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गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

166....वर्षान्त अंक


आज वर्ष का अंतिम दिन है और गुरुवार भी है
भाई संजय जी की प्रस्तुति आज ही आनी है

मुझे आज कुछ अलग सा करने का मन लगा
सो आज दो अंक एक घण्टे के अंतराल में 

क्यों आज पाँच लिंकों का आनन्द ब्लॉग के चर्चा कारों 
के अलावा अन्य चर्चा कारों की रचनायें भी पढ़वाई जाये 
तो आज पेश है चर्चाकारों के कलम से निकली 
कुछ बेहतरीन रचनायें....

नए वर्ष में शपथ, मरे नहीं मित्र दामिनी-
ताड़ो नीयत दुष्ट की,  पहचानो पशु-व्याल |
मित्र-सेक्स विपरीत गर, रखो अपेक्षित ख्याल |


बीत गया जो साल, भूल जाएं उसे
इस नये साल के गले लगाएँ
करते हैं दुआ रब से
सर झुकाए
इस साल के सपने पूरे हों आपके


आँख शरारत करती है 
और सज़ा दिल पाता है 
देता मक़सद जीने का 
पर पागल कहलाता है 
पागल की सुन यार मेरे, यही तो मीत है


भू-नभ में फहराए पताका,
गर्वित गाथाएँ चर्चित हों।
दूर सभी हों भव-भय-बाधा,
खिलता सुमन सदा हर्षित हों।
राष्ट्रयज्ञ में अर्पित होकर,
करना माता का वन्दन!
नये वर्ष का अभिनन्दन!


सब में हो देश-भक्ति,
दे भवानी मां  सब को शक्ति,
लोकतंत्र हो, सुशासन हो,
आने वाले नव वर्ष में....


प्यासी जल में सीपी
भूल जाओ पुरानी बातें ....... 
माफ़ कर दो सबको ..... 
माफ़ करने वाला महान होता है ...... 
सबके झुके सर देखो ..... 


वह सह रही है असहनीय
पीड़ा कुछ
दरिंदो की दरिंदगी का
भीड़ में खड़े है
लाखो लोग पर मदद का हाथ
कोई नहीं बढाता


प्रेम के रिश्‍ते 
निभते जाते हैं 
इन्‍हें निभाना नहीं पड़ता 
कोई रहस्‍य 
कोई पर्दा 
नहीं ढक पाता है 
इसके होने के 
वज़ूद को !


मेरे पसंदीदा अश्आर में, शिवम् मिश्रा
माँ का चश्मा
टूट गया है
बनकर शीशा
इसे बनाओ

चुप-चुप हैं आँगन में बच्चे
बनकर गेंद
इन्हें बहलाओ



स्त्री नारी होती नहीं 
बनाई जाती है. 

हम सबको 
अब यह संकल्प लेना होगा 
कि अब और नहीं..
कतई नहीं, 
अब किसी इन्द्र के 
पाप का दण्ड 
अब किसी भी 
अहिल्या को 
नहीं भुगतना पड़ेगा 

हम पाँच लिंकों के आनन्द की ओर से
सभी चर्चाकारों का सम्मान करते हुए
उन्हें नववर्ष की शुभकामनाएं प्रेषित करते हैं
आज के इस अंक का सुझाव 
आदरणीय भाई संजय भास्कर ने दिया
और रचना संकलन में भाई कुलदीप सिंह ठाकुर ने
अपना सहयोग दिया
आभार...
अलविदा 2015











वर्ष 2015 की अंतिम प्रस्तुति चर्चाकारों की कलम से...166

आप सभी को संजय भास्कर का नमस्कार
 पाँच लिंकों का आनन्द ब्लॉग में आप सभी का हार्दिक स्वागत है !!
आज पेश है वर्ष 2015 की अंतिम प्रस्तुति
हम हर दिन पांच रचनाकारों की बेहतरीन रचनाएं चुन कर आप तक पहुँचते है कल यूँ ही बैठे बैठे मैंने सोचा क्यों आज पाँच लिंकों का आनन्द ब्लॉग के चर्चा कारों की रचनाये पढ़वाई जाये 
तो ये लो आज पेश है चर्चाकारों के कलम से निकली कुछ बेहतरीन रचनाये उम्मीद है आप सभी को पसंद आये !

पेश है यशोदा अग्रवाल जी की रचना  :)
लोग भी कमाल करते हैं 
यूं तो
बेरंग हैं पानी 
फिर भी जिन्दगी 
कहलाती हैं,

ढेर सारे रंग हैं 
शराब के फिर भी 
गन्दगी कहलाती हैं।।

लोग भी कमाल करते हैं…



 विभा रानी श्रीवास्तव जी की रचना :)
उड़ेगी बिटिया
नीतू भतीजी , डॉ बिटिया महक , प्रीती दक्ष , स्वाति , मोनिका 
संग
बहुत सी बिटिया 
रब ने दिलाई
कोखजाई एक भी नहीं
ना इनमें से किसी से 
मेरा गर्भनाल रिश्ता है !


 कुलदीप ठाकुर जी की रचना :)
जिंदगी की किताब...
हर जिंदगी
भी शायद
किसी लेखक की
लिखी हुई
किताब होती है...
पर हम
नहीं जान पाते
अपनी किताब के
लेखक को
न पढ़ पाते अगले पन्ने...


 दिग्विजय अग्रवाल जी की रचना :)
किसी के इतने पास न जा
के दूर जाना खौफ़ बन जाये
एक कदम पीछे देखने पर
सीधा रास्ता भी खाई नज़र आये
किसी को इतना अपना न बना
कि उसे खोने का डर लगा रहे
इसी डर के बीच एक दिन ऐसा न आये

और अंत में मेरी रचना मैं अकेला चलता हूँ :)
मैं अकेला चलता हूँ 
चाहे कोई साथ चले 
या न चले 
मैं अकेले ही खुश हूँ 
कोई साथ हो या न हो 
पर मेरी छाया
हमेशा मेरे साथ होती है !
शब्दों की मुस्कुराहट ............संजय भास्कर 


इसके साथ ही मुझे इजाजत दीजिए अलविदा 2015..... फिर मिलेंगे अगले गुरुवार 2016 में 

-- संजय भास्कर 



बुधवार, 30 दिसंबर 2015

165...उम्मीद नए साल की


जय मां हाटेशवरी...

