निवेदन।


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रविवार, 31 जनवरी 2021

2024.....सर्दी में सबको प्यारी लगती धूप

जय मां हाटेशवरी.......
2021 के जनवरी का अंतिम दिन...... 
करोना का कहर अब थम रहा है....... 
31 मार्च तक करोना मुक्त हो जाए भारत...... 
ईश्वर से ये कामना है....... 
अब देखिये मेरी पसंद...... 

नरम धूप लेकर सूरज उगा लोग सुगबुगाते 
छोड़ कम्बल-रजाई धूप सेंकने चले आते  
सुबह की धूप ठंड में सबको खूब है भाती 
सीख समभाव का देकर सबके मन लुभाती  

कुछ सरकार लिख रहे हैं
कुछ बेकार लिख रहे हैं
बेगार लिखना गुनाह नहीं है
राग दरबार लिख रहे हैं
लिख ‘उलूक’ लिख
तेरे लिखने से
 कुछ नहीं कर सकने वाले
 लिखने लिखाने के तरीके के
 कारोबार लिख रहे हैं 

 राजमहल है मेरी कुटिया
दुनिया से क्या लेना देना,
मन में हो सन्तोष अगर तो
काफी मुझ को चना चबेना 

अब हर-एक मुर्गा अलग-अलग समय पर अलग-अलग ढंग की बांग देने लगा.
कोई मुर्गा भगवा बांग देने लगा
तो कोई हरी बांग देने लगा,
कोई लाल बांग देने लगा तो
कोई वंशवादी बांग देने लगा.
और तो और, कोई-कोई मुर्गा तो
दल-बदलू बांग भी देने लगा.
गाँव वाले परेशान !
किस मुर्गे की बांग सुन कर वो यह मानें कि
सूरज उग आया है 

दिल भी शीशे सा कई टुकड़ों में बिखरा हैं कहीं
अब गले मिलना नहीं हाथ दबाना भी नहीं
बेटियों उड़ती रहो  तेज परिंदो की तरह
कितनी मुश्किल हो ये रफ़्तार घटाना भी नहीं 

माया में उलझे 
शावक सा भागे 
देखे ना आगे
रोकूँ इसको कैसे...
कोई राह नहीं सूझे
धन्यवाद.                                            

शनिवार, 30 जनवरी 2021

2024 बेड़िया

   

हाज़िर हूँ... उपस्थिति स्वीकार करें...

30 जनवरी को सुबह 11 बजे दो मिनट का मौन रखने का निर्देश दिया गया है। यह माैन उन वीर सपूतों के लिए होगा जिन्होंने भारत की आजादी के लिए संघर्ष के दौरान अपनी जान गंवाई है। गृह मंत्रालय ने अपने आदेश में कहा कि यह राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों से अनुरोध किया जाता कि वे सुनिश्चित करें कि शहीद दिवस को पूरी गंभीरता के साथ मनाया जाए। अतीत में यह देखा गया है कि कुछ कार्यालयों में ही दो मिनट का मौन मनाया जाता है। वहीं आम जनता भी इसके मनाए जाने और इसके महत्व से बेखबर होती है। ऐसे में लोगों को इस खास दिन के बारे में भी जागरुक करना जरूरी हो जाता है।

जिसे लोगों ने गांधीगिरी का नाम दिया है. महात्मा गांधी की बातें भले ही छोटी हों लेकिन उनकी सीख बेहद बड़ी है!

01. माफ़ करना सीखो, 02. सफ़लता के लिए अभ्यास ज़रूरी है, 03. समाज को बदलने से पहले खुद को बदलो

04. अपने विश्वास को मरने मत दो' 05. सभी धर्मों की इज़्ज़त करो, 06. पापी से प्रेम करो

07. हमेशा सत्य की राह पर चलो, 08. लोगों के कपड़ों को नहीं उनके चरित्र को देखो, 09. मौन अपनाओ

10. इस संदेश को अपने जीवन में उतारो, 11. ये अनुमति आप किसे देते हैं, ये आप पर निर्भर करता है

12. अपने विचारों को कुरीतियों से ऊपर उठाओ, 13. किसी भी काम को करने से पहले उसके बारे में सोचो

