सादर अभिवादन
"जिस साहित्य से हमारी सुरुचि न जागे, आध्यात्मिक और मानसिक तृप्ति न मिले,हममें गति और शक्ति न पैदा हो, हमारा सौंदर्य प्रेम
न जागृत हो,जो हमें संकल्प और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त
करने की सच्ची दृढ़ता न उत्पन्न करे, वह हमारे लिए बेकार है।
वह साहित्य कहलाने का अधिकारी नहीं।"
मुंशी प्रेमचंद का यह सारगर्भित कथन स्वयंसिद्ध है।
साहित्यिक अभिरुचि , साहित्यिक अनुराग पैदा करने में निरंतर प्रयासत हमारे इस मंच में आज पाठकों की पसंद के तहत पढ़िये आदरणीया "सुधा देवरानी" जी की पसंद की रचनाएँ। सुधा जी साहित्य में रूचि रखने वाली एक प्रबुद्ध और संवेदनशील कवियत्री हैं। समसामयिक और प्रेरक कविताओं द्वारा पाठकों के मन को छूने वाली सुधा जी की लेखनी अधिकतर समाज के अनछुये पहलुओं पर प्रकाश डालती है।
आइये पढ़ते है हम सुधा जी पसंद की रचनाएँ-
खलिश बढ़ती रही घर में, मगर कुछ बोल ना पाता।
फजीहत जब हुई ज्यादा, शहर को रंग दिखलाता।
एक बार फिर से हिन्दी में ग़ज़ल कहने का प्रयास है ....
गुरुदेव पंकज जी के आशीर्वाद ने इसको संवारा है ....
आपके स्नेह, सुझाव और आशीर्वाद की आकांक्षा है .......
आज प्रतिदिन सत्य का होता हरण है
देश का बदला हुवा वातावरण है
काम और युद्ध प्रवृत्ति में बंधा मैं,
हमेशा हिंसा करने को आतुर,
अंतर है तो बस सामाजिक होने का।
नंगे पाँव , दोरंगे फटे जूते पहने
हजारों सालों पहले तक इंसान शिकार से जीता था। स्त्री की
शारीरिक संरचना ऐसी नहीं थी कि वह शिकार कर सके।
इसलिए जो भोजन जुटा रहा है वह मालिक बन बैठा।
लेकिन अब स्त्री और पुरुष दोनों कमा सकते है। इसलिए
दोनों मालिक बनना चाहते है। आज की नारी यह मानती है
कि वास्तव में कोई मालिक नहीं और कोई ग़ुलाम नहीं।
खत के अंत में यह लिखने की जरुरत नहीं है कि "तुम्हारी दासी"!
आज की नारी, प्रेमचंद की ऐसी पात्रा नहीं है जो अपनी इच्छाओं का
दमन करती हुई, चुपचाप सारे अन्याय सहती रहे।
आपको कैसा लगा हमारा यह नया प्रयास...
आप सभी के बहुमूल्य सुझावों की प्रतीक्षा में
देहरादून(उत्तराखंड) से, विज्ञान वर्ग से स्नातक एवं हिन्दी से स्नातकोत्तर... विगत10 वर्षों के अध्यापन का सुखद अनुभव, वर्तमान में मात्र गृहणी ,पठन - पाठन में विशेष रुचि ; संवेदनशील एवं न्यायप्रिय हूँ, मन के भावों को कभी -कभार लिख लिया करती हूँ,
वैसे मैं पूर्णतः पाठिका हूँ..।
शुभ प्रभात सखी सुधा जी
जवाब देंहटाएंश्रेष्ठ पसंद है आपकी
आपकी पसंद बयां करती है कि
आप एक अच्छी पाठिका भी हैं
आभार...आपने हमारे आग्रह का मान रखा
हम आपको और आवाज देंगे...
सादर
सुन्दर!!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय यशोदा जी !
जवाब देंहटाएंआप जैसे अनुभवियों के सानिध्य की आकांक्षी हूँ....
सादर आभार
सुंदर अन्वेषण के साथ अतुल्य प्रस्तुति सुधा जी।
जवाब देंहटाएंआवाज की मान रखना बड़ी बात है आदरणीया का
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स चयन तो प्रस्तुतीकरण बेहद खूबसूरत
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात.
जवाब देंहटाएंआदरणीया सुधा जी की पसंद की रचनाएँ अपनी सुन्दर छटा बिखेर रहीं हैं. स्वागत है आपकी पहली प्रस्तुति का.
अग्रलेख में मुंशी प्रेमचंद की साहित्य को परिभाषित करती पंक्तियाँ कालजयी हैं.
सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनायें .
बहुत सुन्दर प्रस्तुति श्वेता जी। आभार सुधा जी 'उलूक' के सूत्र को अपनी पसन्द में जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंवाह!आज तो खूब विविध रंगो की छटा है सभी रचनाएं बहुत बढिया..
जवाब देंहटाएंमुंशी प्रेमचंद की शब्दों से भूमिका अति उत्तम
धन्यवाद सुधा जी।
सुधा जी, आपके द्वारा चयनित सभी रचनाए बहुत बढिया हैं। मेरी रचना को भी इतना मान देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनायें .
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुभ संध्या रचनाकार की प्रशांत पढ़कर आनंद आया बहुत ही सुंदर आभार आपका
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कड़ियाँ
जवाब देंहटाएंचयनित सभी रचनाए बहुत बढिया हैं
जवाब देंहटाएंमेरी पसंदीदा रचनाओं को यहाँ स्थान देने के लिए मैं श्वेता जी एवं हलचल प्रस्तुति के सभी चर्चाकारों की आभारी हूँ
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत में और भी बहुत से श्रेष्ठ रचनाकार हैं जिनकी रचनाएं मेरे मन-मस्तिष्क में हमेशा अपनी छाप छोड़ती हैं जिन्हें मैं अपनी पठन सूची में सर्वोपरि रखती हूँ।सिर्फ सात रचनाएं ही चुननी थी इसलिए उन्हें स्थान न दे पायी ...
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई ।
सादर आभार