जय मां हाटेशवरी.....
सादर नमन......करोना के कहर के कारण......
इस बार की होली का रंग भी फीका ही था......
काश! होलिका दहन के बाद अब.........
करोना रूपी हिरनाकशप का संहार भी हो जाता.......
अब तो असंभव लगता है......
कोई घर को चला और पहुंचा नहीं.
किसी की गोद में नन्ही बिटिया. कोई नंगे पैर....
किसी का बेटा मरा था और
वो घर से दूर सुनसान
सड़क पर बैठके रोए जा रहा था.
कितने ही बच्चे छोटे-छोटे हाथों में
कोल्ड ड्रिंक की खाली बड़ी बोतल में
पानी भरे लिए जा रहे थे.
इस बात से बेख़बर कि
आगे के किसी ज़िले में कोई प्रशासन
कीटनाशक
की बौछार करेगा.
चोट लगने पर 'चींटी मर गई'
सुनने वाले बच्चे बदन की चींटियां खोजते रहे.
कितनों को लाठियां पड़ी, थप्पड़ खाए.
क्योंकि उनका गुनाह ये था कि
वो अपने ही घर लौट रहे थे.
कितनों को ही पहली बार ये पता चला कि
आपका नाम, धर्म किसी गैर की सोसाइटी में
घुसने के लिए कितना ज़रूरी होता है.
कितने ही लोगों को चंद दिनों में
वहां से नौकरी से निकाल दिया गया,
जहां सालों साल अपना खून पसीना बहाया था.
होली, दिवाली की घर वाली खुशियों को
जहां रहकर गँवाया
था.
2020 में कोरोना लॉकडाउन के बाद पलायन ने
ना जाने कितने ही लोगों के जीवन में दुख बढ़ा दिए थे.
कुछ अच्छा भी रहा था, कुछ लोग भी अच्छे रहे थे
जिन्होंने सब ठीक
करने में अपना पूरा ज़ोर लगा दिया.
लेकिन 'सब ठीक हो जाएगा...'
जैसी लाइनें कई बार कितनी झूठी जान पड़ती हैं.
वो सच्ची तभी जान पड़ती हैं,
जब सब ठीक हो जाता है.
पर सब...ठीक कहां होता है? कम
ठीक की आदत पड़ जाती है.
वो साल 2020 था, ये साल 2021 है.
विकास त्रिवेदी, बीबीसी संवाददाता
अबके होली
कान्हा दिल में करो ना मलाल
अरे अगले साल
मचेगा धमाल
उडेगा फिर सतरंगी गुलाल
बनवारी, ओ बनवारी जरा घर तो आना
है टीका लगाना
कि मौसम करोना का है-२
राधे, मनवा तो माने नही है
मगर बतिया सही है
ये मौसम करोना का है-२
अबके होली, ना रंग लगाना
ना टोली बनाना
ये मौसम करोना का है-२
मेरा गांव कहीं खो गया है
होली की घीनड़
गणगौर का मेला
कहीं खो गया है
मेरा गांव कहीं ----
बनीठनी पनिहारिन
ग्वाले का अलगोजा
कहीं खो गया है
मेरा गांव कहीं ----
आँगन में मांडना
सावन में झूला
कहीं खो गया है
थोडी संजीदा होते हुये समीरा बोली
आप यहाँ के बारे में कितना जानती हैं, ये औरत जिसको अपना शौहर कह रही थी दरअसल वो उसका शौहर है ही नही, वो है लडकियों का
सौदागर, ये दूसरे दूसरे मुल्कों से मजलूम लडकियों को जाता है, उनसे निकाह करता है, और फिर अगर लडका हुआ तो ठीक अगर लडकी हुयी तो, औरत को मार दिया और लडकी को
अनाथाश्रम के रास्ते उसको अनाथ बताते हुये पहुँचा दिया बाजार। मैडम जी वो जानती थी कि अगर बेटी हुयी तो उसकी जिन्दगी में मरना तो तय है, चाहे जन्म से पहले मरे
या जन्म के बाद रोज मर मर कर जिये और एक दिन फिर उसी की तरह किसी लडकी को जन्म देकर मर जाय।
रात भर मैं परेशान रही ये सोच कर कि मैने सही किया या गलत, क्या उसका औरत होना कुसूर था? क्या वो यहाँ से भाग नही सकती? क्या वो पुलिस की मदद नही ले सकती थी?
बडी मुश्किल से सो पायी थी उस रात। सुबह देर से नींद खुली, विवेक अस्पताल जा चुके थे, मेरा सिर भारी हो रहा था, सोचा एक कप चाय पी लेती हूँ, चाय बना कर टेलीविजन
ऑन किया, न्यूज का जो सीन मेरी आँखों के सामने था उसे देखकर हाथ में आ गयी मेज को अगर कस कर पकड ना लिया होता तो चक्कर खा कर गिर ही जाती। बीच बाजार में दो
लोगों ने, पुलिस वालों की मौजूदगी में एक महिला का सरेआम कत्ल कर दिया था। न्यूज वाले बता रहे थे, उस पर अपने गर्भ में पल रही लडकी को मारने का इल्जाम था। और
इसी कत्ल की उसे सजा दी गयी थी।
मैं इन बातों को सुनकर हैरान हुई,
और सोचने लगी कि इस तरह तो गाँव को महिला प्रधान होने का कोई फ़ायदा नहीं मिल सकता, और महिला प्रधान अपनी प्रतिभा के
द्वारा कोई कार्य कर ही नहीं पाएगी, इसके लिए सरकार को और समाज को कोई न कोई ठोस कदम उठाने होंगे ।जिससे महिला प्रधान अपने हिसाब से अपने कार्य को करे और ग्रामीण
जीवन की हर छोटी बड़ी समस्या का निराकरण कर सके तथा गाँव के साथ साथ ग्रामीण महिलाओं और उनके बच्चों के जीवन स्तर में सुधार ला सके । तभी गाँवों को महिला प्रधान
होने का फ़ायदा मिलेगा।
बस गयी बारूद की खुशबू हवा में
इस तरह से सड़ चुका पर्यावरण है
भूख से वो उम्र भर लड़ता रहेगा
जिसने ढूंढा ताल छंद और व्याकरण है
हैं मेरे भी मित्र क्या तुमको बताऊँ
सांप से ज्यादा विषैला आचरण है
प्रेम के दो बोल हैं सपनों की बातें
विष में डूबा आज हर अन्तःकरण है
आन पे जब आँच पड़ी शमशीर निकाला हमने!
समुन्दर जैसी खारी ,पर पावन गंगा जल मै हूँ ;
पति की अंकशायनी पर सहचरी भी मैं हूँ !
दहेज की बलि वेदी पे उत्सर्ग करूँ स्वयं को;
इतनी लाचार नही,नव युग की शक्ति,चण्डी मै हूँ!
बिटिया पढ़कर घर आयेगी--
आकर गले से लग जायेगी ,
उस पल याद तुम्हारी आती है -
एक छवि मुखर हो जाती है --
जब थकी -
थकी मेरी प्रतीक्षा में तू -
आंगन में बैठी होती थी ;
देख के मेरा मुखड़ा माँ
तू
ख़ुशी के आंसू रो देती थी ;
अगली बार......
होली के सभी रंगों के साथ........
मचाएंगे धमाल......
करोना का नाम तक नहीं होगा......
इसी शुभकामना के साथ......
धन्यवाद।