निवेदन।


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मंगलवार, 31 दिसंबर 2019

1628 ...नव-वर्ष अनंत, नव-वर्ष कथा अनंता

सादर अभिवादन

वर्ष का अंतिम दिन

इस बिदाई की बेला में

सब नाच-कूद रहे हैं
रो रहा है तो बस
एक ही ...वह
सफेद दाढ़ी वाला बूढ़ा
2019

चलिए चले रचनाओं की ओर...


आने वाले साल के 366 दिन सब के लिए सुख-शांति और निरोगिता ले कर आएं। सभी को आने वाले समय की शुभकामनाएं !
नए साल पर अमेरिका के न्यूयार्क में टाइम्स स्क्वायर पर 1907 से चले आ रहे दुनिया के सबसे बड़े और मंहगे नव-वर्ष के जश्न पर, जहां एक युगल पर कम से कम 1200 डॉलर का खर्च बैठने के बावजूद,  इस ''बॉल ड्रॉप'' आयोजन को देखने लाखों लोग इकट्ठा हो जाते हैं। कुछ लोग तो टॉयलेट्स की कमी को ध्यान में रख ''डायपर्स'' पहन कर ही इस उत्सव में शरीक होते हैं...............!


साल का अंत-
वो छटपटा रहें
निशीथ काल।
.....
शीत सन्नाटा/शीत की शांति–
खिड़की के शोर से
कांप गई मैं।


तेजी से बदलते वक्त के साथ उतनी ही तेजी से बदलती जीवन की परिभाषाओं के चलते अब समय है खुद को बदलने का, अपनी सीमित सोच को बदलने का, अपनी सोच के दायरे को बढ़ाने का। साल खत्म होने को है। दिन महीना साल कैसे गुजर जाता है, कुछ पता ही नही चलता। समय के साथ-साथ जीवन बदलता जाता है। सही भी है। आखिर बदलाव का नाम ही तो ज़िन्दगी है। मैंने अब तक अपने जीवन में बहुत से बदलाव देखे, समझे फिर उसके अनुसार स्वयं को बदला। अब फिर समय बदलने को है। साल बदलेगा तो सोच बदलेगी, फिर नव जीवन का संचार होगा। अब यह बदलाव किस-किस के लिए सुखद और किस-किस के लिए दुखद होगा यह तो राम ही जाने।


सघन हो चले कोहरे, दिन धुँध में ढ़ला, 
चादर ओढ़े पलकें मूंदे, वो पल यूँ ही बीत चला, 
बनी इक स्मृति, मैं भी अतीत में ढ़ला! 
कितने, पागल थे हम, 
समझ बैठे थे, वक्त को अपना हमदम, 
छलती वो चली, रफ्तार में ढ़ली,


हे हृदय ! तू अपने निश्चय पर अटल क्यों नहीं रहता। तेरा मेला पीछे छूट चुका है और अब कोई झमेला नहीं है । समझ न बंधु ! जीवन का सबसे बड़ा  सत्य है अपूर्णता और यह भी सुन ले तू, इस अधूरेपन का सदुपयोग ही जीवन की सबसे बड़ी कला है। तुझे पता है न कि सारे दर्द मनुष्य अकेले ही भोगता है।
और हाँ, सर्वव्यापित होकर भी ईश्वर अकेला ही है।


उसके होंठ चुनते हैं
मेरे होंठों से
बर्फ़ के ताज़ा फ़ाहे
बर्फ़ गर्म और मीठी
मैंने पहली बार चखी.
....
अब बारी है विषय की
विषय क्रमांक 102
दुआ
उदाहरण
लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी
ज़िन्दगी शमा की सूरत हो ख़ुदाया मेरी।

दूर दुनिया का मेरे दम अँधेरा हो जाये
हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाये।
रचनाकार - मोहम्मद अलामा इक़बाल 

अंतिम तिथिः 04 जनवरी 2020
प्रविष्टिया मेल द्वारा ही मान्य
प्रकाशन तिथिः 06 जनवरी 2020
सादर

