निवेदन।


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सोमवार, 5 जून 2023

3779....विश्व पर्यावरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ

जय मां हाटेशवरी....
इस रास्ते में जब कोई साया न पाएगा ये आख़िरी दरख़्त बहुत याद आएगा
आज विश्व पर्यावरण दिवस है.....
पानी की कीमत हम तब तक नहीं समझ पाए,
जब तक कि वह बोतलों में बिकने न लगा,
ऑक्सीजन की कीमत तब तक नहीं समझ पाए,
जब तक कि इसका लेवल कम न हो गया
और ये भी डब्बों में बिकने लगा…
स्वच्छ और शुद्ध पर्यावरण की कीमत को समझे,
अन्यथा इसके भयंकर परिणाम हो सकते हैं.
विश्व पर्यावरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ
अब पढ़िये आज के लिये मेरी पसंद.....

किससे शर्म है s2160/BB5B64E6-F4F0-455B-8D16-9C1B085F7F98
कुछ तुम भुला देना ख़ताएँ,कुछ हम भी भुलाएंगे ,
रिश्ते की टूटती साँसों में,नए प्राणों को बसाएंगे ,
जब लड़ने में न थी झिझक,तो मिलने में कैसी है?
ये किसकी है परवाह तुम्हें,और किससे शर्म है?

जिन्दगी ! समझा तुझे तो मुस्कराना आ गया s4080/1685854979087
क्यों कहें संघर्ष तुझको, ये तो तेरा सिलसिला ।
नियति निर्धारित सभी , फिर क्या करें तुझसे गिला ।  
सत्य को स्वीकार कर जीना जिलाना आ गया ।  
जिंदगी !  समझा तुझे तो मुस्कुराना आ गया ।

चाँद निकलने से पहले - - d Non Wired Fu
लहराकर, उड़ चली हों जैसे रंगीन
तितलियाँ पंखों में समेटे
निशिगंधा की सुरभि,
न रहो सीमान्त
की तरह
उदास,
कंटीली झाड़ियों में उलझ कर, कि मैंने
बड़ी चाहत से देखा है तुम्हें शाम
ढलते, ज़िन्दगी मुख़ातिब

आग्नेयगिरि पर गौरेया (डायरी शैली) s1486/20230527_120809
आज छोटी की भी शादी हो गयी। दीदी की शादी 2004 में हो चुकी है। ससुराल से माँगकर ले गयी बहनें मायके के हिस्से का सुख पा रही हैं। दीदी और छोटी दोनों बहनों
की जिम्मेदारी अच्छे से निभा लेने का सुकून है। आसानी से दोनों का पेट भर रहा है
बस! अब अपनी नौकरी से केवल अपनी जिम्मेदारी पूरी करनी है। शादी में आए नकारा चचेरे भाईयों ने संग रहने की इच्छा प्रकट की। सोचना होगा क्या किया जाए। माँ के
दोनों लाड़ले फ़ुर्र हो चुके हैं। जबसे संघ लोक सेवा आयोग में मेरी नौकरी लगी है तबसे मैं पूजनीय हो गयी हूँ। क्या सच में दया का सबसे छोटा कार्य सबसे बड़े इरादे
से अधिक मूल्यवान है!

एक प्रेम गीत -दरपन ही देख रहा सोलह श्रृंगार s617/images%20-%202023-06-03T195304.870
हरे -भरे
मौसम का
रंग बियाबान का,
इत्र -फूल की
खुशबू
रंग चढ़ा पान का,

<धन्यवाद

रविवार, 4 जून 2023

3778...शोक संतप्त परिवारों के प्रति पांच लिंकों का आनंद परिवार की गहरी संवेदनाएं

जय मां हाटेशवरी....
ओडिशा के बालासोर में ट्रेन हादसे की दुखद खबर सुनकर मन बहुत आहत है.....
हादसे में सैकड़ों लोगों की जान चली गई।....
शोक संतप्त परिवारों के प्रति पांच लिंकों का आनंद परिवार की गहरी संवेदनाएं हैं।.....
हमारी ईश्वर से कामना है कि हादसे में घायल हुए लोग जल्द स्वस्थ हों।.....
हादसे की स्वतंत्र जांच करके कारणों का पता लगाकर......
भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके.....
दुखी मन से पेश है आज के लिये मेरी पसंद......

