निवेदन।


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सोमवार, 30 जून 2025

4435 ...नुन्नोऽनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नुन्ननुन्ननुत्

सादर अभिवादन
आज जून मास का अंतिम दिन
....
मैं संस्कृत हूँ


पूरे विश्व में केवल एक संस्कृत ही ऐसी भाषा है जिसमें केवल एक अक्षर से ही पूरा वाक्य लिखा जा सकता है, किरातार्जुनीयम् काव्य संग्रह में केवल “न” व्यंजन से अद्भुत श्लोक बनाया है और गजब का कौशल्य प्रयोग करके भारवि नामक महाकवि ने थोड़े में बहुत कहा है...

न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नानानना ननु।
नुन्नोऽनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नुन्ननुन्ननुत्॥

अर्थात: जो मनुष्य युद्ध में अपने से दुर्बल मनुष्य के हाथों घायल हुआ है वह सच्चा मनुष्य नहीं है। ऐसे ही अपने से दुर्बल को घायल करता है वो भी मनुष्य नहीं है। घायल मनुष्य का स्वामी यदि घायल न हुआ हो तो ऐसे मनुष्य को घायल नहीं कहते और घायल मनुष्य को घायल करें वो भी मनुष्य नहीं है। वंदेसंस्कृतम्!

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(भारवि (छठी शताब्दी) संस्कृत के महान कवि)
भारवि (छठी शताब्दी) संस्कृत के महान कवि हैं। वे अर्थ की गौरवता के लिये प्रसिद्ध हैं ("भारवेरर्थगौरवम्")। किरातार्जुनीयम् महाकाव्य उनकी महान रचना है। इसे एक उत्कृष्ट श्रेणी की काव्यरचना माना जाता है। इनका काल छठी-सातवीं शताब्दी बताया जाता है। यह काव्य किरातरूपधारी शिव एवं पांडुपुत्र अर्जुन के बीच के धनुर्युद्ध तथा वाद-वार्तालाप पर केंद्रित है। महाभारत के वन पर्व पर आधारित इस महाकाव्य में अट्ठारह सर्ग हैं। भारवि सम्भ दक्षिण भारत के महर्षि कवि के वंश भट ब्राह्मण भटनागर कायस्थ कुल में जन्मे थे। उनका रचनाकाल पश्चिमी गंग राजवंश के राजा दुर्विनीत तथा पल्लव राजवंश के 
राजा सिंहविष्णु के शासनकाल के समय का है।

कवि ने बड़े से बड़े अर्थ को थोड़े से शब्दों में प्रकट कर अपनी काव्य-कुशलता का परिचय दिया है। कोमल भावों का प्रदर्शन भी कुशलतापूर्वक किया गया है। इसकी भाषा उदात्त एवं हृदय भावों को प्रकट करने वाली है। प्रकृति के दृश्यों का वर्णन भी अत्यन्त मनोहारी है। भारवि ने केवल एक अक्षर ‘न’ वाला श्लोक लिखकर अपनी काव्य चातुरी का परिचय दिया है।
*******
अस्य ....
“आषाढस्य प्रथम दिवसे”

तस्मिन्नद्रौ कतिचिदबलाविप्रयुक्त: स कामी,
नीत्वा मासान्कनकवलयभ्रंशरिक्तप्रकोष्ठ: ।
आषाढस्य प्रथम दिवसे मेघमाश्लिष्टसानुं,
वप्रक्रीडापरिणतगजप्रेक्षणीयं ददर्श ।

कुबेर के उस सेवक (हेममाली) यक्ष की नयी-नयी शादी हुई थी, सबेरे उठने में देर हो जाती थी| 
इसलिए वह रात्रि को ही कमल के पुष्प तोड़ कर रख लेता और जब कुबेर शिव-पूजा पर बैठते तब 
फूलों की टोकरी पहुंचा देता ।

