निवेदन।


फ़ॉलोअर

रविवार, 31 जुलाई 2022

3471 ...बाजे गाजे के संग बिसरे, घर की यादें आती है

सादर अभिवादन .....

बीत गए छः मास
कभी बरसकर ..तो
कभी तपकर
...
किसी ने पूछा..
राष्ट्रपति तो ठीक ही है..पर
राष्ट्रपिता भी ठीक ही है...
पर क्या ठीक नहीं है..
बताइए...अगस्त का महीना आने को है
दुरुस्त हो जाएगा

अब रचनाएँ ....



मैं नहीं दिल के हाथ बेचारा
तुम कहो तो भुला भी सकता हूँ।।

वो सरे शाम याद आने लगा
इक नया गीत गा भी सकता हूँ।।




तुम सब भले भुला दो ,
लेकिन मैं वह घर कैसे भूलूँ
तुम सब भूल गए मुझको
पर मैं वे दिन कैसे भूलूँ ?
छीना सबने, आज मुझे
उस घर की यादें आती हैं,
बाजे गाजे के संग बिसरे, घर की यादें आती है !





क़ैद हुआ उनमें फिर खुद ही  
कसता, घुटता, पीड़ित होता,
सच की एक मशाल जलाकर
अंधकार चैतन्य हटाता  !




सुनने में लगता कितना अजीब
हिंदी दिवस मनाना  हिंदुस्तानी
दैवी  भाषा तज किस बिना पर
अंग्रेजियत  फैशन मन में ठानी।





पूजास्थलों मे दौलत
का अंबार लगा
भिखारी बाहर
भूख और ठंड से
बेहाल नजर आए,
ऐ !प्रभु के बंदे
तू अब तक दौलत का
सही उपयोग न सीख पाये ।



यूँ तो तू दरिया और मैं बरसता पानी  
धरम हमारा एक है यही कहता है ज़माना

पर याराना न हो जो दोनों दिलों में
मुमकिन नहीं छत ओ  दीवार का एक होना




तुम्हें पाकर कैसे व्यक्त करूँ
समझ में आया ही नहीं
खुद को अभिव्यक्त करना
मेरे बस में कभी था ही नहीं
जिस राह चलना छोड़ा
बस छोड़ दिया

आज बस
सादर

शनिवार, 30 जुलाई 2022

3470... शिक्षा या डिग्री

 हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...

प्रश्न है कि जीवन को सफल बनाने के लिए शिक्षा की जरूरत है या डिग्री की ?

शिक्षा ही इतिहास पलटती, फैला दो ये बात जग सारा ।

गली-गली लगाओ नारा, शिक्षा से मिटता अंधियारा ।।

शिक्षा ही बाईबल का कोना, शिक्षा ही मक्का मदीना ।

शिक्षा ही वेदों का सार, शिक्षा ही रब का दरबार ।।

शिक्षा इस विधि में शिक्षक बालकों के सामने एक रचना प्रस्तुत करता है और उसी रचना का अनुकरण कर एक नवीन रचना लिखने के लिये कहा जाता है। इस अनुकरण मे भाषा तो बालक की होती है परंतु उसे शैली के लिये अध्यापक द्वारा बताई जाने वाली रचना पर ही निर्भर रहना पड़ता है। जैसे दिवाली पर निबंध बता कर होली पर लिखने के लिये कहना।

शिक्षा गावों में सामाजिक कुरीतियों का विनाश करने के लिए व्यापक प्रशिक्षण का प्रबंध किया जाए, क्योंकि अशिक्षा में सामाजिक कुरीतियां और अंधविश्वास विकसित होते हैं। समय-समय पर समाज सेवकों द्वारा व्याख्यानों का आयोजन करना भी आवश्यक है। बाल विवाह से हानि, अशिक्षा के दोष आदि शीर्षकों पर बनी फिल्मों का प्रदर्शन भी लाभप्रद सिद्ध होगा।

