निवेदन।


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बुधवार, 31 अगस्त 2022

3502.…क्या लिखूं क्या नहीं..

 ।।प्रातः वंदन ।।

किस का आलोक गगन से

रवि शशि उडुगन बिखराते?

किस अंधकार को लेकर

काले बादल घिर आते?

उस चित्रकार को अब तक

मैं देख नहीं पाया हूँ,

पर देखा है चित्रों को

बन-बनकर मिट-मिट जाते!

भगवतीचरण वर्मा

चित्रों का बनकर मिटना और फिर से नये चित्रों को उकेरने शायद इसे ही प्रकृति की लीला कहतें हैं..आस्था, उमंगों के बीच लिजिए कुछ पल खास शब्दों के संग..✍️

सुनो ज़िंदगी !


 क्यूँ सोचते हो

जो तुम दर्द दोगे
तो बिखर जाऊँगी
ये जान लो
धुल के आँसुओं से
मैं निखर जाऊँगी..
🏵️
 कटा बुढ़ापा लड़ते लड़ते 
 गलती कोई ने भी की हो ,
 दोष एक दूजे पर मढ़ते

 रस्ते में कंकर पत्थर थे,
  ठोकर खाई संभल गए हम
  सर्दी धूप और बरसाते,
   झेले कई तरह के मौसम..
🏵️

आम जनता को केजरीवाल से जरूर सतर्क रहना चाहिए!

"वैसे तो कमोवेश सभी सियासी दल मौक़ा मिलते ही अपने वादों से पलट जाते हैं लेकिन जिस तरह केजरीवाल पलटते हैं उसकी मिसाल नहीं मिलती।  अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत में केजरीवाल जी ने कसम..

🏵️

दोनों हथेलियाँ


मेरी दोनों हथेलियाँ अभ्यस्त हैं काम करने की,
ये सुबह से ही काम में जुट जाती हैं,
ये बनाने लगती हैं चाय तुम्हारे लिए,
फैला बिस्तर सहेजती हैं,सलीके के लिए,..
🏵️

क्या लिखूं क्या नहीं

 बारम्बार  लिखना लिखाना 

फिर खोजना क्या नवीन लिखा 

पर निराशा में डूब जाना 

कुछ  नया न लगा नए लेखन में |

बहुत बार पढ़ा पर मन असंतुष्ट रहा 

कागज़ ढूंडा  कलम ढूँढी पर मिल न पाई ..

🏵️

।। इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️

मंगलवार, 30 अगस्त 2022

3501 बेजुबान मीनार को मात्र तेरह सेकेण्ड में खत्म किया जा सकता है

सादर अभिवादन

आज हर तालिका तीज है
व्रत तो नहीं रखती
दवाइयां खानी पड़ती है
पर व्रतियों की सेवा-चाकरी
का सौभाग्य प्राप्त होने से ही
मुझे व्रत का फल मिल जाता है
विदा अगस्त 2022

रचनाएँ देखें ...



न मुंसिफ बेईमान था।
बस मीनार बेजुबान था।




कभी माँ की गोद तो बहन की दिला जाते हैं उसके कंगन
न जाने क्या क्या दिखा जाते हैं उसके कंगन



पेड़ उन दिनों चल ही नहीं सकते थे बल्कि आदमी की तरह दौड़ भी सकते थे। असलियत में, वे वो सारे काम कर सकते थे जो आदमी कर सकता है।

 'इलपमन' नाम की एक जगह थी।  मनोरंजन की जगह थी। पेड़ और आदमी वहाँ नाचते थे, गाते थे, खुब आनन्द करते थे। वहाँ वे भाइयों की तरह हँसते-खेलते थे।




राजस्थान घूमने आए सैलानी
कवि-लेखक भी मुग्ध हो
कविता-कहानियाँ लिखते हैं
पानी के मटके लातीं औरतों की
फोटो निकाली जाती है



गुंजित वर्षा काल में बाग
कोकिल के मधुरिम गीतों से,
अंतर उपवन सदा महकता
ब्रह्म कमल की मृदु सुगन्ध से !