हिंदुओं को मृत्यु उपरांत RIP शब्द को इस्तेमाल नहीं करना चाहिए
R.I.P (Rest in Peace) का अर्थ हिंदी में कहूं तो शांति से आराम करो या फिर शांति में आराम करो| शांति से आराम करो और ईश्वर आपकी आत्मा को शांति दे इन दोनों
पंक्तियों में जमीन आसमान का अंतर है हमें इस में फर्क करना आना चाहिए|
शांति से आराम करो उन लोगों के लिए अपनाया जाता है जिन्हें कब्र में दफनाया गया है क्योंकि ईसाइयों और मुस्लिमों की मान्यताओं के अनुसार जब जजमेंट डे यानी कयामत
का दिन आएगा तब सारे मृत जी उठेंगे| इस लिए मुस्लिम और ईसाई कहते हैं कयामत के दिन तक शांति से इंतज़ार करो।

मेरे काकाजी की साइकिल
–"–देखो यह लड़की मर्दानी साइकिल चलाती है . यह तो नहीं कि लेडीज साइकिल खरीदवा ले .” मैं चकित होती –--“ अच्छा ,साइकिलें भी जनानी मर्दानी होती हैं ..?”
जब मैं घर आजाती तब काकाजी घर के ज़रूरी सामान लेने बाजार जाते .
आज भी वह साइकिल गुड्डे गुड़ियों की तरह , स्कूल के प्रिय लगने लगे रास्ते की तरह और बचपन की सच्ची मित्र जैसी ही दिल दिमाग में है . स्कूटी चलाने का सपना ,सपना
ही रह गया पर काकाजी की साइकिल के कारण ही मैं कह सकती हूँ कि हाँ मैंने ‘टू व्हीलर’ भी चलाया है ..

महिला पहलवानों द्वारा दर्ज प्राथमिकी पर सरकार शर्मनाक खामोशी / विजय शंकर सिंह
यह अनोखा मामला है, महिला पहलवानों द्वारा, कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष के खिलाफ दर्ज एफआईआर का। याद कीजिए, पहलवानों ने, कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष, बृज
भूषण शरण सिंह  द्वारा किए गए यौन शौषण के विरोध को लेकर, इस साल जनवरी में ही, धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया था। लेकिन,  खेल मंत्री अनुराग ठाकुर द्वारा जांच
के आश्वासन के बाद, ओलंपिक पदक विजेता पहलवानों ने, अपना विरोध प्रदर्शन हटा लिया गया था। गठित जांच समिति ने, पूछताछ और जांच में किस तरह से, विडियो कैमरे
को, समय समय पर ऑन ऑफ कर के, जांच को प्रभावित करने की कोशिश की, यह आप, एफआईआर के कंटेंट में, आगे पढ़ेंगे। अंततः, सुप्रीम कोर्ट द्वारा हस्तक्षेप, यौन शौषण
की प्राथमिकी दर्ज करने और अभियुक्तों की गिरफ्तारी करने की मांगों को लेकर, 23 अप्रैल से, पहलवानों द्वारा दूसरा विरोध और धरना प्रदर्शन, जंतर मंतर पर, शुरू हुआ।

देखा है तुझे ज़िन्दगी - -
न जाने वो कौन थे जो खूं रिसते  पांव हैं गुज़रे,
इक रहगुज़र रात दिन यूँ सुलगता सा, कई बार 
देखा है तुझे ज़िन्दगी,
उनकी अपनी तरजीह की थी शायद फ़ेहरिस्त,
हमदर्दी के लिए बेवजह मचलता सा, कई बार 
देखा है तुझे ज़िन्दगी,

विदाई : एक ख़याल भटका सा  
विदाई के बारे में मेरी एक बहुत ही छोटी सी चाहत है कि इस दुनिया से विदा होते समय ही, सभी के दिल दिमाग से भी मेरी यादों की विदाई हो जाये ... यहाँ के नाते,
रिश्ते, कर्म सब से मुक्त हो जाऊँ। आत्मा को मोक्ष मिलेगा या नहीं, यह नहीं जानती बस इतनी सी चाहत है कि यहाँ का हिसाब किताब यहीं निबट जाए और यदि नया जन्म
होता है तो कोरी स्लेट सा हो ... किसी के, किसी कर्म की उधारी चुकाने / वसूलने के लिए नहीं।

ग़ज़ल "गिरे शिवधाम के पत्थर
भले हों नाम के पत्थर
मगर हैं काम के पत्थर
--
समन्दर में भी तिरते हैं
अगर हों राम के पत्थर

धन्यवाद।

   

शनिवार, 3 जून 2023

3777... वरिष्ठ

लेखक/पाठक कृपया ध्यान दें। 🙏🏼🙏🏼
जानकारी भेजने की अंतिम तिथि 30 जून 2023

      हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...   

