बदलाव प्रकृति का नियम है। बिना बदलाव के जागृति संभव नहीं। समय ही तय करता है बदलाव सकारात्मक है कि नकारात्मक। साहित्य जगत में भी बदलाव की सुगबुगाहट महसूस की जा सकती है। देश की समसामयिक समस्याओं पर अपनी पैनी नज़र रखने वाले हमारे बुद्धिजीवी रचनाकार गंभीर सृजनशीलता में जुटे है।सृजनशीलता कभी भी व्यर्थ नहीं हो सकती,फर्क पड़ता है हमारे दृष्टिकोण से।
सादर अभिवादन
चलिए आज हम पढ़ते है आज के नये पुराने जाने पहचाने
सम्मानीय रचनाकारों की अमूल्य कृतियों को-
आदरणीय आनंद जी की रचना
हमारे गम़ ,हमीं को बेच देगा
यही बाज़ार काअसली हुनर है
कबीरों की न अब कोई सुनेगा
सियासत का बड़ा गहरा असर है
आदरणीया संगीता दीदी की भावपूर्ण रचना
अंधेरी रात के
गहन सन्नाटे को
चीरती हुई
किसी नवजात बच्ची की
आवाज़ टकराती है
कानो से
जिसे उसकी माँ
छोड़ गयी थी
फुटपाथ पर
वहाँ मुझे दिखती है कविता ॰
आदरणीय शाहनवाज जी की रचना
नफरतें और बढ़ जाएंगी दिल में
ऐसी बातों में आकर क्या करोगे
जो दिल नाआशना हो ही चुके हों
फ़क़त रिश्ता बना के क्या करोगे
आदरणीय कैलाश शर्मा जी की लेखनी से
आज लगा कितना अपना सा
सितारों की भीड़ में तनहा चाँद
सदियों से झेलता दर्द
प्रति दिन घटते बढ़ने का,जब भी बढ़ता वैभव
देती चाँदनी भी साथ
आदरणीया निवेदिता दी की प्यारी रचना
स्वागत है स्वागत प्यारी लाडो का
स्वागत दुलारी अदिति का
सपनों की कली सी तुम
सज जाओ मेरे दुलारे आँचल में
तुम से ही रौशन ये घर
आ जाओ न इस सजीले उपवन में
आदरणीय ज्योति जी की लेखनी से
सुनो
अपनी अपनी स्मृतियों को
बांह में भरकर सोते हैं
शायद
बोया हुआ प्रेम का बीज
सुबह अंकुरित मिले -----
आदरणीय नंदलाल जी की लेखनी से
मैंने करोड़ों आकाश गंगाओं को
उनकी आंखों में झांक के देखा
जिनकी क्षणिक बौछार भिगो देती है मुझे
आदरणीय राकेश जी की रचना
भूख
धधकती है थोड़ी आग..
जलती है रूह और
खदबदाती है थोड़ी भूख...
यह भूख पेट और पीठ के समकोण में
उध्वार्धर पिचक गोल रोटी का रूप धर लेती है..
खाने खाने की प्रतीक्षा में
दिन दिन भर भूखी बैठी रही
और अब यशोदा की कलम से
हमने कहा था सखी श्वेता से
आज आने के लिए और कहा यूँ....
कि पत्ते झड़ते रहते हैं
शाखाएँ भी कभी
टूट जाती है
पर वृक्ष...
खड़ा रहता है
निर्विकार..निरन्तर
उस पर
नई शाखाएँ
आ जाती है
नवपल्लव भी
दिखाई पड़ने लगती है
कुछ जिद्दी लताएँ
साथ ही नही छोड़ती
वृक्ष का..
रहती है चिपकी
सूखती है और फिर
अंकुरित हो जाती है
सखी श्वेता और यशोदा की मिली जुली प्रस्तुति
सादर
सुप्रभात।
जवाब देंहटाएंविविध बिषयी रचनाओं का सूझबूझ से परिपूर्ण संकलन लिए आज का सोमवारीय अंक।
परिवर्तन की चर्चा में नवीनता के विचार को स्थापित करती हुई ज़ेर-ए-बहस मुद्दे पर रौशनी डालती भूमिका। संकेत और संदेश का मुलम्मा असरदार चमक छोड़ रहा है।
सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाऐं।
आभार सादर।
वाह
जवाब देंहटाएंदोनों को सस्नेहाशीष संग शुभ दिवस
उषा स्वस्ति..
जवाब देंहटाएंवाह!
विविधतापूर्ण रंगों से सजी आज की सुंदर प्रस्तुति बहुत अच्छी है।
सभी सााथी रचनाकारों को हार्दिक बधाई मेरी।
आभार।
बेहतरीन बहनापा....
जवाब देंहटाएंदूरदर्शिता को सलाम....
उत्तम चयन...
एक बंधी हुई प्रस्तुति
सादर....
चाहे जिद्दी लताओं का लोलुप लास हो या रसिक तरु का मौन रास, श्रृंगार तो सृजन का ही होता है। सुंदर संकलनकी बधाई!
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअद्भुत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआज का सोमवारीय अंक अति लुभावना बन पड़ा है !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार रचनाओं से सजी अर्थपूर्ण प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसब रंग एक साथ मिलाकर खूबसूरत गुलदस्ता बना दिया रचनाओंका
बहुत बहुत बधाई
ये भी बदलाव ही है....
जवाब देंहटाएंजो इस चर्चा में मैंने महसूस किया है.....
आप दोनों की मिली-झुली प्रस्तुति में आनंद आ गया....
आभार....
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंदीदी द्वय को
जवाब देंहटाएंसादर नमन
प्रफुल्लित हो गया
हमारा मन
कभी हमारी ओर भी
निहारे आपके नयन
आदर सहित
सुंदर लिंक संयोजन के लिए साधुवाद
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार
सादर
बेहतरीन संकलन ! बढ़िया प्रस्तुति। सभी चयनित रचनाकारों को सादर बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा प्रयास है, मेरी ग़ज़ल को जगह देने के लिए शुक्रिया... ब्लॉग देखकर अच्छा लगा, फॉलो कर लिया है, उम्मीद है आता रहूँगा!
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना प्रस्तुत करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंदेर आये दुरुस्त आये . यशोदा तुम्हारे विशेष अनुग्रह के लिए आभार . श्वेता और तुमको शुक्रिया . आज के लिंक्स में मेरी रचना को शामिल किया पुन: आभार
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