तेरह सेकेंड में खत्म किया जा सकता है ...


आखिर दिल्ली के बेहद नजदीक, उत्तर प्रदेश के नोएडा के सेक्टर 93-A  में, 102 मीटर ऊँचे, दबंगई, भ्रष्टाचार, रसूख, धनबल के प्रतीक जुड़वां टॉवरों को जमींदोज कर ही दिया गया ! संरचना में दो जुड़वां टॉवर बने हुए थे, जिनमें एक की ऊंचाई 102 मीटर और दूसरे की 95 मीटर थी ! 32 मंजिला इस इमारत को बनाने में करीब तेरह साल का समय, सैंकड़ों कर्मियों का योगदान तथा तकरीबन 300 करोड़ रुपये खर्च हुए थे ! केस वगैरह ना होते तो आज इसकी कीमत 1000 करोड़ के आस-पास होती !

आज बस
सादर

सोमवार, 29 अगस्त 2022

3500 / एब-इनीशियो ..... नयी शुरुआत .....

 

नमस्कार !!  अगस्त माह  अनेक  त्योहारों का माह रहा है ........ जाते जाते भी गणेश चतुर्थी का त्यौहार मना कर जायेगा .......  आपको तो पता ही है कि गणेश जी को मोदक अतिप्रिय थे ..... अब गणेश जी भी नए ज़माने के हैं तो उनको भी शायद चॉकलेट  फ्लेवर पसंद आये तो पेश है एक नए तरीके के मोदक ...... 
दोस्तों, आज हम बनायेंगे बिना गैस जलाये बिना मावा बिना मिल्क पाउडर बिना चीनी बिना चाशनी बिल्कुल मार्केट जैसे मोदक...ओरियो बिस्कुट से...। जो दिखने में बहुत ही सुंदर है और खाने में लाजवाब है! जब तक आप किसी को बताएंगे नहीं कि........
बाकी की प्रक्रिया ब्लॉग पर जा कर पढ़ें .........   ब्लॉग  पर जाने के लिए  चित्र  पर क्लिक करें ....  अभी हम स्वतंत्रता दिवस  मना कर चुके हैं ........  वैसे हमने तो यही पढ़ा था कि ........ दे दी हमें आज़ादी , बिना खडक बिना ढाल ...... पर हमारे क्रांतिवीर आज़ादी के दीवानों ने क्या क्या सहा  थोड़ा  हम  भी सब जाने ..... 

माउजर, जिसने अंत तक चंद्रशेखर आजाद का साथ दिया

ऐसे में आजादी के लिए दिल-ओ-जान से समर्पित क्रान्तिकारियों को अंग्रेजी हुकूमत और उनके गुर्गों से जूझने के लिए अनेकानेक समस्याओं का सामना करना पड़ता था ! उसी में एक थी हथियारों की जरुरत ! हथियार भी ऐसा जो शक्तिशाली भी हो और छुपाया भी जा सके ! काफी सोच-विचार के बाद जर्मनी में बनी माउजर पिस्तौल माफिक पाई गई |
आज़ादी तो मिल गयी लेकिन आज के नेता कैसे इस आज़ादी का दुरुपयोग करते हैं ये जागरूक जनता तो जानती ही है ...... तभी न  कहा गया है कि ....

राजनीति की लाइफलाइन है पाखंड

आज के वक्त में सबसे ज्यादा काम पाखंड के दम पर ही होते हैं।  बड़ी से बड़ी मुश्किल का सामना किया जा सकता है और पर्दा उठने तक आप हर लिहाज से सुरक्षित हैं। सच्चाई सामने आ भी जाए तो नया पाखंड रच सकते हैं। सब कुछ सही तरीके से किया जाए तो आपका बाल भी बांका न होगा |
 अब पाखंड की बात चली है तो पाखण्ड तो सबसे ज्यादा धर्म कर्म में दिखाई देता है .........  यूँ मैं धर्म के विरोध में नहीं हूँ लेकिन   कुछ पंडित  ज्यादा ही पाखंड करते नज़र आते हैं ..... आप भी पढ़िए ऐसा ही एक संस्मरण .....

