भाई कुलदीप जी ऑनलाईन मीटिंग में हैं
कह रहे थे पता नहीं कब तक चलेगी
फिरे आसमानों, पर बेफिक्र,
दूर कितना, सितारों का वो घर,
जाने, कैसा ये शहर!
जिंदगी में थोड़ा सा दुःख जरूरी है ...आपकी सहेली
नन्हीं परी ....आकांक्षा
किसी हूर से कम नहीं तू
या है एक नन्हीं परी
श्वेत वस्त्रों से सजी है |
परख हीनता ....अग्निशिखा
हम बहुत कुछ रख आते हैं बंधक,
अदृश्य भस्म लपेटे सारे अंग में,
निरंतर भटकते हैं किसी
मृग -सार की तरह बदहवास,
आईना क्रमशः उतार देता है,
परत दर परत जिस्म से सभी
दिखावटी रंजक,
हुस्न के दीदार से निकला ...छान्दसिक अनुगायन
बड़ी मुश्किल से माया मोह के किरदार से निकला
चुनौती रेस की जब हो तो आहिस्ता चलो भाई
वही हारा जो कुछ सोचे बिना रफ़्तार से निकला
बहुत कमा लिया .....मेरी धरोहर
कुछ दुआएं भी ले जाऊंगी
लोग कमा लिए इतने
कि कुछ तो मेरे जाने
से गमगीन रहेंगे
मेरी कविता को ही
मेरे लिए गुनगुना देंगे
सैनिकों के सम्मान में ...जिज्ञासा की जिज्ञासा
सीना ताने तुम अड़े हुए ।।
आंखों में नींद के डोरे हैं,
पैरों में छाले पड़े हुए ।
प्रहरी तुम थक तो नहीं गए ।।
बस इतना ही
कल की कल
सादर
उम्दा लिंक्स चयन
जवाब देंहटाएंअसीम शुभकामनाओं के संग इस श्रमसाध्य कार्य हेतु साधुवाद
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद सर
शानदार अंक
जवाब देंहटाएंआभार पढ़वाने के लिए
सादर
बेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुन्दर प्रस्तुति व संकलन, सभी रचनाएं असाधारण हैं, मुझे जगह देने हेतु असंख्य आभार आदरणीय दिग्विजय जी - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं के सुंदर संकलन तथा प्रस्तुतीकरण के लिए आपका बहुत बहुत अभिनंदन..मेरी रचना शामिल करने के लिए आपका कोटि कोटि आभार एवं नमन..सादर..
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