आज हम  जिस नव वर्ष की प्रतीक्षा कर रहे हैं...
  वह नए कैलेंडर के अलावा और क्या है?...
पर चलो कुछ भी हो...
एक वर्ष तो बदल रहा ही है...
  दो दिन बाद हम 2016 में प्रवेश कर जाएंगे...
हम उमीद कर सकते हैं कि आने वाला नव वर्ष जरूर कुछ नई सौगातें, उम्मीदें और सपने लेकर आएगा....
 इस वर्ष  हमने आप सब के सहियोग से हलचल का ये नया सफर प्रारंभ किया है...
आने वाले वर्ष में हम आप के लिये और भी  बेहतर करने का प्रयास करेंगे...
ईस आशा के साथ...
आप सब को नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाएं...
 अब चलते हैं आज के लिंकों की ओर...

उम्मीद नए साल की ..................हितेश कुमार शर्मा                                                                                            
नया साल आया और पुराना गया, ये तो अक्सर होता है
पर हर साल उम्मीद टूटना, दिल मे नस्तर चुभोता है
मिलन की हरियाली से ये साल सदाबहार बने
खुशियों के खरीददारों से, खुशहाल सारा बाजार बने
करो दुआ सब,  कि चाहत के फूल हर दिल मे खिले
नए साल पर सब नफरत भूल,  प्रेम से गले मिले



दो व्यापारी...Harsh Wardhan Jog
यह कहानी सिखाती है कि दूसरों की बात जरूर सुन लें पर झांसे में ना आये और अपना विवेक न खोएं. यह कहानी एक जातक कथा पर आधारित है. जातक कथाएँ 2500 साल पहले
गौतम बुद्ध के समय प्रचलित हुईं. ये कथाएँ गौतम बुद्ध के जीवन से सम्बंधित हैं या उन्होंने अपने प्रवचनों में सुनाई हैं. बुद्ध अपने प्रवचन में बहुत सी छोटी
छोटी कथाएँ उदहारण के रूप में बताया करते थे. कुछेक कथाएँ दूसरे अर्हन्तों की भी हैं. धम्म प्रचार के साथ साथ ये जातक कथाएँ भी बहुत से देशों - श्रीलंका, म्यांमार,
कम्बोडिया, तिब्बत, चीन से लेकर ग्रीस - तक पहुँच गईं.


अलविदा पोस्ट: ख़त आख़िरी...शचीन्द्र आर्य
 मेरे पास जो वक़्त था, जो वक़्त नहीं था, उसे इकट्ठा करके इसे एक मुकम्मल जगह बनाने की हर कोशिश यहाँ दिख जाएगी। जो नहीं दिख रही, उसे मेरी और सिर्फ मेरी कमजोरी
माना जाये। जितना देख देखकर पूछ पूछकर जानता-समझता गया, उसे अपने यहाँ शामिल करता गया। उन्हें इस जगह लाने की जद्दोजहद में डूबता, उतरता जितनी भी हैसियत रही,
उतना कर पाने की इच्छाओं से ख़ुद को भर लिया। अभी भी भरा हूँ पर अब उस तरह की आग नहीं है। उत्प्रेरक जो रहे होंगे, वह अब काव्य हेतु, काव्य प्रयोजन जैसी जटिल
संरचना वाले जटिल सवालों में तब्दील होते गए होंगे। सवालों का होना हरबार जवाबों की तरफ़ ले जाये, ऐसा होता नहीं है।
फ़िर यहाँ एक बात जो हमेशा अंदर चुभती रही, वह यह के यहाँ कभी हमारे परिवार की झलक नहीं दिखी तो यह मेरी सीमा है। ख़ुद को इतना अकेला कर लेने की हद तक चला गया
कि हर बार जब कोई नया साथी मिलता, उसे लगता इस शहर में उसी कि तरह अकेला रहता हूँ। पर हुज़ूर, यहाँ लिखी हर एक बात के लिए जितने वक़्त की किश्त मुझे घर की चारदीवारी
के बीच मिलती रही, वह मोहलत सिर्फ़ उनकी कीमत पर है। उसे कभी किसी तरह किसी भी रूप में तब्दील करके आँका नहीं जा सकता। घर न होता, तब चिंता होती। चिंता होती
तो लिखना न होता। मेरे जिम्मे सिर्फ़ सुबह का दूध और शाम के वक़्त पानी भरने की ज़िम्मेदारी रही। बीच के दिन में घर कैसे बनता, बिगड़ता, बुनता, उधड़ता रहा इसकी ख़बर
पास जाने पर मिलती। कभी बाज़ार या बाहर जाने की बात हो आती, तब अनमना होकर छटपटाता रहता। किसी तरह भाग भूग कर उसे निपटाते हुए ख़ुद को कोसता रहता। सोचता कि काश
इससे बच जाता।


बुरका [कविता]- सुशील कुमारतुम हमेशा मुझे पर्दे के मायने समझाते हो
और मैं हाँ-हाँ में सिर हिलाती हूँ
मन करता है
तुम्हारी बातों की मुखालफत करूँ
मैं जानती हूँ कि
बेहयाई मेरे बदन में नहीं है
जो ढँक लूँ किसी लिबास से
बल्कि
वो तैर रही है तुम्हारी आँखों में


कमज़ोर मनोवृत्ति की ओर आकर्षित होता किशोरवय...प्रियदर्शिनी तिवारी
        हमारी यही कोशिश होनी चाहिए की अनावश्यक दबाव और  बच्चों की निजता में दखलअन्दाजी दिए बगैर उन पर  पर भरोसा जताते हुए उनकी गतिविधियों पर नज़र रखें।  उनके
मित्र और मिलने-जुलने वालों से हम खुद भी मिलते रहें। हम भी सोशल साइट्स, इंटरनेट पर बे- वजह  चौबीसों  घंटे इतने न खोये रहें की हमें अपनी ही सुध  न रहे।  वैसे
भी मंहगे मोबाइल का शौक इन दिनों बच्चों पर क्या बड़ों के भी सर चढ़ कर बोल रहा है।  ऐसे में जब माँ-बाप ही इंटरनेट की बलि चढ़ गए होंगे तो बच्चो को क्या खाक सलाह
देंगे।   अनजाने में ही हमारी अपनी आदतें हम बच्चों को मुफ्त में सौप ही देते है।


अब अंत में...
हरिवंश राय बच्चन जी के नव वर्ष पर  कुछ भाव... 