माँगी गई है सूची में दस वरिष्ठतम और कहा जा रहा है कि अपना नाम भी लिख सकते हैं 

अब अपना नाम लिखने पर सवाल होगा न दस वरिष्ठतम की कमी कैसे हो गई

और दसवें नम्बर पर होने पर वरिष्ठतम में पासंग ना हो जाए

लगभग पैतीस-चालीस से किसी खास विधा में लेखन कर रहे/रही हों लेकिन विधा के दिशानिर्देश के विपरीत लेखनी दौड़ रही हो ऐसी लेखिका-ऐसे लेखक 

क्या वरिष्ठ के खाँचे हेतु

उपयुक्त

suitable, appropriate, fit, convenient, applicable

योग्य

eligible, able, deserving, capable

उचित

proper, reasonable, advisable, suitable, right

होंगे?

मुझे पता था कि मैं बूढ़ा हो जाऊंगा

सेवाओं से निवृत्त हों

एक दिन वरिष्ठ नागरिक बनें

हाँ-दिन आ गया

मेरे जैसे सभी वरिष्ठ

नागरिकों को समर्पित

कविता-डॉ. पुष्पा खण्डूरी

इनके बोलों में जीवन की

तपे स्वर्ण सी आभा

परख जौहरी सी रखते हैं

खूब तराशे प्रतिभा

करें बुजुर्गों का आदर हम

भारतीय कहलाएं

उनके मन में इतनी सारी भावनाओं के चलते,

वरिष्ठों के लिए कभी-कभी शांत और तनावमुक्त रहना

 मुश्किल हो सकता है। इन विचारों और भावनाओं को 

कविता के रूप में लिखना बुजुर्गों के लिए काफी मददगार हो सकता है।

तजुर्बों को अपने मस्तिष्क में संजोए हुए

एक तजुर्बेकार व्यक्तित्व की उपस्थिति

जो सिखा सकता है हमें

गलत और सही में सच्चा फर्क

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पुनः भेंट होगी...
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शुक्रवार, 2 जून 2023

3776 / वो मेरे बचपन का आँगन

 

शुक्रवार  के अंक में आप सभी का स्नेहिल अभिवादन  ! 

भूमिका के रूप में  मैं आपको कौन सा मुद्दा   दूँ  ?  पग पग  पर मुद्दे ही मुद्दे हैं ...... जानते सब हैं लेकिन सब किनारा करके चले जाते हैं .....शायद खुद से भी आँखें नहीं मिला  पाते  और मिलाने की हिम्मत भी कैसे करें जब संवेदनहीनता की  पराकाष्ठा  हो गयी हो ........लोगों की सोच ,  चाहे राजनीति से सम्बंधित बात हो या समाज से सम्बंधित निम्न से भी अधिक निम्न  स्तर  पर पहुँच चुकी है . लोग सोचते हैं की नफ़रत के बीज  अभी डाले गए हैं ..... लेकिन मुझे लगता है की बीज तो न जाने कब के हैं जो पेड़  बन कर अब लहलहा  रहे हैं ....... सब पढ़े - लिखे लोगों की भाषा ऐसी हो गयी है कि समझ नहीं आता कि पढ़ लिख कर क्या सीखा  ? खैर ..... एक गुज़ारिश है  कि निष्पक्ष   भाव से कभी सोचियेगा  कि कहाँ आ गए हम .......

एक बात मैं  अपने ब्लॉगर  साथियों से कहना  चाहूँगी कि इस मंच पर लिंक्स लगाने का मकसद  यह है किअधिक  से अधिक पाठकों को लिंक पर पहुँचने की सुविधा मिले  न कि केवल वही लोग शिरकत  करें यहाँ  जिनकी पोस्ट यहाँ लगायी जाती है .  इस लिए आप सभी  को सूचनार्थ बता रही हूँ कि जिस दिन मैं इस मंच पर प्रस्तुति  लगाऊँगी उस दिन जिसकी पोस्ट  का लिंक लगाऊँगी   उसकी  कोई सूचना  आपके ब्लॉग पर छोड़ कर नहीं आऊँगी .  क्यों  कि जिसकी पोस्ट है वो तो उसके बारे में जनता ही है न कि क्या लिखा है ........... बात है  दूसरे लोगों के पढने की  ....... 