********



“वर्षा ऋतु की स्निग्ध भूमिका
प्रथमदिवस आषाढ-मास का
देख गगन में श्याम घनघटा
विधुर यक्ष का मन जब उचटा
खडे-खडे तब हाथ जोड़कर
चित्रकूट के सुभग शिखर पर
उस बेचारे ने भेजा था,
जिनके ही द्वारा संदेशा
उन पुष्करावर्त मेघों का
साथी बन कर उड़ने वाले
कालिदास ! सच सच बतलाना
पर-पीडा से पूर-पूर हो
थक-थक कर और चूर-चूर हो
अमल-धवल गिरि के शिखरों पर
प्रियवर ! तुम कब तक सोये थे ?
रोया यक्ष कि तुम रोये थे ?
कालिदास सच-सच बतलाना !
…….बाबा नागार्जुन

और भी है... ब्लॉग पर जाकर पढ़िेएगा

देखें कुछ रचनाएं


माँ तुम मुझको आज दिला दो
सपनो वाली मेरी गुड़िया
वो मुझको सुन्दर लगती है
माँ तुम मुझको आज दिला दो
सपनो वाली मेरी गुड़िया
वो मुझको सुन्दर लगती है




सुलगता रहा इक शरर धीरे धीरे
जलाता रहा वो ये घर धीरे धीरे

मचाया हवाओं ने कुहराम ऐसा
गिरा टूट कर हर समर धीरे धीरे




जो
कुछ नहीं चाहता
केवल
बीतते हुए
कुछ समय में से
दो बातें
और
दो पल।
ये प्रेम ही तो है



मही वंदिनी करती गुहार
करो बैर न यूँ ही प्रहार
करते रहे घायल ये मन
चिथड़े किये आँचल-वसन
नहीं शोभता जननी पर वार




बहुविधि समझाया उनको मैंने,
कहा दूत द्वारिका से  है आया।
जब मांगी  विदा हाथ जोड़कर,
दहाड़  मार  रोई  सिगरी नगरी।।

********
शब्द मुस्कुराते हैं,
शब्द खिलखिलाते हैं,
शब्द गुदगुदाते हैं,
शब्द मुखर हो जाते हैं
शब्द प्रखर हो जाते हैं
इतना होने के बाद भी
शब्द चुभते हैं
*********
आज बस
सादर वंदन

रविवार, 29 जून 2025

4434 ...जब उतरना हैं जीवन के इस ताल में

 सादर अभिवादन

शनिवार, 28 जून 2025

4433 ... जीवन के पथ पर बहुत कुछ सीखा और समझा है

 सादर अभिवादन

माह का अवसान हो रहा है
27 जून से लेकर 30 जून तक बैंक बंद रहेंगे। लिहाजा अगर आपका बैंक से जुड़ा कोई काम है 
तो उसे आज ही निपटा लें। हालांकि इस दौरान कुछ राज्यों के बैंक ही बंद रहेंगे। 
जैसे शुक्रवार को ओडिशा में बैंक बंद रहंगे। वहीं 30 जून को मिजोरम में बैंक बंद रहेंगे।

देखिए एक झलक




तेज बहती हवाएँ, दिल का इम्तिहान लेती हैं
जड़ बने पत्थर, भीगते हुए कुछ कहती हैं  
सिसकियाँ बह गयी पानी संग, दर्द जो काफी है  
दिन अभी ढला नहीं, जिंदगी की शाम बाकी है





जीवन के पथ पर बहुत कुछ सीखा और समझा है
खुश रहने के लिए चीज़ें नहीं चंद खास की ज़रुरत होती है !

कम हैं दोस्त और दोस्ती भी कहाँ है आजकल किसी से
बस 'फ़िज़ा' रिवायतें है जो निभाई जाती हैं मज़बूरी में जैसे !






दूर-दूर तक धूल उड़ाती
चौड़ी सपाट सड़के,
शांत पड़ी रह गई,
जब बारिश की बूंदों ने असमय
ही उन्हें भींगो दिया..





जीवन इक उपहार अनोखा
तन, मन, मेधा वाहक जिसके,
श्वास-श्वास में वही गा रहा
वही छिपा है चेतनता में !




