शुक्रवारीय अंक में
आप सभी को स्नेहिल अभिवादन
--------
हम भारत के आम नागरिक अपने अधिकारों के प्रति बेहद सजग होते हैं इतने सजग होते है कि आक्रोश व्यक्त करने के लिए अपनी राष्ट्रीय संपत्ति का सबसे पहले नुकसान करते हैं। किसी भी मुद्दे पर विरोध-प्रदर्शन का सबसे सहज तरीका है अपने खून-पसीने की कमाई से अदा किये गये आयकर से बनी राष्ट्रीय संपत्ति को तोड़ना-फोड़ना,जलाना पत्थरबाजी करना। गाँधी जी के सत्याग्रह का बल आज मानो मात्र पाठ्यपुस्तक की धरोहर ही है या सभाओं में तालियाँ बटोरने के लिए कहा जाने वाला सबसे प्रसिद्ध वाक्य। यह देश हमारा घर है क्या हम जब अपने परिवार से किसी बात पर लड़ते हैं तो अपने घर में आग लगा देते हैं?
कभी सोचियेगा अपने कर्तव्यों प्रति हम कितने सजग है?
आक्रोश से युद्ध जीते जा सकते हैं समस्या का समाधान नहीं हो सकता है।
-----
आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं
★★★★★
भ्रूण को
पैदा होने से
पहले ही
शहीद
कर दिया जाये
महिमा मण्डित
करने के लिये
परखनली
में
पैदा की गयी
कल्पनाएं
★★★★★★
फ़ासले
क़ुर्बतों में बदलेंगे
एक रोज़,
होने नहीं देंगे
हम
इंसानियत को
ज़मीं-दोज़
★★★★★
है लाक्षागृह में लपट उठी,
पक्षों में दोनों अधर्म खड़ा,
विदुरों का धर्म वनवास गया।
शांति का ना कोई दूत यहाँ,
कुरुक्षेत्र हुआ अंधकूप यहाँ।
क्या राष्ट्रप्रेम का शोर है?
ये क्षण का बस ढोंग है।
★★★★★
शरीर है किसी और का, आत्मा है किसी और का
कठपुतली बन गया ज्ञान...,अभी मत तू ये जान!!
ओ...ओह!! अल्हड़ है अभी तुम्हारा ज्ञान...
ये तुम्हारा समर नहीं, ‘अगर-मगर’ वाला भ्रम है।
स्वर्णिम आभा-सा दमकता दुस्साहस,
लोकतंत्र में भंजक-काष्ठवत का लिये स्वरुप,
जिजीविषा की उत्कंठा से अपदस्थ,
कालचक्र पर प्रभुत्त्व की करता वह पुकार,
समेटने में अहर्निश है वह मग्न,
वक़्त की धुँध में धँसाता कर्म का धुँधला अतीत,
स्वयं को कर परिष्कृत |
★★★★★
भारत में ब्रितानी साम्राज्य का तिमिर काल
किन्तु, महज़ इन असफलताओं की बुनियाद पर निस्संदेह हम ब्रितानी हुकूमत को उनके अतीत के काले कारनामों से न तो बरी कर सकते है और न ही हमारे शासकों की अकर्मण्यता के अंगोछे से ब्रिटिश कलंक को पोंछा जा सकता है. दीगर है कि आप बीस से भी अधिक दशकों के शोषण से दहकते घाव को छः सात दशकों में तो नहीं ही भर सकते. इतिहास के भिन्न भिन्न कालखंडो का मूल्यांकन भी उस काल की अपनी विशिष्टताओं और परिस्थितिजन्य कालगत विलक्षणताओं के विस्तार में ही किया जा सकता है. फौरी तौर पर ब्रितानी हुकूमत अतीत के अपने काले औपनिवेशिक कारनामो से मुंह नहीं मोड़ सकती और उसे प्रायश्चित का मूल्य चुकाना ही पड़ेगा. चाहे, वह सांकेतिक तौर पर २०० वर्षों तक एक पौंड प्रति वर्ष की दर से ही क्यों न हो!
★★★★★
भारत में भी इसका भावान्तर रूप सहर्ष बिना भेद भाव किए अपनाया गया। मध्यप्रदेश के रहने वाले गिरिजा कुमार माथुर जी , जो स्वयं स्कूल-अध्यापक थे, ने इसका हिन्दी अनुवाद किया था। इस तरह यह भावान्तर-गीत एक समूह-गान के रूप में प्रचलित हो गया। हमारे रगों में रच-बस गया। तब से अब तक बंगला ( "आमरा कोरबो जॉय..." ) के साथ-साथ कई सारे भाषाओं में रूपांतरित किया जा चुका है। कहते हैं कि उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार के साथ-साथ व्यास सम्मान, शलाका सम्मान से भी सम्मानित किया गया था। उन्हें साहित्य और संगीत से लगाव था। उन्होंने कई कविताएँ भी रची थी। कहते हैं कि वे एक लोकप्रिय रेडियो चैनल - विविध भारती के जन्मदाता थे।
★★★☆★★★
आज का अंक आपको कैसा लगा?
आपकी प्रतिक्रियायें उत्साह बढ़ा जाती है।
हमक़दम का विषय है-
न्याय
कल की प्रस्तुति पढ़ना न भूले कल आ रही है विभा दी
एक विशेष अंक लेकर।
उव्वाहहहहह...
जवाब देंहटाएंमन प्रसन्न हुआ..
यकीनन बेहतरीन प्रस्तुति..
सादर..
बेहतरीन भूमिका के संग शानदार प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत-बहुत आभार आपका श्वेता दी।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना के शब्दों और इसके विचार को अत्यधिक पाठकों तक पहुंचाने मेरी सहायता करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअपने घर में भला कोई आग लगाता है, या अपने बच्चों की बस पर पत्थर फेंकता है। बच्चन जी ने इनके लिए ही कहा था, 'शेरों की मांद में आया आज स्यार
जवाब देंहटाएंजागो फिर एक बार।'
सुंदर प्रस्तुति की बधाई और आभार।
बहुत उम्दा कलेक्शन श्वेता जी
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सारगर्भित भूमिका श्वेता दी.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाएँ. मुझे स्थान देने के लिये तहे दिल से आभार
सादर
वाह बेहतरीन रचनाओं का संगम ।बहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआभार श्वेता जी।
जवाब देंहटाएं