बातें करिए
प्रतिस्पर्धा कहीं है ही नहीं
मुकाबला करने आने वाले की
मुट्ठी गरम कर उसे
गीता का ज्ञान दिया जाएगा
एक ही चेहरे के साथ जीने वाले को
नरक ज्ञान की आभासी दुनियाँ
से भटका कर स्वर्गलोक में
होने का आभास
बातों से ही दे दिया जाएगा
नयी विचारधारा के साथ नववर्ष का आगाज़
पुराने जमाने यानि 100 -200 साल पहले के भी कितने ही किस्से-कहानियों में ये वर्णित है कि -माँ-बाप के जरूरत से ज्यादा तानाशाह और महत्वकांक्षा ने कितने ही बच्चों की ज़िंदगियाँ बर्बाद कर दी।70 के दशक तक भी माँ-बाप को देवता मानकर उनकी हर आज्ञा को शिरोधार्य किया जाता था। भले ही वो दिल से ना माना जाये मगर, उनके आज्ञा की अवहेलना करना पाप ही समझा जाता था। हमारी पीढ़ी ने भी माँ-बाप की ख़ुशी और मान-सम्मान के लिए ना जाने कितने समझौते किये। जबकि उस वक़्त में भी माँ-बाप के गलत निर्णय और जरुरत से ज्यादा सख्ती के कारण कितने ही बच्चों ने आत्महत्या तक कर ली और आज भी करते हैं ।
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मिलते हैं अगले अंक में
वक्त के पहियों में बदलता हुआ साल
जवाब देंहटाएंजीवन की राहों में मचलता हुआ साल
चुन लीजिए लम्हें ख़ुशियों के आप भी
ठिठका है कुछ पल टहलता हुआ साल
नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाओं
की समाहित यह अंक अच्छा लगा
आभार..
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुप्रभात, सराहनीय रचनाओं का सुंदर प्रस्तुतिकरण
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सराहनीय अंक मेरी रचना को भी साझा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद श्वेता जी,सादर नमन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंवक्त के पहियों में बदलता हुआ साल
जवाब देंहटाएंजीवन की राहों में मचलता हुआ साल
चुन लीजिए लम्हें ख़ुशियों के आप भी
ठिठका है कुछ पल टहलता हुआ साल
सारगर्भित भूमिका एवं बहुत ही सुंदर मुक्तक के साथ लाजवाब प्रस्तुति... सभी लिंक्स बेहद उम्दा एवं पठनीय ।