नव वर्ष
हर्ष नव
जीवन उत्कर्ष नव।
नव उमंग,
नव तरंग,
जीवन का नव प्रसंग।
नवल चाह,
नवल राह,
जीवन का नव प्रवाह।
गीत नवल,
प्रीति नवल,
जीवन की रीति नवल,
जीवन की नीति नवल,
जीवन की जीत नवल!



धन्यवाद...

मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

164........मेरा ईमान न पूछो क्या हूँ

सादर अभिवादन स्वीकारें
पहले रचनाएँ पढ़ें
बातें फिर बाद में...

इंटरनेट पर युद्ध की शुरुआत हो चुकी है । 
कार्पोरेट वार। अपने अपने फायदे के लिए । 
मजे की बात है कि विरोध की खबर के नीचे 
समर्थन पाने का विज्ञापन भी छपा है । 



मेरा ईमान न पूछो क्या हूँ, 
हिन्दू या कि मुस्सलमान न पूछो। 
चर्च, मंदर, मस्जिदें ....सब एक बराबर 
रहता किसमे है मिरा भगवान न पूछो. 


यह जमाने की बेरूखी और हम।
कितना भी प्रेम कर लो हर किसी से।
लेकिन हर बार सिर्फ मिलते है…
गम ही गम॥


दिसंबर का आखिरी सप्ताह ......
बरसात के बाद हवाओं के रुख में 
परिवर्तन से ठण्ढक के साथ 
घना कुहरा समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहा था । 


जिन की भाषा में विष था
उनके भीतर कितना दुःख था
दुखों के पीछे अपेक्षाएँ थीं
अपेक्षाओं में दौड़ थी
दौड़ने में थकान थी
थकान से हताशा थी
हताशा में भाषा थी

हमारा भारत विज्ञान में सबसे आगे था
अाज की अंतिम कड़ी में देखिए


अब छोड़ो भी में
हाल ही में मेरठ के छात्र प्रियांक भारती और गरिमा त्यागी द्वारा तैयार एक शोधपत्र को चीन के अंतर्राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी सम्मेलन के लिए चुना गया है। और यह शोध अमेरिका की इनोवेटिव जर्नल ऑफ मेडीकल साइंस के आगामी अंक में छपने जा रहा है। 
प्रियांक भारती और गरिमा त्यागी ने अपने प्रयोग में 
रक्तबीज को कपोल कल्पना मानने से इंकार करते हुए बताया है कि रक्तबीज कोई चमत्कार नहीं बल्कि अति विकसित विज्ञान का एक उदाहरण था जो सबसे पहला Clone कहा जाता है। 

आज्ञा दें यशोदा को
फिर तो मिलते रहेंगे ही








सोमवार, 28 दिसंबर 2015

163....कभी तो उगेगा सच का सूरज

सादर अभिवादन
अब डर सा लगता है
कि आप सब मिलकर मुझे
पाँच लिंकों के आनन्द से
निकाल बाहर न कर दें
क्योंकि मेरी पसंदीदा
रचनाएँ कुछ
अजीबो-गरीब सी
लगने लगी है आप सब को

बहरहाल चलते हैं फिर से अजीबो-गरीब कड़ियों की ओर..


काला अँधा सा ये जीवन, कैसा है यह बिका बिका?
क्यों हर चेहरा मुरझाया सा, क्यों है हर तन थका थका?
कब दौड़ेगी लाल लहू में, इक आग यूँ ही बैरागी सी?
स्फूर्ति-समर्पण-सम्मान सघन सी, निश्छल यूँ अनुरागी सी
कब इस शांत-लहर-डर मन में...


क्षितिज में है शून्यता, छाया अँधेरा
जम चुका है तारिकाओं का बसेरा   
कितने निर्मम तुम भी लेकिन चान मेरे
चान मेरे तुम कहाँ हो
प्राण मेरे तुम कहाँ हो ?


धूप गरीबी झेलती, बढ़ा ताप का भाव,
ठिठुर रहा आकाश है,ढूँढ़े सूर्य अलाव ।

रात रो रही रात भर, अपनी आंखें मूँद,
पीर सहेजा फूल ने, बूँद-बूँद फिर बूँद ।


हमें नहीं चाहिए
कोई उपहार
कोई गिफ्ट
कोई खिलौना रंग बिरंगा
आपसे
हमें तो बस
किसी बच्चे की
पुरानी फटी गुदड़ी
या फ़िर कोई
उतरन ही दे देना
जो इस हाड़ कंपाती
ठंडक में
हमें जिन्दा रख सके ।


पहले मैं रात में 'रंगीन सपने' आने से परेशान रहता था, अब मुझे 'असहिष्णुता' के सपने आते हैं। कल रात का सपना तो बहुत ही भयानक था। मैंने देखा कि पत्नी ने मुझे इस वजह से तलाक देने की घमकी दी है क्योंकि मैंने उसे आईफोन दिलवाने से मना कर दिया था। उसने तुरंत मुझे असहिष्णु पति कहते हुए तलाक देने की घमकी दे डाली। कल रात से मैं इत्ता डरा हुआ हूं कि आज का पूरा दिन 'तलाक के बाद मेरा क्या होगा' इसी सोच में बीत गया। हालांकि वो मात्र सपना ही था। पर पत्नी के मूड का क्या भरोसा कब सेंसेक्स की माफिक बदल जाए!


झरोख़ा में
मुंदी पलकों तले
कुछ सपने पले थे
मुस्कराये - सकुचाये
ठिठके - अलसाये से




और ये है आज की प्रस्तुति की अंतिम कड़ी

अभिव्यक्ति में
कभी तो उगेगा 
सच का सूरज  
और बढ़ेगा 
रौशनी का कद 
फिर देखना 
ये अँधेरे कैसे डूबते हैं 

आज्ञा दें यशोदा को
फिर मिलते हैं













रविवार, 27 दिसंबर 2015

162...कितनी बड़ी भूल है हमारी....

जय मां हाटेशवरी...