मैसूर सिल्क का रामनामी दोशाला


धन-धान्य से परिपूर्ण पंडित जी के घर में उनकी चौबाइन ख़ुद को और अपने बच्चों को, रूखा-सूखा खिलाने कोऔर उल्टा-सीधा पहनाने को, मजबूर हुआ करती थीं क्यों कि उनके पतिदेव कस्टेम्परों से दान में मिले  दान में मिले कपड़े, मिठाइयाँ फल,दक्षिणा में मिले कपड़े, मिठाइयाँ, फल, मेवे आदि को घटी दरों पर कीर्ति नगर की विभिन्न दुकानों पर बेच कर, खाली हाथ लेकिन भरी जेब, ले कर ही घर में प्रवेश करते थे.


 और इससे भी अधिक पाखंड आप जानेगें इस  कहानी को पढ़ कर ......... विचार कीजिये कि ऐसे अवसर पर क्या किया जाना चाहिए ..... 

पगड़ी

घर में मेहमानों की आवाजाही बढ़ गई है। कार्यक्रम की रूपरेखा बन रही है कौन जाएगा कैसे जाएगा क्या करना है कैसे करना है जैसी चर्चाएं जोरों पर हैं । चाचा ससुर उनके बेटे देवर दोनों बेटे दामाद सभी समूह में बैठकर जोरदार तरीके से शानदार कार्यक्रम की योजना बनाते और फिर एक एक से अकेले अलग-अलग खर्च पानी की चिंता में दूसरे के दिये सुझाव की खिल्ली उड़ा कर उसे खारिज करते। समूह में दमदारी से सब करेंगे अच्छे से करेंगे के दावे खुद की जेब में हाथ डालने के नाम पर फुस्स हो जाते । 
यही सब पढ़ कर लगता है कि  सच ही  संवेदनाएँ  ख़त्म हो रही हैं .... पिछले दिनों एक  चर्चाकार  ने लिखा  था  कि संवेदनशील व्यक्ति  शब्दों के माध्यम से    सृजन  करता है ......... और शायद इसी लिए ये पोस्ट आई भी है ..... 
इन ख़बरों को विस्तार से पढ़ा तो ढंग से नाश्ता भी नहीं कर सका और कुछ देर के लिए शांत मुद्रा में बैठ गया। निश्चित तौर पर आप में से भी कई साथियों ने ये समाचार पढ़े होंगे और मेरी ही तरह व्यथित भी हुए होंगे।
यों तो दयालुता, निर्दयता और कठोरता आदि मानव स्वभाव के अंग कहे जा सकते हैं परंतु कोई इस हद तक संवेदनहीन हो जाएगा और वह भी एक स्त्री ...

वैसे ज़रूरी नहीं कि ये संवेदनहीनता की ही बात हो .....ये भी हो सकता है कि ऐसा व्यक्ति किसी बीमारी से जूझ रहा हो और उसे इन सब कृत्य  का होश ही ना हो ...... इसी विषय पर इस लेख पर नज़र डालिए ..... 

सीजोफ्रेनिया


 उनकीशादी और दो बेटियों के होने के बाद खबर सुनी कि उन पर कोई ऊपरी साया है अतउनको मायके भेज दिया गया। ससुराल में भी झाड़फूँक करवाई गईमायके में भी।लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

चलिए बीमारी हुई तो अलग बात लेकिन अपने स्वार्थ में जब अपने ही माता पिता के लिए ऐसी सोच  रखी जाए तो कोई क्या कहे ? 



कोई शिकायत नहीं करती,

आँसू तक नहीं बहाती,

फिर भी वह मुझे नहीं सुहाती,

क्योंकि वह खाँसती बहुत है. 


इस कविता में मन के भावों को पिरो दिया है और यथार्थ से परिचय करा दिया है ........ छंदमुक्त कविता मैंने अज्ञेय जी की ही सबसे पहले पढ़ी थीं ...... कम शब्दों में गहरी बात कह जाना उनकी विशेषता थी ....... यूँ तो कविता में लय हो वो भी सही ...... छंदबद्ध रचना लिखना सरल नहीं ....... अब छन्दमुक्त कविता की विशेषता पर एक नज़र डालिए ....

