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सोमवार, 18 जुलाई 2022

3458 / जिन्दगी जब किसी मुश्किल में डगमगाती है ....

  


नमस्कार !  पिछले सप्ताह कुछ व्यस्तता के कारण यहाँ आना नहीं हो पाया था .......प्रस्तुति के लिए  ..यशोदा को    हार्दिक  आभार .... चलिए चर्चा करते हैं आज कुछ नए और कुछ पुराने लिंक्स की ....... वैसे तो चर्चा  लगाते  हुए कोशिश होती है  कि पाठकों को सभी लिंक्स पसंद आयें ...... वरना हम चर्चाकार पूरी   मेहनत करें और पाठकों को मज़ा न आये तो वही बात हो जाएगी ......

 खस्सी की जान गयी, खाने वाले को स्वाद नहीं


बड़का कक्का से रहा नहीं गया। पत्तल पर से उठ के गरजे, "जिसको खाना है सो खाइए और नहीं खाना है तो मुँह-हाथ धो के जाइए बैठिये जनवासा पर। हम लड़की वाले हैं...., नहीं कुछ कहते हैं ई का मतलब का सिर पे चढ़ के लघुशंका कीजियेगा..

कहावतें हमेशा ही बात को कहने का अलग  तरीका है , इससे कम शब्दों में कुछ भी कहने का वज़न बढ़ जाता है .......लीजिये एक वजनदार रचना -----


हमने जो कहा पत्नी से एक कप चाय पिलाने को,

वो एक डोंगा दे गई मलाई से मक्खन बनाने को । 


अब हम बैठे बैठे चाय के इंतज़ार में भुनभुना रहे हैं,

एक घंटे से मलाई को गोल गोल घुमाए जा रहे हैं ।

अब यहाँ  मक्खन बना या घी  ये तो पढ़ने पर समझ आएगा लेकिन घर घर की कहानी है जो यहाँ कही गयी है .... 

दोनों एक साथ ...

जी सच ही कहा की काम को कब मना  किया ....... बस हर बात याद दिला दो ...... सारा काम मिल जुल कर हो जायेगा ....

इस बात में तो कोई दो राय नहीं  कि काम को मना तो नहीं किया लेकिन अपने बलबूते पर काम हुआ भी नहीं .......अब मैं झूठ तो कह नहीं रही ......... वैसे तो आज कल बिना   झूठ  बोले काम भी नहीं चलता .......अच्छा सच्ची बताइए कि आपने क्या कभी झूठ नहीं बोला ? .... चलिए आप एक लेख पढ़ कर विचार कीजियेगा ... 

झूठ बोले बिना काम नहीं बनता बाबू!

आधुनिक समय में सफलता के लिए झूठ  बोलना कितना ज़रुरी हो गया है! बच्चे इस ‘अनावश्यक ज्ञान’ पर बड़ों से सवाल-ज़वाब नहीं करते अन्यथा पलटकर एक बार ज़रूर पूछते कि क्या आप हमेशा ही सच बोलते हैं? अभी तक आप बिना झूठ  बोले ही इतने आराम से गुज़र-बसर कर रहे हो?

वैसे आज भी हम बच्चों को यही सिखाते हैं  कि सच बोलना चाहिए ...... कोशिश तो यही रहती है कि जीवन में अच्छी ही बातें धारण करें ....... और ऐसी ही सीख देती ये एक ग़ज़ल  पेश है ....... 


शहर डूबा तो बारिश को सब ने दोष दिया ,            

         जिम्मेदारी तो इन्तजामों पर भी आती है |           

 

         खुद पर भरोसा हो तो चाहे जो काम करो ,,             

         डोरी सहारे की तो अक्सर  टूट जाती है |            

यहाँ तो बारिश से डूबे शहर की बात हो रही है तो दूसरी ओर सावन के महीने में बारिश की फुहारों का आनंद लिया जा रहा है ......

रिमझिम पड़ें फुहारें,जल की बूँदें लगें सुखदाई



सोंधी-सोंधीं गंध उठे उपवन की महक निराली
इंद्रधनुष की आभा न्यारी खोल लटें बिखरा ली
गूँज उठे कजरी के धुन पड़े झूले नीम की डाली
जेठ की तपती गर्मी,स्वेद से मुक्ति सबने पा ली ।

सावन की रिमझिम हो और साथ में प्रेम या विरह न हो ऐसा मुमकिन नहीं लेखकों के लिए ....... मन में न जाने कहाँ कहाँ से भाव उमड़े चले आते हैं ...... ऐसा लग रहा है की प्रेम रोम रोम में बसा हुआ है ...


पुकार तुम्हारी गुदगुदाकर कहती है,
मेरी साँसों में बचा है प्रेम अब भी...।


प्रेम का एक रूप ये भी कि पति ये सोचता है कि वक़्त आने पर पत्नी भला कुछ कर भी पाएगी ? उसमें तो आत्मविश्वास ही ही नहीं ......... वैसे होता तो शायद यही है की पति ही पत्नी के आत्मविश्वास को पनपने नहीं देते ...... और वक़्त पड़ने पर वो क्या कर गुज़रती है पढ़िए इस कहानी में ..... 


