सादर अभिवादन
वीरनारायण सिंह शहादत दिवस
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मौन है,मंढे
मरु कणिका चंचला चंद्र प्रिया
है,अति व्यग्र
नित नई उपमाएँ लिए कविता
है,गढ़े।
कोशिश में कमी होनी न चाहिये
प्रयत्न करते रहना चाहिए
पूरी शिद्दत से |
है जीवन एक जटिल पहेली
नहीं आसान इसे हल करना
इसको हल करने में
जीवन बीत जाएगा |
अब तुम ही सबसे पहले यह भोजन खाओगे। वह जिद्द पर अड़ा रहता है, मैं यह भोजन नहीं खाऊंगा, किसी कीमत पर नहीं खाऊंगा। डाकूओं का शक ओर गहरा हो जाता है। वे बंदूक की नोक उसके सिर पर रखकर कहते हैं तुझे यह भोजन खाना पड़ेगा, नहीं तो गोली खानी पड़ेगी।
वह व्यक्ति भोजन कर रहा होता है और साधु को याद करते करते आंसू उसकी आँखों से बह रहे थे। उसने कहा था कि मेरा निश्चय है कि राम नाम जप लेगा तो राम तुझे भोजन भी देंगे। उसके भोजन करने के बाद डाकूओं ने उसे छोड़ दिया। अब उसे विश्वास हो गया कि बंजारों को और डाकुओं को राम जी ने ही भेजा है। वह सीधा साधू की कुटिया में चला गया और जा कर उनके चरणों में प्रणाम किया और उन्हें सारा वृतांत सुनाया। अब उस साधु से भी ज्यादा उसे राम नाम की लगन लग गई। उसने अपना पूरा जीवन राम जी को समर्पित कर दिया..!!
पर सीखना और
मेहनत करना तो है न
या जो मुख्य कलाकार
या खिलाडी हैं
उनका हर पल ध्यान रखना
कभी-कभार स्वार्थवश
ये सोच भी आती है
शायद किसी को चोट लग जाए
तो नंबर मेरा आ जाए
मैने ये खबर पढ़ी तो मुझे बहुत हँसी आयी । मैने कहा कुछ पिता और पति घर से बाहर काम पर जाते ही भूल जातें की मेरे बीबी बच्चे भी हैं । कुछ दोस्तो के साथ गोवा के चार दिन के टूर पर भूल जातें हैं की बाल बच्चेदार हैं । थाईलैंड घुमने गयें अधेड़ तो अपनी ऊमर भूल जाते हैं ।
लेकिन एक महिला शायद दुनियां की सब चीज छोड़ दे भूल जायें लेकिन अपने बच्चो की फिक्र करना नही छोड़ सकती उसे भूल नही सकती । भले उसे कल्पनाओं से परे की चीज मिल गयी हों सुखी जीवन मिल गया हो ।
अब सुन रहीं हूं पाकिस्तान गयीं अंजु अपने बच्चो को लेने वापस आयीं हैं । इसके पहले पाकिस्तान की सीमा ने ज्यादा समझदारी दिखायी थी । जब बिना बच्चों के नेपाल आयीं तब भारत नही आयीं । वापस पाकिस्तान जा कर अपने बच्चों को लेकर भारत आयीं।
माँ तुम बदल गयी हो....मनु ने बड़े प्यार से मुझे अपनी बाँहों में पकड़ते हुए कहा। अच्छा....कैसे बदली लग रही हूँ.....तुम्हे डांट नहीं लगा रही हूँ इसलिए। वो हँसकर थोड़ी इतराते हुए बोली -अरे नहीं यार, मुझे पता है अब मैं बड़ी हो गयी हूँ और थोड़ी समझदार भी इसलिए....तुम मुझे नहीं डांटती.....मैं तो ये महसूस कर रही हूँ कि-तुम अब पहले से शांत हो गई हो,ना गुस्सा ना किसी बात पर रोक-टोक करना , ना किसी बात की चिंता-फ़िक्र करना,मैं जो भी कहती हूँ बिना सवाल किये "हाँ "कह देती हो सच कहूं तो अब तुम मुझे बच्ची सी प्यारी-प्यारी लगने लगी हो।
चलते- चलते...
संगदिल हैं लोग क्या समझेंगे मेरी आशिकी
फेर लेते मुंह ज़रूरतमंद से जो राह में .
एक लम्हा भी बहुत है डूबने को इश्क में
ढूंढते हो क्या ना जाने इतने सालों माह में
आज बस
कल फिर मिलिएगा मुझसे
सादर
बहुत ही सुंदर सराहनीय संकलन।
जवाब देंहटाएंस्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
सादर
बहुत सुंदर पठनीय रचनाएं
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई!
बहुत सुन्दर लिंकों का संकलन।
जवाब देंहटाएंइनमें मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार।
देरी आने के लिए क्षमा चाहती हूँ दी,आपका आमंत्रण पब्लिश नहीं हुआ था इसलिए मुझे सुचना नहीं मिली
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को प्रस्तुति में स्थान देने के लिए दिल से शुक्रिया दी,सादर नमस्कार दी