छंदहीन कविता


दिल की बातें दरिया बनकर,

दृग-द्वार से दहती हैं।

जीवन के उत्थान-पतन के

भाव गहन वह गहती हैं।


वक़्त के साथ सब बदलता है........... और सच तो ये है कि हमें और हमारी सोच को भी बदलना चाहिए ....... इसी पर आधारित एक लघु कथा ....


क्या सुबह से ही किच-किच मचाए हो तुम ? 

अरे यार अब तो छोड़ो ! इन्हें जीने दो अपनी ज़िंदगी !” 

कब तक अपनी दुहाई देते रहोगे ?”


ओह ! आज तो कुछ ज्यादा ही  चक चक हो गयी ......... बहुत भारी भरकम विषयों पर चर्चा भी  हुई , तो ........... मीठे से शुरू करी इस प्रस्तुति को कुछ मीठे से एहसास के साथ समाप्त करती हूँ ......


एब-इनीशियो ...


क्या ऐसा होता है  
कुछ कदम किसी के साथ चले
फिर भूल गए उस हम-कदम को ज़िन्दगी भर के लिए ...


सच बताऊँ  कि    एब-इनीशियो ...  का अर्थ गूगल  गूगल पर  ढूँढा ...... अर्थ है अब से प्रारंभ .......... अब आप इसे पढ़ें और सोचें कि   अल्जाइमर  क्यों   इतना बुरा नहीं  .........


अब मैं विदा लेती हूँ  ............ कोशिश रहेगी अगली बार कुछ  हल्की - फुल्की  रचनाएँ  लाने की ........

नमस्कार 
संगीता स्वरुप . 

 




रविवार, 28 अगस्त 2022

3499 ..खुल गये पंख कल्पनाओं के छप से छलका याद का दोना।

 सादर अभिवादन

आज अट्ठाईसवां दिन अगस्त का
अगला रविवार आएगा सितंबर को
विदा अगस्त.....
रचनाएँ देखें ...



सहेजा हुआ है,
मैंने ज़ख़्म अपना
छिले हुए टखने और कोहनी
बता रही मेरी गुस्ताखियाँ
दिखते हैं उस पर रक्त के धब्बे
जैसे गुलाब की सुर्ख़ पंखुड़ियां




देवता भी सिर धुने अब
धर्म ठिठका सा खड़ा
ये सृजन किसका किया है
व्यर्थ बातों पर अड़ा
दंश नित वह दे रहा है
सत्य का होता दमन





वैज्ञानिक मनके कहना हे- करेला म विटामिन A, B अउ C पाए जाथे. एकर छोड़े कैरोटीन, बीटाकैरोटीन, लूटीन, आयरन, जिंक, पोटैशियम, मैग्नीशियम अउ मैगजीन आदि घलो पाए जाथे. जेकर सेती उपास रहे के सेती होइवया जलन या गरमी ले बचाथे. पित्त, कफ रुधिर विकार ले बचाथे. पाण्डुरोग, प्रमेह अउ कृमि के नास घलो करथे.




मौन प्रकृति का
रुप सलोना
मुखरित मन का
कोना-कोना
खुल गये पंख
कल्पनाओं के
छप से छलका
याद का दोना।




यह प्रेम पत्र ही था जो
असफल प्रेमी को
सफल शायर बना दिया करता था
वरना...
प्रेम की इतनी मजाल कि ...
टूटे दिल का मुशायरा कर ले।।

आज बस
सादर

शनिवार, 27 अगस्त 2022

3498... क्रूरता

 अपनी निजी परेशानियों को दरकिनार कर..

हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...

क्रूरता

और सभी में गौरव भाव होगा

वह संस्कृति की तरह आएगी

उसका कोई विरोधी न होगा

कोशिश सिर्फ यह होगी कि

किस तरह वह अधिक सभ्य

और अधिक ऐतिहासिक हो

चारित्रिक

नैतिकता की कमी सभी वर्गो में है अब आम हुई!

