निवेदन।


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सोमवार, 11 दिसंबर 2023

3971 ..आपकी आँखों में हमारा आसमान हँसता हुआ दिख रहा है।

 सादर अभिवादन

दो सप्ताह और
फिर जनवरी 2024 लिखेंगे
रचनाएं देखें ..



उसके जीवन में बहार जैसी रागिनी, पहले से जो थी। वकील को धन्यवाद कह, आनंदी बेटी के साथ चलकर गाड़ी में बैठ गई, सालों की ज़िल्लत आँखों से बहती कि, बेटी ने माँ की आँखों में निहारा, बोली....

“माँ! आपकी आँखों में हमारा आसमान हँसता हुआ दिख रहा है।"



माह दिसंबर  आ  गया,ठंड  हुई   विकराल।
ऊपर  से  करने  लगा,सूरज  भी  हड़ताल।।

चौराहे  के  मोड़  पर,जलता  हुआ  अलाव।
नित्य विफल करता रहा,सर्दी का हर दाव।।




उन्हें रोटी में उलझाए रखना
मुंह खोलें तो
जाति पांती में भुलाए रखना
वाद विवाद करता है
उसे हास्य का पात्र बनाए रखना




दिल में हमारे रह कर तो देखो।
छोटी जगह में बड़ा घर तो देखो।।

हम तो मुंतज़िर हैं जाने कब से।
उठाओ नज़रे, ज़रा इधर तो देखो ।।




अशोक
पथरी सूजन दर्द को, करता दूर अशोक।
महिला रोगों के लिए,नाम बड़ा इस लोक ||

नीम (निम्ब)
नीम गुणों की खान है, सहज करो सब प्राप्त।
अमृत तुल्य ये पेड़ है, भारत भू पर व्याप्त ||

           
आज बस
कल फिर मिलिएगा सखी श्वेता से
सादर

रविवार, 10 दिसंबर 2023

3970 ..तुझे यह भोजन खाना पड़ेगा, नहीं तो गोली खानी पड़ेगी

 सादर अभिवादन

वीरनारायण सिंह शहादत दिवस

रचनाएं देखें



मौन है,मंढे
मरु कणिका चंचला चंद्र प्रिया
है,अति व्यग्र
नित नई उपमाएँ लिए कविता
है,गढ़े।




कोशिश में कमी होनी न चाहिये
प्रयत्न करते रहना चाहिए
पूरी शिद्दत से |
है  जीवन एक जटिल पहेली
नहीं आसान इसे हल करना
इसको हल करने में
जीवन बीत जाएगा  |





अब तुम ही सबसे पहले यह भोजन खाओगे। वह जिद्द पर अड़ा रहता है, मैं यह भोजन नहीं खाऊंगा, किसी कीमत पर नहीं खाऊंगा। डाकूओं का शक ओर गहरा हो जाता है। वे बंदूक की नोक उसके सिर पर रखकर कहते हैं तुझे यह भोजन खाना पड़ेगा, नहीं तो गोली खानी पड़ेगी।

वह व्यक्ति भोजन कर रहा होता है और साधु को याद करते करते आंसू उसकी आँखों से बह रहे थे। उसने कहा था कि मेरा निश्चय है कि राम नाम जप लेगा तो राम तुझे भोजन भी देंगे। उसके भोजन करने के बाद डाकूओं ने उसे छोड़ दिया। अब उसे विश्वास हो गया कि बंजारों को और डाकुओं को राम जी ने ही भेजा है। वह सीधा साधू की कुटिया में चला गया और जा कर उनके चरणों में प्रणाम किया और उन्हें सारा वृतांत सुनाया। अब उस साधु से भी ज्यादा उसे राम नाम की लगन लग गई। उसने अपना पूरा जीवन राम जी को समर्पित कर दिया..!!



