुरवाई में,

रूप बदलकर वृक्षराज 

झूम रहा ज्यों शहनाई में। 

#रवीन्द्र_सिंह_यादव 


आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-

बात... डॉ.अपर्णा त्रिपाठी 

हाँ बात के नही होते यूं तो सिर या पैर

मगर निकलती तो दूर तलक जाती बात

कहती पलाश सबसे सौ बात की इक बात

सोच समझ कर सदा कहो किसी से बात


धूप को जंगल नहीं होने देंगे...संदीप कुमार शर्मा 

सच 

पत्तों ने 

अपनी 

धूप को 

अपनी मुट्ठी में छिपा 

लिया है

अगली 

पीढ़ी की मुस्कान

के लिए...


शहीदों को याद करते हुए... अपर्णा बाजपेयी 

था सिसक रहा पूरा भारत

और देशप्रेम की अलख जगी

कुर्बान हुए उन वीरों से

अगणित वीरों की फौज उठी,


चोर लूटे, खर्च फूटे...अनीता 

हमारी मंजिल यदि शमशान घाट ही है, चाहे वह आज हो या पचास वर्ष बाद, तो क्या हासिल किया। एक रहस्य जिसे दुनिया भगवान कहती है, हमारे माध्यम से स्वयं को प्रकट करने हेतु सदा ही निकट है। वही जो प्रकृति के कण-कण से व्यक्त हो रहा है। वह एक अजेय मुस्कान की तरह हमारे अधरों पर टिकना चाहता है और करुणा की तरह आँखों से बहना चाहता है।

फ़िल्म-निर्माण में सशक्त पटकथा एवम् कुशल निर्देशन का महत्व...जितेन्द्र माथुर 

 
कभी-कभी कोई फ़िल्मकार अच्छा लेखक होता है लेकिन अच्छा निर्देशक नहीं  स्वर्गीय ख़्वाजा अहमद अब्बास के साथ यही बात थी  वे एक महान साहित्यकार थे और इसीलिए उन्होंने अपनी ही रचित कहानियों पर फ़िल्में बनाईं और उन फ़िल्मों में कथाओं की आत्मा को ज्यों-का-त्यों रखा  लेकिन वे कुशल निर्देशक नहीं थेइसीलिए उनकी बनाई फ़िल्मों में मनोरंजन के उस तत्व का अभाव होता था जो किसी भी फ़िल्म को दर्शकों के लिए स्वीकार्य बनाता है  मैंने उनकी बनाई हुई फ़िल्म 'बंबई रात की बाहों में' (१९६८देखी जिसके लेखक-निर्माता-निर्देशक सब अब्बास साहब ही थे  कहानी अत्यंत प्रेरणास्पद थी लेकिन फ़िल्म ऊबाऊ और प्रभावहीन बनकर रह गई  

*****

आज बस यहीं तक 

फिर मिलेंगे अगले गुरुवार (गुरूवार नहीं )।  


रवीन्द्र सिंह यादव 


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