क्या लिखा और क्या है बाक़ी
हिय की भाषा हिय ही जाने
शब्दों में रचे समर्पण का
हर मूल्य आस्था पहचाने
भूखे-प्यासे निर्वात नयन
मैं नीर क्षुधा बरसा बैठी
तुम अपनी गागर भर लेना






प्रेम परिभाषित नहीं हो सकता
क्योंकि
वह
जिंदगी पर नेह से
उकेरा गया
महावर है
जिसका अर्थ
एक स्त्री से अधिक कोई नहीं समझ सकता।

*****
कल 27 जून को रथयात्रा थी ,
हमारे ब्लॉग की सालगिरह
सादर आभार सखी श्वेता को
अविस्मरणीय अंक दिया हमें
पन्ना पलट कर पढ़िएगा
सादर
*****
आज बस
सादर वंदन

शुक्रवार, 27 जून 2025

4432...शुभकामनाएँ जन्मदिन की

शुक्रवारीय अंक में 
आप सभी का हार्दिक अभिनंदन।
-------

आज रथ यात्रा है हिंदू कैलेंडर के अनुसार इस तिथि
 को पाँच लिंकों के आनंद का जन्मदिन है।
इस मंच की जननी यशोदा दी को विशेष शुभकामनाएँ आभार।
दिग्विजय सर के निरंतर साथ और सहयोग के बिना
इस पाँच लिंक के मंच की कल्पना भी नहीं जा सकती है।
मंच के सभी सक्रिय चर्चाकारों का हार्दिक अभिवादन 
करती हूँ। जो भी साथी 
इस सफ़र में साथ रहें हैं 
उनके बहुमूल्य योगदान के लिए
हार्दिक आभार।
विशेषकर सभी पाठकों को पाँच लिंक परिवार की ओर से बहुत बहुत धन्यवाद आप पाठकों से ही यह मंच गुलज़ार है।
आज का यहा अंक चर्चा कारों एवं पाठकों के द्वारा
प्रेषित साझा शुभकानाओं से सज्जित है।

ये सफ़र आसान  नहीं पर फिर भी ज़ारी है।
मरते चिट्ठाकारी के लिए तलवार दोधारी है।।
थोड़ा धैर्य और सहनशीलता मन में थामो 
प्रिय साथियों; हम-तुम ही आस की चिंगारी है।


आइये पढ़े आपकी शुभकामनाएँ


सर्वप्रथम पढ़िए 
सुशील सर का अमूल्य स्नेह
और असीम आशीर्वाद

चिट्ठाकार कुछ बेहोश हो रहे हों जैसे
कलम हाथ में रहती है जैसे
जुबां तक फिसल कर बात बस बहती है जैसे
कहीं कुछ नशा है कहीं कुछ जहर है
पर है कुछ कहीं मीठी सुबह मीठा दोपहर है
अपने में मगन है अपने ही शगुन हैं
सिमटते गाँव घर सड़क नदी सिमटते हुए शहर हैं


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सुधा देवरानी जी की
स्नेहसिक्त अभिव्यक्ति

पंच लिंक का आनंद,मंच सजे सआनंद
हर एक लिंक सार, पढ़ने का चाव हो ।

सम्मानित चर्चाकार, सम्भालें हैं कार्यभार
स्थापना दिवस आज, पूरा हर ख़्वाव हो ।

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की अविस्मरणीय प्रस्तुतियाँ  भला 
कौन भुला सकता है-


पाँच लिंकों का आनंद -- ये ब्लॉग निरन्तर पाठकों को नई रचनाओं के लिंक्स मुहैय्या करता आ रहा है । इस ब्लॉग को चलाने के लिए यशोदा  का प्रयास सराहनीय है । इससे जुड़े सभी चर्चाकार को साधुवाद । आज ब्लॉगिंग बिल्कुल निष्क्रियता के मुहाने पर खड़ी नज़र आती है फिर भी इस मंच से जुड़े लोग कर्मठता से अपने कार्य में जुड़े हुए हैं । 
आज इस ब्लॉग का जन्मदिन है , इस अवसर पर यशोदा और इस ब्लॉग से जुड़े सभी चर्चाकारों  को बधाई और शुभकामनाएँ  प्रेषित करती हूँ ।