सोमवार, 30 दिसंबर 2019

1627..हम-क़दम का 101 वाँ अँक... औकात

इस वर्ष के अंतिम सोमवारीय विशेषांक 
हमक़दम के अंक में
आप सभी प्रबुद्ध रचनाकारों एवं 
प्रिय पाठकवृंद का
स्नेहिल अभिवादन
----
'औकात' शब्द एक नुकीले तीर की तरह मन को बेध जाता है। शब्द में निहित भाव किसी भी व्यक्ति को व्यथित करने में सक्षम है।'औकात' शब्द प्रायः किसी को अपमानित करने के लिए ही प्रयुक्त करते सुना है हमने।
  लोग अपनी-अपनी बौद्धिक,मानसिक क्षमता के अनुरूप
 यों कह लें कि अपनी औकात के अनुसार समाज में लोगोंं की  औकात मापते हैं
कोई धन,रहन-सहन के स्तर को मापदंड बनाता है

कोई प्रसिद्धि और पहचान के दायरे से औकात का निर्धारण करता है
और कोई ज्ञान के तराजू को औकात के पलड़े पर 
तौलता है।
परंतु इस शब्द का सकारात्मक पक्ष हम देखे तो 
हमें अपनी औकात अर्थात्  क्षमता पहचानना आवश्यक है।
हम सभी में कुछ न कुछ विशेष होता है।
इसी क्षमता की ऊर्जात्मकता पहचानकर अपने जीवन,अपने व्यक्तित्व की  दिशा प्रदान कर सकते हैं।


ऐ,ज़िंदगी! तुमको तुम्हारी औकात बतानी है
सबसे छुपाकर धीरे से एक बात बतानी है
सितम करो चाहे कितने हम नहीं टूटने वाले
दर्द में होता है क्या शह और मात बतानी है
उम्र की रेत पर औंधी लेटी इंतजार में साँसें
ऐ मौत!मिलो हमसे तुमको ज़ज़्बात बतानी है

★★★★★★

कालजयी रचनाओं के क्रम में

अशोक चक्रधर
जब पाँच का सिक्का
दनदना गया
तो रुपया झनझना गया
पिद्दी न पिद्दी की दुम
अपने आपको
क्या समझते हो तुम!
मुझसे लड़ते हो,
औक़ात देखी है
जो अकड़ते हो!



रचनाकार:अज्ञात
औकात

एक माचिस की तिल्ली, 
एक घी का लोटा,
लकड़ियों के ढेर पे, 
कुछ घण्टे में राख.....
बस इतनी-सी है 
आदमी की औकात !!!!
★★★

रविकान्त


मुझे
हर जगह
मेरी औकात का पता चलता है
मैं हर समय उदास रहता हूँ

जीवन की नैतिकता
एक स्वच्छ चेहरा रखने की सलाह देती है
मैं लोगों से मिलता हूँ मुस्करा के


नरेश सक्सेना
देवी-देवताओं को
पहनाते हैं आभूषण
और फिर उनके मन्दिरों का
उद्धार करके
उन्हें वातानुकूलित करवाते हैं

इस तरह वे
ईश्वर को
उसकी औकात बताते हैं ।

★★★

आइये आज के विषय पर खास रचनाएँ पढ़ते हैं-
औकात शब्द पर लिखना आसान नहीं था फिर भी हमारे प्रतिभाशाली विलक्षण प्रतिभा के धनी रचनाकारों ने एक से बढ़कर एक अचंभित करती रचनाओं का सृजन किया है।
आप सभी को बहुत-बहुत बधाई एवं
लेखनी को सादर प्रणाम।

★★★★

आदरणीया साधना वैद जी
अपनी-अपनी औकात

“अरे ! तो उसे कोई परेशानी होगी ! ससुराल वाले तंग करते होंगे तभी तो वापिस आई होगी ना ! क्या बताया उसने ? मारते पीटते थे ? ऐसे लोगों से दूर रहे तभी ठीक है ! हमारी बेटी वैशाली भी तो आ गयी है ना अपनी ससुराल से वापिस ! जैसे हमने उसे सम्हाला है तू भी आसरा दे अपनी बेटी को ! ससुराल वालों का अत्याचार सहना गलत बात है !” अपनी बेटी वैशाली का दृष्टांत देकर सरला ने उसका मनोबल बढ़ाने की कोशिश की !