कल २६ दिसम्बर था... यानी...
अमर शहीद ऊधम सिंह जी की ११६ वीं जयंती
s320/shaheedUdhamSingh
भारत माँ के इस सच्चे सपूत को हमारा शत शत नमन |
कल के ही दिन...यानी २6 दिसम्बर १७६१को गुरु गोविन्द सिँह जी के दो बेटे बाबा फतेह सिँह
और बाबा जोरावर सिँह
को जिँदा दीवार मेँ चुनवा दिया गया था  इन दो वीर सपूतोँ ने अपने प्राणोँ की परवाह न करते हुए अपने देश और धर्म के लिए सर्वोच्च बलिदान
दिया सिर्फ इसलिए कि उन्होने अपने धर्म का परित्याग करके इस्लाम कबूल नहीँ किया था
पर कल तो गुजर गया...हमने इन महान सपूतों को याद तक नहीं किया...
कितनी बड़ी भूल है हमारी....
हम इन ऐतिहासिक दिनों को भूलकर... नव वर्ष की तैयारी में लगे हैं...
जिस दिन शायद ऐसा कुछ भी  नहीं हुआ था...
अब चलते हैं आज की हलचल की ओर...
कौन गुस्ताख़ छेड़ता है हमें
मेरे गीत
परSatish Saxena
नदी, मांदों में खोजता है हमें !
नासमझ आशिकी पे लानत है
इतनी शिद्दत से चाहता है हमें !
देख लें दुनियां बिना वीसा के
मोदियापा भी, हंसाता है हमें


अजन्मा अहसास
गुज़ारिश
परसरिता भाटिया
पाकर तुम्हे इतना करीब
महसूसती हूँ
तुम्हारा अहसास
तुम्हारा स्पर्श
तुम्हारी साँसे
तुम्हारी धड़कन
पा लेती हूँ



 
क़ानून
कविताएँ
परOnkar
जिसे क़ानून की ज़रूरत
सबसे ज़्यादा होती है,
बस वही नहीं जानता
कि क़ानून क्या होता है,
उसे लागू कौन करता है,
कैसे करता है,
कि उसकी व्याख्या भी होती है.
क़ानून अँधा नहीं होता,
दरअसल जिसे क़ानून की
सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है,
वह अँधा होता है.

 
मामूल मिजाजी .......
Amrita Tanmay
परAmrita Tanmay
इसकदर मेरे चलने में ही
कसम से ये कायनात थरथराती है
निखालिस ख़्वाब या हकीकत में
मुझसे इलाहीयात भी शर्माती है
जबान की ज्यादती नहीं ये , असल में
जवानी है , जनून है, जंग परस्ती है


लम्बी सड़क सा जीवन
Akanksha
परAsha Saxena
एक खिचाव सा होता
अजीब लगाव सा होता |
फिर से पहुँच जाती
 कल्पना जगत में
खो जाती सुरम्य वादी की
 उन रंगीनियों में |
कभी लम्बी कभी छोटी
 छाया वृक्षों की 
देती संकेत
 विविधता पूर्ण  जीवन की

आज की प्रस्तुति  के लिये पांच लिंक तो पूरे हुए...
फिर पुनः   भेंट होगी...
 कुलदीप ठाकुर
धन्यवाद...

शनिवार, 26 दिसंबर 2015

'संवाद-रंग'




सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष

कल ही तो शुरुआत हुई है
2015 को विदा करने की तैयारी 
और 
2016 को स्वागत करने के लिए
 तैयार हो रहने की होशियारी

आगत विगत स्वागत
 बन जायें तथागत

काश सम्भव होता
काश में न अटक आगे बढ़ते हैं 
और 
अपनी सोच से अवगत कराते हुये
आज एक ब्लॉग के 
कुछ  लिंक से 
परिचय कराते हैं 


तू मेरी प्रतिछाया है
सबसे बड़ा आभास है
मेरे हर जीत का कारण
और हर हार में
बढ़ाता विश्वास है।



 तो आप किसी एक गुट के नहीं हैं?
वैसे हमारी पत्रिका भी किसी गुट, किसी ग्रुप को महत्त्व नहीं देती।
हम जितने हैं, एक टीम की तरह काम करते हैं।
वैसे अच्छा लगा कि आप 
दूसरे गुट की पत्रिका की भी तारीफ करते हैं।



बदलाव की इस उत्सव से भारत के रंग और चटक होते गए।
इसके हर विकास में सबका योगदान रहा।
भारत की समन्वयात्मक संस्कृति में पंडितों का योगदान रहा।
 साधु-संन्यासियों का योगदान रहा। 
ख्वाजाओं ने भी इस संस्कृति को सँवारा।



लड़कों के हाफ-पैंट से भी छोटा उसका कैज़ुअल-ड्रेस है।
कॉलेज से निकलते ही शाम तक दोस्तों के साथ पार्क-मॉल
और न जाने कहाँ-कहाँ घूमना, कभी-कभी बिअर का 
एक-दो पैग ले लेना तो अब उसकी जीवन-शैली हो गई है। 
अब वह नंदी के नाम से पुकारी जाती है।



अगर सोचते हो
लक्ष्य को पाना है
तो हर हाल में
आगे
और आगे
और आगे
बढ़ते जाना है।




देखो जला रही जग को है,
संघर्षों की अद्भुत ज्वाला।
प्रतिपल कँपा रहा सबको है?
भीमकाय बन संशय काला।
ज्वालाओं को सुधा-सिक्त कर





नव-गति, नव-लय, ताल-छनद नव,
नवल-कंठ, नव जलद-मंद्र-रव,
नव-नभ के नव-विहग-वृंद को
नव पर नव स्वर दे।
    नवीनता चाहे किसी भी अवसर का हो, 
मन में उल्लास भरने वाले उस नव पल के लिए 
मेरा मन भी असीम शुभकामना व्यक्त कर रहा


फिर  मिलेंगे  ....... तब  तक  के  लिए  

आखरी  सलाम  

विभा  रानी  श्रीवास्तव








शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

160......क्रिसमस की शुभकामनाएँ

बड़ा दिन
यानि क्रिसमस
साल के अंत में
मनाया जानेवाला
एक बड़ा पर्व
इसे सभी वर्ग के लोग
धूम-धाम से मनाते हैं
कहते हैं रात में


बाबा सान्ता क्लाज़ आते हैं
और बच्चों के मोजों में
उपहार भर देते हैं

क्रिसमस पर रचनाएं तो नहीं है
पर चित्र जरूर दे रही हूँ



छान्दसिक अनुगायन में
नया साल आया है  
इसको गले लगाना है | 
इसकी आँखों में कुछ  
सपना नया सजाना है |



आहुति में
क्यूँ ना मैं... 
इक किताब बन जाऊं, 
तुम अपने हाथों में थामो मुझे, 
अपनी उंगलियों से... 
मेरे शब्दों को छू कर, 
मुझे अपने जहन में....
शामिल कर लो..