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की रचनाएँ
अनमोल साहित्यिक थाती है-

पांच लिंक ब्लॉग की ' हलचल'  की रथयात्रा का श्री गणेश २०१५ की रथयात्रा के मांगलिक मुहूर्त में  हुआ था। मां भारती के आंगन में प्रस्फुटित होने वाली साहित्यिक वीणा के समस्त रागों को अपनी दैनिक प्रस्तुति में सहेजता यह ब्लॉग तब से सतत गतिशील होता आज २०२५ के पड़ाव को पार कर रहा है। इसकी हलचल में आर्यावर्त की लेखन परंपरा की धुकधुकी को महसूसा जा सकता है। अपने पटल के माध्यम से इसने अनगिन साहित्यकारों, लेखकों, कवि - कवयित्रियों, कहानीकारों और निबंधकारों को सुधी पाठकों के समक्ष न केवल उपस्थित किया है बल्कि लेखन का अलख जगाकर अनेक नवोदित रचनाकारों को प्रसूत भी किया है। इस महायज्ञ के संचालक मंडल, समस्त रचनाकारों और पाठकों को मैं हार्दिक बधाई देता हूं। साथ ही, हृदय से यह कामना करता हूं कि साहित्यिक महायज्ञ की यह रथयात्रा अपनी गति की शाश्वतता बनाए रखे। चरैवेति, चरैवेति!
अस्तु।

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भावनात्मक लेखनी किसी 
परिचय का मोहताज नहीं-

मैंने अपना ब्लॉग 'चिड़िया' 2016 में शुरू किया. तब से आज तक मेरी हर रचना को 'पाँच लिंकों का आनंद' मंच से असीम प्यार मिला । नए - पुराने ब्लॉग लेखकों की रचनाओं को उनके ब्लॉग की लिंक के साथ अपने मंच पर साझा करके, उन्हें वृहद पाठक वर्ग तक पहुँचाने का महत्त्वपूर्ण कार्य पाँच लिंकों द्वारा, निरंतर बिना किसी नागा के हर दिन किया जा रहा है। इस निस्वार्थ साहित्य सेवा और हिंदी प्रेम का कोई कैसे आकलन कर सकता है ? 

टीम के प्रत्येक सदस्य की एक विशेष शैली है प्रस्तुति की, जो मेरे मन को बहुत भाती है । मैं स्वयं यह मानती और जानती हूँ कि इस मंच के सहयोग के बिना मेरी रचनाओं को इतने पाठक कभी नहीं मिलते । प्रोत्साहन के अभाव में शायद मैं बहुत पहले ही लेखन से उदासीन हो चुकी होती । हम कितना भी कहें कि हम तो स्वांतसुखाय लिखते हैं, परंतु प्रोत्साहन के शब्द मन की मरुभूमि में शीतल बरखा की फुहारों का काम करते हैं और अभिव्यक्ति के बीजों को अंकुरित होने में इनका योगदान अवश्य होता है । पाँच लिंकों की पूरी टीम अपने संपूर्ण मनोयोग से ब्लॉग लेखन को जीवंत रखने में जो योगदान दे रही है, उसके लिए आप सभी का बहुत - बहुत अभिनंदन, साधुवाद एवं मेरी ओर से विशेष आभार ! 

 रथयात्रा के दिन पाँच लिंकों का आनंद का जन्मदिन है - यह रथ भी अनवरत गतिशील रहे, अनुगामियों की संख्या में विस्तार होता रहे , यही शुभकामना ! 
बहुत बहुत बधाई !


