निवेदन।


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बुधवार, 31 जनवरी 2018

929..इक बगल में चाँद होगा इक बगल में रोटियाँ...




हार्दिक शुभेच्छा


साल का पहला महीना के आखिरी दिन..

पर जिक्र पहली फरवरी की वजट की ओर कि..

हर किसी की आस ..


वजट में उसके लिए क्या हैं खास

उम्मीदों और अकांक्षाओं का उजास,

आर्थिक नितियों का विकास 

सीमित विकल्प में बेहतर करने का प्रयास..



आशान्वित के साथ अब निगाह डाले आज की लिकों की ओर..✍



रचनाकारों के नाम क्रमानुसार देखें..

आदरणीय चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ जी,  आदरणीय  राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर जी,

आदरणीय अंशु माली रश्तोगी जी,

आदरणीय   विश्वमोहन जी,

आदरणीया  अलकनंदा सिंह जी,

आदरणीया  मीना गुलियानी जी..








भले ही बेलने को रोटियाँ बेलन उठाते हैं

लगे पर ठोंकने मुझको अभी बालम जी आते हैं

सितारों से मेरा दामन सजाने की अहद कर वो

मेरे सीने पे तोपो बम व बन्दूकें चलाते हैं


क्या करें, ये जंक फ़ूड के अलावा कुछ खाता ही नहीं,अभी ये महाशय दो साल के नहीं हुए हैं पर कोल्डड्रिंक का स्वाद पहचानते हैं, इन्हें देख लो,मोबाइल इनका सबसे प्यारा खिलौना है, कुछ समझ में नहीं आता कि क्या किया जाये, किसी भी बात की जिद पर रोता-सर पटकने लगता है



मैं चिंतित हूं। जानता हूं, चिंता को चिता समान बताया गया है। फिर भी मैं चिंतित हूं। आप मेरी चिंता का रहस्य जानेंगे तो आप भी निश्चित ही चिंतित हो उठेंगे।
मैं चिंतित इस बात से नहीं कि लोकतंत्र खतरे में है! हमारा लोकतंत्र कभी खतरे में हो ही नहीं सकता। मैं जानता हूं- सेना, सरकार और नेता लोग मिलकर लोकतंत्र की बेहतर तरीके से रक्षा कर रहे हैं।



रस  घोला है  फिर चेतन  का /
शरमायी सुरमायी कली में,  
शोभे  आभा  नवयौवन  का //
डाल डाल  पर  नवल  राग में,
प्रत्यूष पवन का मृदु प्रकम्पन/
लतिका ललना की अठखेली में, 



भविष्‍य के हाथों में खंजर देकर देख लिया, अब गिरेबां में झांकने का वक्‍त

बच्‍चों में फैलती हिंसा पर पिछले कुछ दिनों में इतने लेख लिखे  गए हैं कि समस्‍या पीछे छूटती गई और लेखकों के अपने विचार  हावी होते गए। लेखकों में से कोई सरकारी नीतियों को, तो कोई  परिवारों के विघटन को और कोई सामाजिक ताने बाने को ध्वस्‍त  करते टीवी मोबाइल 



इस तरह ओझल हुए मेरी जिंदगी से

सारे रिश्ते जैसे टूट गए हों मुझसे

आँखों से दरिया इस कदर बहता न था

जाने ऐसी क्या ख़ता हो गई  मुझसे..


इसी के साथ आज बातें यहीं तक...आनंद ले ..

इक बगल में चाँद होगा इक बगल में रोटियाँ...






।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह..✍


एक क़दम आप.....एक क़दम हम
बन जाएँ हम-क़दम अब चौथे क़दम की ओर 
इस सप्ताह का विषय है
:::: इन्द्रधनुष ::::
उदाहरणः
इंद्रधनुष,
आज रुक जाओ जरा,
दम तोड़ती, बेजान सी
इस तूलिका को,
मैं रंगीले प्राण दे दूँ,
रंगभरे कुछ श्वास दे दूँ !
पूर्ण कर लूँ चित्र सारे,
रह गए थे जो अधूरे !