भूल न जाना गाथा आपत्कालिक अत्याचारों की!!

आज देश को आवश्यकता चारित्रिक आधारों की!

जमकर करें वंचना जो भी वही कुशल व्यापारी हैं

पंडित और पुजारी छलते सन्यासी व्यभिचारी हैं!

मानप्रतिष्ठा जानमाल रक्षा का नहीं भरोसा है।

शहजादों की भांति मानते अपने को अधिकारी हैं!!

प्रेम

बिना आखिरी सलाम और

अलविदा कहे बगैर भी।

कोई भी कथाकार

इन कहानियों को नाम नहीं दे सकता।

प्रेम-विज्ञान की किताबो में

कहीं भी इनका ज़िक्र नहीं है।

बोध

इससे उनके अफसर लोग खुश थे। साल में कुछ इनाम देते 

और वेतन वृद्धि का जब कभी अवसर आता,

 उनका विशेष ध्यान रखते। परन्तु इस विभाग की वेतन-वृद्धि ऊसर की खेती है ।

 बड़े भाग्य से हाथ लगती है। बस्ती के लोग उनसे संतुष्ट थे, लड़कों की संख्या बढ़ गई थी और

 पाठशाला के लड़के तो उन पर जान देते थे। कोई उनके घर आकर पानी भर देता, 

कोई उनकी बकरी के लिए पत्ती तोड़ लाता। 

बैचेनियाँ

मेरे दिल मे जो सुलगता हैं घुटन का धुंआ ।

तूने रखकर दिल पर हाथ उसे शोला बना दिया ।।

क्या चलता हैं मेरे दिलों दिमाग में ये मैं ही समझता हूँ। कितनी उलझने समेटे फिरता हूँ ये मैं ही जानता हूँ।

तेरे तीखे सवालों का जबाब कहीं मिलता नहीं मुझे।

बुझते आग को छूकर फिर तूने अंगारा बना दिया ।।

>>>>>><<<<<<
पुनः भेंट होगी...
>>>>>><<<<<<

शुक्रवार, 26 अगस्त 2022

3497....दूब उदासियों की

शुक्रवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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इतिहास साक्षी है हम उन्हीं को महान मानकर सम्मान देते हैं और.पूजते हैं जिन्होंने भावनाओं से ऊपर उठकर कर्म को सर्वोपरि माना।
महर्षि वेदव्यास ने तो स्पष्ट कहा कि 'यह धरती हमारे कर्मों की भूमि है।' कर्तव्य मनुष्य के संबंधों और रिश्तों से ऊपर होता है।
परंतु मनुष्य का जीवन भावनाओं के स्निग्ध स्पर्शों से 
संचालित होता है। भावनाएँ ही हैं जो सामाजिक रिश्तों का कारक है,जीवन के सुख-दुख की मूल धुरी भावनाएँ ही हैं।
भावनाओं के प्रवाह में बुद्धि या तर्क का कोई स्थान नहीं होता।
भावनाओं के संसार में जन्मे अनेक रगों में सबसे सुंदर है
शब्दों की कलाकारी का रंग,जो मन को उसकी कोमलता और स्पंदन का एहसास दिलाता है।
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आज मैं लेकर आई हूँ ऐसे ही कुछ खूबसूरत एहसास 
 पढ़िए आज की पहली रचना

नींद भरी है आँखें, साँझ की उबासियों सी
मुरझा जायेंगी भोर होते ही,  दूब उदासियों की

उगने ही कब देती हैं भला
दूब उदासियों की ..
गढ़ती रहती हैं वो तो अनवरत
सुकूनों की अनगिनत पगडंडियाँ 

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सपनों पर टाँक कर चिथड़े पैबंद
राह देखते रहे सुखों की,होकर नज़रबंद

धोखेबाज खुश्बुओं के वृत
केंद्र बदबुओं से शासित है 
नाटक-त्राटक,चढ़ा मुखौटा 
रीति-नीति हर आयातित  