शिक्षा से बन रही अब महान

समाज में बढ़ रहा उनका सम्मान

शिक्षा से हर क्षेत्र में बाजी मारी

अपनी भूमिका निभाती सारी

इनसे ही होती दुनिया प्यारी

उत्तर :- जीवन को सफल बनाने के लिए शिक्षा की जरूरत है, डिग्री की नहीं ©प्रेमचंद 

प्रेमचंद के कुछ अनमोल वचन इस प्रकार हैं - (1) जो आदमी दूसरी कौम से जितनी नफरत करता है, समझ लीजिये कि वह खुदा से उतनी ही दूर है, (2) विपत्ति से बढ़कर.... अनुभव सीखने वाला कोई विद्यालय आज तक नही खुला, (3) जीवन को सफल बनाने के लिए शिक्षा की जरूरत है, डिग्री की नहीं। हमारी डिग्री है- हमारा सेवा भाव, हमारी नम्रता तथा हमारे जीवन की सरलता, (4) अगर हमारी आत्मा जाग्रत नहीं हुई तो कागज की डिग्री व्यर्थ है, (5) अपनी भूल अपने ही हाथों से सुधर जाए तो यह उससे कहीं अच्छा है कि कोई दूसरा उसे सुधारे, (6) बुराई का मुख्य उपचार मनुष्य का सद्ज्ञान है। इसके बिना कोई उपाय सफल नहीं हो सकता, (7) जीवन का वास्तविक सुख, दूसरों को सुख देने में हैं, उनका सुख लूटने में नहीं तथा (8) मैं एक मजदूर हूँ, जिस दिन कुछ लिख न लूँ उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं।

>>>>>><<<<<<
पुनः भेंट होगी...
>>>>>><<<<<<

शुक्रवार, 29 जुलाई 2022

3469... कुछ एहसास

शुक्रवारीय अंक में 
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
--------
फणीश्वर नाथ रेणु के मैला आंचल से श्रीलाल शुक्ल के राग दरबारी तक जो गांव थे, आज भले ही उनका ढाँचागत स्वरूप बदल गया है पर शहरीकरण के इस दौर में भी गांवों में अभी भी बहुत कुछ बदला नहीं है। ऊँच-नीच,छुआ-छूत,अंधविश्वास, 
अंधपरंपराओं,ओझा-गुनी,डाइन जैसे कुप्रथाओं की लंबी सूची है ऐसे ही परिवेश में पली-बढ़ी एक स्त्री की संघर्षों की गाथा का अनुमानभर ही लगा सकते हैं हम और आप। जी,हाँ मैं बात कर रही हूँ  पिछड़े समाज की भट्टी में ख़ुद को गलाकर, तपाकर कुंदन सी निखरकर देश के सर्वोच्च पद पर सुशोभित हुई माननीय महामहिम द्रौपदी मुर्मू जी की।
महात्मा गाँधी,विनोबा भावे, भीमराव अंबेडकर जी के द्वारा
वर्षों पूर्व देखे गये स्वप्न का साकार होना किसी उत्सव से 
कम नहीं है।
 आइये हम सब राजनीतिक एजेंडा, रणनीतियों,  दलीय मतभेदों,वैचारिक क्षुद्रता से परे एक अकल्पनीय  संघर्ष से सफलता की यात्रा का  हृदय से सम्मान करें।

अब आज की रचनाएँ
----

माथे पे गिरी एक आवारा बूँद
जगाने लगे एक अनजानी प्यास
समझ लेना तन्हाई के किसी लम्हे ने
अंगड़ाई ली है कहीं




अब न बाकी स्नेह है मन में, न कोई अभिलाषा
स्वार्थ ने सारी बदल दी है, रिश्तों की परिभाषा
हल्का रह गया मोल,फ़राज़ अंतःभावनाओं का
क्या करूँगा मैं तुम्हारी,इन शुभकामनाओं का


कदम-कदम पर समझौते थे,
और आत्मा भी रोई।
देख के अपने पाप बिचारी-
सुबह-शाम उसको धोई।
मिल जाए कुछ लाभ सोच कर,
लोग बहुत नीचे तक गिर गए।
यश की लिप्सा में कुछ घिर गए।

अगर हो कामयाब या चहेता;
बस बेचने वाला हो तेज 
पकड़ रखता हो बाज़ार की नब्ज़ पर, 
फैन काट लेते हैं नस तक, 
फ़िर टी शर्ट क्या चीज़ है,

और चलते-चलते,
स्वास्थ्य ही धन है। इस मूलमंत्र को
जीवन का लक्ष्य बना लीजिए फिर देखिये उम्र कोई भी हो आपसे बीमारियां दूर भागेंगी 
पढ़िए एक प्रेरक और 
सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान कर
 व्यक्तित्व का का कायाकल्प करने में सक्षम
सतीश सर को