आप अपनी रचनाऐं शनिवार 3  फरवरी 2018  
शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं। चुनी गयी रचनाऐं 
आगामी सोमवारीय अंक 05 फरवरी 2018 में प्रकाशित होंगीं। 
इस विषय पर सम्पूर्ण जानकारी हेतु हमारा पिछले गुरुवारीय अंक 
11 जनवरी 2018 को देखें  या नीचे दिए लिंक को क्लिक करें 
सादर



मंगलवार, 30 जनवरी 2018

928....क्या थे महात्मा गांधी के अंतिम शब्द!


जय मां हाटेशवरी....
"धाँय...धाँय...धाँय..."। बंदूक से तीन गोलियाँ निकलीं। गोलियों की आवाज के बाद अगली आवाज थी ‘‘हे...राम...।"  70 साल पहले आज ही के दिन दिल्ली के बिरला भवन में नाथू राम गोडसे महात्मा गांधी के पैर छूने के लिए झुका और जब उठा तो उसने एक के बाद एक तीन गोलियां गांधी जी के सीने में दाग दीं.

पहली गोली- बापू के शरीर के दो हिस्सों को जोडऩे वाली मघ्य रेखा से साढ़े तीन इंच दाईं तरफ व नाभि से ढाई इंच ऊपर पेट में घुसी और पीठ को चीरते हुए निकल गई। गोली लगते ही बापू का कदम बढ़ाने को उठा पैर थम गया, लेकिन वे खड़े रहे।

दूसरी गोली- उसी रेखा से एक इंच दाईं तरफ पसलियों के बीच होकर घुसी और पीठ को चीरते हुए निकल गई। गोली लगते ही बापू का सफेद वस्त्र रक्तरंजित हो गया। उनका चेहरा सफेद पड़ गया और वंदन के लिए जुड़े हाथ अलग हो गए। क्षण भर वे अपनी सहयोगी आभा के कंधे पर अटके रहे। उनके मुंह से शब्द निकला हे राम।

तीसरी गोली- सीने में दाईं तरफ मध्य रेखा से चार इंच दाईं ओर लगी और फेफड़े में जा घुसी। आभा और मनु ने गांधीजी का सिर अपने हाथ पर टिकाया। इस गोली के चलते ही बापू का शरीर ढेर होकर धरती पर गिर गया, चश्मा निकल गया और पैर से चप्पल भी।
अहिंसा के इस पुजारी के प्राण हिंसा से लिये गये....जो शायद किसी भी प्रकार उचित नहीं था....


30 जनवरी के मायने
“बारूद में आग लगाने के इतिहासों से अलग
एक तीसरा इतिहास भी है
रहमतशाह की बीड़ियों और
मत्सराज की माचिस के बीच सुलहों का”।

मैंने गांधी को क्यों मारा?
         नाथूराम गोड़से
आजाद भारत के पहले खलनायक माने जाने वाले नाथुराम गोडसे जो पत्रकार थे ओर क्रान्तिकारी भी थे ने माहत्मा गांधी की तीन गोलिया मार के हत्या कर दी थी वो स्वन्त्रत भारत में पहले फांसी पर चढने वाले इंसान थे जो 19 मई 1910 को पुणे से अपनी जीवन यात्रा शुरु करी और अम्बाला की जेल में फासी के फन्दे पर
खत्म हुई बस हम इन्हे इतना ही जानते हैं इससे ज्यादा नही क्योकी भारत सरकार ने इनकी किताब  '' मैंने गाधीं को क्यों मारा?''  पर बैन लगा दिया था लेकिन हम आज आप तक वो भाषण पहुचा रहे है जो इन्होने आदालत में दिया था और हजारो लोग जिसे सुन कर रो पडे थें
 गोडसे ने गाधीं के हत्या करने के 150 कारण न्यायालय के समाने बताये थे। उन्होंने जज से आज्ञा  ली थी कि वे अपने बयानों को पढ़कर सुनाना चाहते है  उन्होंने वो 150 बयान  पढ़कर सुनाए। पर कांग्रेस सरकार ने नाथूराम गोडसे के गाँधी हत्या के कारणों के भाषण की किताब पर बैन लगा दिया कि वे  जनता के समक्ष न पहुँच पायें
हमें सिर्फ 3 भाग ही मिल सके हैं जिन्हे पढ कर आप स्वं ही विचार कर सकते है कि गोडसे के बयानों पर क्यो रोक लगाई ?




