शब्द मुस्कुराते हैं,
शब्द खिलखिलाते हैं,
शब्द गुदगुदाते हैं,
शब्द मुखर हो जाते हैं
शब्द प्रखर हो जाते हैं
इतना होने के बाद भी
शब्द चुभते हैं
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दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
सादर अभिवादन
सादर अभिवादन
आइये पढ़े आपकी शुभकामनाएँ
शीर्षक पंक्ति: आदरणीय ओंकार जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
नया गुरुवारीय अंक लेकर फिर हाज़िर हूँ।
अफ़सोस कि ब्लॉगर रीडिंग लिस्ट में हमारा पिछला अंक प्रकाशित होने के उपरांत रात्रि 11:30 PM (25.06.2025) तक केवल एक रचना "वो दबी-सी आवाज़" ही
नज़र आई। दो अन्य रचनाएँ बीते रोज़ प्रकाशित हो चुकी थीं जिन्हें इस अंक में शामिल
किया गया है। तात्पर्य यह है कि ब्लॉगर पर सृजन से मोहभंग की स्थिति से हम गुज़र
रहे हैं।
आपकी सेवा में आज प्रस्तुत हैं तीन रचनाएँ-
प्रेम कविता | उसे पढ़ता है प्रेम | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
पुराना घर हो या सूखा हुआ फूल
हमेशा लिखते हैं
यादों की नई इबारत
उसे पढ़ता है प्रेम
बड़े प्रेम से
वर्षों बाद भी।
*****
नहीं उड़ते परिंदे,
लड़ाकू विमान दिखते हैं,
ड्रोन उड़ते हैं।
*****
दिल को कहो,
के कभी अपनी भी सुनी जाये,
सारी दुनिया की बात होती है,
बस वो दबी सी आवाज़
दबी ही रह जाती है,
*****
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
।। प्रातःवंदन।।
"बहुत गा चुके? गीत प्रलय के जी भर-भर कर
आज सृजन की बेला, नूतन राग सुनाओ।
बरसो बन शीतल अमृतमय गीतों के घन,
धरती की छाती पर जलती आग बुझाओ।
नवयुग के नव चित्रों में नवरंग भरो कवि!
नाश नहीं मुझको नूतन निर्माण चाहिए !"
द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
कुछ पल, खास रचनाओं के संग और प्रस्तुति हमारी...
उनकी सांसें आपस में घुल गयी हैं
मन भी हर क्षण जुड़ता है
और अब पकड़ इतनी मजबूत हो गयी है कि
दुनिया की बड़ी से बड़ी तलवार भी इसे काट नहीं सकती
आज सुबह चाय बना रहा था तो अचानक मन में बचपन की एक याद कौंधी।
यह बात १९६३-६४ की है। मैं और मेरी छोटी बहन, हम दोनों अपनी छोटी बुआ के पास मेरठ में गर्मियों की छुट्टियों पर गये थे। १०१ नम्बर का उनका घर साकेत में था। साथ में और सामने बहुत सी खुली जगह थी। बुआ के घर में पीछे पपीते का पेड़ लगा था और साथ वाले घर में अंगूर लगे थे। ..
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बैल की जगह खेत में काम कर रहे किसान
योग दिवस है। जो योग नहीं करते वह भी शुभकामनाएं देते है। खैर,
नियमित अभ्यास में शामिल हो तो यह वरदान है।
कल की यह तस्वीर और वीडियो आम गरीब भारतीय किसान, मजदूर के जीवन योग की संलिप्तता जी..
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हाँ
यह सुनिश्चित है
कि अंततः
अगर कुछ बचा
तो वह अवशेष ही होगा
अधूरी
या पूरी हो चुकी
बातों का
उनसे जुड़े ..
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किरन जब खिलखिलाती है तेरी तब याद आती है …
ये सिगरेट-चाय-तितली-गुफ्तगू सब याद आती है.
तेरी आग़ोश में गुज़री हुई शब याद आती है.
इसी ख़ातिर नहीं के तू ही मालिक है जगत भर का,
मुझे हर वक़्त वैसे भी तेरी रब याद आती है...
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।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️