आज आंग्ल वर्ष के अन्तिम दिवस पर
सादर अभिवादन स्वीकार करें....
सादर अभिवादन स्वीकार करें....
साल तो आते-जाते रहते हैं...
पर हम वहां के वहीं रहते हैं...
कभी आईना नहीं देखते न...
और नहीं देखते सड़क की ओर...
याद आ रहा है एक किस्सा....
मारो गोली किस्से को....
चलें रचनाओं की ओर......
नव प्रवेश...
इंसान को इंसान बनाया जाए....गोपालदास "नीरज"
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए।
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए।
जिसकी ख़ुशबू से महक जाय पड़ोसी का भी घर
फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए।
नन्ही ख़्वाहिश...श्वेता सिन्हा
पत्तियों की ओट में मद्धिम
फीका सा चाँद
अपने अस्तित्व के लिए लड़ता
तन्हा रातभर भटकेगा
कंपकपाती नरम रेशमी दुशाला
तन पर लिपटाये
सुख का सूर्य...सुधा इन साईट
सुख का सूर्य है कहाँ, कोई बताए ठौर!
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण देख लिया चहुँ ओर!!
देख लिया चहुँ ओर कि बरसों बीत गए हैं!
चूते चूते घट भी अब तो रीत गए हैं!!
नए साल से...ओंकार केडिया
फैसला कर लिया है
कि दिसंबर की सर्दी में
आधी रात तक जागकर
तुम्हारे आने का इंतज़ार करूंगा ;
ख़ुशी से चीखूंगा,
नाचूँगा, सीटियाँ बजाऊँगा,
जैसे ही तुम पहुँचोगे.
पोल-खोलक यंत्र - अशोक चक्रधर
ठोकर खाकर हमने
जैसे ही यंत्र को उठाया,
मस्तक में शूं-शूं की ध्वनि हुई
कुछ घरघराया।
झटके से गरदन घुमाई,
पत्नी को देखा
अब यंत्र से
पत्नी की आवाज़ आई-
मैं तो भर पाई!
उनके बालों से गिर रही बूँदें...रामबाबू रस्तोगी
घर में बैठे रहें तो भीगें कब।
बारिशों से बचें तो भीगें कब॥
पत्थरों का मिज़ाज रख के हम।
यूँ ही ऐंठे रहें तो भीगें कब॥
अब न होगा....ये तेरा घर....#Ye Mohabbatein
ये दुनिया बदलती ही रहती है
हर पल
हमारी पृथ्वी,
इसे गोल-गोल घूमते उपग्रह
और वो भी
जिसके परितः हम घूमते हैं
पृथ्वी के संग;
अगर सृष्टि परिवर्तित होती है
आज..
अब....
बस....
दिग्विजय ..
पर हम वहां के वहीं रहते हैं...
कभी आईना नहीं देखते न...
और नहीं देखते सड़क की ओर...
याद आ रहा है एक किस्सा....
मारो गोली किस्से को....
चलें रचनाओं की ओर......
नव प्रवेश...
इंसान को इंसान बनाया जाए....गोपालदास "नीरज"
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए।
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए।
जिसकी ख़ुशबू से महक जाय पड़ोसी का भी घर
फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए।
नन्ही ख़्वाहिश...श्वेता सिन्हा
पत्तियों की ओट में मद्धिम
फीका सा चाँद
अपने अस्तित्व के लिए लड़ता
तन्हा रातभर भटकेगा
कंपकपाती नरम रेशमी दुशाला
तन पर लिपटाये
सुख का सूर्य...सुधा इन साईट
सुख का सूर्य है कहाँ, कोई बताए ठौर!
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण देख लिया चहुँ ओर!!
देख लिया चहुँ ओर कि बरसों बीत गए हैं!
चूते चूते घट भी अब तो रीत गए हैं!!
नए साल से...ओंकार केडिया
फैसला कर लिया है
कि दिसंबर की सर्दी में
आधी रात तक जागकर
तुम्हारे आने का इंतज़ार करूंगा ;
ख़ुशी से चीखूंगा,
नाचूँगा, सीटियाँ बजाऊँगा,
जैसे ही तुम पहुँचोगे.
पोल-खोलक यंत्र - अशोक चक्रधर
ठोकर खाकर हमने
जैसे ही यंत्र को उठाया,
मस्तक में शूं-शूं की ध्वनि हुई
कुछ घरघराया।
झटके से गरदन घुमाई,
पत्नी को देखा
अब यंत्र से
पत्नी की आवाज़ आई-
मैं तो भर पाई!
उनके बालों से गिर रही बूँदें...रामबाबू रस्तोगी
घर में बैठे रहें तो भीगें कब।
बारिशों से बचें तो भीगें कब॥
पत्थरों का मिज़ाज रख के हम।
यूँ ही ऐंठे रहें तो भीगें कब॥
अब न होगा....ये तेरा घर....#Ye Mohabbatein
ये दुनिया बदलती ही रहती है
हर पल
हमारी पृथ्वी,
इसे गोल-गोल घूमते उपग्रह
और वो भी
जिसके परितः हम घूमते हैं
पृथ्वी के संग;
अगर सृष्टि परिवर्तित होती है
आज..
अब....
बस....
दिग्विजय ..