क्या थे महात्मा गांधी के अंतिम शब्द!
नई पुस्तक में कहा गया है कि मनु के दिमाग में ये शब्द इसलिए आए क्योंकि उनके अवचेतन मन में नोआखली में महात्मा गांधी की कही हुई यह बात गूंज रही थी कि '' यदि मैं रोग से मरूँ तो मान लेना कि मै इस पृथ्वी पर दंभी और रावण जैसा राक्षस था. मैं राम नाम रटते हुए जाऊं तो ही मुझे सच्चा ब्रह्मचारी, सच्चा महात्मा मानना.''
अलग-अलग राय
किताब के अनुसार महात्मा गांधी के निजी सचिव प्यारेलाल का भी मानना था कि गांधीजी ने मूर्छित होते समय जो शब्द निकले थे वे 'हे राम' नहीं थे. उनका कहना था कि महात्मा गांधी के अंतिम शब्द 'राम राम' थे. ये कोई आह्वान नहीं था बल्कि सामान्य नाम स्मरण था. समाचार एजेंसी भाषा से बातचीत में जानी-मानी गांधीवादी निर्मला देशपांडे ने इस बात से असहमति जताई है.
निर्मला गांधी का कहना था कि उस शाम बापू जब बिड़ला मंदिर में प्रार्थना के लिए जा रहे थे तब उनके दोनों ओर आभा और मनु थीं. आभा बापू की पौत्री और मनु उनकी पौत्रवधु थीं.

बापू के आख़िरी क्षण
 राष्ट्र पिता को मेरा कोटी कोटी नमन....
अब पेश है....आज के लिये मेरी पसंद के पांच लिंक....

फेसबुक के 'महिलाओं चूप्पी तोडों' ग्रुप में आज का मेरा लाइव साक्षात्कार

1st
https://www.facebook.com/jyoti.dehliwal/videos/1308815629222956/

2nd
https://www.facebook.com/jyoti.dehliwal/videos/1308823382555514/
3rd
https://www.facebook.com/jyoti.dehliwal/videos/1308837569220762/

नक़ाब
उनकी खामोशी नही टूटती
बल्कि और मजबूत हो जाती है
लेकिन जब उन्हें लगता है
हम टूट रहे हैं तो
वो एक और नक़ाब लगाते हैं
दया का
उन्हें इस बात का ज़रा भी
इल्म नहीं की उनके इन हरकतों से
हम उनसे बहुत दूर चले जाते हैं

तूने जिंदा कवि को मार दिया
मैं कहाँ संभाल पाऊँगा कविता
कविता - कविता के इस द्वन्द्व में
पिस जायेगी बेचारी मेरी कविता।
नहीं खोना चाहता कविता को
इसलिए संभालता हूँ कविता
चलो यह एक अच्छी बात हुई
भा गयी, कविता को कविता,
अरे अब पिसने की बारी, मेरी है

क्षणिकाएं
आपसी तालमेल देखा आज हुए सम्मलेन में
छिपी हुई प्रतिभा दिखी छोटे बड़े हर वर्ग में
है यहाँ अपनापन भाईचारा ना की कोई दिखावा
मन होने लगा अनंग इस पर्व में |

दुर्भाग्य - सौभाग्य
 जब भी  दुर्भाग्य प्रबल हुआ है
प्रभु की लीला सौभाग्य बनकर आगे रही है
आज बस इतना ही....