पर सीखना और
मेहनत करना तो है न
या जो मुख्य कलाकार
या खिलाडी हैं
उनका हर पल ध्यान रखना
कभी-कभार स्वार्थवश
ये सोच भी आती है
शायद किसी को चोट लग जाए
तो नंबर मेरा आ जाए




मैने ये खबर पढ़ी तो मुझे बहुत हँसी आयी । मैने कहा कुछ पिता और पति घर से बाहर काम पर जाते ही भूल जातें की मेरे बीबी बच्चे भी हैं । कुछ दोस्तो के साथ गोवा के चार दिन के टूर पर भूल जातें हैं की बाल बच्चेदार हैं । थाईलैंड घुमने गयें अधेड़ तो अपनी ऊमर भूल जाते हैं ।

लेकिन एक महिला शायद दुनियां की सब चीज छोड़ दे भूल जायें लेकिन अपने बच्चो की फिक्र करना नही छोड़ सकती उसे भूल नही सकती । भले उसे कल्पनाओं से परे की चीज मिल गयी हों सुखी जीवन मिल गया हो ।

अब सुन रहीं हूं पाकिस्तान गयीं अंजु अपने बच्चो को लेने वापस आयीं हैं । इसके पहले पाकिस्तान की सीमा  ने ज्यादा समझदारी दिखायी थी ।  जब बिना बच्चों के नेपाल आयीं तब भारत नही आयीं । वापस पाकिस्तान जा कर अपने बच्चों को लेकर भारत आयीं।






माँ तुम बदल गयी हो....मनु ने बड़े प्यार से मुझे अपनी बाँहों में पकड़ते हुए कहा। अच्छा....कैसे बदली लग रही हूँ.....तुम्हे डांट नहीं लगा रही हूँ इसलिए। वो हँसकर थोड़ी इतराते  हुए बोली -अरे नहीं यार, मुझे पता है अब मैं बड़ी हो गयी हूँ और थोड़ी समझदार भी इसलिए....तुम मुझे नहीं डांटती.....मैं तो ये महसूस कर रही हूँ कि-तुम अब पहले से शांत हो गई हो,ना गुस्सा ना किसी बात पर रोक-टोक करना , ना किसी बात की चिंता-फ़िक्र करना,मैं जो भी कहती हूँ बिना सवाल किये "हाँ "कह देती हो सच कहूं तो अब तुम मुझे बच्ची सी प्यारी-प्यारी लगने लगी हो।


चलते- चलते...


संगदिल हैं लोग क्या समझेंगे मेरी आशिकी 
फेर लेते मुंह ज़रूरतमंद से जो राह में .

एक लम्हा भी बहुत है डूबने को इश्क में
ढूंढते हो क्या ना जाने इतने सालों माह में

           
आज बस
कल फिर मिलिएगा मुझसे
सादर

शनिवार, 9 दिसंबर 2023

3969...नाखून हों से मतलब नहीं खबर जहरीली होनी ही चाहिए...

शीर्षक पंक्ति: डॉ.सुशील कुमार जोशी जी की रचना से। 

सादर अभिवादन। 

शनिवारीय अंक में आज की पसंदीदा रचनाओं के साथ हाज़िर हूँ। 

जूते फटे भी रहें तब भी कुछ पालिश तो होनी ही चाहिए

दुकाने खोली हुई किसी की भी हों खुली रहनी भी चाहिए
जमीर हो कहीं भी रखा हुआ किस्मत धुली होनी ही चाहिये

नोचने का जज्बा जरूरी है उंगलियाँ खडी होनी भी चाहिए

नाखून हों से मतलब नहीं खबर जहरीली होनी ही चाहिए

शायरी | दरमियां | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

दरमियां रात  चली  आई  है

सुब्ह होने दो, मिलेंगे फिर से

मौसम का हाल

 चलो ...अपनी भावनाओं को 
     मौसम मान लो ...
      फिर सोचो ......
      सोकर उठे तो मौसम  साफ,
      मन शांत, प्रसन्न.....
        पर एक घंटे बाद....
        मौसम विभाग  की सूचना...
        भारी बरसात, तूफान...

७४६.चाँद


कौन सा चाँद पहले डूबेगा,

जो झील में है वह

या जो झील के बाहर है वह?

या दोनों एक साथ डूबेंगे?

व्यामोह (कहानी)

भारी मन से अर्जुन ने निर्णय लिया कि विभा को अपने माता-पिता के घर वापस चले जाना चाहिए। अलगाव आंसुओं और दिल के दर्द से रहित नहीं था, लेकिन यह अर्जुन के लिए उपचार का अपना रास्ता खोजने का एकमात्र तरीका था। विभा ने बच्ची को खूब प्यार किया और भारी मन से दोनों से विदा ली।

*****

फिर मिलेंगे।

रवीन्द्र सिंह यादव

शुक्रवार, 8 दिसंबर 2023

3968.....नहीं दिखते ज़ख़्म....