14. अपने क्रोध पर विजय पाओ, 15. कायरता छोड़ो

साहित्य के अनन्य उपासक स्व. जयशंकर प्रसाद मात्र 47 वर्ष की अल्पायु में 'कामायनी' जैसा महाकाव्य सृजनात्मक साहित्य रचयिता सरस्वती-पुत्र को उनके जन्मदिवस पर सादर स्मरण

ले चल मुझे भुलावा देकर, 

मेरे नाविक धीरे-धीरे 

जिस निर्जन में सागर लहरी, 

अम्बर के कानों में गहरी, 

निश्छल प्रेम कथा कहती हो, 

तज कोलाहल की अवनी रे'❗

बेड़िया

जब हम इन्हें सभ्य बनाने की बात करते हैं तो हम उन्हें खुद संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में ला रहे हैं। लेकिन कार्य के आधार से समुदाय की पहचान को देखें तो राज्य उन्हें निम्न श्रेणी में ही श्रेणीबद्ध करता है। तो जाहिर सी बात है एक जाति से उठकर यदि वह दूसरी नीची जाति में प्रवेश करते है तो इनके लिए संकट और बढ़ जाते हैं।

नमन

अब तुम मान जाओ कि तुम मर चुके हो मोहनदास

वरना बड़े-बड़ों की लाख कोशिशों के बावजूद

आज किसी गली से इकलौता पागल न गुजरता राम धुन गाते हुए

गांधीवाद को यूं न घसीटा जाता सरेआम

आक्रोश को अहिंसा का मुखौटा पहनाते हुए

न बेची जाती दो टके में ईमान, भरे बाजार में


बेड़िया

शरद सिंह ने पात्रों का दुबारा दलदल में फंसने का वर्णन किया है परंतु कुछ पात्र सलामति से दबाओं और परंपराओं को तोड़कर आत्मविश्वास से उडान भरने में सफलता हासिल करने का भी चित्रांकन किया है। जीवन में पिछले पन्नों से मुखपृष्ठों पर स्थान पाना है तो जीवट, पेशन्स, आत्मविश्वास, ईमानदारी और ज्ञान की जरूरत है; अगर बेड़नियां यह सब कुछ पाए तो वे‘पिछले पन्नों की औरतें’नहीं कही जाएगी।

यह कौन सा समाज है

बरसों से

उसके पैरों में वहीं है दासता की बेड़िया

हाथों में वही है नरक सफाई के औजार

सिर पर भी वही है त्याज्य अपवित्रता का बोझ

कोई परिवर्तन नहीं !

रचने का आनंद

सर्वशक्तिमान बाजार के चंगुल से निकलने की जुगत में छटपटाते छह पागलों की कथा। हर पागल की कथा एक नये कोण से बाजार के खेल को समझने समझाने का प्रयास था। अंत तक पहुंचते पहुंचते हर पागल की कथा एक उचित अंत तक पहुंच भी गई थी। फिर भी उपन्यास बहुत अधूरा लग रहा था। मैं जान रहा था कि जब तक इस फैंटेसी का अंत बाजार पर नहीं आयेगा बात अधूरी रहेगी

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पुन: भेंट होगी...

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शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

2023 ...विषैले सांप कुचले जायेंगे,ये मेरा वादा है

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन
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चश्मों से
परावर्तित होकर
बनने वाले परिदृश्य
अब समझ में नहीं आते 
तस्वीरें धुंधली हो चली है
निकट दृष्टि में आकृतियों की
भावों की वीभत्सता से
पलकें घबराहट से
स्वतः मूँद जाती हैं,
दूर दृष्टि में
विभिन्न रंग के
सारे चेहरे एक से... 

#श्वेता

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आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-

सोचों की रोशनदानविहीन वातानुकूलित कमरों में मानो ऐ साहिब!
अपनापन की गौरैयों का पहले जैसा रहा आवागमन भी अब कहाँ ?
रूहानियत बेपता, रुमानियत लापता, मिलते हैं अब मतलब से सब,
प्यार से सराबोर जीता था मुहल्ला कभी, वो जीवन भी अब कहाँ ?