जिन्दगी की राहें में
बहुतों बार उस कुत्तें ने अपने
गरीब मालिक में भरी थी गर्मी
उस ठन्डे जाड़े की रात में चिपक कर स्पर्श से
बताया था उसने अपने मालिक को हाँ, मैं हूँ तुम्हारा अभिन्न !!




पिताजी में
शील से कोई सरोकार नहीं पुलिस का 
पुलिस चाहे दिल्‍ली की हो 
मुंबई की 
चैन्‍ने की 
कोलकाटा की 
पुणे की 
आंध्र प्रदेश की
या किसी भी  शहर की
अथवा गांव की 
क्रूर ही होती है 



गुज़ारिश में
आज फिर 
दर्द हल्का है 
साँसें भारी हैं 
दिल अजीब सी कशमकश में है 
कोई गाड़ी छूट रही हो जैसे...


ये रख दी मैंनें आज की अंतिम कड़ी
थोड़ी सी मुस्कुराहट  लाइए चेहरे पर
और पूरी रचना पढ़िये


नीत-नीत में
लड़का जब " आवारा गेंद" 
हो जाए तो 
वो मोटरसाइकिल उठाए फिरता है,
और कोई प्रधानमंत्री जब 
" आवारा गेंद" 
हो जाए तो 
वह हवाई जहाज उठाए फिरता है.....

इज़ाज़त दें..
यशोदा..
रचना तो कोई नहीं 

ये गीत सुनिए क्रिसमस पर
गुजरात से आयातित..



















गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

मेरा पता है कि लापता हूँ मैं ..............159

आप सभी को संजय भास्कर का नमस्कार
 पाँच लिंकों का आनन्द ब्लॉग में आप सभी का हार्दिक स्वागत है  !!


मेरा पता है कि लापता हूँ मैं..
कभी होता, उसके खर्राटों से वह ख़ुद जग जाता।
जग जाता के साथ लेटे सब न जग जाएँ।
सबके सोते रहने पर वह उठता। उठकर बैठ जाता। बैठना, थोड़ी रौशनी के साथ होता।
करनी चापरकरन पर  शचीन्द्र आर्य

पैसे के पीछे कभी तो दौड़ना छोड़िये
हालाँकि आजकल मनुष्य की औसत आयु ( लाइफ एक्सपेक्टेंसी एट बर्थ ) लगभग ७० वर्ष है ,
लेकिन मनुष्य की जिंदगी कब गुजर जाती है ,
पता ही नहीं चलता।
अंतर्मंथन पर  डॉ टी एस दराल

मेरे गाँव के कुत्ते
मेरे गाँव के कुत्ते
मान लो, उन्हें मिल जाए ऐसा कुछ मौका
कि, शहर  का देशाटन करने पहुंचे वो
मानो न, तो होगा क्या ?
सबसे पहले तो होगा नाम परिवर्तन
जिंदगी के राहें पर मुकेश कुमार 

तुम्हारे प्रेम के नशें में भी स्थिर हूँ
देर रात
मैं जब भी लिखता हूँ
कोई प्रेम कविता
लोग सोचते हैं
मैं नशें में होता हूँ
सुनो दोस्त,
लोग सही सोचते हैं
मेरी संवेदना पर नित्यानंद गायन 

कविताये कुछ नही कहती.
कभी-कभी कुछ कविताये,
कुछ नही कहती है...
ख़ामोश चुप सी बेतरतीब,
बिखरी सी रहती है...
कुछ कविताये कभी,
कुछ नही कहती है..
कभी-कभी कुछ कविताये,
'आहुति' पर शुष्मा वर्मा 

और अंत में मेरी एक पुरानी रचना माँ तुम्हारे लिए हर पंक्ति छोटी है

मेरी प्यारी माँ
तुम्हारे बारे में क्या लिखू
तुम मेरा सर्वत्र हो
मेरी दुनिया हो
तुम्हारे लिए हर पंक्ति छोटी है !
हर स्पर्श बहुत छोटा है
सारी दुनिया न्योछावर कर दू
शब्दों की मुस्कुराहट पर संजय भास्कर 


इसके साथ ही मुझे इजाजत दीजिए ...... अगले गुरुवार फिर मिलेंगे 

-- संजय भास्कर 


बुधवार, 23 दिसंबर 2015

158...दुनिया और ब्रह्मांड की बात क्या करना, इस छोटे से नक्शे में भी उसका नामो निशान नहीं है।

जय मां हाटेशवरी...

बहुत पुरानी बात है। किसी शहर में एक बड़ा धनी सेठ रहता था। वह सेठ दिल का उदार था और परोपकार में भी आगे रहता था। जो भी संत उस शहर में आता, उनका वह जी भर सत्कार करता। इसके चलते उस शहर में ही नहीं, दूर-दूर तक सेठ के दान-पुण्य के कार्यों की चर्चा रहती थी। इन सबकी वजह से सेठ के मन में अहंकार आने लगा था। वह दान-पुण्य तो करता ही रहा, लेकिन धीरे-धीरे अपने सद्गुणों को लेकर अपनी श्रेष्ठता का भाव उसके अंदर बैठता चला गया।

कुछ समय बाद एक बड़े संत उस शहर में आए। सेठ को जब इसका पता चला तो वह संत के पास पहुंच गया। उसने संत से कहा, 'हमारा सौभाग्य है कि आप हमारे शहर आए। आप मेरे घर को भी अपनी चरण धूलि से पवित्र कर दें तो मैं कृतार्थ हो जाऊंगा।' यह कहकर वह संत को अपना भव्य बंगला दिखाने ले आया। संत अलमस्त थे, पर सेठ अपने बड़प्पन की डीगें हांकने में व्यस्त था। संत को उसकी हर बात में अहम नजर आ रहा था।

