निवेदन।


फ़ॉलोअर

शुक्रवार, 31 मार्च 2023

3714 .. मेरी इच्छा तो अमृत की है और संसार में छाछ भी दुर्लभ है

 सादर नमस्कार

मास का अंतिम दिन
आज सखी को आना था
वे प्रस्तुति बना रही थी
पता नही क्ये नहीं आ पाई
वे फोन लगाए थे , में सुन रही थी
सखी की थकी-थकी सी आवाज
सुबह मैं ही लग गई प्रस्तुति की जगह
अब देखें रचनाएं



प्रेम का सूरज दमकता
ज्योत्सना बन शांति छाए,
एक आभा मय सवेरा
तृप्ति की हर रात लाए !

मुक्त उर से गीत फूटे
कर्म की ज़ंजीर बिखरे,
मिले जग को प्राप्य उसका
रिक्त मन की गूंज उतरे !

रामायण को जितना पढ़ो नया सा ही लगता है
जो घटना कल घट गई वो लिखा है और शायद जो
आज घटने वाली है वो भी लिखा होना चाहिए




श्री राम भारत की संस्कृति का अभिन्न अंग है  और तुलसीदास श्री राम के अनन्य उपासक और श्री राम के चरित्र  के अद्भुत गायक कवि हैं -- जिन्हें भक्तिकाल के कवियों में शीर्ष स्थान प्राप्त है | श्री रांम के जीवन का अद्भुत आख्यान  ''रामचरितमानस'' न केवल श्री राम के आदर्श रूप को दिखाता है बल्कि इसमें तत्कालीन संस्कृति के विराट दर्शन होते है | मानस की प्रस्तावना में तुलसीदास जी ने खुद को निपट गंवार दर्शा कर अपनी रचनात्मकता का पूरा श्रेय अपने गुरु को दिया है
मतिअति नीच ऊँच रूचि आछी-
चहीय अमिय जग जुरै ना  छौछि--
क्षमहि सज्जन मोर ढिठाई
सुनहि बाल वचन मनलाई ||
अर्थात   अपने ज्ञानको बहुत छोटा बताते हुए वे कहते हैं की ''मेरी बुद्धि तो बहुत  तुच्छ है और आकांक्षा बहुत बड़ी | मेरी इच्छा तो अमृत की है और संसार में छाछ भी दुर्लभ है | फिर भी सज्जन पुरुष मेरी इस ठीठता को क्षमा करते हुए  मुझ बालक के वचन मन लगा  कर  सुनेंगे |
'अवधी '  भाषा में लिखा उनका महाकाव्य  हिंदी साहित्य  की अनमोल रचना है जिसमे  श्री राम जी  को   विष्णु जी के  त्रेता युगीन  अवतार के रूप में मर्यादा पुरुषोत्तम  बताया गया  है | गोस्वामी जी ने कथा को सरस और सरल बनाने में कोई कसर नहीं  छोडी है | भाषा   में अलंकारों का चमत्कृत शैली में प्रयोग किया गया है विशेषकर 'अनुप्रास' में उनका कोई  सानी  नहीं है
रामायण के बारे में जितना लिक्खो शब्द कम ही पड़ेंगे




यार साहेब, कबसे आपको तलाश रही और यह भी जानती हूँ कि आप दूर कभी हुए ही नहीं... 
जो भ्रम हैं, दिल के हैं, नज़र के हैं..

किसी संबंध की नींव जैसे आज़ादी वाली प्रसन्नता.. मन उड़ता हुआ किसी अजनबी के पास जा बैठे 
और सुकूँ के पल जी आए, पी आए, फ़क़त और क्या चाहे कोई..

कमल की कोमल पंखुड़ियाँ और आत्मीयता की अनवरत परत, कोई कैसे रोक सके स्वयं को आपके मोहपाश में बंधने से.. आप हौंसले की मशाल और सकारात्मकता की मिसाल हैं..