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की संवेदनशील कविताएँ
और कहानियाँ अलग पहचान रखती है-
 



“पाँच लिंकों का आनन्द” प्रतिदिन अपने अंक में प्रकाशित विभिन्न ब्लॉगों के सूत्रों द्वारा ब्लॉग जगत में उत्साहवर्धन और सृजनात्मक अभिरुचि में अभिवृद्धि करने के साथ नवांकुरों की पहचान ब्लॉग जगत के पाठकों और रचनाकारों से करवाने जैसा महत्वपूर्ण कार्य करता है ।इसके लिए इस मंच के सभी सदस्य बधाई और सराहना के पात्र हैं । यह साहित्यिक मंच उत्तरोत्तर लोकप्रियता के शिखर स्पर्श करता हुआ ब्लॉग जगत में ऊर्जा का संचार करता रहे इन्हीं शुभकामनाओं के साथ पाँच लिंकों का आनन्द मंच की स्थापना दिवस के शुभ अवसर पर मंच परिवार के सभी सदस्यों को बहुत-बहुत बधाइयाँ. 💐💐💐💐💐
-------------------------
बौद्धिक प्रतिक्रिया और निश्छल स्नेह के बिना
ब्लॉग जगत के किसी भी विशेष
अवसर का आयोजन अधूरा-सा है।


सबसे पहले पांच लिंक मंच से जुडे समस्त साथियों और स्नेही  पाठकों को सादर ,सप्रेम अभिवादन।   ब्लॉग जगत से जुडे सभी रचनाकारों के लिए  पांच लिंक मंच का सानिध्य  किसी  वरदान से कम नही। ये रचनाकार और पाठक वर्ग के मध्य एक सशक्त सेतु  है।रचनाकारो की रचनाऑ को एक विशाल  पाठक वर्ग तक पहुंचाने का स्तुत्य प्रयास करने वाले पांच लिंक मंच को स्थापना दिवस की अशेष शुभकामनाये।  इस मंच की  संकल्पना और स्थापना के लिए  यशोदा जी और  दिग्विजय  जी   सराहना के पात्र हैं तो  निरंतर अवैतनिक सेवायें   देने वाले   साथी किसी साधक से कम नही। सभी को स्नेहिल आभार  और साधुवाद।  साहित्यिक भाईचारे का ये प्रांगण यूं ही  फलता फूलता रहे यही कामना  है। मेरे ब्लॉग को असंख्य पाठको तक पहुँचाने के लिए इस मंच की सदैव ऋणी  रहूंगी।
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अपने दैनिक जीवन की व्यस्तताओं
से समय चुराकर साहित्य की
सेवा करने में आनन्दित होते है-



सुविज्ञ पाठकों एवं शुभचिंतकों के सक्रिय व रचनात्मक योगदान के चलते 'पाँच लिंकों का आनन्द' ब्लॉग सतत प्रगति के मार्ग पर अग्रसर है. हम आशान्वित और आश्वस्त हैं कि यह सहयोग और समर्थन भविष्य में भी जारी रहेगा.
आदरणीय दिग्विजय अग्रवाल जी एवं आदरणीया यशोदा अग्रवाल जी को ब्लॉग जगत् में हिंदी की सेवा के लिए सदैव आदर-सत्कार के साथ प्रोत्साहित किया जाता रहेगा.
सभी को यथायोग्य प्रणाम.
-रवीन्द्र सिंह यादव
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कर्मठ,जुझारू एवं निरंतर
आप सभी पाठकों को 
निःस्वार्थ भाव से जोड़े रखने का 
निर्मल प्रयास करती रही है-

स्वास्तिकामना
सहज ,सरल हमारी उड़ान पर यहां शब्दों के तलाश में सफर तय किए जाते है। एक दौर को समेटे हुए,कई रचनात्मक रूप और रचनाकारों से रू ब रू 
कराते चर्चाकार और साथ-साथ चलने , निस्वार्थ रूप से साहित्यिक डोर से बंधे हुए रोज सागर में मोती ढूंढने का प्रयास करते है। मानो कह रहे कि..
कल क्या होगा हमें पता नहीं,
ता उम्र हम तो सफर में रहते है।
आपा धापी के दौर में कम समय के लिए ही सही साकारात्मक,धैर्य के साथ पांच लिंक के बढते कदम..जहां हर पाठक अपना  जुडाव महसूस करते है। अनवरत सफर जारी रहे..क्योकि "हर मुलाकात का एक मतलब होता है"
आज की मुलाकात तो और भी खास है।
जय जगन्नाथ 