आइये चलते हैं  मेरे द्वारा पसंद किये  गए  कुछ चिट्ठे  ....... चिट्ठे लिखते हुए मुझे चिट्ठा जगत याद आ गया ...... एक समय था  कि चिटठा जगत सभी ब्लॉगर्स की पोस्ट का  एक तरह से विज्ञापन किया करता था ...... विज्ञापन का अलग ही अंदाज़ था ..... जैसे ही चिटठा जगत खोलिए तुरंत सारी नयी पोस्ट दिखाई दे जाती थीं  चलिए आपको  पढवाते हैं विज्ञापन की मार क्या क्या गुल  खिलाती  है ....

इश्तहार की दौड़ 



इस बार तो मैंने इस ब्लॉग का लिंक लगा दिया है ....... लेकिन आगे से जो अपने  ब्लॉग  में ताला लगा कर रखेंगे  उनको मैं उनके ताले के साथ ही  छोड़ दूँगी . ऐसे लिंक लगाना सच ही बहुत टेढ़ी खीर होता है ...... आज एक  मंथन  करने पर विवश करती एक लघु कथा पढने को मिली ...... तब से सोच रही हूँ  की  कभी कभी कुछ जो दूसरों को पसंद न आये वो भी अच्छे के लिए होता है .... 

शुभेक्षु


"आपको सर्वोच्च शैक्षिक डिग्री अनुसन्धान उपाधि प्राप्त किए इतने साल गुजर गये! अब आप नौकरी करना चाहती हैं। आपने अब तक कहीं नौकरी क्यों नहीं कीं?"

"बहुत जगहों पर आवेदन फ़ार्म भरा लेकिन साक्षात्कार के समय छँटनी हो जाती रही।"


 चलिए कहीं तो उसकी योग्यता के अनुरूप शायद काम मिला वरना तो सब रूप ही देखते हैं ....... जैसे जैसे उम्र बढती जाती है न जाने मन क्यों बचपन की गलियों में भटकता है ....... इसी को एक खूबसूरत कविता के रूप में पढ़िए .... 


वो मेरे बचपन का आँगन




खेलती खातीं वो नन्हीं,

चहकतीं किलकारियाँ।

खेलतीं सिकड़ी व कंचे,

साथ में फुलवारियाँ।


अभी हम बचपन में लौटने की बात कर रहे हैं और ये बचपन कितनी जल्दी बड़ा हो गया है ....... मार्मिक लघु कथा .....आप भी पढ़ें ...

हम फल नहीं खायेंगे



अरे ! ऐसे कैसे ? क्या हुआ तुझे ? माँ ने बामुश्किल बैठते हुए उसके माथे को छुआ । फिर बाबा की तरफ देखकर पूछा "खाना तो खाया था इसने ? देखो जी ! बच्चों का और अपना ख्याल ठीक से रखो तुम" !  लड़खड़ाती मरियल सी आवाज में कहकर माँ खाँसने लगी तो बाबा ने झट से आकर माँ की पीठ थपथपाते हुए कहा , "अरे ! ठीक है वो ! क्यों चिंता करती है ! ऐसे ही मन नहीं होगा , बाद खा लेगी ।  तू खा ले न" !

ऐसे समझदार बच्चों के होते हुए भी न जाने आज इंसान कहाँ पहुँच रहा है ..... राह चलते ह्त्या होती है और लोग बिना प्रभावित हुए निकलते रहते हैं या तमाशबीन बने  देखते रहते हैं ....... बहुत कुछ लिखा तो जा रहा है ऐसे मुद्दों पर लेकिन कुछ असर भी होगा क्या पता ...... 

आखिर कब तक रोएगी सिसक-सिसक कर मानवता…



इंसानों की इस बस्ती में
इंसान नहीं ढूँढ़े मिलता
खुल कर नंगा नाच करे
हर रोज यहाँ पर दानवता 

जहाँ इतने गंभीर मुद्दे हैं वहीँ कोई कोमल मन चाहता हैसोचने की स्वतंत्रता .....सब अपने अपने वितान में आज़ाद उड़ना चाहते हैं ....... एक खूबसूरत रचना ..... 

वितान 

वर्षों से

मन की अलगनी पर टंगे 

चंद विचार..