★★★★★

 आदरणीय सुबोध सिन्हा जी
ब्रह्मांड की बिसात में

हाथों को उठाए किसी मिथक आस में
बजाय ताकने के ऊपर आकाश में
बस एक बार गणित में मानने जैसा मान के
झांका जो नीचे पृथ्वी पर उस ब्रह्माण्ड से
दिखा दृश्य अंतरिक्ष में असंख्य ग्रह-उपग्रहों के
मानो हो महासागर में लुढ़कते कई सारे कंचे
तुलनात्मक इनमें नन्हीं-सी पृथ्वी पर
लगा मैं अदृश्य-सी एक रेंगती कीड़ी भर ...पर..
पूछते हैं सभी फिर भी कि मेरी क्या जात है ?
सोचता हूँ अक़्सर इस ब्रह्माण्ड की बिसात में
भला मेरी भी क्या कोई औकात है ?

★★★★★★

आदरणीया आशालता सक्सेना जी
औकात

यह भी तो जानो,ध्यान दो
है एक उंगली बाहर जब
बाक़ी तुम्हारीओर इंगित करती हैं
बंद मुट्ठी में अपना अंगूठा देखो
किधर? क्या दिखा रहा है ?
तुम्हारा सच दर्पण उगलेगा
तुम उससे मुंह मोड़ न पाओगे
वही तुम्हें असाली  औकात दिखाएगा
जब भी तुम दर्पण में देखोगे

★★★★★

आदरणीया अनीता सैनी जी
नाम औक़ात रख गया

ज्ञान के गुणग्राही बहुतेरे मिले बाज़ार में,  
 अज्ञानता की ज़िंदगी आँखों में सिमट गयी,   
श्रम-स्वेद सीकर से थे लथपथ चेहरे, 
पाँव थे जिनके कंकड़ कुश कंटक से क्षत-विक्षत,  
सुरुर समाज का उभरा नाम औक़ात रख गया | 


★★★★★

आदरणीया अभिलाषा चौहान जी
औकात


कठिन समय पर ही सदा,लगता है आघात।
मित्र,बंधुवर की सदा,दिख जाती औकात।
दिख जाती औकात,काट वे कन्नी जाते।
संकट में जब जान,फटी वे जेब दिखाते।
कहती अभि निज बात,पता चलता है पल-छिन।
अपनों की पहचान, करा देता समय कठिन।

★★★★★

आदरणीया शुभा मेहता जी
औकात

इक ब्रांडेड जूती बोली
यहाँ रहोगे तो ऐसे
ही रहना होगा दबकर
देखो ,हमारी चमक
और एक तुम
पुराने गंदे ...हा....हा....
फिर एक दिन
पुरानी जूतों की शेल्फ

★★★★★★

और चलते-चलते उलूक के पन्नों से 
आदरणीय सुशील सर
ऐसे में क्या कहा जाय

शब्द के अर्थ ढूँढने
निकल भी लिया जाये
तब भी कुछ भी हाथ
में नहीं आ पाता है
सब कुछ सामान्य सा
ही तो नजर आता है
कोई हैसियत कह जाता है
कोई स्थिति प्रतिष्ठा या
वस्तुस्थिति बताता है
पर जो बात औकात में है


★★★★★★

आज का हमक़दम आपको कैसा लगा?
आप सभी की प्रतिक्रिया उत्साह का 
संचार करती है।
 हमक़दम का अगला विषय
जानने के लिए
कल का अंक पढ़ना न भूलें।

#श्वेता

रविवार, 29 दिसंबर 2019

1626....नव भोर उल्लासित रहे


जय मां हाटेशवरी.....
नव-वर्ष हमसे केवल 2 दिन दूर है.....
नव वर्ष में हर कोई अपने सपनों व आकांक्षाओं को पूरा होता देखना चाहता है.....
हम भी यही कामना करते हैं कि......
आप सभी पाठकों की नव वर्ष में हर इच्छा पूरी हो.....
आने वाले वर्ष में भी,
अब न और कुछ ख़्वाहिश है,
बस आप हर साल हमसे जुड़े रहे,
 यही आपसे गुज़ारिश है।
प्यार अगर सच्चा हो तो कभी नहीं बदलता,
ना नया साल आने पर ना पुराना साल गुज़र जाने पर।
आप सभी को नव वर्ष 2020 की  हार्दिक शुभकामनाए....
अब पेश है....आज के लिये मेरी पसंद।