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अनूठी लेखनी जो
निरंतर सामाजिक कुरीतियों पर
कुठराघात करती रहती है-

"पांच लिंकों के आनन्द" नामक 'ब्लॉग' की शुरुआत हिंदी पंचांग के अनुसार तथाकथित"रथयात्रा" के दिन 19 जुलाई सन् 2015 ईस्वी में की गयी थी। 
आज हिंदी  पंचांग के अनुसार तथाकथित"रथयात्रा" के दिन ही वर्तमान वर्ष सन् 2025 ईस्वी में आंग्ल पंचांग के 26 जून को दसवीं वर्षगांठ के उपलक्ष पर "पांच लिंकों के आनन्द" के संयोजक महोदय दिग्विजय जी और महोदया यशोदा जी को मन से सादर नमन 🙏
साथ ही इस "पांच लिंकों के आनन्द" नामक 'ब्लॉग' के सभी आदरणीय प्रस्तोता गण , सहयोगी रचनाकारों और बहुमूल्य पाठक गण को मन से नमन और हार्दिक शुभकामनाएं ..बस यूँ ही ...
मेरे जैसे बतकही करने वाले को 'ब्लॉग'  का "ककहरा" इसी "पांच लिंकों के आनन्द"  की छत्रछाया में सीखने का अवसर प्राप्त हुआ। वैसे तो औपचारिक या व्यवहारिक, आंशिक या सम्पूर्ण, परोक्ष या प्रत्यक्ष , मानसिक आय हार्दिक सहयोग और सान्निध्य सभी से मिलता रहा है। परन्तु मेरे "बंजारा बस्ती के वाशिंदे" नामक ब्लॉग की बुनियाद"पांच लिंकों के आनन्द"  की आदरणीय प्रस्तोता  महोदया श्वेता (सिन्हा) जी की बदौलत ही मिली थी अप्रैल 2019 में (दिनांक तो याद नहीं)।
पुनः, पुनश्च, बारम्बार मेरी असीम शुभकामनाएं"पांच लिंकों के आनन्द" की पूरी 'टीम' को इस क्षमा याचना के साथ कि मेरा एक अच्छा पाठक या औपचारिक पाठक या औपचारिक प्रतिक्रिया दाता नहीं होने के कारण मेरी नियमित उपस्थिति नहीं हो पाती है"पांच लिंकों के आनन्द" के अनमोल पन्नों पर .. बस यूँ ही ...🙏🙏🙏
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एक स्थापित और विनम्र साहित्यकार
का आशीर्वाद मिलना हमारे लिए सौभाग्य
की बात है-
**************************************
पांच लिंक ब्लॉग की पाठशाला में
सृजनशीलों का जमघट--
********************************************                                                                  वैश्वीकरण की प्रक्रिया से दुनिया में चाहे जितने संदर्भ बदल जाएं,परंपरावादी समाज आधुनिकता का लबादा ओढ़ ले,गांव के बाज़ार शॉपिंग माल में तब्दील हो जाएं,लेकिन रचनात्मक सांस्कृतिक संवेदनशीलता में अभी तक कमी नहीं आयी है।
मनुष्य के अस्तित्व का संकट,मनुष्य की नियति पर ही आधारित है,वह जैसा सोचेगा वैसा ही होगा,जो फिलहाल वर्तमान में हो रहा है।
"मनुष्य का मनुष्यता से दूर होना" यह बात चाहे छोटी सी कथा में कही जाए या किसी महाकाव्य में रची जाए,बात वही रहती है कि, आप एक दूसरे से कितने जुड़े हुए हैं,दिल से,मन से और वैचारिक भावनाओं से,जरूरी नहीं कि आप बहुत गहरे मित्र हों,बस जरूरी है कि आप अपने से जुड़े सभी सम्मानितों की कितनी इज्ज़त करते हैं.इनकी रचनात्मक गतिविधियों से कितने परिचित हैं।
विचार और अनुभव 
समय के साथ बदलते जाते हैं,बाकी रह जाता है मित्रता निभाने का अंदाज।
समकालीन जीवन मूल्य प्रत्येक घंटे के अंतराल में बदलते जाते हैं,यह मूल्यवान न होकर मूल्यहारा हो जाते हैं,इस अनगढ़ मूल्यहारा जीवन में,जीने के लिए खुश रहना बेहद जरूरी है और इस जरूरी चीज़ को बचाने के लिए सृजनात्मकता के बीज रोपना भी जरूरी है। 
"पांच लिंको का ब्लॉग परिवार"  इन्हीं बीजों को कई सालों से रोप रहा है जो अब अंकुरित होकर हरे-भरे पेड़ के रूप में शान से फल-फूल रहा है।
संस्कृति और सभ्यता को को बचाने संवेदनाओं का होना भी जरूरी है क्योंकि इसमें इंद्रधनुषी रंग भरना पड़ते है,तभी यथार्थ के प्रति,मानव मूल्यों के प्रति,घर परिवार और राष्ट्र के प्रति सजग एवं संवेदनशील भाव उत्पन्न होते हैं,यह भाव मित्रों के माध्यम से,सृजनशीलों के माध्यम से अभिव्यक्त कर संजोए जाते हैं।
संवेदनशीलता की वृद्धि के लिए इतिहास के आदिकाल से आज तक सृजनकर्मियों ने सक्रिय और विशेष योगदान दिया है।
नृत्य में भावभंगिमा द्वारा, अभिनय में मुखाकृतियों द्वारा,संगीत में स्वरलहरियों द्वारा,चित्रों में रंगों के द्वारा और कविता एवं गीत में आँखों से न दिखने वाले अदृश्य रसों भावों और अनुभूतियों का मन के स्पर्शो को लेखन के माध्यम द्वारा।