जिस प्रकार हम लगातार एक ही भोजन से ऊब जाते हैं उसी तरह से शरीर को भी एक जैसा लगातार व्यवहार पसंद नहीं उसे वह आदत में ढाल लेता है और उसका फायदा उठाना बंद कर देता है , ठीक वैसे ही जैसे बरसों तक साइकिल चलाने वाले को साइकिलिंग का न मिलने वाला लाभ और गांव से कस्बे जाकर नौकरी करने वाला 10 km रोज पैदल आना और जाना बरसों से करता है और उसे कोई फायदा नहीं होता !
----
आज के लिए इतना ही 
कल का विशेष अक लेकर
उपस्थित होंगी
प्रिय विभा दी।
 ---








गुरुवार, 28 जुलाई 2022

3468...घूमता रहा सूरज निशाचर भोर में लौटा

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय डॉ.जैनी शबनम जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ-

आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-

वर्षा ऋतु का आगमन

जब भी वे आपस में टकराते बादल

तीव्र गर्जना होती

दिल दहल जाते सब के

सोते बच्चे चौंक कर उठते। 

744. भोर (40 हाइकु)


2.

आँखें मींचता
भोरे-भोरे सूरज
जगाने आया।

3.
घूमता रहा
सूरज निशाचर
भोर में लौटा।

1054

रोक लेता है

पीड़ाओं का प्रहार

प्रिये तुम्हारा प्यार

धमनियों में

नित्यप्रति संचार

होता हर्ष अपार।

खानाबदोश

अनसुनी, संवेदनाओं की सिसकियां,

अनकहे जज्बातों की, बिसरी सब गलियां,

पुकारती हैं कभी, अनुगूंज बनकर,

रोकते कहीं, टूटे वादों के गूंज,

छोड़ चला, जिनको पीछे!

मुड़ कर, देख रही अखियां मीमचे...

 मिसाइल मैन

भारत के सुपर पावर की तैयारी

मिसाइल मैन का मिशन पूरा करना हमारी जिम्मेदारी

कुशल नेतृत्व हो तो कोई काम नहीं मुश्किल..

कठिन फैसला  जो लेते , पाते वही  मंजिल..

रेनी डे - लघुकथा

स्कूल जाने के लिए वह घर से एक घंटा पहले ही निकलती क्योंकि उसे पैदल ही जाना होता था । सर्दी, गर्मी, बरसात कोई भी मौसम हो शोभा को स्कूल जाने के लिए मौसम की हर ज़्यादती को सहना ही पड़ता था ।

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

 


बुधवार, 27 जुलाई 2022

3467...दिल-राग ऐसे छेड़े हैं,..

 ।।प्रातः वंदन ।।

'कुछ किताबें हमें सपने देखना सिखाती हैं, कुछ यथार्थ से हमारा सामना करवाती हैं, लेकिन जो बात सबसे अधिक मायने रखती है वह यह कि लेखक ने किताब किस ईमानदारी से लिखी है।' 

-पाउलो कोएल्हो

विचारपरक शब्दों के साथ बुधवारिय प्रस्तुति की आगाज़ खास अंदाज में...मतलब सावनी बतरस से..



सावन गुनगुनाता आया है,अनाम सन्देश लाया है,

बादलों की लुकाछिपी से,अंतर्मन मेरा हर्षाया है,

फुहार की टिप-टिप धुन ने,दिल-राग ऐसे छेड़े हैं,

सहमे हुए पग हैं मेरे,इस राह के रास्ते जो टेढ़े..

🌸🌸

सत्य क्या है ये जानना होगा

प्रश्न प्रश्न को यूं ना डालना होगा

 हम जहाँ रह रहे वहाँ हर पल

 साथ दुश्मन है मानना होगा,..

🌸🌸




 औरत और मर्द का रिश्ता इतना उलझा हुआ क्यों हो जाता है आखिर...और वो तब जब वो रिश्ता पति पत्नी का हो ? 

अभी ऐसे ही किसी की कुछ इसी" दरकते रिश्ते "की कहानी सुनते हुए पीछे पढ़ी हुई कुछ पंक्तियां याद आई कि " औरत और मर्द का रिश्ता  जो इंसान को इंसान के रिश्ते तक पहुंचाता है और फ़िर एक देश से दूसरे देश के रिश्तों तक... पर यह रिश्ता अभी उलझा हुआ है.. क्यूंकि अभी दोनों अधूरे हैं दोनों ही एक-दूजे को समझ..