कहानी में तो कुमुदनी खिल गयी ........ लेकिन कभी कभी खिलना तो दूर की बात अंकुरण भी नहीं हो  पाता...... 
एक खूबसूरत ग़ज़ल   पढ़िए .... 

हर बीज से दरख्त उगाया न जाएगा.

सबका हुनर शुमार में लाया न जाएगा.

हर बीज से दरख्त उगाया न जाएगा.

 

हर शख्स का नसीब बनाया न जाएगा.

ये जाम हर किसी को पिलाया न जाएगा.

यहाँ तो दरख़्त उगाने में संशय है और वहां गाँव में रहते रहते पेड़  तो क्या पूरा गाँव ही नहीं दिख रहा ...... अब ये व्यंग्य है या मर्मस्पर्शी रचना ........ आप पाठक ही निर्णय करें ..... 

उसका गाँव खो गया है...


जब कभी शहर से कोइ मित्र लौट कर रामफल से अपने पैसों और सफलताओं की नुमाईश करता कि

 उसके पास मकान हैपैसा हैकार है...और तुम बताओ रामफलतुम्हारे पास क्या हैतब गाँव की 

जमीन को माँ का दर्जा दे उसकी सेवा में अपना जीवन समर्पित कर देने वाला रामफलकुछ कुछ 

दीवार फिल्म के शशी कपूर सा महसूस करता हुआ मुस्करा कर कहता कि मेरे पास माँ है!!


बात कर रहे हैं माँ की तो ज़रा देखिये की माँ के नाम से भी लोग कितना खिलवाड़ कर लेते हैं .

.......सच आज हर रिश्ते में जैसे स्वार्थ बस गया है ......पढ़िए एक लघु कथा ...




यह बच्चे हमारे पास भगवान का रूप है मिसेज सिन्हा ,  आप इन में से एक भी ले जायेंगी तो यह आपको दुआ देंगे ,  न जाने कौन कठोर हृदय इंसान है , जो इन नन्ही रूहों को यहाँ छोड़ जाते हैं । आप जैसी कुछ पुण्य आत्माएं इनका जीवन संवार देती है "।

अब ऐसी बातों से मन   विचलित होना स्वाभाविक है .......... और इन बातों से ही क्यों ?  ज़िन्दगी में न जाने कितनी बातें या कितनी घटनाएँ मन को  परेशान करती रहती हैं ....... और हम विचार शून्य से हो जाते हैं ........ इतने की अपनी लेखनी को विराम देते हुए कह उठते हैं कि ----

आज ना चलती तनिक भी  मन की

उपजे ना प्रीत का राग कोई !

विरक्त  हृदय में अनायास ही

व्याप्त हुआ विराग कोई !

चैन नहीं आता पल को भी 

 देह -प्राण रहे रीत मेरे! 




चलते चलते ........विश्व इमोजी दिवस के बारे में जानकारी

 ......... इसके बारे में मुझे भी आज ही पता 

चला तो सोचा आपके साथ साझा कर लूँ   शायद विचलित 

मन  को  कुछ आराम आये ....



इमोजी का आशय स्मार्ट मोबाइल पर विस्तार में कुछ भी लिखने के स्थान पर एक संकेतक द्वारा अपनी सारी भावनाओं को उजागर कर देना है. इसकी बढ़ती लोकप्रियता और उपयोगिता को देखते हुए 17 जुलाई को दुनिया भर में विश्व इमोजी दिवस मनाया जाता है.

आशा है आपको ये प्रस्तुति पसंद आई होगी .......... फिर मिलते हैं अगले सोमवार को कुछ चुनी हुई पोस्ट्स के साथ ....... तब तक के लिए विदा ...... नमस्कार |


संगीता स्वरुप 


 











22 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर प्रस्तुति...
    सादर नमन...
    अब एक हाथ पतला है
    और दूसरे की मसल्स बन गई
    शानदार..

    जवाब देंहटाएं
  2. पाँच लिंकों के आनंद में आज जितनी पोस्टों के लिंक भी शेयर किए गए हैं उन सभी को पढ़कर बहुत अच्छा लगा। 'स्पर्श' प्रस्तुति को छोड़कर( क्योंकि इस ब्लॉग पर कॉमेंट बॉक्स खुला ही नहीं) सभी पर प्रतिक्रिया भी दी है। आदरणीय संगीता स्वरूप जी को उनके सार्थक प्रयास पर कोटि कोटि बधाईयाँ। इन लिंकों में मेरी पोस्ट का लिंक भी शामिल है इसलिए इसके लिए अलग से आभार। बाकी सभी रचनाकारों को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार । यहाँ से मैंने स्पर्श पर जा कर कमेंट बॉक्स खोला तो खुल रहा है ।
      आपके सहयोग के लिए आभार ।