भूली भटकी सोच के

धागों में 

उलझे -पुलझे..



और आज की अंतिम कड़ी ........ सोचियेगा ....... समझिएगा .....


वोट का तुष्टीकरण, चोल साम्राज्य का सेंगोल, नया संसद भवन और ताबूत की कील 


विपक्ष के विवादों में सबसे चर्चित तमिलनाडु के चोल साम्राज्य का सेंगोल रहा है परंतु इसका अर्ध सत्य ही सोशल और में स्ट्रीम मीडिया पर आ सका । पूर्ण सत्य है कि 1947 में 14 अगस्त को लॉर्ड माउंटबेटन के द्वारा पंडित जवाहरलाल नेहरू को सेंगोल देकर सत्ता का हस्तांतरण किया।  दुर्भाग्य से इसे प्रयागराज के संग्रहालय में रख दिया गया । इसे धर्म दंड भी कहा जाता है। सेंगोल सत्ता और न्याय के प्रतीक के रूप में सत्ता के हस्तांतरण को रेखांकित करता है। जब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसी रूप में सत्ता को स्वीकार किया तो फिर आज नए संसद भवन में इसे स्थापित करने की बात को लेकर विपक्ष का विवाद निश्चित रूप से आम जनमानस को निराश करता है। 


आज के लिए इतना ही ......... कल की विशेष प्रस्तुति ले कर आएँगी विभा जी


नमस्कार


गुरुवार, 1 जून 2023

3775...एक रोटी पे रूह बिकती है...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया डॉ.(सुश्री) शरद सिंह जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के लिंक्स के साथ आज पुनः हाज़िर हूँ।

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

जब

उड़ता है हंसों के साथ

मानसरोवर की पावनता में

शांति की शिलाओं पर

थिर हो आसन  जमाता है

ज्ञान का सूर्य जगमगाता है

निरभ्र निस्सीम आकाश सा उर

बन जाता है!

शायरी | ज़िन्दगी बेलिबास दिखती है | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

जिस्म की मंडियों में आलम ये,

एक रोटी पे  रूह बिकती है।

उनके बग़ैर ये क़ायनात नहीं होती--

नब्ज़ हाथों में थामें होता है वो लिए अश्क भरी  निगाहें,
सदीद जीने की तमन्ना हो जब ज़िन्दगी साथ नहीं होती,

मां सुरसरि सब पीड़ा हर दे

क्षमा दया करुणा ममता का

दीप जले निज अंतर्मन में

सुख पाये हरदम जीवन में

मां सुरसरि सब पीड़ा हर दे

बोध सुभग हर उर में भर दे.

नागपुर का जीरो माइल स्टोन स्मारक

 देश के विभिन्न भागों से आने वाले लोगों के लिए नागपुर का जीरो माइल सेंटर, अब आकर्षण का केंद्र बन गया है या यूं कह लीजिए कि पर्यटकों के लिए यहां का जीरो माइल अब उनके लिए एक ''माइल स्टोन'' बन गया है! जिसे देखना अपने आप में एक अनोखा अनुभव है!

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

 


बुधवार, 31 मई 2023

3774...बात निकली..

 ।। प्रातः वंदन।।

“संविधान में जूते मारने का बुनियादी अधिकार तो होना ही चाहिए। आदमी के पेट में अन्न न हो, शरीर पर कपड़े न हों, पर पाँवों में जूता ज़रूर होना चाहिए, जिससे वह जब चाहे, बुनियादी अधिकार का उपयोग कर सके।”

- हरिशंकर परसाई
इसी विचारोत्तेजक लेख के साथ ..षडयंत्र के साथ विमर्श ✍️


[30/05, 8:21 am] विभा रानी श्रीवास्तव: प्रियंका श्रीवास्तव की रचना के शुरू में ही लेखकीय प्रवेश है।
[30/05, 8:40 am] सिद्धेश्वर : 🔷 आज अधिकांश लघुकथाएं, लघुकथा के मानक पर खरी नहीं उतर रही। हम लोग प्रोत्साहित करने के लिए प्रकाशित कर देते हैं, किन्तु उन्हें लघुकथा लिखना..
🌟

तजुर्बा ज़िंदगी जीना सिखाता है

ज़िंदगी का क्या सलीका है, यह बताता है

तजुर्बेकार होना फ़क्र की है बात..
🌟
धनुर्धरों से
बंशी वारे से 
हार-हूर कर माँग रहे हैं
भील-भिलारे से 

ला चकमक तो दे
चिंतन में आग लगाना है
थोड़ी सी किलकारी

🌟

राम एक नाम नहीं

राम एक नाम नहीं 
जीवन का सोपान हैं। 
दीपावली के टिमटिमाते तारे 

🌟 

प्रतीक्षारत

बँधी भावना निबाहते 

हाथ से मिट्टी झाड़ते हुए

खुरपी से उठी निगाहों ने 

 क्षणभर वार्तालाप के बाद ..