आखिर संत ने उसकी मैं-मैं की महामारी मिटाने के उद्देश्य से दीवार पर टंगे मानचित्र को दिखाते हुए पूछा, 'इसमें तुम्हारा शहर कौन सा है' सेठ ने मानचित्र पर एक बिंदु पर उंगली टिकाई। संत ने हैरान मुद्रा में पूछा, 'इतने बड़े मानचित्र पर तुम्हारा शहर बस इतना सा ही है। क्या तुम इस नक्शे में अपना बंगला बता सकते हो।' उसने जबाव दिया, 'इतने बड़े नक्शे में भला मेरा बंगला कहां दिखेगा महाराज। वह तो ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर है।' संत ने पूछा, 'तो फिर इतना अभिमान किस बात का।'

शर्मिंदगी के मारे सेठ का सिर झुक गया। वह समझ गया कि दुनिया और ब्रह्मांड की बात क्या करना, इस छोटे से नक्शे में भी उसका नामो निशान नहीं है। अपनी मूर्खता में वह बेवजह ही स्वयं को अति महत्वपूर्ण मान रहा था।
संकलन: सुभाष बुड़ावनवाला

अब चलते हैं...आज की हलचल की ओर...

अश्क आँखों में सदा सबसे छुपाना
क्या खरी ही तुम सदा कहते रहे हो
मिर्च तुमको इसलिए कहता जमाना
वे चुरा लेते हमेशा भाव मेरे
है नहीं आसान अब इसको पचाना
तुम हँसो तो साथ में हँसता जमाना...ऋता शेखर मधु





यहाँ हर रिश्ता जायज  है, रिश्ते को नाम न दो।  लोग खुलकर बोल रहे हैं।  खुलकर अपनी भावनाएं व्यक्त कर रहे हैं।  भावनाओं की चाँदी है और कामनाओं
की भी।  प्रीत के तार ऐसे जुड़ें हैं कि टूटने का नाम ही नहीं लेते हैं. नैन मटक्का अब चैन मटक्का बनता जा रहा है, कुछ नए रिश्ते गुदगुदा रहें है, कुछ प्रीत
की डोर से बँधने के लिए तैयार बैठें हैं।  कुछ रिश्तें सेलिब्रिटी बनकर अपने जलवे दिखा रहें है.  चैन लूटकर ले गया बैचेन कर गया  ........ यहाँ हर आदमी बैचेन
हैं।  कोई कुछ पाने के लिए कोई कुछ खोने को।
चैन लूटकर ले गया। .......shashi purwar


ऐसी भी अन्जान नहीं मैं अब सजना
बिन देखे मुझको दिखता है सब सजना
अच्छा--तो वो क्या है
वो सागर है---उस सागर में
इक नैया है--अरे तूने कैसे जान लिया
मन की आँखों से नाम लिया
वो क्या है....
कवर प्रस्तुति -गायक --सफीर और अल्पना
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सुनो ,माँ का पत्र आया है .बच्चों सहित घर बुलाया है ---कुछ दिनों के लिए घर हो आते है .बच्चों की
छुट्टियां भी है .”पति ने कहा .
“मैं नहीं जाऊँगी उस नरक में सड़ने के लिए .फिर तुम्हारा गाँव तो गन्दा है ही ,तुम्हारे गाँव के और घर
आग्रह...भगीरथ



दो दिन बाद क्रिसमस  आने वाला है...
इस लिये  अब अंत में....
क्रिसमस स्पेशल केक बनाने की विधि - Christmas Special Cake Hindi Recipe
अगर केक पूरी तरह से बेक हो गया है, तो उसे खुले में रख दें और ठंडा हो जाने दें। ठंडा होने पर केक में चाकू की सहायता से कुछ छेद करें और उनमें ब्रैंडी भर
दें। उसके बाद केक को प्लेट में निकाल लें। उसके बाद केक पर मेवे लगाकर ऊपर से आइसिंग शुगर छिड़कें। फिर चाकू की सहायता से चारों ओर खुबानी/ऐपल जैम लगाएं। उसके
बाद मार्जपेन की कोटिंग करें और ऊपर से नींबू का रस छिड़क दें।
अब आपका क्रिसमस केक तैयार है। इसे चाकू की सहायता से छोटे-छोटे पीस में काटें और सर्व करें।

आज्ञा दें
फिर मिलते हैं
कुलदीप सिंह ठाकुर

   

सोमवार, 21 दिसंबर 2015

157....इन्द्रधनुष तुझसे बढ़कर रंगीन नहीं होगा

सादर अभिवादन स्वीकार करें
अभी सारा जग
आगत-विगत के
स्वागत और विदाई मे जुटा है
नया नहीं है यह
साल दर साल यही होता है

चलिए चलते हैं आज की प्रस्तुति की ओर...


क्यारी में खिलें फूल  
तो खेतों में फसल हो , 
सागर से जो निकले तो  
हो अमृत न गरल हो , 
चिड़ियों की चहक  
फूलों की खुश्बू को बचाएं |


आकर्षण तुझसा चुम्बक में भी न कहीं होगा ॥
सौन्दर्य तेरे आगे आसीन नहीं होगा ॥
आँखों को भाने वाले इतने रँग हैं तुझमें 
इन्द्रधनुष तुझसे बढ़कर रंगीन नहीं होगा ॥


जब जरा मन उदास हुआ 
इक प्यार भरी 
थपकी सी लगा देती है 
माँ की याद !!


उलूक टाईम्स में
बिना डाक्टर को 
कुछ भी बताये 
कुछ भी दिखाये 
बिना दवाई खाये 
बने रहना पागल 
सीख लेने के बाद 
फिर कहाँ कुछ 
किसी के लिये बचता है 


मन का मंथन में
जो वतन को बांट रहे हैंं,
लोकतंत्र की जड़े काट रहे हैं,
कह दो उनसे
दिन नहीं अब उनके,
अब दल तंत्र नहीं
जनतंत्र ही होगा,


किताबों की दुनिया में
नहीं चुनी मैंने वो ज़मीन जो वतन ठहरी 
नहीं चुना मैंने वो घर जो खानदान बना 
नहीं चुना मैंने वो मजहब जो मुझे बख्शा गया 
नहीं चुनी मैंने वो ज़बान जिसमें माँ ने बोलना सिखाया 


और ये है आज की अंतिम कड़ी..