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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बारिश के मौसम में बारिश न हो तो 
शिकायत करते हैं 
सूखे से बेहाल नदियों के ओठ
बूँद-बूँद पानी को तरसते हैं
शहरों का तापमान बेहिसाब
पसीने में नहाये लू से तड़पते है
और ... जब.. 
चार घंटे की बारिश मूसलाधार
बहाने लगती है ज़िंदगी निर्ममता से
मैदान, पहाड़, झील, नदी एकाकार
लाल सैलाब मचाता  हाहाकार
पूछते हैं बादल,
धरा की छाती किलसती है
मनुष्य तुमने अपने घर सुंदर बनाने 
के लिए जीवनदायिनी
 बगिया का
ये क्या हाल बना डाला...?#श्वेता
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आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-

विचारों का कोई 
फॉग-लैम्प,
टकराती हैं भावनाऐं
एकांतिक अंधेरी सुरंग में
छल-कपट के
छोटे-बड़े वाहनों से,
फूटते हैं उम्मीदों के कांच
भोथरी किरचें करती हैं चोट
पर नहीं दिखते जख़्म


एक प्रेम होता है अन्जाना सा
बन्धन ही है जिसके प्रारब्ध का अवलम्ब
जो घटित होता है धीरे-धीरे
और परिपक्व होता है
समय की कसौटी और
आँच पर

मोल नहीं खटकता 
जीवन का तब 
नजरअंदाज करते हैं हम 
कितनी आदमियत
बची है आदमी में

वो तो तब खटकता है 
जब सुख जाते हैं कुएँ 
धरती तपती देह लेकर रोती हैं 
मर जाती है पुतलियाँ मछलियों की



इतना छोटा सा उसका बच्चा था हमने कहा हम एकदम किनारे बैठ जातें है आपका बच्चा आराम से एक तरफ सो सकता है । इस पर वो एकदम ही बत्तमीजी पर उतर आया और तेज आवाज मे बोलने लगा। 
बोला देखने मे आप तो पढ़ी लिखी लग रही है आपको समझ नही आ रहा है कि सीट मेरी है । मै बच्चे को सुलाने जा रहा हूं उसके पैर से आपको चोट लगेगा तो मै नही जानता । 


इसके कथानक में भी फ़िल्मकार (राकेश ओमप्रकाश मेहरा) ने कुछ ऐसे ही युवा दिखाए हैं जो मौज-मस्ती के अतिरिक्त जीवन का कोई अर्थ, कोई मूल्य नहीं समझते। देश-प्रेम जैसी बातें और देश की स्वाधीनतार्थ अपना सब कुछ बलिदान कर देने वाले अमर शहीदों की कथाएं तो उनके लिए मानो किसी अपरिचित भाषा की उक्तियां हैं। ऐसे में एक विदेशी युवती अपने स्वर्गीय पिता की दैनंदिनी (डायरी) के आधार पर मातृभूमि के हित अपना प्राणोत्सर्ग करने वाले कतिपय क्रांतिकारियों पर एक वृत्तचित्र बनाने हेतु आती है। उसके पिता एक अंग्रेज़ अधिकारी थे जो माँ भारती की दासता की बेड़ियां काटने के लिए हँसते-हँसते फाँसी पर झूल जाने वाले क्रांतिकारियों के निकट सम्पर्क में रहकर उनसे बहुत प्रभावित हुए थे तथा उनकी गाथा ही उन्होंने लेखबद्ध की थी (ऐसे अनेक अंग्रेज़ अधिकारी वास्तव में थे जो देशभक्तों के अदम्य साहस, मातृभूमि पर मर-मिटने की उनकी भावना तथा उनके उदात्त विचारों से अत्यन्त प्रभावित हुए थे)। 
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आज के लिए इतने ही
मिलते हैं अगले अंक में
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गुरुवार, 7 दिसंबर 2023

3967 ..मेचोंग तूफान आया हुआ है सभी तरफ जल-जल है

 सादर अभिवादन

मेचोंग तूफान आया हुआ है
सभी तरफ जल-जल है
हवा में नमी है, ठण्ड भी बढ़ी हुई है
और 
आज भाई रवीन्द्र जी व्यस्त हैं

रचनाएं देखें



जीवन दे उपहार अनोखे
अपनी ही झोली क्यों ख़ाली,
सब दे कर भी कभी न चुकता
क्यों दिल की साँकल उढ़का ली !