6 फरवरी यानी मंगलवारीय प्रस्तुति....उन सैनिकों के नाम.....
जो इस कड़ाके की सर्दी में भी.....हमारी सरहदों की रक्षा कर रहे हैं.....
उनके जजबे  पर आप की  या आप द्वारा  पढ़ी गयी  रचनाएं.....
4 फरवरी तक इस ब्लॉग के संपर्क प्रारूप द्वारा आमंत्रित है....


धन्यवाद।
एक क़दम आप.....एक क़दम हम
बन जाएँ हम-क़दम अब चौथे क़दम की ओर 
इस सप्ताह का विषय है
:::: इन्द्रधनुष ::::
उदाहरणः
इंद्रधनुष,
आज रुक जाओ जरा,
दम तोड़ती, बेजान सी
इस तूलिका को,
मैं रंगीले प्राण दे दूँ,
रंगभरे कुछ श्वास दे दूँ !
पूर्ण कर लूँ चित्र सारे,
रह गए थे जो अधूरे !

आप अपनी रचनाऐं शनिवार 27  जनवरी 2018  
शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं। चुनी गयी श्रेष्ठ रचनाऐं आगामी सोमवारीय अंक 05 फरवरी 2018 में प्रकाशित होंगीं। 
इस विषय पर सम्पूर्ण जानकारी हेतु हमारा पिछले गुरुवारीय अंक 
11 जनवरी 2018 को देखें  या नीचे दिए लिंक को क्लिक करें 
सादर
























सोमवार, 29 जनवरी 2018

927...लिख कुछ तितली या तितली सा बस.....हम-क़दम का तीसरा क़दम

सादर अभिवादन
हम-क़दम का तीसरा क़दम
शीर्षक था एक चित्र...
और ये चित्र चीख-चीख कर कह रहा था
कि मैं बसंत हूँ
मुझ पर लिखिए कविता...
पर अफसोस... नहीं हुइ जागृत भावनाएँ..
अब की बार हम सोचते हैं...
पाठकों से ही माँगा जाए शीर्षक..
या दे दें फिर से एक मुश्किल सा समझा जाने वाला
आसान विषय....देखें सोई हुई शेरनी (कविता)
जागृत होती है या नहीं...

जो भी होगा मंडल तय करेगा.....

चलिए अब तक की प्राप्त रचनाओं का ज़ायज़ा लें....



पंकज भूषण पाठक"प्रियम"
फूलों से तितली का जीवन
तितली फूलों का श्रृंगार है
तूम पी लो सारा रस मेरा
हम मुरझाने को तैयार हैं।


आदरणीया सुधा जी.. इन साईट
धानी चुनर ओढ़
धरणी मुस्काई
तितलियों को देख - देख
गोरी इठलाई

टेसू के फूल और
आम की मंजरियाँ
सुना रहे नित रोज
नई - नई कहानियाँ

भ्राता श्री विश्वमोहन जी  
पपीहे  की प्यासी पुकार में,
चिर संचित  अनुराग अनंत है.
सृष्टि का यह  चेतन क्षण है,
अलि! झूमो आया वसंत है .


आदरणीया नीतू ठाकुर
जल बिन सूख रहा था गुलशन 
तितली पल पल नीर बहाये 
जैसे गुलों में प्राण बसे हों 
ऐसे उनसे लिपटी जाये 
देख रही हर पल अंबर को 



आदरणीय लोकेश नशीने
नहीं गैरों की कोई फ़िक्र मैं अपनों से सहमा हूँ
बचाकर आँख जो पीछे से खंज़र मार देते हैं

कभी जब सांस लेती है मेरे एहसास की तितली
यहाँ के लोग तो फूलों को पत्थर मार देते हैं



आदरणीया रेणु बाला जी
डाल- डाल पे फिरे मंडराती -
तु बनी उपवन की रानी तितली ;
हरेक फूल को चूमे जबरन -
तु करती मनमानी तितली !