तुम्हारा देव में
पिछले दो घंटों से
ख़त लिखने की कोशिश में
कई कागज़ बेकार कर दिये।
लेकिन तब भी
चार पंक्तियाँ हाथ न लग सकीं।

आज्ञा दीजिए
फिर मिलेंगे
यशोदा
















156..........आखिर चाहते क्या हो?

सादर अभिवादन स्वीकारें
आज मन नहीं था
कुछ भी लिखने पढ़ने का पर..
कर्म-काण्ड में फंसी यशोदा
करे  भी  तो क्या करे..मन व्यथित है..


अपने न्यायालय का नियम भी 
विचित्र है कहता है 
कि दस दोषी भले ही छूट जाए पर.. 
एक निर्दोष को 
सजा नही होनी चाहिए
और आज एक दोषी और रिहा होगा

.....ये तो पुरातन काल से होता चला आ रहा है

चलिए चलें वर्तमान में.....

देहभान में प्राण तिरोहित,
अन्तर आत्मा दुखी बेचारी ।
प्रेम भक्ति की सुधा चखा दो,
राधा माधव, कृष्ण मुरारी ।।


तुमने मुझसे 
वो हर छोटी-छोटी बात 
वो हर चाहत कही 
जो तुम चाहती थी 
कि तुम करो 
कि तुम जी सको 
पर शायद तुमको 
कहीं ना कहीं पता था 


एक बच्ची का बचना
एक बच्ची का मरना
एक बच्ची का गिरना
एक बच्ची का बिगड़ना
आखिर चाहते क्या हो?


बेचैन आत्मा में..
पढ़ लिख कर 
होशियार हो गई थी मेरी बेटी 
नौकरी करने गई थी 
देश की राजधानी में 
पापियों ने 
बलात्कार कर दिया 
मार दिया जान से 
तुम कहते हो 
नहीं होगी सजा 
नाबालिग थे हत्यारे! 
बलात्कार करने वाला बालिग ही हुआ न ? 


रिदम में..
मुझे सुनाई देती हैंआवाज़े
पहाड़ के उस पार की
घाटी में गूंजती सी
मखमली ऊन से हवा
फंदा-दर फंदा
साँस देती हुयी
आवाहन करती हैं
जीने की जदोजहद से निकलने का


कविता रावत में
मैदान  का नजारा देखने के लिए पहाड़ पर चढ़ना पड़ता है।
परिश्रम में कोई कमी न हो तो कुछ भी कठिन नहीं होता है।।

एक जगह मछली न मिले तो दूसरी जगह ढूँढ़ना पड़ता है।
उद्यम   से   सब   कुछ   प्राप्त   किया   जा   सकता  है।।

और ये रही आज की अंतिम कड़ी

उन्नयन में
तुम बदल न पाये खुद को 
औरों को बार बार कहते हो -
फूटी कौड़ी भी  न दे सके 
जरूरतमंदों को  जनाब 

आज्ञा दें यशोदा को
फिर मिलेंगे..













रविवार, 20 दिसंबर 2015

155...नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे

जय मां हाटेशवरी...
इश्क में पीट के आने के लिए काफी हूँ
मैं निहत्था ही ज़माने  के लिए काफी हूँ
हर हकीकत को मेरी, खाक समझने वाले
मैं तेरी नींद उड़ाने के लिए काफी हूँ
एक अख़बार हूँ, औकात ही क्या मेरी
मगर शहर में आग लगाने के लिए काफी हूँ
सर्दी कुछ अधिक है...
पर सूर्य देव प्रसन्न हैं...
इसी लिये मैं लाया हूं आप के लिये...
पंच-रंगी हलचल....

बुरा भला ब्लॉग पर पढ़ें...
काकोरी काण्ड के स्वतंत्रता सेनानियों का ८८ वां बलिदान दिवस

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दरअसल क्रांतिकारियों ने जो खजाना लूटा उसे जालिम अंग्रेजों ने हिंदुस्तान के लोगों से ही छीना था। लूटे गए धन का इस्तेमाल क्रांतिकारी हथियार खरीदने और आजादी के आंदोलन को जारी रखने में करना चाहते थे। इतिहास में यह घटना काकोरी कांड के नाम से जानी गई, जिससे गोरी हुकूमत बुरी तरह तिलमिला उठी। उसने अपना दमन चक्र और भी तेज कर दिया।
अपनों की ही गद्दारी के चलते काकोरी की घटना में शामिल सभी क्रांतिकारी पकडे़ गए, सिर्फ चंद्रशेखर आजाद अंग्रेजों के हाथ नहीं आए। हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के 45 सदस्यों पर मुकदमा चलाया गया जिनमें से राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई।


Onkar जी को खेद है कि...
मैं बहुत व्यस्त हूँ
ज़िन्दगी भर रहा,
न औरों के लिए,
न अपनों के लिए,
यहाँ तक कि
ख़ुद के लिए भी
वक़्त ही नहीं मिला


नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे

ये गीत गूंज रहा है...उच्चारण:  पर...
नव-वर्ष हमेशा आता है, सुख के निर्झर अब तक न बहे,
सम्पदा न लेती अंगड़ाई, कितने दारुण दुख-दर्द सहे,
मक्कारों के वारे-न्यारे!
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!!
रोटी-रोजी के संकट में, नही गीत-प्रीत के भाते हैं,
कहने को अपने सारे हैं, पर झूठे रिश्ते-नाते हैं,
सब स्वप्न हो गये अंगारे



आशुतोष की कलम से हम ये क्या सुन रहे हैं...
बलात्कारी अफरोज की रिहाई और केजरीवाल सरकार का बलात्कार का इनाम
 यदि इस दरिन्दे अफरोज ने खुद के 18 साल से थोडा कम होने के कारण क़ानून का फायदा  उठा के अपनी रिहाई का रास्ता बना लिया है तो क्यों न सरकार इसकी तस्वीर और पहचान सार्वजनिक कर दे जिससे फिर कोई निर्भया अफरोज की हवस और हैवानियत का शिकार न होने पाए..दूसरी ओर सबसे दुखद ये है की अरविन्द केजरीवाल ने अब उस राक्षस को खुला
छोड़ने के साथ साथ उसे 10000 रूपये तथा सभी आवश्यक सहायता देने की घोषणा की है..क्या अफरोज जैसे बलात्कारी को पैसे देकर हमारी बेटियों महिलाओं की सुरक्षा होगी