जब कभी मन स्वयं से प्रश्न करे, अपने अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगाए 
तो आपके शब्द राह दिखाते हैं

उपमाएँ करती है सवाल
किसके लिए भरते थाल
शख़्श खास होगा, थामी.
जिसने दिल की पाल




मंज़िल का पता मालूम नहीं
दिल में कुछ आरज़ू रहने दें,
निगाहों से लेन देन किया
जाए बा लफ्ज़ गुफ़्तगू रहने दें,

हासिए से निकल कर कभी
तेरे ग़ज़ल का उन्वान तो बनूं, भीगी
पलकों के किनारे,
किनारे ख़्वाबीदा जुस्तजू रहने दें,

आज के लिए बस
सादर

गुरुवार, 30 मार्च 2023

3713...जब जन्मे अवध बिहारी

सादर अभिवादन।

आज रामनवमी है। 

भारत में राम जी का जन्मोत्सव अगाध श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। भारतीय जीवन शैली में राम रचे-बसे हैं। धार्मिक एवं सांस्कृतिक परिवेश में राममय अनुगूँज सामाजिक चेतना में समाई हुई है। राम जी के आदर्श व्यावहारिक जीवन में सहज स्वीकार्य नहीं हैं बल्कि उन्हें आत्मसात करना मानव को सामाजिक मूल्यों के उच्च शिखर पर स्थापित होना है। मर्यादा की सर्वोत्कृष्ट परिभाषा स्थापित करते हुए प्रजा के कष्ट निवारण को सर्वोपरि रखना उनके दर्शन का मूल सिद्धांत है।

आप सभी को रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के लिंक्स के साथ हाज़िर हूँ-

जब जन्मे अवध बिहारी

चैत   महीना  शुक्ल   पक्ष,

जब  जन्मे  अवध बिहारी।

मध्यान्ह समय तिथि नवमी,

जब  जन्मे  अवध  बिहारी।।

सामान्य सी लड़की

पहुँचते गए फिर भी वहीं

किसी ने रोका नहीं

नही यह पूछा

यहाँ किस लिये आए किससे मिलने।

अपना अपना कयास - -

ऋतुचक्र उतार लेता है
ऊंचे दरख़्तों के
हरित पोशाक,
झुर्रियों के
उभरते
ही,
चेहरे से रूठ जाता है
मधुमास,

करें नववर्ष का स्वागत (गीत)

हवा में तैरते पंछी खेत में झूमती फसलें,

कि हर घर में नई सौगात ये नव वर्ष लाया है।

किसी के घर गुड़ी पड़वाकहीं नवरात्रि का गरबा,

मगन हो झूमकर धरती ने मधुमय गीत गाया है॥

तोता चशमी

"इनका पति वानप्रस्थ और संन्यास में गुम है। दो पुत्र हैबड़ा विदेश बस गया तो छोटा दूर देश में ही छुप गया है।" परिचित ने कहा।

"दुष्यन्त-शकुन्तला सी किस्मत कम लोगों को मिलती है यानी इनकी गृहणी और मातृत्व में असफल होने की कहानी है।" अपरिचित ने कहा।

 *****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


बुधवार, 29 मार्च 2023

3712..आओ उफानते हैं..

 ।।उषा स्वस्ति।।

"कुछ तो है बात जो आती है क़ज़ा रुक रुक के
ज़िंदगी क़र्ज़ है क़िस्तों में अदा होती।"
कमर जलालाबादी
कुछ खास अंदाज में आज की ग़ुफ्तगू जिसमें शामिल हैं,रिश्तों के रिसने की बातें..✍️



भाई भाई में..

बाबूजी ने तख़्सिम करी जब दौलत भाई भाई में
तब भगवान नज़र आया था सबको पाई पाई में ।

बचपन में लड़ जाते थे जिस भाई की खातिर 
उन रिश्तों को धकेल दिया पैसों की अंधी खाई में 

कौन    पूछेगा    हमें   दरबार    में।

 नफ़्सियाती   नुक़्स   है  दो-चार में,
 वरना है  सबका  अक़ीदा  प्यार ..

चाय के बहाने प्यार

आओ उफानते हैं
केतली भर प्यार आज
कविता दिवस के दिन..

डॉक्टर बहना

आलोकिता मेरी छोटी बहन के साथ पढ़ती थी।खूब ज्ञानी और पढ़ने में अव्वल आलोकिता का एक ही लक्ष्य था डॉक्टर बनना तब उसकी एक और बहन अनामिका उससे एक वर्ष आगे थी, पढ़ने में वो भी बहुत तेज थी।

भिक्षुक


वह भिक्षुक 

निरा भिक्षुक ही था !!

उसने हवा चखी, दिन-रात भोगे

रश्मियों को गटका..