 आदरणीया सखि आँचल पाण्डेय
मधुकर के संग नए रागों को गाऊँ
बागों में कुसुम संग मैं खिलखिलाऊँ
फ़िर रस को चुराकर मगन उड़ जाऊँ
चुपके चुपके चुपके चुपके



आदरणीया सखि मीना शर्मा
बहारों का संदेशा ले,
वो जब उड़ती थी, थमती थी,
सरसराते थे रंग जीवंत होकर
फूल-फूल में, कली-कली में !
उतर आते थे शाखों पर,
फ़िजाओं में, हजारों रंग बिखरते थे !!!




 सखी वैभवी पाण्डेय
मद भरी मादक 
सुगन्ध से 
आम्र मंजरी की
पथ-पथ में....
कूक कूक कर
इत-उत
इतराती फिरे
बावरी
कोयलिया....


भगिनी दिव्या अग्रवाल
स्वर्ण चुनर
ओढ़ वसुधा झूमी
महकी हवा

पीने पराग
तितलियाँ मचली
लगी बौराने


आदरणीय सखि सुधा देवराणी
रंग बिरंगे पंखो वाली
इक नन्हीं सी तितली आयी
पास के फूलों में वह बैठी,
कभी दूर जा मंडरायी...
नाजुक रंग बिरंगी पंखों को
खोल - बन्द कर इतरायी
थोड़ी दूर गई पल में वह
अपनी सखियों को लायी....
भाँति-भाँति की सुन्दर तितलियां
मिन्नी के मन को भायी ।




आदरणीय सखी कुसुम कोठारी जी
फूल फूल डोलत तितलियां
कोयल गाये मधु रागिनीयां
मयूर पंखी भई उतावरी
सजना चाहे भाल तुम्हारी
हरि आओ ना।


सखी श्वेता सिन्हा
एक गुनगुना एहसास 
बंद मुट्ठियों तक आ पहुँचा
पसीजी हथेलियों की 
आडी़ तिरछी लकीरों से
अनगिनत रंग बिरंगे
सोये ख़्वाब फिर से
ख़्वाहिशों के आँगन में
तितली बन उड़ने लगे।




आदरणीय डॉ. सुशील जोशी जी
एक तितली 
सोच कर 
उसे उड़ाने की 

तितली होती है 
कि नजर 
ही नहीं आती है 

तितली को 
कहाँ पता होता है 
उसपर किसी को 
कुछ लिखना है 
.................
आप सभी को आभार...
इस बार जितनी भी रचनाएँ आई वे सब शामिल है
क्रम सुविधानुसार दिया गया है..
श्रेष्ठ रचनाओ का आंकलन आप स्वयं करेंगे
अगला विषय कल के अंक में
इज़ाज़त दें..
यशोदा







रविवार, 28 जनवरी 2018

926......मोहितपन

सादर अभिवादन
आज हमने भी कोशिश की
एक विषय तो नहीं
पर हाँ, एक ही ब्लॉग से ज़रूर  है
सिखाया तो आदरणीय विभा दीदी ने ही
उनके जैसी प्रस्तुति बनी या नहीं
ये आप ही बतलाएँगे
प्रस्तुत है उन्हीं की स्टाईल में
हमारी प्रस्तुति...

मोहितपन

रहनुमा अक्स
पिघलती रौशनी में यादों का रक़्स,
गुज़रे जन्म की गलियों में गुम शख़्स,
कलियों की ओस उड़ने से पहले का वक़्त।  
शबनम में हरजाई सा रंग आया है,
जबसे तेरे अक्स को रहनुमा बनाया है...