मैं जिसको उस मोड़ पर ,
क्या कहूं उनसे भी ,
कुछ भी नहीं बदला ,
सिवा इस उम्र की तरह ..........



मारीना त्स्वेतायेवा- लिखने के दौरान 1
धड़क रहा था. इसलिए नहीं कि कहीं वो नापसंद न कर दें बल्कि इस शर्मिंदगी में कि जेएनयू में रुसी विभाग के विभागाध्यक्ष और मारीना का अनुवाद करने वाले इत्ते जानकार
वरयाम जी मेरा मारीना पर लिखा कुछ पढ़ रहे थे...

खुद को बचाये रखना...
लोगों का क्या, वो नफरत लिखेंगे हज़ार तेरी हथेली पर,
तुम बस दिल में बसी मोहब्बत पर भरोसा बचाए रखना
इस रंग बदलती दुनिया में लोगों के वजूद बदलते हैं
तुम खुद के अंदर खुद को बस बचाये रखना...


लघुकथा : निशान अँगूठी का
माँ अंगूठी तो उतार दी ,पर अंगूठी के  इस निशान का क्या करूँ ...

 नव भोर उल्लासित रहे
वरना सच तो
सबका ज़मीर जानता है..

रंग
कोई परेशानी नही रंग लगवाने से मगर क्या आप जानते हो कि होली का मतलब क्या होता है , रंगों का मतलब क्या है फिर थोडा रुक कर बोली- रंग का अर्थ है एक रंग में रंग जाना, समान हो जाना, बाहरी और भीतरी भेद का मिट जाना, क्या आपको लगता है आप अपने मन का हर मैल धो कर हाथ में सच्चाई का रंग ले कर आये हो। आपने आज तक मेरे साथ पिछले सारे दिनों जैसा व्यव्हार किया क्या उस रंग से मुझे रंग कर अपने अभिमान की संतुष्टि कर सकेंगे। मुझे भी पता है प्रेम करना या प्रेम हो जाना गलत नही यह तो ईश्वरीय गुण है मगर प्रेम में ना छल का स्थान है ना बल का, मगर आशक्ति को प्रेम कहना आपका निरा भ्रम है। मै अब आप पर छोडती हूँ कि आपको किसे रंग लगाने की आवश्कता है, मेरे तन को या अपने मन को।
जानती हो मेरी बातें सुन कर पहले तो कुछ क्षण वह मूर्तिवत खडा रहा फिर वो चुपचाप मेरे पैरों के पास सारा रंग रख कर चुपचाप चला गया। मै जानती हूँ अब वो सिर्फ अपने मन की सच के रंग मे रंग रहा है। अब उसे किसी की जरूरत नही। वो अब सच में गिरधारी है। अब उसे किसी रीमा पर आश्क्ति नही होगी।

प्रवाह
यह प्रवाह है उस सरिता का
जो चट्टानों से लड़ती है
आज बस इतना ही......
नव वर्ष आप सभी के लिये मंगलमय हो......
इस आशा के साथ नव वर्ष में फिर मिलेंगे.....
धन्यवाद।

शनिवार, 28 दिसंबर 2019

1625.. आग का छल्ला

ग्रहण पर शायरी के लिए इमेज परिणाम
यथायोग्य सभी को
प्रणामाशीष

खाने/भोजन में तुलसी पत्ता डालकर रखना...
रविवार-मंगलवार को तुलसी पत्ता नहीं तोड़ना...

