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मंगलवार, 5 जुलाई 2022

3445 ....रिमझिम रिमझिम क्या कुछ कहते बूँदों के स्वर,

सादर अभिवादन.....
सावन को आने दो


रिमझिम रिमझिम क्या कुछ कहते बूँदों के स्वर,
रोम सिहर उठते छूते वे भीतर अंतर!
धाराओं पर धाराएँ झरतीं धरती पर,
रज के कण कण में तृण तृण की पुलकावलि भर।

पकड़ वारि की धार झूलता है मेरा मन,
आओ रे सब मुझे घेर कर गाओ सावन!
इन्द्रधनुष के झूले में झूलें मिल सब जन,
फिर फिर आए जीवन में सावन मन भावन!
-सुमित्रानंदन पंत

...अब रचनाएँ



ये घनघोर काली घटाएं देखो
गरज-चमक करती हैं बौछारे।
भर उठे मन उमंग-तरंग मेरा
देखूं बगिया ऊपर बरसे सारे।।


स्वास्थ्य

झाग  हटा  हल्दी डाल, तब ही दाल उबाल।
गठिया पथरी होय कम, दुपहर  खाए  दाल।।




दो प्रेमी ....
हम दोनों
पास पास रहें
कभी न रहें दूर
क्या यही नहीं है कमी
सोचता रहा
मैं




साहित्य प्रेमी तो अपने घर में भी कुशलतापूर्वक साहित्यिक आयोजन कर रहे हैं। 
घर में शादी का सालगिरह हो, बच्चों का , पति/पत्नी का जन्मदिन हो।

आयोजन में अर्थ का व्यय कंजूसी से नहीं बल्कि मितव्ययिता से कैसे हो 
इसका पूरा ख्याल रखना चाहिए।

यह ना हो कि दिखावे में ज्यादा राशि उड़ जाए। साहित्यिक कार्यक्रम जलसा बन जाये। 
अतिथियों को आने-जाने का किराया देने में, होटल में ठहराने में, 
नगद राशि देने में भारी रकम खर्च हो जाये।





मचलती है नदी
छुई मुई सी, सकुचाई सी
दुनिया के रंगों से भरमाई सी
छुओ तो चिहुंकती है
बेबात खिलखिलाती है
नया ख्वाब आंखों में लिए
अजनबी शहर से गांठ जोड़ती
जड़ों को सींचती, दुलराती।
अनजान रवायतों से
सिहरती है नदी।


आज बस

सादर 

9 टिप्‍पणियां:

  1. शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
    श्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद
    नदी प्रेमी सावन सबको उठा लाना अद्धभुत

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति में मेरी ब्लॉगपोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  3. शानदार प्रस्तुति उम्दा एवं पठनीय लिंक्स ।

    जवाब देंहटाएं

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