मित्र और परिवार की प्रतिबद्धता अपने गांव, समाज,संस्कृति पर ही आधारित होती है-इसे होना भी चाहिए क्योंकि इस विस्तृत क्षेत्र में ही ये सारे  पड़ाव है,यह सुखद वातावरण हमें मानव शरीर के अन्दर की आत्मा की सहजता से परिचय कराता है,यदि 
"पांच लिंक का परिवार" न होता तो हम सब अज़नबी
एक दूसरे के इतने करीब न होते।
पांच लिंकों की पाठशाला इसी करीबी रिश्तों की पड़ताल करती है और रचनाकारों की रचनाओं को खोजकर सहेजती है,देश दुनिया के पाठकों को इनके ब्लॉगों से परिचित करवाती है।यह भी सिखाती है कि,कैसे हमारे एक जुट होकर लेखन का विस्तार  किया जाता है।

इसी विचारधारा की बुनियाद पर "पांच लिंको का ब्लॉग" बना और यह  कई अनज़ान हीरों को समेट कर अपने परिवार में जोड़ने लगा, धीरे धीरे यह ब्लॉग की दुनिया में,सोशल मीडिया का सबसे सशक्त सबसे ज्यादा सक्रिय और सबसे ज्यादा सृजनात्मक ऊर्जा वाला परिवार बना।

पांच लिंक ब्लॉग के नैपथ्य 
में जिन सम्मानित रचनाकारों का महत्पूर्ण योगदान है,
ये साधुवाद के वास्तविक हकदार हैं।
इन्हें दिल से प्रणाम--

सभी रचनाकारों की भूमिका और रचनात्मक सोच से यह परिवार और भी चमकदार होता जा रहा है.
इनको भी प्रणाम--

हां! एक बात और
आज मैं और मेरा लेखन इस बात का ऋणी है कि
इसी लिंक के माध्यम से मेरी पहचान बनी।
सभी का आभार--

पांच लिंक ब्लॉग परिवार का यह सालाना जश्न ऐसे ही मनता रहे,सभी में सद्भावना बनी रहे.
ऐसी मंगलकामनाओं के साथ--

◆ज्योति खरे
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आप सभी हमारे लिए अनमोल हैं
आप सभी का साथ इस
 लेखन की यात्रा की निरंतरता के लिए
बहुत जरूरी है।
आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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गुरुवार, 26 जून 2025

4431...इन दिनों आसमान में नहीं उड़ते परिंदे...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय ओंकार जी की रचना से।