🌟

।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️

मंगलवार, 30 मई 2023

3773...मैं टकटकी बांधे देखता रहा उधर...

शीर्षक पंक्ति :आदरणीय ओंकार जी की रचना से। 

सादर अभिवादन। 

मंगलवारीयअंक लेकर हाज़िर हूँ।

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ -

७१५.पानी में

मैं टकटकी बांधे देखता रहा उधर,

फिर भी चली गई भैंस पानी में. 

न झुकाऒ तुम निगाहे कहीं रात ढल न जाये .....




एक लम्बी अवधि के बाद फिर से प्रोग्राम बना था घूमने का और वह भी मेरी मनपसंद जगह का जिसे देखने की साध वर्षों से अपने मन में संजोये थी और जहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता के बारे में पढ़ सुन कर उसे साक्षात देखने की उत्सुकता अपने चरम पर थी ! आप समझ तो गए ही होंगे यह स्थान है उत्तर पूर्वी भारत का बेहद खूबसूरत स्थान मेघालय !

चूड़ियाँ

कब होगी..........
गोरी कलाई में झंकारती हैं चूड़ियांँ।
झनक-झनक ये पुकारती हैं चूड़ियांँ।
तेरे बिना बालमा कटती ना रात रे।

अभी तक सांसों
के पृष्ठ हैं गीले, कुछ
ख़ामोश शब्द
चाहते हैं
नए
अर्थों में ढलना
*****
फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


 

सोमवार, 29 मई 2023

3772....वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं

जय मां हाटेशवरी......
सादर नमन.....
हज़ार बर्क़ गिरे
लाख आँधियाँ उट्ठें
वो फूल खिल के रहेंगे
जो खिलने वाले हैं ---Sahir Ludhianvi
अब पेश है मेरी पसंद.....

हर रोज़ हमने देखा घुलती है चाँदनी
अपनी ही कोई कमी है हमें दूसरों में दिखती
जब-जब बहस का मूड करे, अच्छे से सोच लें
जाएँगे जीत खो के चैन, सच इसको मान लें
तब कहीं जा के करें आप ऐसी दिल्लगी 
चर्चे जहां में और भी हैं झगड़ों को छोड़कर 
उनका ही क्यों न रूख करें, पाएँगे लाभकर
काँटों को छोड़ दीजिए, देखें गुलाब भी

मेरी ही बर्बादी का जश्न क्यों हो रहा है?
मेरी दहलीज़ यूँ वीरान क्यों पड़ी है,
आँसू मुझसे इतनी वफ़ा क्यों कर रहे हैं?
तड़प और तन्हाई बाराती बनकर आये हैं,
मेरी ही बर्बादी का जश्न क्यों हो रहा है?
ख्वाब टूटने से पहले जुड़ क्यों नहीं गए,
बिखरे मोतियों को किसी ने समेटा क्यों नहीं?
मेरी फ़ितरत में तो बेवफ़ाई कभी शामिल ना थी,
फिर किसी को मुझ पर जरा सा भी भरोसा क्यों नहीं?

आईना मुझसे मेरी पहली सी सूरत माँगे-
मैँ भटकता ही रहा दर्द के वीराने में
वक़्त लिखता रहा चेहरे पे हर पल का हिसाब
मेरी शोहरत मेरी दीवानगी की नज़र हुई
पी गई मय की बोतल मेरे गीतोँ की किताब
आज लौटा हूँ तो हँसने की अदा भूल गया
ये शहर भूला मुझे मैँ भी इसे भूल गया
मेरे अपने मेरे होने की निशानी माँगें

तुम्हारी स्मृतियों से
ये रोपती हैं
जीवन राग के साथ
गुमसुम सी यादें
लांघते हुए
उस समय को
कि जिसकी प्रांजल हँसी
समाई हुई है
मेरे अंदर 
बहुत गहरे में कहीं पर ।

दोहे "सूरज से हैं धूप"
चन्दा से है चाँदनी, सूरज से हैं धूप।
सबका अपना ढंग है, सबका अपना रूप।।
--
थोड़े से पीपल बचे, थोड़े बरगद-नीम।
इसीलिए तो आ रहे, घर में रोज हकीम।।

धन्यवाद।

रविवार, 28 मई 2023

3771.....चल यार एक नई शुरुआत करते है,

जय मां हाटेशवरी.....
सादर नमन......
चल यार एक नई शुरुआत करते है,
जो उम्मीद जमाने से की थी,
वो अब खुद से करते है !