मोहितपन

अंतर्मन-"काश मैं अमिताभ बच्चन का अंतर्मन होता।"
मोहित-"फिर पूरी ज़िन्दगी में 4 फिल्में करते अमिताभ साहब। इतना सर्व चूज़ी अंतर्मन लेके
फँस जाते...कच्छों के डिज़ाइन तक में उलझ जाता है और बात अमित जी की करता है!"
अंतर्मन-"मतलब ये कहानी फाइनल है?"
मोहित-"हाँ! हाँ! हाँ!"
अंतर्मन-"एक मिनट, बाहर की शादी के शोर में सुना नहीं मैंने। ये 'हा हा हा' किया या तीन बार हाँ बोला?"

यादों की तस्वीर
आज रश्मि के घर उसके कॉलेज की सहेलियों का जमावड़ा था। 
हर 15-20 दिनों में किसी एक सहेली के घर समय बिताना इस समूह का नियम था। 
आज रश्मि की माँ, सुमित्रा से 15 साल बड़ी मौसी भी घर में थीं।

प्रतिक्रियाओं पर प्रतिक्रिया
आम जनता हर रचनात्मक काम को 3 श्रेणियों में रखती है - 
अच्छा, ठीक-ठाक और बेकार। 
हाँ, कभी-कभार कोई काम "बहुत बढ़िया / 
ज़बरदस्त" हो जाता है और कोई काम 
"क्या सोच कर बना दिया? / महाबकवास" हो जाता है।

काल्पनिक निष्पक्षता 
"जगह देख कर ठहाका लगाया करो, वर्णित! 
तुम्हारे चक्कर में मेरी भी हँसी छूट जाती है। 
आज उस इंटरव्यू में कितनी मुश्किल से संभाला मैंने...
हा हा हा।"
इंटरनेटिया बहस के मादक प्रकार
धप्पा बहस,लिहाज़ बहस,शान में गुस्ताख़ी बहस,
लाचार बहस,छद्म बहस, गलतफहमी बहस, .
टाईम पास बहस, अनुसंधान बहस

झुलसी दुआ
हमेशा हँसमुख, आशावादी रहने वाला, 
आज जीवन में पहली बार हार मान चुका सोमेश 
ऊपर देखते हुए रुंधे गले से बोला -  "भगवान बहुत दर्द सह लिया इसने, 
प्लीज़ इस औरत को मार दो भगवान। इसे अपने पास बुला लो...प्लीज़ इसे मार दो..."

यशोदा
सादर

शनिवार, 27 जनवरी 2018

925... जन्मभूमि


सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष

सच के पीछे का झूठ सच है
या झूठ है झूठ के पीछे का सच
देश की सम्पत्ति नष्ट करने वाले
अपराध को देशद्रोह समझना हितकर
"जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी"

जन्मभूमि

मैं स्‍वीकार करता हूँ, मैं सब स्‍वीकार करता हूँ और
भव्‍य समुद्र से दूर पानी के बुलबुले की तरह रो पड़ता हूँ,
मेरे देश की देह मेरे हताश हाथों में लेटी हुई है आश्‍चर्य से
उसकी हड्डियाँ थराथरा गई हैं, और उसकी नसों में ख़ून ठहर जाता है
पत्तियों से निकलते दूध की बूंद की तरह,
फिर घाव के मुहाने पर आकर ठिठक जाता है...





इसके आन पे अगर जो बात कोई आ पड़े ।
इसके सामने जो ज़ुल्म के पहाड़ हों खड़े ।
शत्रु सब जहान हो, विरुद्ध आसमान हो ।
मुकाबला करेंगे जब तक जान में ये जान है ॥


जिसका मुकुट हिमालय
जग जगमगा रहा है
सागर जिसे रतन की
अंजुलि चढ़ा रहा है
वह देश है हमारा
ललकार के कहेंगे
इसे देश की बिना
हम जीवित नहीं रहेंगे
हम अर्चना करेंगे...