।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️

मंगलवार, 28 मार्च 2023

3711 ...मैं नीर भरी दुख की बदली

 सादर नमस्कार

आज गेंद मेरे पाले में
कोई बात नहीं..सब अलाऊ है
अब देखें रचनाएं


देखने में जितनी ही सादा सरल व्यक्तित्व, उतनी ही उच्च प्रतिभा। महादेवी वर्मा , यह नाम किसी भी परिचय का मोहताज नहीं। छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हिंदी भाषा की महान कवयित्री, महादेवी वर्मा जिन्हें हिंदी की सबसे सशक्त कवयित्रीयों में से एक होने के गौरव प्राप्त है। आधुनिक हिंदी की सबसे सशक्त कवयित्री होने के कारण उन्हें 
"आधुनिक मीराबाई" के नाम से भी जाना जाता है।


उनकी एक रचना जो स्कूली पाठ्यक्रम में है


मैं नीर भरी दुख की बदली!
स्पन्दन में चिर निस्पन्द बसा
क्रन्दन में आहत विश्व हँसा
नयनों में दीपक से जलते,
पलकों में निर्झारिणी मचली!





चंद्रमा  घटता  है  बढ़ता
फिर  भी  होता  न  क्षरण
दृष्टिगत  होती  कलाये  
है  साधना का  यह चरण
 तिमिर  पल  पल  गल रहा  हो
दीप  कोई  जल  रहा  हो
रोशनी  के  गीत  गा  के
कर्म  से प्रीति लगा के  
प्यार ले लेता  शरण





जींस अउर टॉप बलम हम  पहिरब‌इ
 अंगरेजी कट में हम बाल बनव‌उब‌इ
बोली बोलब अंगरेजी
बलम अंग्रेजी सिखाइद......2




एक चिट्ठी गुम नाम पते पर
लिखनी है मुझे
उसके नाम जिसने
गिरवा दिया था
मेरे माथे पर
एक रंग सिंदूरी
और आती रही उससे गंध
बरसों तक जख्मों की





छठ पर्व में 'छठ'  षष्ठ का अपभ्रंश है। छठ पर्व चैत्र  कृष्णपक्ष तथा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाता है अतः षष्ठी को यह व्रत मनाये जाने के कारण इसका नामकरण छठ व्रत पड़ा।


आज के लिए बस
सादर

सोमवार, 27 मार्च 2023

3710 ...याद आता है घर तो छोड़ आये इन्ही रोटियों के लिए....

 सादर अभिवादन

रमजान लगा हुआ है
लोग उपवास में लगे है

हमारा भी उपवास चल रहा है
आज सूर्यछठ का व्रत है निराहार रहते हैं आज
एक सूर्यछठ दीपावली के चार दिन बाद मनाते है
बिलकुल वैसा ही व्रत है ये....

श्री राम जी के जन्मोत्सव में भी लोग लगे हैं
भंडारे का प्रसाद अमृत तुल्य लगता है
बस अब आज की रचनाएं देखिए ....



माँ के हाथों की बनी रोटियाँ  
पर नहीं मिलती
लाख चाहने पर भी वो रोटियाँ  
क्योंकि कुछ समय बाद
याद आता है घर तो छोड़ आये
इन्ही रोटियों के लिए..... !!




पथिक कोई देर तक तकता रहा शून्य आकाश,
निहारिकाओं का अभिसार, उल्काओं का
पतन, सुरसरी का बिखराव, स्वजनों
का क्रंदन, छूटता रहा पैतृक
वास स्थान, नभ पथ
के मेघ दे न सके
शीतलता,




तुम्हें फ़कत याद होगी
मेरी हड्डी विहीन रीढ़
उन दिनों बात-बात पर
झुका करती थी मैं





हर पतझड़ के बाद में, आती सदा बहार।
परिवर्तन पर जग टिका, हँस के कर स्वीकार।
हँस के कर स्वीकार, शुष्क पतझड़ की ज्वाला।
चाहो सुख-रस-धार, पियो दुख का विष-प्याला।
कहे 'बासु' समझाय, देत शिक्षा हर तरुवर।
सेवा कर निष्काम, जगत में सब के दुख हर।।




बचपन कितना सुन्दर निश्चिंत था फिक्र नहीं था कोई
असमंजस,शर्म की बात ना थी अहंकार नहीं था कोई
खुश होने पर हँस लेते दु:ख में बिलख-बिलख रो लेते
डांट,फटकार के तुरन्त बाद माँ के गले लिपट सो लेते ।




एक दिन एक दिन अति शान्त मन ,
मैं चली आऊँगी तुम्हारे पास !  
और, विचलित न हो जब थिर हो सकूँ`
मौसमों से दोस्ती के बीज फिर से बो सकूँ
अभी थोड़ा भ्रम बचा ही रह गया होगा ,
उबर कर मैं चली आऊँगी तुम्हारे पास !
एक दिन अति सहज,आरोपण हटाकर .