क्योंकि इस दुर्दिंन समय में
कागज़ गिरवाये शब्दों से
अधिक जरूरी है,
दबती न्याय की पूकार पर
तुम्हारा पेपरवेट बनना




मैंने चाहतों की सारी उम्मीदे छोड़ दी
खुश रहने लगा हूँ जबसे उम्मीदे छोड़ दी
यूँ ज़िन्दगी को अक्सर जिया हूँ मैं
गरजती बारिशों में भी सूखा रहा हूँ मैं





आकाशवाणी क्लब, पटना में मेरे काव्य संग्रह ' किलकारी ' का लोकार्पण समारोह संपन्न हुआ.
साहित्य और समाज के प्रति जागरूक करती संस्था  ' लेख्य मंजूषा ' के तत्वावधान में आयोजित इस समारोह का संचालन संस्था की अध्यक्ष डा विभा रानी श्रीवास्तव ने किया और धन्यवाद ज्ञापन प्रवीण ने किया। अध्यात्म, जीवन दर्शन, प्रकृति दर्शन, प्रेमिल भावोच्छवास, माटी की सुगंध, समसामयिक समाज और  शीर्षक रचना में वर्गीकृत यह संग्रह देश के बच्चों को अपनी परंपरा, संस्कार और मूल्यों से जोड़ने का प्रयास है।




कोकिल कुहुक कूजती कानन
किसलय कोपल कुसुमित कुञ्जन
साँझ सुशोभित सज्जित सुंदर
स्वर संगीत सुमृदुल सुहावन
अंबुद अमिय अनंदित अतुलित
अभिसिंचित अभिनंदन

           
आज बस
कल मिलिएगा सखी श्वेता से
सादर

बुधवार, 6 दिसंबर 2023

3966 ..सर्दियाँ तब भी थी जो बेहद कठिनाइयों से कटती थीं

 सादर अभिवादन

आज छत्तीसगढ़ मे सत्ता पलट गई
नए मुख्य मंत्री की घोषणा होने को है
सनातनी लोग आ गए ....
.....
शादी में गोरखपुर आई हूं।
प्रस्तुति इस बार देख लीजिएगा
-पम्मी सिंह
रचनाएं देखे ...  



भले आप रोज ना लिखें
एक पन्ना कहानी का
एक पंक्ति कविता
एक अध्याय उपन्यास




बहुत कुछ हो कर भी कुछ भी न था 
हमारे दरमियां, चंद लफ़्ज़ों का था अफ़साना,
उम्र भर खोजते रहे जिसका उन्वान,
दूर रह कर भी बहुत गहरी थीं
दिल की नज़दीकियां ।




जहाँ बस प्रेम है द्वेष न राग
जहाँ हर मौसम होली ,फाग ,
जहाँ फूलों में इत्र सुवास
जहाँ उद्धव जी का परिहास ,
जहाँ संतो का सुख हरिनाम
वही है वृन्दावन का धाम |

                                                   



किनारा उसकी आँचल ओढ़नी छाँव का l
इबादत सजी पतित पावनी गंगा साज का l

नीलाम्बर उमंगों प्रार्थना सजी भाव का l
अर्ध आकार जिसमें निश्चल प्रेम साज का l




मुझे  छंदों का ज्ञान नहीं
ना ही मुझे मीटर का बोध
कभी बड़ी कमी लगती है
लेखन मैं  परिपक्वता आई नहीं




सर्दियाँ तब भी थी
जो बेहद कठिनाइयों से कटती थीं,
सर्दियाँ आज भी हैं,
जो आसानी से गुजर जाती हैं.

           
आज बस
कल मिलिएगा रवीन्द्र भाई से
सादर

मंगलवार, 5 दिसंबर 2023

3965......अपनी ही पैर पर.कुल्हाड़ी मारना....

 मंगलवारीय अंक में आप
सभी का स्नेहिल अभिवादन।
---------
गुनगुनी किरणों का
बिछाकर जाल
उतार कुहरीले रजत 
धुँध के पाश
चम्पई पुष्पों की ओढ़ चुनर 
दिसम्बर मुस्कुराया...।

शीत बयार 
सिहराये पोर-पोर
धरती को छू-छूकर
जगाये कलियों में खुमार
बेचैन भँवरों की फरियाद सुन
दिसम्बर मुस्कुराया...।#श्वेता


आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-
कैसे-कैसे मैं खुद को बदल रही हूँ 
कहाँ पता था तुम ऐसे बदल जाओगे 
थी बेफ़िक्र तुम्हारे साथ रहने से 
अब ख़ौफ़ज़दा हूँ माहौल बदल जाने से। 

कैसे-कैसे मैं खुद को बदल रही हूँ 
ज़िन्दगी खिलती हुई धुप थी 
अब मैं कबसे ढलती सांझ को निहार रही हूँ 
सुबह और शाम में कम हो रहा है फासला। 

बिन शीशे का आईना...