सोन चिरैया सुख सपना
विकट विदाही विकलता
कली से कमलिनी का क्लेश
क्षण-क्षण क्षत हो छलकता


यूं ही नहीं आता वसंत
लड़नी होती है, लंबी लड़ाई
धूप को
कोहरे के साथ।

मेरी गलियों की मिट्टी से, तुम्हारी सांस रुकती है 
खिले हर फूल की खुशबू, तुम्हारे दिल में चुभती है 
मगर जो ठान बैठे हैं,वो भागीरथ इरादा है 
विषैले सांप कुचले जायेंगे,ये मेरा वादा है 



भाग्य में शून्य स्तूप आया,
बदल दे हाथ के लकीरों
को, ऐसा कोई
मेहरबाँ न
मिला,
ज़िन्दगी जीने के लिए, सभी
दौड़े जा रहे हैं बेतहाशा,
नए दिन के साथ
नए षड्यंत्र,
वही

लुहार


पास ही की सीट पर बैठे एक हेंडसम नौजवान ने हाथ का इशारा किया और लड़की को अपनी सीट दी,हल्की मुस्कान के साथ दोनों ने एक-दूसरे का स्वागत किया। लड़की अब सहज अवस्था में थी। सीट मिलते ही वह अपने आपको औरों की तुलना में बेहतर समझने लगी।
....
कल मिलिएगा विभा दीदी से

गुरुवार, 28 जनवरी 2021

2022...वक़्त ठहरता नहीं...

 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में आपका स्वागत है।

वक़्त 

ठहरता नहीं 

सब ख़ूब जानते हैं,

फिर भी कभी-कभार 

ठहर जाने की दुआ माँगते हैं।

#रवीन्द्र_सिंह_यादव

आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-

एक और नया पन्ना जुड़ा... आकांक्षा-आशा लता सक्सेना

पर अभी तक प्रश्न अनुत्तरित हैं

इनके उत्तर  ढूँढूं कहाँ

जिससे भी जानना चाहा

उसी ने कहा यह तो

जीवन में आने वाली सामान्य सी

सहज ही सी प्रतिक्रिया है |

कुछ हैं तेरी याद से जुड़े हुए ...स्वप्न मेरे

मेरी फ़ोटो

रोज एक इम्तिहान है नया,
हम भी इस तरह से कुछ बड़े हुए.
 
बादलों का साथ दे रही हवा,
सामने हैं सूर्य के अड़े हुए.

बूँदें... कविताएँ

उन्हें नहीं पता

कि उन्हें उतरना ही होगा,

मिलना ही होगा मिट्टी में,

हारना ही होगा

धूप से, हवा से.

धागे का दु:... बोल सखी री

मिलान में रेड कार्पेट पर चलती हसीनाएं और उनका शरीर

जाने आजकल गंध क्यों मारते हैं,

बाबू के माथे का पसीना

जब-जब गिरा है करघे की डोरों पर,

यह देश मेहनत की ख़ुशबू में डूब गया है।

एक अजीब बाज़ार है दुनिया... काव्यांजलि

मेरी फ़ोटो

सच की कीमत को समझे

झूठ का करती व्यापार है दुनिया,

सौदा करने का ढंग आये

हिसाब मे बड़ी बेकार है दुनिया,

आंदोलन... काव्य कूची

My photo

आंदोलन के नाम क्यों,करते लोग बवाल।

मूल लक्ष्य को भूल कर,बजा रहें हैं गाल।।

 चिपको आंदोलन हुआ,चेती तब सरकार

लक्ष्य रहा पर्यावरण, तभी बचे कांतार।।

युद्ध और हिंदी कहानी: समालोचन


हजारों भारतीयों को नितांत अपरिचित भूमि पर मरने के लिए भेज दिया जाता था . ...सिद्धांत रूप में तो सैनिक-भर्ती स्वैच्छिक थी, किन्तु व्यवहार में यह लगभग ज़ोर-ज़बरदस्ती का रुप धारण कर लेती थी. पंजाब में 1919 के उपद्रवों के पश्चात कांग्रेस द्वारा की गयी जाँच-पड़ताल से ज्ञात होता है कि वहाँ के लेफ्टिनेंट  गवर्नर माइकेल डायर के शासन काल में लंबरदारों के माध्यम से जवानों को सेना में भरती होने के लिए बाध्य किया जाता था.”

*****

आज बस यहीं तक

फिर मिलेंगे अगले गुरूवार।

#रवीन्द्र_सिंह_यादव 

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