अब पेश है आज के लिये मेरी पसंद.....

प्रतीक्षारत
विश्वास में लिपटा
शून्य था पसरा 
आस-पास कोई वृक्ष न था
कुएँ से लौटी खाली बाल्टी 
उसमें पानी भी कहाँ था?

मुहब्बत के ज़ख़्मों का, पूछो न हिसाब मुझसे
बेवफ़ा हूँ मैं, ये सारी दुनिया कहती है
दिया न गया, कोई मुनासिब जवाब मुझसे ।
अँधेरे को समझना होगा नसीब अपना 
नाराज़ है 'विर्क', प्यार का आफ़ताब मुझसे ।

कहना चाहते हैं ..
भाषा मेरी है शब्द भी मेरे हैं मुझे कहने दो,
क्यों मेरी जुबां अपने शब्द थोपना चाहते हैं।
रोटियों  के  लिए  खाद्यान्न फसलें  जरुरी हैं
क्यों खेतों में नागफनी बबूल बोना चाहते हैं।
हमें  जिसकी  जरूरत है वही चाहते हैं वीर
जो पसंद नहीं वह क्यों हमें देना  चाहते हैं।

हाईकू
बचाओ मुझे
४-प्यार से  बंधे   
इतने मजबूत  
उसे  जकडे  
५-तेरा  मेरा प्यार
इतना नाजुक  है
मोम जैसा है

चिट्ठी जो हरदम अधूरी पढ़ी जाएगी
मुझे माफ कर देना, मैं नहीं जानता था कि तुम्हें उनसे इस तरह आज़ाद करना होगा। अपने कंधे पर रखे हुए...
उन्हें माफ कर देना, वो नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं।
जहां हो, वहां खुश रहना। मुझसे लड़ने के नए रास्ते खोजने में कोई कमी मत रखना। मुझे इसकी आदत पड़ी हुई है। 
इस आदत के बिना कैसे रहूंगा, बताओ..

कितना अजीब होता
शायद कुछ 
ख़ुश भी होते
बदलते समय के
मुरीद भी होते
उम्र, एक नम्बर 
कहने वाले 
हमें एक नम्बर का 
चालू कहते

 

धन्यवाद।

शनिवार, 27 मई 2023

3770... औकात

    जितना तेरा दिमाग है,

उतना तो उसका खराब रहता है।

 हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...   

दर्द बेवाओं का वो क्या जाने

वो जो हरी चूड़ियाँ बनाता है

मैं हर शायर में ये भी देखता हूँ

बिना माइक के वो क्या बोलता है

जो मैं हूँ वो मैं जानता हूँ तुम अंदाजा लगाओ इतनी तुम्हारी औकात नहीं...। कहा जाता है फलां की इात ही क्या है उसे चाहे जो बेइात कर देता है। सब शब्द मिलकर हमारे चरित्र की तरफ इशारा करते हैं। औकात, वजूद, हैसियत और इात। उर्दू एक नफासत और नजाकत वाली भाषा है। हमारी संस्कृति में इतनी मिलजुल गई है सदियों से यह चल रहा है यह सिलसिला। भूख से हलकान है मजलूम तिरे आतिश-ए-शहर में

गुर्बत  में  हक  का  निवाला  भी  खा  गया  कोई ।

घरों में कैद है जिंदगी फिज़ाओं में पसरा है सन्नाटा

अकड़ना छोड़ दे अब, तेरी औकात बता गया कोई।

हम तो कठपुतली हैं भइया खूब नचाये नाचेंगे

है नकेल जिस के हाथों में चरण उसी के चापेंगे

पद की शोभा ही क्या कम है जिस पर शोभित हैं भइया

हम तो मैया के कूकर हैं पूंछ हिला कर नाचेंगे |

मादा उल्लू ने अपने पीछे पलकें झपकाते हुए एक पंक्ति से बैठे अपने बच्चों की ओर इशारा किया। पूरे दरबार में हंसी का ठहाका गूंज गया। महारानी ने एक क्षण व्यर्थ किए बिना अगले अभ्यर्थी के लिए आवाज लगाई। व्यक्ति को अपनी क्षमता पहचान कर अपनी औकात में रहना चाहिए।

वो रवैया (एटीट्यूड/Attitude) वहीं दिखलाते हैं जहाँ अन्य अपनी औकात दिखाते...

