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शनिवार, 21 जून 2025

4426 ..ये बच्चे को बाँध दो बहुत गर्मी है

 सादर अभिवादन

कुछ सोच ...


कुछ सोच के कहां लिखते है हम,
जुबां जब बंद हो जाती हैं,
तो शब्दों की मोती पिरोते हैं हम।
दुख तकलीफ, सुख दुख
हर पल को अपने शब्दों में पिरोते हैं हम।।

देखें कुछ रचनाएं





ध्वनि और दृश्य का
एक गहरा द्वंद्व है।

धरती के गर्भ से
फूटा था जो
उष्ण लावा —
अब शीतल राख बन चुका है।

बिखरे भावों में उलझा
एक चोटिल जीवन —
जो जीना तक
भूल चुका है।

 






"ये बच्चे को बाँध दो बहुत गर्मी है।"
वे दोनों आदिवासी दंपत्ति अकबकाए रुमाल हाथ में लिया 
"हम तो बस यहाँ माताजी तक जा रहे हैं।"
"तुम तो साड़ी से सिर ढँके हो बच्चों को लपट लग रही है।" सुनकर वह हँस दी थोड़ी 
खिसियाई सी हँसी। "या तो उसे बीच में बैठाओ या उल्टा बैठाओ। बहुत गर्मी है। "
उनके चेहरे पर छोटी सी मुस्कान आई जिसकी कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती
और हम आगे बढ़ गये।





आगे चलते व्यक्ति को
गलत साइड ओवरटेक कर
चाहो तो
दाखिल हो सकते हो
अमानवीयता के जंगल में यदि हां ?
तो जिंदगी आसान है






परिश्रम के पेड़ पर मीठे लगे फल
स्याही की बूँद से हुलस गए पल
खबरों में शब्दों की हो रही हलचल
बधाई की खुशी में पेन गयी मचल
सधे हुए हाथ जुटे लेखनी के पास




सीने में रात के चिंगारी का ऐसा खंजर चुभाओ
की बस्तियां अंधेरे की जलकर खाक हो जाये
फिर उम्मीद के उजाले का एक नया सूरज उगाओं
जहाँ मुसाफिर मंजिलों के ठहर विश्राम पाये .

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****
आज बस
सादर वंदन

8 टिप्‍पणियां:

  1. वाकई सुंदर अंक है ये
    वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर सराहनीय संकलन।
    हार्दिक आभार भाई साहब 💐
    सादर नमस्कार।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत खूबसूरती से सजा सुंदर लिंक्स संयोजन

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय सर, मेरी लिखी रचना को इस गरिमामय मंच में स्थान देने के लिए बहुत धन्यवाद ।
    इस अंक में सम्मिलित सभी रचनाएं बहुत ही उम्दा है । सभी आदरणीय को बहुत बधाइयां । सादर ।

    जवाब देंहटाएं

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