हर युग में अवतारों ने आततायी संहारे। 
सत्य अहिंसा और धर्म के पाठ पढ़ाये न्यारे। 
यह वह देश जहाँ नारी ने शक्ति रूप हैं धारे। 
गंगा जहाँ अभ्यंग कराये, जलनिधि पाँव पखारे।


जन्मभूमि सड़क पर यु पी पी ने सुरक्षा घेरा डाल रखा था।
अब मंदिर की तरफ़ आगे बढे तो दर्शनार्थियों का रेला लगा हुआ था।
गेट पर पहले मैनुअली एवं मेटल डिक्टेटर लगा कर दर्शनार्थियों की जांच की जा रही थी।
जेब में रुपए पैसों को छोड़कर कुछ भी भीतर नहीं ले जाने दिया जा रहा था।
मोबाईल इत्यादि बाहर ही रखवाया जा रहा था।


Image result for जन्मभूमि पर कविता


◆◆◆◆◆◆◆
एक क़दम आप.....एक क़दम हम
बन जाएँ हम-क़दम का तीसरा क़दम 
इस सप्ताह का विषय
एक चित्र है...


इस चित्र को देखकर एक रचना लिखिए
उदाहरणः
हो रहे
पात पीत
सिकुड़ी सी
रात रीत
ठिठुरन भी
गई बीत
गा रहे सब
बसंत गीत
भरी है
मादकता
तन-मन-उपवन में
समय होता
यहीं व्यतीत
बौराया मन
बौरा गया तन
और बौराई
टेसू-पलाश
गीत-गात में
भर गई प्रीत

-मन की उपज

...........................
यह चित्र देखकर आप पच्चीस विषयों पर रचना लिख सकते हैंः
मसलनः तितली, फूल, मकरंद,पराग, मौसम, पत्ते, डाल, रंग
इत्यादि इत्यादि

आप अपनी रचनाऐं आज (शनिवार 27 जनवरी 2018) शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं। 
चुनी गयी श्रेष्ठ रचनाऐं आगामी सोमवारीय अंक 29 जनवरी 2018 में प्रकाशित होंगीं। 
इस विषय पर सम्पूर्ण जानकारी हेतु हमारे पिछले गुरुवारीय अंक 
11 जनवरी 2018  को देखें  या नीचे दिए लिंक को क्लिक करें 

फिर मिलेंगे

शुक्रवार, 26 जनवरी 2018

924...सरकारी आयोजन मात्र नहीं, है ये राष्ट्रीय त्योहार

"गणतंत्र का मतलब हमारा संविधान,
हमारी सरकार हमारे अधिकार और हमारे कर्तव्य"

भारत का संविधान, भारत का सर्वोच्च विधान है 
जो संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को पारित हुआ 
तथा 26 जनवरी 1950 से प्रभावी हुआ वो लिखित दस्तावेज़ है 
जिसमें हर एक आम और ख़ास के अधिकार और कर्तव्य अंकित है।

 हम सब  अपने अधिकारों के प्रति इतने सजग होते है 
कि आक्रोश व्यक्त करने के लिए अपनी राष्ट्रीय संपत्ति का 
सबसे पहले नुकसान करते हैं।
कभी सोचियेगा अपने कर्तव्यों प्रति हम कितने सजग है?
 सार्वजनिक स्थलों पर लिखे नियम पढ़ते तो सभी है पर 
इन नियमों का पालन हम में से कितने लोग करते हैं?
 सार्वजनिक स्थलों पर नागरिकों द्वारा किये गये  आचरण और 
व्यवहार तय करते है कि किसी भी देश के नागरिक 
कितने सभ्य और सुसंस्कृत हैं। 
हर नागरिक अगर अपना सिर्फ़ एक कर्तव्य सुनिश्चित कर ले 
तो इससे बढ़कर देशभक्ति और कुछ नहीं होगी।

अब चलिए आज की रचनाएँ पढ़ते है......