अंधविश्वास और वैज्ञानिक पलड़े पर तुलता

रिंग ऑफ़ फायर


रिंग ऑफ़ फायर


रिंग ऑफ़ फायर
26 Dec. 2019 को सूर्य ग्रहण खंडग्रास सूर्य ग्रहण

तुकबंदी


धाकड़ बातें
Happy new year shayari in hindi


><
पुन: मिलेंगे2020 नया साल पर शायरी के लिए इमेज परिणाम
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सन 2019 का अंतिम विषय
101 वाँ विषय
औकात
उदाहरण...

वस्तुतः
शब्द आईना ही होते हैं
जो बताते हैं
आदमी की औकात
कि वह कितना
गिरता है..
या गिरे हुए को
उठाता है।
जिसकी तस्वीर
खींचता रहता है
हरदम शब्द रूपी
आईना..
प्रेषण तिथि : 28 दिसंबर
प्रकाशन तिथि : 30दिसंबर

2020 के लिए इमेज परिणाम


शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019

1624....बदलती तारीखों में

शुक्रवारीय अंक में आप सभी का
स्नेहिल अभिवादन।
--------
कलैंडर में बदलती तारीख़ों के हिसाब़ से आज का यह अंक इस वर्ष का अंतिम शुक्रवारीय अंक है।
 कैलेंडर की मात्र तारीख़ ही बदलती है अनवरत चलते कालचक्र पर जीवन के अनिश्चित,अनदेखे,अनजाने रास्तों पर अन्य कोई बदलाव नहीं होता है।
पल स्मृतियों में बदल जाते हैं , परिस्थितियों और सहूलियत के अनुसार रिश्ते बनते और बिगड़ते है।
परंतु जीवन की निराशा, नकारात्मकता, विषमताओं में भी नयी तारीखें आने वाले समय में कुछ अच्छा होगा कहकर धीरे से मुस्काती हैं और संजीवनी-सा संदेश दे जाती हैं।
आइये हम भी आने वाले निर्जीव पलों को अपने कर्मों से छूकर सजीव कर दें।


अनदेखे-अनजाने दिवस के रिक्त पलों में
जाने कौन से पल कब जीवंत हो जायेंगे?
समय के पाँसे जीवन से खेलते हैंं हरपल 
अगले दाँव में 'क्या' प्रश्न ज्वलंत भरमायेंगे
तारीख के पत्थर पे जो गढ पाये पाँव के निशां 
स्मृतियों के संग्रहालय में वही सजाये जायेंगे।
#श्वेता

★★★★★

आइये हम आज की रचनाओं का आनंद लेते हैं-

टुकडे-टुकड़े हो जाते हैं

सर्द है रुत, है सर्द हवा
और सर्द सुलूक तुम्हारा है !
बर्फ से ठंडे अल्फाजों से,
अपने दिल को बहलाते हैं।



झुक कर अंजुलि भर अमृत का भोग लगाना होगा 
वक्त चुराना होगा !

समय गुजर ना जाए यूँ ही 
अंकुर अभी नहीं फूटा है,
सिंचित कर लें मन माटी को 
अंतर्मन में बीज पड़ा है !

कितने रैन-बसेरे छूटे यहाँ से जाना होगा 
वक्त चुराना होगा !

★★★★★★


यह भी ठीक है कि
एक पासे से तुम
सीढ़ी के सहारे
अर्श पे पहुंचा देती हो
तो दूसरे पासे से
सांप के सहारे
फर्श पे

★★★★★★



नयना काजल रेख है ,और बिॅ॑दी है भाल ,
बनठन के गोरी चली ,ओढ़ के चुनर लाल ,
ओढ़ के चुनर लाल , नाक में नथनी डोली ,
छनकी पायल आज , हिया की खिड़की खोली ,
कैसी सुंदर नार , आंख लज्जा का गहना ,
तिरछी चितवन डाल , बाण कंटीले नयना ।।

★★★★★

महकती रही ग़ज़ल

जब भी मेरे ज़ेहन में संवरती रही ग़ज़ल
तेरे ही ख़्यालों से महकती रही ग़ज़ल
झरते रहे हैं अश्क़ भी आँखों से दर्द की
और उंगलियाँ एहसास की लिखती रही ग़ज़ल