सादर अभिवादन।

नया गुरुवारीय अंक लेकर फिर हाज़िर हूँ।

अफ़सोस कि ब्लॉगर रीडिंग लिस्ट में हमारा पिछला अंक प्रकाशित होने के उपरांत रात्रि 11:30 PM (25.06.2025) तक केवल एक रचना "वो दबी-सी आवाज़" ही नज़र आई। दो अन्य रचनाएँ बीते रोज़ प्रकाशित हो चुकी थीं जिन्हें इस अंक में शामिल किया गया है। तात्पर्य यह है कि ब्लॉगर पर सृजन से मोहभंग की स्थिति से हम गुज़र रहे हैं।

आपकी सेवा में आज प्रस्तुत हैं तीन रचनाएँ- 

प्रेम कविता | उसे पढ़ता है प्रेम | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

पुराना घर हो या सूखा हुआ फूल

हमेशा लिखते हैं

यादों की नई इबारत

उसे पढ़ता है प्रेम

बड़े प्रेम से

वर्षों बाद भी।

*****

812. युद्ध के समय आसमान

 
इन दिनों आसमान में

नहीं उड़ते परिंदे,

लड़ाकू विमान दिखते हैं,

ड्रोन उड़ते हैं।

*****

वो दबी सी आवाज़

दिल को कहो,

के कभी अपनी भी सुनी जाये,

सारी दुनिया की बात होती है,

बस वो दबी सी आवाज़

दबी ही रह जाती है,

*****

फिर मिलेंगे।

रवीन्द्र सिंह यादव

 


बुधवार, 25 जून 2025

4430...याद आती है..

।। प्रातःवंदन।।

"बहुत गा चुके? गीत प्रलय के जी भर-भर कर

आज सृजन की बेला, नूतन राग सुनाओ।

बरसो बन शीतल अमृतमय गीतों के घन,

धरती की छाती पर जलती आग बुझाओ।

नवयुग के नव चित्रों में नवरंग भरो कवि!

नाश नहीं मुझको नूतन निर्माण चाहिए !"

द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

कुछ पल, खास रचनाओं के संग और प्रस्तुति हमारी...

सपना और संसार 


उनकी सांसें आपस में घुल गयी हैं

मन भी हर क्षण जुड़ता है

और अब पकड़ इतनी मजबूत हो गयी है कि

दुनिया की बड़ी से बड़ी तलवार भी इसे काट नहीं सकती

राशन की चीनी

आज सुबह चाय बना रहा था तो अचानक मन में बचपन की एक याद कौंधी। 

यह बात १९६३-६४ की है। मैं और मेरी छोटी बहन, हम दोनों अपनी छोटी बुआ के पास मेरठ में गर्मियों की छुट्टियों पर गये थे। १०१ नम्बर का उनका घर साकेत में था। साथ में और सामने बहुत सी खुली जगह थी। बुआ के घर में पीछे पपीते का पेड़ लगा था और साथ वाले घर में अंगूर लगे थे। ..

✨️

बैल की जगह खेत में काम कर रहे किसान

योग दिवस है। जो योग नहीं करते वह भी शुभकामनाएं देते है। खैर, 

नियमित अभ्यास में शामिल हो तो यह वरदान है। 

कल की यह तस्वीर और वीडियो आम गरीब भारतीय किसान, मजदूर के जीवन योग की संलिप्तता जी..

✨️

अवशेष

हाँ 

यह सुनिश्चित है 

कि अंततः 

अगर कुछ बचा 

तो वह अवशेष ही होगा 

अधूरी 

या पूरी हो चुकी 

बातों का 

उनसे जुड़े ..

✨️

किरन जब खिलखिलाती है तेरी तब याद आती है

ये सिगरेट-चाय-तितली-गुफ्तगू सब याद आती है.

तेरी आग़ोश में गुज़री हुई शब याद आती है.


इसी ख़ातिर नहीं के तू ही मालिक है जगत भर का,

मुझे हर वक़्त वैसे भी तेरी रब याद आती है...

✨️

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️


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