कैलाश शर्मा जी कहे रहे हैं...
जीवन घट रीत चला
हर पल ऐसे बीता,
जैसे इक युग गुज़रा।
खुशियों का कर वादा,
सपनों ने आज छला।
कण कण है शून्य आज,
हर कोना है उदास।
जीवन में अँधियारा,
आयेगा न अब उजास





आज की हलचल तो यहीं तक...
पर मिलते रहेंगे...
धन्यवाद।


शनिवार, 19 दिसंबर 2015

आस पास की खबरें



सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष

ईक लम्हें के लिये रुका तू भी नहीं मैं भी नहीं।
चाहते दोनों बहुत एक दूसरे को हैं।
मगर ये हकीकत है कि
मानता तू भी नही मैं भी नही॥-


रामदेवसिंह बालेसर


जुस्तुजू ही जुस्तुजू है,  उफनते थर्राते सवाल
राह में टकरा गया मुस्कुराता जवाब देखा है
वक़्त के साथ साथ  ज़माने को, होते बे नक़ाब देखा है

किसी पत्थर में नहीं न किसी ताबीज़ में
अपने अंदर झाँककर रहीम -ओ-राम आज देखा है

Raahi


जितनी  योग्यता  बढ्ती  चले  ,
सफलता  की मंजिल  उतनी  ही   प्राप्त  करता  चले  ,
 रास्ता  सबके  लिए  खुला  है  ,  उस  पर  चलकर  कितना
 पार  कर  सकता  है  ,  यह  व्यक्ति  की  अपनी  लगन ,
साहस  और  विश्वास  पर  निर्भर  है

Anjali


नाग व्यापम का अपना कसे पाश है
बेईमानों की सत्ता बनी खास है
ऐसे में न्याय की ना कहीं आश है
आ गये अच्छे दिन आ गये
सच्चे दिन मैं नहीं मानता ।
 मैं नहीं मानता।

amrnath


जीवन  की परिपूर्णता उपलब्धियों पर निर्भर नहीं करती
बल्कि इस बात में है कि उसे सही तरह से जियें।
या वैसे जियें जैसे हमने हमेशा सोचा था।
हम सब इन बंधनों में स्वयं बंधते हैं और फिर खुद को घिरा हुआ महसूस करते हैं।
और एक दिन हम स्वयं से ही बहुत दूर हो जाते हैं
और चाह कर भी जीवन को अपने हिसाब से जी नही पाते

Bhawna


रात की रानी सी ख़ुशबू  शाम के ढलने के बाद
मेरी ज़ुल्फ़ों से उड़ी तो चाँद पागल हो गया

रूठ कर बादल चले हैं रूठ कर तारे चले
रूठ कर बदली चली तो चाँद पागल हो गया

Anita


आस पास की खबरें
आदत बनकर उत्तेजना में
किसी की भी जान ले सकती हैं। ....
चालीस फोटो के साथ चार पृष्ठों में
पति की तारीफ़ से भरा पत्र
जब एक पत्नी से शेयर कर दिया

Kanchan



तन्हा अजमेरी

फिर मिलेंगे ...... तब तक के लिए

आखरी सलाम



विभा रानी श्रीवास्तव

शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

153....प्रीत सी प्यारी शरद ऋतु आई

सादर अभिवादन
आज का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है
आज ही के दिन
संत शिरोमणी परम पूज्य बाबा गुरु घासीदास 
का जन्म हुआ...आज उनकी 259 जयन्ती है


रायपुर जिला गजेटियर के अनुसार गुरू घासीदास का जन्म 18 दिसंबर सन् 1756 को एक श्रमजीवी परिवार में बलौदाबाजार तहसील के अंतर्गत महानदी के किनारे बसे गिरौदपुरी ग्राम में हुआ। यह गांव छत्तीसगढ़ की संस्कारधानी शिवरीनारायण से मात्र 11 कि.मी. दूर है। इनके पिता का नाम मंहगू और माता का नाम अमरौतिन बाई था।

अब शेष रचनाओं की कड़ियां....


मन की झील पर यादें कोहरे सी छाई
एक बार फिर प्रीत की शरद ऋतु आई
बीती बातों ने नवल किरणें बिखराई
आँखों में प्रेम की फिर छवि लहराई
प्रीत सी प्यारी शरद ऋतु आई


जब भी मिला दरिया मिला सागर नहीं आता
उसे देखा नहीं लेकिन दिल में रहा तो था
सफर में कहीं वो मील का पत्थर नहीं आता
सुनता हूँ खुदा मेरा फलक पर है जमाने से
वह क्यों मेरे सामने उतरकर नहीं आता


उर आंगन में रचें स्वर्ग जब
उसका ही प्रतिफलन हो बाहर,
भीतर घटे पूर्णिमा पहले
चाँद उगेगा नीले अम्बर !


यूँ तुम से बिछड़ के हम रह नहीं पाते हैं 
कैसे कहें कुछ कह नहीं पाते हैं ..
ये उम्र यूँ ही कट रही है ..
कुछ है जो हम सह नहीं पाते हैं 
यूँ तुम से बिछड़ कर हम रह नहीं पाते हैं ..


मेरी ख़ामोशी
इधर-उधर घूमती पुतलियाँ
ढूँढती हैं शब्दकोश
ताकि कह सकें
कि कैसा लगता है
जब तपते माथे पर
कोई ठंडी हथेली नहीं रखता


ना ठोकर ही नयी है, ना जख्म पुराने हैं 
हर  हाल में  जिंदगी तेरे  नाज़ उठाने हैं

सिमटने तो लगें हैं पँख हमारी अना के  
आसमां से अपने भी मगर बैर पुराने हैं 


पिछले दिनों जब दिलीप साहब का भावहीन चेहरा टीवी पर देखा तो बहुत कुछ रीत गया.दिलीप साहब को ऐसे देखने की आदत नहीं थी.शायद वे इस दुनियां में रहते हुए भी यहाँ से मीलों दूर थे.बचपन से ही उनकी फ़िल्में देखते हुए बड़े हुए एक पूरी पीढ़ी के लिए सदमे जैसा था.


इज़ाज़त दें यशोदा को
फिर मिलेंगे..
पास में ही श्रीमद् भागवत का प्रवचन हो रहा है
प्रवचन कर्ता द्वारा गाया जाने वाला भजन मन को भा गया
आप भी सुनिए..








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