चलते-चलते एक गीत

आज बस
सादर

रविवार, 26 मार्च 2023

3709.....मैं राम।......

जय मां हाटेशवरी....

सृष्टि का आधार तूंही माँ जग की तूंहीं सृजनहार
मान सम्मान और समृद्धि दे दे कर सबका कल्यान 
तेरे चरण में शीश नवाऊं माँ दे दे पावन चरणों में स्थान ।
तूं सबकी दुखहर्ता माँ तूं ही पालनहार 
सजा रहे दरबार तेरा तुम रक्षा की अवतार 
आई द्वार तेरे फैलाये झोली कर दे पूरे अरमान 
मेरी आस्था,विश्वास को दे दे बल मांगूं ये वरदान 

सादर नमन.....
अब पढ़िये आज के लिये मेरी पसंद.....

मैं राम
पर सच तो यही रहा !
रघुकुल रीत निभाते हुए
मैं सिर्फ और सिर्फ सूर्यवंशी राजा हुआ
मनुष्य से भगवान बनाया गया
सीता से दूर
लवकुश के जन्म से अनभिज्ञ
या तो पूजा जाने लगा
या फिर कटघरे में डाला गया ...
मैं सफाई क्या दूं !!! ...

वो आप थे
सर्द से, वो पल भूलकर,
गुनगुनी, उन्हीं बातों में घुलकर,
गुम से, हो चले हम,
जाने किधर!
अब भी, धुन पे जिसकी रमाता धुनी,
वो आप थे!

ज़िद
कभी तुम गिरे,
कभी मुझे चोट लगी, 
पर हम चुपचाप देखते रहे,
न किसी ने किसी को पुकारा,
न किसी ने कोई पहल की. 
अब जब मंज़िल दूर है,
वक़्त बचा ही नहीं, 
तो थोड़ी हलचल हुई है,
वह भी इशारों-इशारों में.

 

सुख दुःख की दूरी समझी  
बात समझ में आई
सुख के सब साथी होते 
दुख में  कोई  साथ नहीं  देता 
तब साहस का ही सहारा होता  | 
कठिनाइयों से  भागने  से  लाभ क्या 
जब अकेले ही रहना है
जब तक रहा साथ तुम्हारा जीवन में विविध रंग रहे
कभी किसी अभाव का हुआ ना एहसास |

काग़ज़ पे क़लम से लिखा
क्लासरूम में पढ़ने गया 
तो कहने लगे मेहनत है
वही काम फ़ोन पे किया
तो कहने लगे लानत है
लोगों से मिल के आया 
तो कहने लगे मेहनत है
वही काम फ़ोन पे किया
तो कहने लगे लानत है
लायब्रेरी में बैठ गया
तो कहने लगे मेहनत है
वही काम फ़ोन पे किया
तो कहने लगे लानत है

धन्यवाद।

शनिवार, 25 मार्च 2023

3708... मुहावरा

    

हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...

प्रत्येक कृति कीर्ति योग्य नहीं हो पाती है

कृत्ति उतारने में सब कृती नहीं हो पाते हैं....

मुहावरेदानी

“वह भुग्गा, वह बहत्तर घाट का पानी पिए हुए. इसे दोनो उँगलियों पर नचा रही है और वह समझता है वह इस पर जाना देती है. तुम उसे समझ दो, नहीं कोई ऐसी वैसी बात हो गयी तो कहीं के न रहोगे”. इसी तरह “दिल खोल कर, तालिया बजाकर, घी के चिराग जलाना बगलें बजाना, नाम बडे दर्शन थोडे” जैसे मुहावरों की भरमार है

मुहावरे के प्रयोग से भाषा में सरलता, सरसता, चमत्कार और प्रवाह उत्पत्र होते है। इसका काम है बात इस खूबसूरती से कहना की सुननेवाला उसे समझ भी जाय और उससे प्रभावित भी हो।

मुहावरा

 व्याकरणिक संरचना के अनुसार ही मुहावरों का निर्माण या सृजन होता है। मुहावरों का अध्ययन, विश्लेषण, वर्गीकरण एवं वाक्यों में प्रयोग करते समय उनकी संरचनाओं का बोध होना आवश्यक है। किसी मुहावरे की व्याकरणिक संरचना में शब्द-भेद (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया-विशेषण, परसर्ग आदि) एक निर्धारित क्रम में व्यवस्थित होते हैं। कभी-कभी वक्ताओं के द्वारा वाक्य में प्रयोग करते समय मुहावरे की संरचना (शब्द-क्रम) को आवश्यकतानुसार परिवर्तित भी कर लिया जाता है, 

