।। प्रातः वंदन।।
"विभा, विभा, ओ विभा हमें दे,
किरण! सूर्य! दे उजियाली।
आह! युगों से घेर रही
मानव-शिशु को रजनी काली।
प्रभो! रिक्त यदि कोष विभा का
तो फिर इतना ही कर दे;
दे जगती को फूँक, तनिक
झिलमिला उठे यह अँधियाली!"
रामधारी सिंह 'दिनकर'
नव भोर का आगमन वहीं चीर परिचित अंदाज में..अब आप सोचिएगा नया क्या है, है न..लिंकों का चयन में शामिल रचनाएँ...✍️
आज़ादी का चन्दन वन यह कभी नहीं मुरझाए..
आज़ादी का
चन्दन वन यह
कभी नहीं मुरझाए...
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बिहार का धुँधला परिदृश्य
निःशब्द
कहाँ से चला था कौन सी डगर का मुकाम था वो l
राहों की अधीर पगडण्डियाँ का सैलाब सा था जो ll
टूटे खंडहरों का आशियाँ था शायद जैसे कोई l
बिखरे ख्वाबों की लूटी अस्मत
ये काया धीरे-धीरे
मिट्टी हो जाया करती है।
उसे कोई चाह कर भी
नहीं रोक पाता
पर मिट्टी में मिलने
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आजादी की हीरक जयंन्ती
जवाब देंहटाएंतीन रंग से
सजा तिरंगा
हर घर में लहराए.
शुबकामनाएं
सादर
हार्दिक आभार आपका. सादर अभिवादन
हटाएं७५ वीं वर्षगाँठ की शुभकामनाओं के संग बधाई
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स चयन
सराहनीय अंक।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका. सादर अभिवादन
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