पुकारती पगडंडियाँ।
इस ओर फिर कदम बढ़ा।।
माटी को आके चूम लो।
एक बार गांव घूम लो।।
हम अब भी अतिथि को पूजें
हैं ऐसे संस्कार।।

" पर इन आदमियों के समाज में ऐसा नहीं होता। ये इंसान ... इंसान नाम से कम और अलग-अलग लिबासों में हिन्दू ... मुसलमान जैसे नामों से जाने जाते हैं। कोतवाल और वकील के नाम से जाने जाते हैं। सबने अपने-अपने अलग-अलग रंग तय कर रखे हैं - गेरुआ, हरा, सफेद,ख़ाकी और भी कई-कई ... "

हमारे यहाँ कौन शाकाहारी , कौन मांसाहारी या सर्वाहारी है, हम आसानी से इनके खाल के रंगों से पहचान लेते हैं। इनके समाज में पहचानना बहुत ही मुश्किल।

★★★★★★★



आज का यह अंक आपसभी को.कैसा लगा?
आपकी प्रतिक्रिया उत्साहित करती हैं।

हमक़दम का विषय है
औकात

कल की प्रस्तुति पढ़ना न भूले कल आ
रही हैं विभा दी
एक विशेष अंक लेकर।

गुरुवार, 26 दिसंबर 2019

1623...फ़ज़ाओं में दहशत की बू हो और आप प्यार की बातें करेंगे?

सादर अभिवादन। 
फ़ज़ाओं में 
दहशत की बू हो 
और आप 
प्यार की बातें करेंगे?
असीम वेदना से 
कराह उठी है मानवता 
और आप 
साज़िश मक्कारी हेतु 
मुलाक़ातें करेंगे ?

-रवीन्द्र सिंह यादव  

आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें- 


 

क्या बताऊँ बहू जी ! बड़ी लड़की सीमा, चार महीने पहले जिसका ब्याह किया था, ससुराल में सबसे लड़ झगड़ कर वापिस घर गयी है ! मैंने और उसके बापू ने उसे बहुत समझाया लेकिन वापिस जाने को तैयार ही नहीं है ! और पेट से है सो अलग
***** 

shashi purwar 

*जोगिनी गंध**पुस्तक समीक्षा/ डॉ. शैलेंद्र दुबे**कवयित्री के शब्दों में संवेदनाएं जोगन ही तो हैं जो नित नए भावों के द्वार विचरण करती हैं. भावों के सुंदर फूलों की गंध में दीवानगी होती है, जो मदहोश करके मन को सुगंधित कर देती है. साहित्य के अतल सागर में अनगिनत मोती हैं...
 *****




नवोदय साहित्यिक एंव सांस्कृतिक मंच, साउथ सिटी, लखनऊ ने आज 22-12-2019 को, गुलमोहर ग्रीन स्कूल, ओमैक्स सिटी, शहीद पद, रायबरेली, लखनऊ के आडीटोरियम मेंआचार्य ओम नीरव की अध्यक्षता में *नवोदित* कवियों को "राम कुमार सरोज 'अर्जुन सागर' सम्मान" से कु आयुषी पाल,ध्रुव सिंह 'एकलव्य', प्रान्जुल अष्ठाना, संजीत सिंह 'यश', कु सौम्य मिश्र 'अनुश्री', अरुण कुमार वशिष्ठ, सुरेश कुमार राजवंशी, संदीप अनुरागी, श्रीमती पायल भारती, अम्बरीष मिश्र, संजय समर्थ एवंम कु श्वेता को सम्मानित किया गया।
***** 


 
जिस शगल में आपका मिसाल है कायम
हमने वहाँ कभी महारत नहीं माँगी

इस मुल्क के हैं, हर नफ़स देता है शुक्रिया
हमने  कोई हुकुमत--विलायत नहीं  माँगी 
*****



अगर

कोई


अपने
हिसाब
का
सवेरा



अपने
समय
के
हिसाब से



करवाने
का



दुस्साहस
करता है



उनींदे
सूरज को



गिरेबान खींच


ला
कर
रख देना

***** 

हम-क़दम का नया विषय
*****

आज बस यहीं तक 
फिर मिलेंगे अगले गुरूवार। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

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