🌸🌸

पेंच

 मैंने सदा चाहा 

तुम्हारा प्रेमपूर्ण होना 

जबकि मेरा प्रेमपूर्ण होना 

दशकों से छीज रहा है..

🌸🌸

अपने आप...

बरसा आकाश अपने आप

भीगी धरती अपने आप 

ज्यूँ तुम थे बरसे

और मैं थी भीगी..

🌸🌸

।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️






मंगलवार, 26 जुलाई 2022

3466 ...मितरों!! बुरे दिन चले गये कि नहीं?

सादर अभिवादन .....
बोल बम
रुत भीगी सी...
निमिष मात्र में
गगन घट
छलक गए
बिखरे
हल्के रंग
अबीर से सृष्टि के/
सबसे सुखद
जश्न की बारी है।

अब रचनाएँ ....



चींटी बने हो
रौंदे तो जाआगे ही
रोना धोना क्यों?
 
सूर्य के पांव
चूमकर सो गए
गांव के गांव।






अक्सर छत की मुंडेर या दीवार पर खुरचना या कुरेदना मानव प्रकृति है... कुरेदते वक्त हम अनायास ही सृजित कर रहे होते हैं, मैंने यही कुछ आज खोजा... जब में इन खुरचनों को देख रहा था उसी समय मुझे इनमें जीवन और कुछ बोलते चित्र नज़र आए...।






देखता ही रह जाता है
अपनी उजड़ती दुनिया को
पर शिकायत किससे  करे |
मैंने भी यही सब देखा है भोगा है
जैसा देखा अनुकरण किया है
यही है एक उदाहरण
जिसे  मैंने यथार्थ में जिया है |




अबकी रहे
तिरंगा घर -घर
देशगान की शाम हो,
उसको भय क्यों
जिसके घर में
विश्व विजेता राम हो,
कोई फिर से
प्राण फूँक दे
सोए गोगा वीर में.





तभी दूर कहीं कलेक्टरेट के मैदान से लाऊड स्पीकर पर 
किसी बहुत बड़े नेता की आवाज सुनाई दी:
’मितरों, अच्छे दिन आ गये हैं, आ गये कि नहीं?’
समवेद स्वर गूँजे ..आ गये!!
मितरों!! बुरे दिन चले गये कि नहीं?
समवेद स्वर गूँजे ..चले गये!!
मितरों!! जो बुरा काम करते हैं मैने उनके लिए अच्छे दिन की गारंटी नहीं दी थी कभी!!


आज बस
सादर

 

सोमवार, 25 जुलाई 2022

3465 / का बरखा जब कृषि सुखानी'!

 


हर --हर  ,महादेव !  जी हाँ , भला सावन का महिना हो और महादेव याद न किये जाएँ   ये तो हो नहीं सकता न ........ इस समय जब मैं कल के लिए प्रस्तुति बना रही हूँ तो मुझे शिव ही याद आ रहे हैं ..... सावन का महिना विशेष रूप से  भगवान् शिव को समर्पित है .... तो चलिए सबसे पहले उनकी ही अराधना  करते हुए जानकारी लेते हैं  ज्योतिर्लिंगों की .....

भगवान शिव के 12 ज्‍योतिर्लिंग


पुराणों के अनुसार जहां-जहां ज्‍योतिर्लिंग हैंउन 12 जगहों पर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे। कहा 

जाता है कि इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शनपूजनआराधना और नाम जपने मात्र से भक्तों के सभी पाप 

समाप्त हो जाते हैं। बाबा भोले की विशेष कृपा बनी रहती है। आइये महाशिवरात्रि के मौके पर आपको 

द्वादश ज्‍योतिर्लिंग के दर्शन कराते हैं।


ॐ  नम:  शिवाय ........... अब सावन का महिना हो और बरसात की बात न हो ....... ऐसा तो 

नामुमकिन है .....  तो प्रस्तुत है एक संस्मरण ...... 


तभी एक खूबसूरत शोड़षी पर नजर पड़ी। सावन के इस सुहाने मौसम में उसकी दुबली पतली काया पर पीत वस्‍त्र मानों सरसों के खेत में गुलाब का फूल। शायद उस दुकान के सामने की जगह में पचासों लोगों की घूरती निगाहें उसे विचलित कर रही थी। या और कोई विवशता थी, पता नहीं पर वह बार बार इधर उधर देख रही थी और कुछ क्षणोपरांत धीरे-धीरे सरकते – सरकते मेरे बगल में आ गई।

मध्‍यम किंतु मीठे कोकिल स्‍वर में बोली, “तुम्‍हारे पास छाता है।”


आगे की बातचीत जानने के लिए  लिंक पर जाएँ ..........भाग्य से  छीका  फूट कर भी कुछ ना मिले उसे क्या कहते हैं मुझे पता नहीं .......बस ऐसे वक़्त ईश्वर की ही लीला लगती है और खुद के मन को समझाने के लिए  ईश्वर ही सबका ठिकाना भी है ..... आस्था रखिये  तो ऐसा ही महसूस होगा ..... 

