सादर अभिवादन।
मैं तुम्हें आज ललकार रहा हूँ
हो सके तो चुनौती उठा लेना,
हैवान नहीं अब इंसान बनो
हो सके तो रोते को हँसा देना।
-रवीन्द्र
आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-
एक बार उन ओठों के कंपन में छुपा रूदन देखो
और कभी उन आँखों में बादल से भरा गगन देखो।
खामोशी के परदे में जब जख्म छुपाने पड़ते हैं
तब ही मन बहलाने को, ये गीत बनाने पड़ते हैं।।
आज सुबह निकले तो आकाश नीला था, वर्षा काफी पहले होकर रुक चुकी थी. आज सफाई कर्मचारी फिर नहीं आया. नैनी ने घर की सफाई की, उसे कुछ मेहनताना देना ठीक रहेगा. दुबली-पतली है और तीन बच्चों को संभालने व घर का काम करने में दिन भर लगी रहती है. बारह बजने वाले हैं, जून अभी तक नहीं आये हैं. आज उसने गोभी वाले चावल बनाये हैं, जो कल शाम वे लाये थे. शिलांग की गोभी, मई के महीने में. दस दिनों बाद उन्हें भूटान की यात्रा पर निकलना है.
बिखरे शब्द जंगल के रास्ते शहर की धूप भरी सड़को पर पहचाने गये लाल स्याही से गोले लगाए जाने लगे.....
बंदिशें भूल गई थी मात्राओं का खेल निराला है इसलिए राजा है तभी न उसकी नीति व अनीति का साया है।
पलाश तो स्वच्छंद उगता है.... इसलिए जंगल मे ही फलता फूलता है...जंगल मे शब्द नही होते सिर्फ ध्वनि होती है,हर राजा कहां समझ पाता है हर ध्वनि गुरुत्वाकर्षण का भेदन नही करती....।
चांदबाग, आज जहां दून स्कुल है, वहां 1878 में अंग्रेजों द्वारा स्थापित ब्रिटिश इंपीरियल फॉरेस्ट स्कूल को 1906 में इंपीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट का रूप प्रदान किया गया था। फिर 1923 में आज के विशाल भूखंड पर सी.जी. ब्लूमफील्ड द्वारा निर्मित एक नई ईमारत में 1929 में इसका स्थानांतरण कर दिया गया। जिसका उद्घाटन उस समय के वायसराय लॉर्ड इरविन द्वारा किया गया था।
वो कहते हैं न कि -" शामें कटती नहीं और साल गुजर जाते हैं ",देखें न ,कैसे एक साल गुजर गया पता ही नहीं चला,हाँ आज मेरे ब्लॉग के सफर का एक साल पूरा हो गया। कभी सोचा भी नहीं था कि मैं अपना ब्लॉग बनाऊँगी ,ब्लॉग की छोड़ें कभी कुछ लिखूँगी ये भी नहीं जानती थी ,हाँ कुछ लिखने के लिए हर पल दिल मचलता जरूर था।
इस दौर का देशकाल,
प्रगति की उड़ान से पर अपने कुतरने लगा,
ग्लेशियर-से पिघलते आदर्श,
पतन के पूर्ण कगार पर बैठ,
सुनामी-सी महत्वाकांक्षा में डूबने लगा |
मैं1503 का एक अनसुलझी रहस्य,
मेरी मुस्कान में विलुप्त कुछ भी नहीं,
तुम आज भी अपने ही सवालों के घेरे में,
अपनी अंतरात्मा को कोसते हुए,
विकल्प तलाशते हो,
परंतु मेरी स्थिर मुस्कान,
कई शताब्दियों तक भी यों ही क़ाएम रहेगी।
हम-क़दम का नया विषय
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले गुरूवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
व्वाहहहह
जवाब देंहटाएंइतनी ठण्ड मे सोते से जगा दिया
भाग गई ठण्ड
बढ़िया प्रस्तुति
सादर
सराहनीय प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंवाह!!रविन्द्र जी ,बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएं.. बहुत ही अच्छी संकलन आपने तैयार की है
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को भी मान देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद
विभिन्न रसयुक्त रचनाओं की बेहतरीन प्रस्तुति मित्र ,मेरी रचना को स्थान देने का शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंलाजवाब!!!!
जवाब देंहटाएंआभार !
जवाब देंहटाएंऐसे ही स्नेह बना रहे
रोते हुए को हँसाने की कला जिसने सीख ली वही जीवन के मर्म को जान पाता है. पठनीय रचनाओं से सजी हलचल में शामिल करने हेतु आभार !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति सर ,मेरी ख़ुशी को सभी के साथ साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया एवं आभार आपका सादर नमन
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति सर. मेरी रचना का मान बढ़ाने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंसादर
छोटी बहन का intestinal obstruction का परसों देर रात आपरेशन हुआ। व्यस्तता के कारण देर से मेल देखा। मेरी रचना को पसंद करने और मंच पर लाने हेतु तहेदिल से आपका शुक्रिया रवींद्र जी। बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
हटाएंआपकी छोटी बहन जी के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना. उन्हें एक बड़ी शल्यक्रिया से गुज़रना पड़ा है. हम सबकी दुआएँ साथ हैं.
शुक्रिया रवींद्रजी
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