मुहावरा

Gone Doolally/गॉन दूलाली- यह शब्द भारत के देवलाली नामक स्थान से आया है जहाँ पर 19वीं शताब्दी के अंत में अंग्रेजों ने एक छावनी का निर्माण करवाया था। इस छावनी में एक पागलखाना भी था जहाँ पर दिमागी रूप से अस्थिर लोगों को भेजा जाता था। यहाँ से लौटने के लिए सैनिकों को महीनों तक इंतज़ार करना पड़ता था जिस कारण उनके व्यवहार में कई बदलाव आ जाते थे। इसी कारण उनके ब्रिटेन लौटने पर उनके बदले व्यवहार की सफाई देते हुए बताया जाता था कि वह व्यक्ति ‘दूलाली’ रहकर आया है इसलिए वह ऐसा पेश आ रहा है।

मुहावरा

चुटकी भर सिंदूर से, जीवन भर का साथ.

लिये हाथ में हाथ हँस, जिएँ उठाकर माथ..

सौ तन जैसे शत्रु के, सौतन लाई साथ.

रख दूरी दो हाथ की, करती दो-दो हाथ..

टाँग अड़ाकर तोड़ ली, खुद ही अपनी टाँग.

दर्द सहन करते मगर, टाँग न पाये टाँग

मुहावरा

चिलचिलाती धूप (scorching sunshine)

कहते हैं कि भरी दुपहरी में जब बहुत तेज़ धूप पड़ रही हो, तभी चील अंडा देती है और अंडा छोड़ते वक़्त चिल्लाती है । इसलिए तेज़ धूप या गरमी को ‘चील-चिल्लाती’ धूप या गरमी कहते होंगे । यह ‘चील-चिल्लाती‘ पद ‘चिलचिलाती’ बन गया है।

>>>>>><<<<<<
पुनः भेंट होगी...
>>>>>><<<<<<

शुक्रवार, 24 मार्च 2023

3707......मैंने अपने लिए विश नहीं माँगी..

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन
-------
मनुष्यों के व्यवहार का विश्लेषण तो हर दिन हर पल करते हैं हम, जिसका कोई अर्थ नहीं मानसिक अशांति ही मिलती है ...।
आपने कभी नन्हें पक्षियों के व्यवहार पर गौर किया है?
पक्षी प्रकृति से गहराई से जुड़े होते हैं। ये जंगलों में, झाड़ियों में तथा वृक्षों पर घोंसला बनाकर रहने वाले नभचर जहाँ थोड़ी-सी हरियाली देखी वहीं बसेरा बना लिया।
पक्षियों को पर्यावरण की स्थिति के सबसे महत्वपूर्ण संकेतकों में से एक के रूप में पहचाना जाता है।
पक्षियों की संख्या में परिवर्तन अक्सर पर्यावरणीय समस्याओं का पहला संकेत होता है।  पक्षियों के स्वास्थ्य से पारिस्थितिकीय असंतुलन की गंभीरता को समझा जा सकता है। पक्षियों की संख्या में गिरावट हमें बताती है कि हम विखंडन, विनाश, प्रदूषण और कीटनाशकों की नई प्रजातियों और कई अन्य प्रभावों के माध्यम से पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहे हैं।
यह अत्यंत गंभीर एवं विचारणीय विषय है जिसकी
प्रकृति से जुड़ा है मानव का अस्तित्व।
कभी अपने घर की छत, मुंडेर पर थोड़े से दाने
और पानी की व्यवस्था करके देखिए
सुकून का एहसास होगा।
----
अब आइये आज की रचनाओं के संसार में-



हर बार ही वो आदमी मुझे हर पिछली बार से लम्बाई में छोटा होता हुआ आदमी लगता
असल में वह चौड़ाई में फ़ैल रहा था
अपने लिबास और स्वभाव दोनों से निहायत आम आदमी लगता
कंधे पर पहचान का झोला लटकाये
सुबह का भूला सा,
अक्सर वह बरसाती नदी के पास के पत्थर पर
बैठा दिखता
कुछ सोचता,  टहलता,
कभी ‌नदी में से पत्थर उठा दूर नदी में फेंकता ,