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पुनः भेंट होगी...
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शुक्रवार, 26 मई 2023

3769....पाँव के पंख


शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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राजनीतिज्ञ हर जगह एक जैसे हैं। वे लोग वहां पुल बनाने का वादा करते हैं जहां नदी ही नहीं होती...!!

राजनीति बिना रक्तपात के युद्ध है जबकि युद्ध रक्तपात से राजनीति है।

राजनीति एक पेंडुलम है जिसकी अराजकता और अत्याचार के बीच झूओं को सदा के लिए भ्रम में डाल दिया जाता है...!!  - अल्बर्ट आइंस्टीन

राजनीति का नैतिकता से कोई संबंध नहीं है...!! -निकोलो मैकियावेली

 राजनीति कोई खेल नहीं है। ये सबसे गंभीर व्यवसाय है...!
-विंस्टन चर्चिल

राजनीति के प्रभाव,दुष्प्रभाव का देश की जनता पर क्या असर हो रहा है आप देख, समझ सकते हैं।
आप क्या सोचते है राजनीति के बारे में कृपया अपने विचार साझा करें।
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आइये अब आज की रचनाओं के संसार में-


रेशम बुनने वाले मन बहुत कोमल होते हैं  
कान लगा कर सुनो ध्यान से उनके मधुर रागिनी में बजते अन्तर्नाद में छिपे विलाप को 
बेशक वे तुम्हारी धूप चुराने का हौसला रखते हों पर धूप से झुलसते वे भी हैं 
पाँव उनके भी  लहुलुहान होते हैं ?
जिन रास्तों से गुजर कर वे तुम तक आए 
बेशक वे फूलों भरे तो न होंगे 
कोई भी रास्ता सिर्फ़ फूलों भरा कब होता है भला ?



शब्द कहाँ गुम हो जाते थे जान नहीं पाए अब तक,
चुपके-चुपके आँखों-आँखों इश्क़ पुराना होता था.

अपनी पैंटें, अपने जूते, साझा थे सबके मोज़े,
चार भाई में, चार क़मीज़ें, मस्त गुज़ारा होता था.

घंटों मोबाइल या लैपटॉप या कंप्यूटर की सिकीं से 

बुझी आँखों के पीछे जो दर्द होता है 

घुटनों का , रीढ़ की हड्डी का या ढीली पड़ती पकड़ का 

उसका जिक्र कहाँ करना चाहता है कोई 

और करे भी कैसे जब कोई सुनना ही नहीं चाहता ।  

यह वह सिरे वाली नदी नहीं है



पहले सिरे का वह बर्फ वाला
नुकीला छोर 
टूटकर नदी के साथ बह गया।
अब उस नदी का 
पहला सिरा भी नहीं है
केवल 
हांफती हुई जिद का कुछ 
सतही आवेग है
और चलते-चलते 
अत्यंत रोचक पुस्तक समीक्षा 



यूरोप के कई स्थानों की यात्राओं को  इस पुस्तक में सहेजा है । ये यात्राएँ  लेखिका द्वारा अलग अलग समय  पर की गई हैं । किस जगह क्या परेशानी आ सकती है ,हर जगह को देखने और समझने के लिए क्या क्या जानना आवश्यक है , सारी ही बातों का ज़िक्र इस पुस्तक में मिलता है । किस जगह शाकाहारी भोजन उपलब्ध होता है और कहाँ केवल मांसाहारी ही उपलब्ध होगा ,  किस शहर का क्या विशेष खाद्य है इसका जिक्र भी शिखा करना नहीं भूली है । यहाँ तक कि उस खाद्य या पेय की रेसिपी भी लिख डाली है । 
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आज के लिए इतना ही

कल का विशेष अंक लेकर

आ रही हैं प्रिय विभा दी।




आज के लिए इतना ही

कल का विशेष अंक लेकर

आ रही हैं प्रिय विभा दी।




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