कहीं धूप खिली कहीं छाया


यहाँ कुछ भी तजने योग्य नहीं 

यह जगत उसी की है माया,  

वह सूरज सा नभ में दमके 

कहीं धूप खिली कहीं छाया !


ये भी ईश्वर की ही माया होगी कि शहर के बीच में और एक शहर बसता है ...... गहन अनुभूति को लिए एक रचना पढ़िए ...


एक ऐसा भी शहर


लोकतंत्र के चश्मे से नहीं दिखता
यह शहर क्यों कि इनकी झोली में 
होते हैं  इनके उम्र से भी अधिक 
शहर बदलने के पते.

ज़िन्दगी में न जाने कितनी  विसंगतियाँ हैं ............. संवेदनशील मन भावुक हो उठता है ..... .. अब ज़रूरी नहीं कि वो अनुभव आपका अपना हो लेकिन मन बस महसूस करता है और उसे अभिव्यक्त करता है .....ऐसी ही अभिव्यक्ति है ..... 

आग में मुझको तपानी उँगलियाँ
तप के वे कुंदन बनेंगी ।
फिर वे जाने क्या लिखेंगी ?

वे कहीं लिख जाएँ न घर्षण मेरा
उस खुदा के सामने अर्पण मेरा ।


अब घर्षण और अर्पण की बात है तो देखिये मुझे लगता है कि ज़िन्दगी में हर पल  ही घर्षण हो रहा है कोई दूसरों के साथ कर रहा तो कोई खुद  अपने आप से परेशान है फिर भी हर एक को देखभाल की ज़रूरत तो पड़ती ही है ...... और जब कोई बहुत प्रिशियस  हो तो .......

प्रेशियस चाइल्ड की देखभाल --



इस रचना की कोई पंक्ति उठा कर  यहाँ नहीं ला रही हूँ , कि ज़रा से चावल देख कर आप अंदाज़ा लगा लें कि आखिर  ये  है क्या ? आप लिंक पर जा कर पुलाव ही का आनंद ले आयें ......अब पुलाव की बात चली है तो याद आया  कि पहले ज़माने में खाने में पुलाव बहुत स्पेशल  हुआ करता था ..... आम दिनों में सादा  चावल या ज्यादा से ज्यादा तहरी या  तहारी बन जाती थी .... बाकी तो एक खिचड़ी भी होती थी ...... खैर बात कर रहे विशेष आयोजन की तो सबसे ज्यादा विशेष आयोजन होता था शादी विवाह का उत्सव ..... वैसे पहले उसमें भी मीठे चावल बनते थे ...... खैर चावल को छोड़ हम आज विचार मंथन करते हैं  कि बारिश का भी क्या लाभ जब खेती ही सूख गयी हो .... 

पुराने जमाने के लोग भी क्या लोग थे? एकदम मस्त! एक तरह से फुरसतिया टाइप के थे। लेकिन मजाल है कि जरूरी काम में देरी हो जाए! शादी की उम्र 21-22 साल है। ये पट्ठे उससे भी पहले कर लेते थे। बच्चे भी समय पर और बच्चों की शादियाँ और उनके बच्चे भी समय पर  इसलिए इनके पास फुरसत ही फुरसत होती थी। 


लेखक से नम्र निवेदन है कि आपने अपनी बात कह तो दी लेकिन ये बिलकुल ऐसी ही है जैसे नक्कारखाने में  तूती की  आवाज़ कोई नहीं सुनता ..... आज परिवार को कहाँ सब पैसे को देखते हैं ...... फिर कृषि सूखे तो सूखती रहे ....खैर अभी  बारिश का मौसम है ...... और आने वाला है हमारा राष्ट्रिय त्यौहार ...... आज भी बहुत से लोग स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस में अंतर नहीं कर पाते ..... वैसे मेरा विषय ये नहीं है ...बस इस बार ७५ वर्ष की आज़ादी का ज़श्न है जिसे  अमृत महोत्सव का नाम दिया गया है उस पर एक बहुत सुन्दर गीत लायी हूँ .... 


