सादर अभिवादन
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...

निवेदन।
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सोमवार, 11 दिसंबर 2023
3971 ..आपकी आँखों में हमारा आसमान हँसता हुआ दिख रहा है।
रविवार, 10 दिसंबर 2023
3970 ..तुझे यह भोजन खाना पड़ेगा, नहीं तो गोली खानी पड़ेगी
सादर अभिवादन
शनिवार, 9 दिसंबर 2023
3969...नाखून हों से मतलब नहीं खबर जहरीली होनी ही चाहिए...
शीर्षक पंक्ति: डॉ.सुशील कुमार जोशी जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
शनिवारीय अंक में आज की पसंदीदा रचनाओं के साथ हाज़िर हूँ।
जूते फटे भी रहें तब भी कुछ पालिश तो होनी ही चाहिए
शायरी | दरमियां | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
कौन सा चाँद पहले डूबेगा,
जो झील में है वह
या जो झील के बाहर है वह?
या दोनों एक साथ डूबेंगे?
भारी मन से अर्जुन ने निर्णय लिया कि विभा को अपने माता-पिता के घर वापस चले जाना चाहिए। अलगाव आंसुओं और दिल के दर्द से रहित नहीं था, लेकिन यह अर्जुन के लिए उपचार का अपना रास्ता खोजने का एकमात्र तरीका था। विभा ने बच्ची को खूब प्यार किया और भारी मन से दोनों से विदा ली।
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
शुक्रवार, 8 दिसंबर 2023
3968.....नहीं दिखते ज़ख़्म....
शिकायत करते हैं
सूखे से बेहाल नदियों के ओठ
बूँद-बूँद पानी को तरसते हैं
शहरों का तापमान बेहिसाब
पसीने में नहाये लू से तड़पते है
और ... जब..
चार घंटे की बारिश मूसलाधार
बहाने लगती है ज़िंदगी निर्ममता से
मैदान, पहाड़, झील, नदी एकाकार
लाल सैलाब मचाता हाहाकार
पूछते हैं बादल,
धरा की छाती किलसती है
मनुष्य तुमने अपने घर सुंदर बनाने
ये क्या हाल बना डाला...?#श्वेता
बन्धन ही है जिसके प्रारब्ध का अवलम्ब
जो घटित होता है धीरे-धीरे
और परिपक्व होता है
समय की कसौटी और
आँच पर
मिलते हैं अगले अंक में
गुरुवार, 7 दिसंबर 2023
3967 ..मेचोंग तूफान आया हुआ है सभी तरफ जल-जल है
सादर अभिवादन
मेचोंग तूफान आया हुआ है
सभी तरफ जल-जल है
हवा में नमी है, ठण्ड भी बढ़ी हुई है
और आज भाई रवीन्द्र जी व्यस्त हैं
बुधवार, 6 दिसंबर 2023
3966 ..सर्दियाँ तब भी थी जो बेहद कठिनाइयों से कटती थीं
सादर अभिवादन
मंगलवार, 5 दिसंबर 2023
3965......अपनी ही पैर पर.कुल्हाड़ी मारना....
कहाँ पता था तुम ऐसे बदल जाओगे
थी बेफ़िक्र तुम्हारे साथ रहने से
अब ख़ौफ़ज़दा हूँ माहौल बदल जाने से।
कैसे-कैसे मैं खुद को बदल रही हूँ
ज़िन्दगी खिलती हुई धुप थी
अब मैं कबसे ढलती सांझ को निहार रही हूँ
सुबह और शाम में कम हो रहा है फासला।
याद कर लो धूप में वे
छा गए थे छाँव बनकर।
घेरकर चारों तरफ़ से
एक सुंदर गाँव का घर।
गाँव में वो घर औ घर में
माँ से लिपटे थे हुए,
बस उन्हीं कोमल मनोभावों
को सुंदर प्यार को॥
सोमवार, 4 दिसंबर 2023
3964 ..ये खाते, ये पीते, ये सोते जवां
सादर अभिवादन