संघर्ष पैदा हो
जाता है भूख के पैदा 
होते ही।
वो फिर चाहे 
सर्वहारा का संघर्ष हो
या फिर शोषितों का
सत्ता के खिलाफ। 




उसकी नींद के दौरान हम
तनिक खुश होंगे
और तनिक सतर्क
कि कहीं लौट न आये फिर से
और एक रोज जब
आईना देख रहे होंगे
हमारी आँखों के नीचे आये
काले घेरों के बीच से
वो झांकेगा


सुनकर माँ का हृदय गदगद हो गया , "सही कहा तूने" कहते हुए माँ ने उसके सिर में बड़े प्यार से हाथ फेरा। मुड़ी उँगलियों को सीधा करते हुए विन्नी खुश होकर चहकती सी बोली,  "है न मम्मा !  सही कहा न मैने" !


और.चलते-चलते  बेहद महत्वपूर्ण विषय पर  लिखे 
इस लेख को पढ़कर चिंतन अवश्य कीजिएगा...।

सूखने लगे हैं प्राकृतिक जलस्रोत

सम्पूर्ण भारत में ऐसे अगिनत प्राचीन जलस्रोत हैं जो आज लुप्त होने के कगार पर हैं। यदि आज भी इनकी सार-संभाल की जाए तो पेयजल की समस्या का समाधान हो सकता है। प्रशासन की अनदेखी तो है ही मगर स्थानीय लोगों की लापरवाही ज्यादा है। नदी, तालाब और कुओं में ही हम कचरा डालने लगेंगे तो पीने के पानी की किल्ल्त तो होगी ही। आवश्यकता है जागरूक होकर अपनी इन अनमोल धरोहरों को सहेजने की। वरना सामने कुआ होगा और हम प्यासे ही मर जायेगें।  

------

आज के लिए इतना ही

कल का विशेष अंक लेकर

आ रही हैं प्रिय विभा दी।



गुरुवार, 23 मार्च 2023

3706...कभी देखा भी है पसीना बहाते उनको...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया अनीता जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

चित्र: साभार गूगल 


आज शहीद-दिवस है। 23 मार्च 1931 को ब्रिटिश हुकूमत ने हमारे स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी योद्धाओं भगत सिंह, शिवराम राजगुरु, सुखदेव थापर को लाहौर सेंट्रल जेल में फाँसी दी थी। 

कृतज्ञ राष्ट्र अपने महान शहीदों को यथोचित सम्मान के साथ याद करता है।

कोटि-कोटि नमन।    

गुरुवारीय अंक में पाँच ताज़ा-तरीन रचनाओं के लिंक्स के साथ हाज़िर हूँ।

आइए पढ़ते हैं आज की चुनिंदा रचनाएँ-

गाड़ी के दो पहिये

जिसने दी  शिक्षा  अधूरी तुम्हें

उसने  यह तो बताया होगा

गाड़ी के दो पहिये होते हैं

दोनों को साथ ही रहना है स्वेछा से।

वही ख़ुदा उनमें भी बसता है उतना ही

चंद निवालों के लिए दिन-रात खटते हैं

कभी देखा भी है पसीना बहाते  उनको

अपने हाथों से नई इमारतें गढ़ते

जा बसें उनमें ख़्वाब भी नहीं आये जिनको

ईश्क़ में टूटकर बिखर जाना अगर ईश्क़ है

तोड़कर सरहदें जिद्द की एकबार

बता जाओ आकर हो ख़फ़ा क्यूँ बेज़ार

ख़यालों में हुई तेरे बावरी मशहूर हो गई मैं

राह देखते अपलक थककर चूर-चूर हो गई मैं ।

एकाकी यात्री--

निर्बंध होता है उम्र भर का सौगंध,
कोई प्रतीक्षा न कोई पुनर्मिलन की
आस, इस इतिकथा का नायक
है आम आदमी, कोई गौतम
बुद्ध नहीं

देश मेरा रंगरेज

अतीत की स्मृतियों के आलोक में वर्तमान की विसंगतियों पर अचूक निशाना साधने में प्रीति अत्यंत खरी उतरी हैं। उनकी लेखनी की प्रांजलता, विचारों का  प्रवाह, चिरयौवना भाषा का अल्हड़पन, शब्दों का टटकापन, भावों की मिठास, हास्य का सुघड़पन, व्यंग्य की धार और दृष्टि की तीव्रता किताब की छपाई के फीकेपन को पूरी तरह तोप  देती है और पाठक शुरू से अंत तक प्रीति के बंधन से बँधा रह जाता है।

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...