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मंगलवार, 26 दिसंबर 2023

3986....प्यार सबसे सरल है...

मंगलवारीय अंक में आप
सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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जिंदगी में कुछ किरदार ऐसे होते हैं जो हमारी जिंदगी पर गहरा असर छोड़ जाते हैं। अमृता और इमरोज़ की कहानी एक ऐसे प्रेम की साक्षी है, जिसे शब्दों में हम बयां नहीं कर सकते। एक चित्रकार और एक लेखिका का अनूठा प्रेम ..... अमृता-इमरोज़ के प्रेम में इतनी गहराई है जिेसे माप पाना बेहद मुश्किल लगता है! इतनी दीवानगी और इतनी आज़ादी। किसी के दर्द को अपना बना लेना और उसी दर्द में रम जाना...। 
इमरोज़ ने लेख ‘मुझे फिर मिलेगी अमृता’ में लिखा कि कोई भी रिश्ता बांधने से नहीं बंधता। किसी बात को लेकर हम कभी एक-दूसरे से नाराज़ तक नहीं हुए। इसके पीछे एक ही वजह रही कि वह भी अपने आप में हर तरह से आजाद रहीं और मैं भी हर स्तर पर आजाद रहा। चूंकि हम दोनों कभी पति-पत्नी की तरह नहीं रहे, बल्कि दोस्त की तरह रहे। हमारे बीच कभी यह लफ्ज भी नहीं आया कि आई लव यू। न तो मैंने कभी अमृता से कहा कि मैं तुम्हें प्यार करता हूं और न ही अमृता ने कभी मुझसे। जब 2005 में अमृता ने दुनिया छोड़ी तो  इमरोज़ ने लिखा-‘उसने जिस्म छोड़ा है, साथ नहीं। वो अब भी मिलती है, कभी तारों की छांव में, कभी बादलों की छांव में, कभी किरणों की रोशनी में कभी ख्यालों के उजाले में, हम उसी तरह मिलकर चलते हैं चुपचाप, हमें चलते हुए देखकर फूल हमें बुला लेते हैं, हम फूलों के घेरे में बैठकर एक-दूसरे को अपना-अपना कलाम सुनाते हैं उसने जिस्म छोड़ा है साथ नहीं…’।
और अब इमरोज़ भी चले गये ....

उन्हीं की लिखी एक कविता--

प्यार सबसे सरल

इबादत है—

बहते पानी जैसी...

न किसी शब्द की ज़रूरत

न किसी ज़बान की मोहताजीन

न किसी वक़्त की पाबंदी

और न ही कोई मजबूरी

किसी को सिर झुकाने की...

प्यार से ज़िंदगी जीते-जीते

यह इबादत अपने आप

हर वक़्त होती भी रहती है

और—जहाँ पहुँचना है

वहाँ पहुँचती भी रहती है...

तूने तो कहा नहीं दिल का फ़साना
फिर भी है कुछ बुझा बुझा 
सारा ज़माना
आज उसी का यकीन है
 तेरा है जहाँ सारा
अपना मगर कोई नहीं है ...


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आज के लिए इतना ही
फिर मिलते है 
अगले अंक में।

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