      हटाएं
  3. बहुत सुंदर हलचल प्रस्तुति, संगीता दी।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन सूत्रों के साथ लाजवाब प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह , बहुत ही लुभावनी प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  6. एक बार फिर से सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार बधाई प्रिय दीदी।रोचक लेख, लघुकथाएँ और काव्य रचनाओं को पढ़ा।बहुत आनन्द आया।लोक व्यंग ने भोजपुरी संस्कृति से वाकिफ़ करवाया तो मार्मिक लघुकथाओं ने झझकोर दिया।स्पर्श ने तो स्तब्ध कर दिया।शैल जी की सावनी रचना और प्रिय श्वेता की भीतर बचे प्रेम पर रचनाएं विशेष रहीं।इमोजी पर बहुत बढिया लेख पढकर अच्छा लगा 'सभी रचना कारो
    को सादर नमन।आपको भी पुन' बधाई और शुभकामनाएं ४

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रस्तुति पर तुम्हारे जैसे पाठक जब प्रतिक्रिया देते हैं तो सारी मेहनत सफल हो जाती है । दिल से आभार ।

      हटाएं
  7. लाजवाब प्रस्तुति या यूँ कहूँ कि खस्सी इतनी स्वादिष्ट कि कल से खाये जा रहे और यहाँ पहुँचने में देर हो गयी अब एक ही प्रस्तुति में पहले इतना हँसाओगे कि पेट दुख जाय....और फिर चिंतन की गहराइयों में जाकर ऊपर आना मुश्किल साथ ही सभी तरह के जायके...तो देर तो होगी ही...फिर माफी भी क्या ही माँगनी अब ।आदत से भी मजबूर हूँ ।
    सस कुल मिलाकर मजेदार प्रस्तुति हेतु बहुत बहुत धन्यवाद🙏🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय सुधा ,
      प्रस्तुति को रस ले कर पढ़ा , इससे ज्यादा और क्या चाहिए । भले ही देर से आये ,लेकिन इंतज़ार रहता ही । बहुत बहुत आभार ।

      हटाएं
  8. प्रिय दी,
    सबसे पहले देर से आने के लिए क्षमा चाहते हैं। कल व्यस्त थे बिना रचनाओं को पढ़े सिर्फ़ औपचारिकता में प्रतिक्रिया नहीं लिख पाते हैं।
    भानुमति के पिटारे से निकले खज़ाने से एक से बढ़कर एक बेशकीमती दुर्लभ रत्नों को चुनकर जो आभूषण आपने गढ़ा है उसकी शोभा अतुलनीय है। सारी रचनाएँ अंतस में उतर रही हैं।
    रचनाओं के लिए आज कुछ सूझ नहीं रहा
    भले खस्सी की जान जाने का थोड़ा बुरा लगा पर गाँव के सोंधे चूल्हे में पके भोजन का स्वाद अविस्मरणीय रहा।
    लगा मानो
    आम के आम गुठलियों के दाम
    दोनों एक साथ मिल गये हों,
    बात तो ये सच है
    ज़िंदगी जब किसी मुश्किल में डगमगाती है
    यहाँ झूठ बोले बिना काम नहीं चलता बाबू...
    रिमझिम पड़े फुहारें,जल की बूँदें लगे सुखदायी
    भोर होते ही खिल गयी कुमदनी
    उसका गाँव खो गया है
    स्पर्श स्नेहिल भावनाओं के
    हर बीज से दरख़्त उगाया जायेगा
    सोचती हूँ...
    आज कविता सोयी रहने दो
    विचित्र है
    इमोजी का रंगीन संसार
    ---
    अगले विशेषांक की प्रतीक्षा में
    सप्रेम प्रणाम दी।

    जवाब देंहटाएं
  9. 😍😍 प्रिय श्वेता
    भानुमति के पिटारे से कुछ न कुछ तो निकलना ही था ,लेकिन हर रचना का रसास्वादन ले कर जो तुमने वर्णन किया वो अतुलनीय है ।
    स्नेह और आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  10. इस सुंदर श्रमसाध्य प्रस्तुति के लिए आपका आभार दीदी ।हर सूत्र पर गई और पढ़ा ।बहुत ही सुंदर और विविधता से भरा हुआ अंक ।पहली प्रस्तुति देसिल बयना से लेकर इमोजी का रंगीन संसार तक सभी प्रस्तुति पठनीय और रोचक । आपके श्रमसाध्य कार्य को नमन ।

    जवाब देंहटाएं
  11. प्रिय जिज्ञासा ,
    प्रस्तुति पसंद करने के लिए हार्दिक आभार । मुझे खुशी होती है यह देख कर कि कुछ मेरे नियमित पाठक हैं । देर -सवेर आते ज़रूर हैं । 🥰🥰

    जवाब देंहटाएं

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