एक देशगान -आज़ादी के अमृत महोत्सव पर


आज़ादी का

वर्ष पचहत्तर

घर -घर उड़े तिरंगा.

इसके सम्मुख

कान्तिहीन है

इंद्रधनुष सतरंगा.


अरे ! ........... ये क्या हुआ ?  आज आज़ादी के इस दिन का कितना महत्त्व है ज़रा आप भी जानिये ....और स्वतंत्र भारत के नागरिक होने पर गर्व कीजिये .... 


हाय ये क्या हुआ मेरा तो पंद्रह अगस्त मनाने का सारा उत्साह ही ठंडा हो गया


उनका हाल देख कर मन बैठ गया चेहरा लटका हुआ उदास, बातों में भी कोई उत्साह नहीं, मुझसे रहा  नहीं गया पड़ोसी धर्म निभाते हुए मैंने पूछ ही लिया क्या हुआ भाई साहब कोई बात हो गई, मेरा पूछना था कि वो शुरु हो गये हाय ये  क्या हो गया पूरे साल जिस पन्द्रह अगस्त का इंतजार रहता था उसने इस बार ये क्या किया सारा उत्साह ही ख़त्म हो गया उसे मनाने का,


देख लिया आपने कि हम भारतीय कितने कृतघ्न  हैं ...... कभी देश के बारे में नहीं बस अपने बारे में ही सोचते हैं ........ लेकिन नहीं ..... सब ही तो ऐसा नहीं सोचते ..... सारी उंगलियाँ बराबर नहीं होतीं ...... हम में से अधिकांश देश के प्रति सच्चे प्रेम की भावना से  प्लावित  हैं ..... अपने कार्य और कार्य क्षेत्र मे   पूरे मन और तन से लगे हुए हैं ....रेल  - विभाग से जुड़े हमारे एक वरिष्ठ ब्लॉगर  प्रवीण पाण्डेय  जी का एक गीत ....... 

वयं राष्ट्रे जागृयाम


गति में शक्तिशक्ति में मति हो,

आवश्यक जोलब्ध प्रगति हो,

रेल हेतु होराष्ट्रोन्नति हो,

नित नित छूने हैं आयाम,

वयं राष्ट्रे जागृयाम।


विडिओ  भी ज़रूर सुनियेगा ....... रोम रोम पुलकित हो जायेगा .... ऐसा ही  भाव हर क्षेत्र में हो और आँखों में भारत को   अग्रणी बनाने का सपना .......  सपनों की बात चली है तो एक खूबसूरत सा ख्वाब ये भी है .... 


उनींदी पलकों पर छाई !!


संगीत सी बहती इस लहरी सी कविता  का  लिंक पर जा कर  रसपान करें ....

और  आज  की प्रस्तुति के अंतिम  पायदान पर ..... एक ऐसी  शख्सियत  से मिलवा रही हूँ  , जिसकी नज़में पढ़ कर मन करता है  कि उनको आज की  अमृता   प्रीतम  का खिताब ही दे दूँ  ...... चाहे वो क्षणिका हों या नज़्म ...... पढ़ कर मुँह से वाह के साथ दिल से आह भी निकलती है ..... बस आज कल ब्लॉग पर नहीं डाल रहीं अपनी पोस्ट ...... पर कितना कमाल लिखती हैं ...मिलिए हरकीरत  "हीर " जी से .... 


उन्हीं नज़्मों में मैंने
ज़िन्दगी को पोर पोर जीया था
ख़ामोश जुबां दीवारों पे तेरा नाम लिखती
मदहोश से हर्फ़ इश्क़ की आग में तपकर
सीने से दुपट्टा गिरा देते ...
न तुम कुछ कहते न मैं कुछ कहती
हवाएं बदन पर उग आये
मुहब्बत के अक्षरों को
सफ़हा-दर सफ़हा पढने लगतीं ...

इस  नज़्म के बाद न कुछ लिखा जायेगा और न पढ़ा जायेगा ...... कुछ देर शायद  इसी में मन जैसे शून्य में विलीन हो जायेगा ........ तो आज के लिए बस यहीं तक का सफ़र ......फिर मिलते हैं अगले सप्ताह कुछ चुनिन्दा  लिंक्स के साथ .........नमस्कार 🙏

संगीता स्वरुप 



Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...