99 के चक्कर में
2000 वाँ अंक तृप्ति जी के हवाले
देखिए आज का पिटारा...
स्याही की बूँदें और सजा ....रायटोक्रेट कुमारेन्द्र
एक दिन वह बच्चा घर पर बैठा
अपना काम करने में लगा था.
फाउंटेन पेन हमेशा की तरह उसके हाथ में था.
स्याही की शीशी उसकी पहुँच में थी ही.
उसकी मम्मी ने देखा तो उसे समझाया.
अगले पल उसकी माँ के दिमाग में कुछ बात आई.
उन्होंने उस बच्चे से कहा कि
तुम हर जगह स्याही के निशान बना देते हो,
हाथ गंदे कर लेते हो, कपड़े गंदे कर लेते हो.
दूध मुंहा दौड़ चला ...कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
जन्म लेते ही साल दौड़ने लगा !!
हाँ वो गोड़ालिया नहीं चलता,
नन्हें बच्चों की तरह,
बस सीधा समय की कोख से
अवतरित होकर
समय के पहियों पर चढ़ कर
भागने लगता है।
उसे भागना ही पड़ता है
वर्ना इतने ढेर काम
सिर्फ ३६५ दिन में
कैसे पूरा करें पायेगा।
भोर के गीत को गाती पहुँचती हैं
जैसे आते हैं चैतुआ मीत...
काटते हैं फ़सल गाते हैं गीत.....!
और लौट लेते हैं
हर बरस आने की इच्छा लिए ।
उलूक की चिन्ता..
एक सड़ी मछली
गंदा करती है तालाब वाली
कहावत ही बेकार हो जायेगी
उसी दिन से पाठ्यक्रम में
नई लाईने डाल दी जायेंगी
जिस दिन
सारी मछलियाँ
सड़ा दी जाती हैं
तालाब की बात
उस दिन के बाद से
बिल्कुल भी
कहीं नहीं की जाती है ।
बस
सादर
बदलाव नियम है प्रकृति का
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स चयन
जवाब देंहटाएंनिन्यानबे का सुन्दर प्रस्तुति..
मेरी प्रस्तुति शनिचर को होती है
एक से बढ़कर एक सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसादर।
९९ के फ़ेर में आप भी आ ही गये। नव वर्ष मंगलमय हो। आभार।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढियाँ..
जवाब देंहटाएंकोशिश रहेगी 2000वे प्रस्तुति खास बनाने की।
धन्यवाद
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति नववर्ष मंगलमय हो
जवाब देंहटाएंलाज़बाब प्रस्तुति,नववर्ष मंगलमय हो।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशानदार लिंक्स ...
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुतियां ...🌹🙏🌹
सुंदर लिंक के साथ १९९९ का सुंदर तालमेल।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।