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गुरुवार, 14 दिसंबर 2023

3974...उसकी जिन्दगी रही अधूरी मनमीत के बिना...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया आशा लता सक्सेना जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पढ़िए आज की पसंदीदा रचनाएँ-

उसका मनमीत

तभी अभी तक कोई ना मिला

उसने जैसा चाहा

उसकी जिन्दगी रही  अधूरी

मनमीत के बिना |

 कुछ तो था दरमियां अपने--

हर रोज़ ज़िन्दगी ने नई उम्मीद से दस्तक दी,

रात फिर पुराने बोतल में नया शराब दिखाए,

कुछ तुम थे ज़रा बरहम कुछ हम गुमसुम से,

फिर भी वक़्त ने इश्क़ को लाजवाब दिखाए,

 ठीक हूँ

उसने कहा

 ठीक हूँ 

यह मेरे सवाल का जवाब नहीं था 

सवाल इसलिए निस्पृह बचे रहे 

क्योंकि जवाब कम ईमानदार थे। 

आज व‍िश्व कव‍िताओं में से कुछ अनूद‍ित कव‍ितायें आप भी पढ़ें

आज की शब तो किसी तौर गुज़र जाएगी

रात गहरी है मगर चाँद चमकता है अभी
मेरे माथे पे तिरा प्यार दमकता है अभी
मेरी साँसों में तिरा लम्स महकता है अभी
मेरे सीने में तिरा नाम धड़कता है अभी

धरती पर स्वर्ग

तत्पश्चात हम ढाई सौ से अधिक सीढ़ियाँ चढ़कर प्रसिद्ध शंकराचार्य मंदिर देखने गये। भगवान शंकर को समर्पित इस मंदिर का निर्माण राजा गोपादित्य ने ३७१ ईसा पूर्व करवाया था।आठवीं शताब्दी में इसका पुनर्निर्माण हुआ , बाद में डोगरा शासक गुलाब सिंह ने मंदिर तक पहुँचने के लिए सीढ़ियों का निर्माण करवाया।आदि गुरु शंकराचार्य ने अपनी कश्मीर यात्रा के दौरान यहाँ तपस्या की थी, एक छोटा सा मंदिर उनकी तप:स्थली पर भी बनाया गया है। अनवरत लोगों की भीड़ वहाँ आ रही थी। 

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

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4 टिप्‍पणियां:

  1. एक और शानदार अंक, 'मन पाये विश्राम जहां' को स्थान देने हेतु आभार !

    जवाब देंहटाएं
  2. उत्कृष्ट लिंकों के साथ शानदार प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  3. उत्कृष्ट लिंकों के साथ शानदार प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  4. धन्यवाद रवींद्र जी, मेरी ब्लॉगपोस्ट को इस शानदार प्लेटफॉर्म पर स्थान देने के ल‍िए आभार

    जवाब देंहटाएं

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