ए रौशनी का क्या करूं जब
गहरा दर्द वक़्त के साथ
कब का भर चुका,
कहने को उम्र 
ए क़ाफ़िला 
कब का 
गुज़र 
चुका ।



याद कर लो धूप में वे 

छा गए थे छाँव बनकर।

घेरकर चारों तरफ़ से

एक सुंदर गाँव का घर।

गाँव में वो घर औ घर में

माँ से लिपटे थे हुए,

बस उन्हीं कोमल मनोभावों

को सुंदर प्यार को॥




उनका नाम मोबाइल माई
उनकी ऐसी गज़ब ढिठाई
यौवन और बुढ़ापा बचपन
एक तरफ से सबको खाई
 
चौबीस घंटे नेट खाती है.
रिश्तों का जीवन खाती है .
रोता है जब समय बेचारा
धीरे से  हँसकर गाती है


बस !... बस कर ! अपनी सीख अपने ही पास रख ! चाहती क्या है तू ?  हैं ?....यही कि इसका जीवन भी तेरी तरह नरक बन जाय ? डरपोक कहीं की ! खबरदार जो मेरी बेटी को ऐसी सीख दी  ! जमाना बदल गया है अब । अब पहले की तरह ऐसे किसी की गुलामी करने का जमाना नहीं रहा ।  पति हो या सास - ससुर,  किसी से भी दबने की जरुरत नहीं है इसे !  समझी" !


---
आज के लिए इतना ही
फिर मिलते है 

अगले अंक में।
--------

सोमवार, 4 दिसंबर 2023

3964 ..ये खाते, ये पीते, ये सोते जवां

 सादर अभिवादन

आज छत्तीसगढ़ में सत्ता पलट गई
शुभ कामनाएं
रचनाएं देखे ...  



ये क्या बात है गाँव की सादगी में
के खुश हो रहे हैं हर हाल ही में
ये बेख़ौफ़ नज़रें, ये उन्मुक्त राहें
हमें कह रही हैं कहाँ दुख बता




सूखे पीले पत्ते बिछे सारी  राह में
हवा के साथ में  बह चले
धूल धक्कड़ होती  चारो ओर
वहां खड़े रहना होता मुश्किल |
पतझड़ का मौसम बड़ा अजीब  लगता
सूखी डालियाँ नजर आतीं
वन वीरान होते जाते




देखते-देखते भोपाल गैस त्रासदी के 39 बरस बीत गए।हर वर्ष तीन दिसंबर गुजर जाता है और उस दिन मन में कई सवाल उठते हैं, जो अनुत्तरित रह जाते हैं। हमारे देश में मानव जीवन कितना सस्ता और मृत्यु कितनी सहज है, इसका अनुमान उस विभीषिका से लगाया जा सकता है, जिसमें हजारोें लोग अकाल मौत के मुँह में चले गए और लाखों लोग प्रभावित हुए। वह त्रासदी जहाँ हजारों पीडि़तों का शेष जीवन घातक बीमारियों, अंधेपन एवं अपंगता का अभिशाप बना गई तो दूसरी ओर अनेक घरों के दीपक बुझ गए। न जाने कितने परिवार निराश्रित और बेघर हो गये, जिन्हें तत्काल जैसी सहायता व सहानुभूति मिलनी चाहिए थी, वह नहीं मिली।




ख़ुद से जो हुआ प्रेम तो छोड़ा नहीं गया.
इक आईना था हमसे जो तोड़ा नहीं गया.

बेहतर तो यही होगा के खुद को समेट लें,
पथ तेज़ बवंडर का जो मोड़ा नहीं गया.

यह इश्क़ अधूरा ही न रह जाए उम्र भर,
नदिया को समुन्दर से जो जोड़ा नहीं गया.

आज बस
कल मिलिएगा सखी श्वेता से
सादर
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