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संवाद से निर्लिप्त प्रश्न कौन से कौन तक
मनन मन का शायद मौन से मौन तक


वर्दी के लिबास में अलगनी पर टँगा प्रेम
उस समय ज़िंदा थी वह
स्वर था उसमें 
हवा और पानी की तरह
बहुत दूर तक सुनाई देता था 
ज़िंदा हवाएँ बहुधा अखरती हैं 

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कुछ अभिव्यक्तियाँ स्वीकार है बिना किसी तर्क
उद्विग्न,ज्वलंत विषय-विमर्शो से पड़ता है फ़र्क

प्रेम वर्जित विषय था
इनके बसावट में
और जहां तक भूगोल था इनका
कोलतार की सड़क नहीं पहुंची थी वहां
विवाह के उपरांत : अगली सुबह
इनकी विदाई बेला तक
गौनहाई विवाहिताइन स्त्रियों का संसार
अब रोज़ नया
अपितु दिन का हर पहर भी नवीन



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और चलते-चलते पढ़िये
एक वैचारिकी मंथन 
 दाँवपेंच राजनैतिक बिसात के गूढ़ गहन
कौन समझे बेबस मोहरों का भयादोहन


सामूहिक एकता का खंडन
समाज को 
ग़ुलाम बनाए रखने के
चालाक उपक्रमों पर मंथन
जल के 
वैकल्पिक स्रोतों का अन्वेषण
भावनात्मक आदर्शों का 
चतुर संप्रेषण  

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आज के लिए इतना ही
कल का विशेष अकं लेका रही हैं
प्रिय विभा दी।



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गुरुवार, 25 अगस्त 2022

3496...अंकुरण से पूर्व ही, मरुथल- सी धरती हो गई...

 शीर्षक पंक्ति:आदरणीया डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री' जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के लिंक्स के साथ हाज़िर हूँ।

आइए पढ़ते हैं पसंदीदा रचनाएँ-

जीवन बोध

मोह,विछोह ना जान सकी,

रही मुग्ध निहार स्व- दर्पणमें!

भूली  सब रिश्ते नाते ,

जब डूबी सर्वस्व समर्पण में !

तुम से दूर रही तनिक भी

तड़पी ज्यों जल बिन मीन सदा!

सार गीता का समझकर मन मदन गोपाल कर

कर कहीं उपहास तो मनु जाँच ले अपना हृदय |
सामने उस ईश के तू क्यों खड़ा भ्रम पाल कर ||

त्याग के ही भाव में संतोष का धन है छुपा |
सार गीता का समझकर मन मदन-गोपाल कर ||

 385-इतना सा उपहार दे दो

 

अंकुरण से पूर्व हीमरुथल- सी धरती हो गई;

ताप कोई भी शेष होइस बीज को  संहार दे दो।

है पवन भी रुक्ष- सीवृक्ष कंटक बन खड़े;

इतनी -सी मेरी प्रार्थनामृत्यु को आकार दे दो।

इस पल में जो जाग गया

 
इस तरह वर्तमान सदा ही अतीत के पश्चाताप या भविष्य के भय का शिकार बनता रहता है. जो भी खुशी है वह इस क्षण में मिलती हैसुख की हर स्मृति बीते कल की छाया है. भविष्य की कल्पना कितनी भी सुखद हो वह वास्तविक नहीं है.

वितृष्णा - "ये कैसा प्रेमः था" ?

 
झुँझलाये चेहरे एवं बिखरे बालों पर हाथ फेरते हुए नेहा ने "जी" कहकर जबरन मुस्कुराते हुए आँखों से ही जैसे परिचय पूछा। तो वह  मुस्कराकर बोली,  "जी मैं सिया,  सिया शर्मा। वो सामने वाला फ्लैट हमारा है। अब आप यहाँ रहेंगे तो हम आपके पड़ोसी हुए"। फिर ट्रे को कुछ उठाकर दिखाते हुए बोली "अन्दर आ जाऊँ"?

 *****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


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