आदरणीय पुरुषोत्तम जी

उठो देश!
देखो ये उन्मुक्त मन,
आकर खड़ा हो सरहदों पे जैसे,
लेकिन कल्पना के चादर,
आरपार सरहदों के फैलाए तो कैसे,
रोक रही हैं राहें 
ये बेमेल सी विचारधाराएं,
भावप्रवणता हैं विवश,
◆◆◆◆◆◆
आदरणीया कविता रावत जी

अपने धार्मिक स्थलों मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा आदि में 
देश की एकता, सुख-समृद्धि और सुरक्षा के लिए प्रार्थना करें। 
मातृ-भूमि के लिए हंसते-हंसते अपने प्राण न्यौछावार कर 
देने वाले अमर वीर सपूतों को सारे भेदभाव भुलाकर एक 
विशाल कुटुम्ब के सदस्य बनकर याद करें।
◆◆◆◆◆◆◆◆◆
आदरणीया रेणुबाला जी

जिन्होंने  वारे  लाल   वतन  पे  -
नमन  करो   उन  माँओं   को ,
जिनके  मिटे सुहाग  देश - हित- 
शीश  झुकाओं  उन  ललनाओं को !!!!!!!!!!
◆◆◆◆◆◆◆◆◆
आदरणीय सुरेश स्वप्निल जी
बाज़ को आस्मां  मिला  जबसे
ख़ौफ़  में   अंदलीब    रहते  हैं

शाह कुछ अहमियत नहीं  देते
किस वहम में  अदीब  रहते हैं
◆◆◆◆◆◆◆◆
आदरणीया पूनम जी
ये समापन काल इस युग का
फैल रही हर जगह व्याधि
क्षत-विक्षत मानवता की कार्यपद्धति,
ले रहा कलयुग  समाधि ।
ले रहा कलयुग समाधि ।।
◆◆◆◆◆◆
आदरणीया डॉ.शरद सिंह
चार क़िताबें पढ़ कर दुनिया को पढ़ पाना मुश्क़िल है।
हर अनजाने को आगे बढ़, गले लगाना मुश्क़िल है।
◆◆◆◆◆◆
आदरणीय अरुण साथी जी


करणी सेना हो या मोहम्मदी सेना। देश को अपने कुकृत्य से बदनाम कर रहे है। देश कभी माफ नहीं करेगा। आज सेकुलर होना गाली बताया जा रहा फिर कट्टरपंथी होना क्या है..आप सोंचिये..!
◆◆◆◆◆◆◆
और चलते-चलते प्रसिद्ध पंक्तियाँ आप भी गुनगुनाइये
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी यह गुलसिताँ हमारा

ग़ुर्बत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ हमारा
◆◆◆◆◆◆◆
एक क़दम आप.....एक क़दम हम
बन जाएँ हम-क़दम का तीसरा क़दम 
इस सप्ताह का विषय
एक चित्र है...
इस चित्र को देखकर एक रचना लिखिए
उदाहरणः
हो रहे
पात पीत
सिकुड़ी सी
रात रीत
ठिठुरन भी
गई बीत
गा रहे सब
बसंत गीत
भरी है
मादकता
तन-मन-उपवन में
समय होता
यहीं व्यतीत
बौराया मन
बौरा गया तन
और बौराई
टेसू-पलाश
गीत-गात में
भर गई प्रीत

-मन की उपज

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यह चित्र देखकर आप पच्चीस विषयों में रचना लिखसकते हैंः
मसलनः तितली, फूल, मकरंद,पराग, मौसम, पत्ते, डाल, रंग
इत्यादि इत्यादि
आप अपनी रचनाऐं शनिवार (27  जनवरी 2018 ) 
शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं। चुनी गयी श्रेष्ठ रचनाऐं आगामी सोमवारीय अंक (29 जनवरी 2018 ) में प्रकाशित होंगीं। 
इस विषय पर सम्पूर्ण जानकारी हेतु हमारे पिछले गुरुवारीय अंक 
(11 जनवरी 2018 ) को देखें  या नीचे दिए लिंक को क्लिक करें 
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आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ
आपके बहुमूल्य साथ और सुझावों की प्रतीक्षा में

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