सादर अभिवादन
आज हमने भी कोशिश की
एक विषय तो नहीं
पर हाँ, एक ही ब्लॉग से ज़रूर है
सिखाया तो आदरणीय विभा दीदी ने ही
उनके जैसी प्रस्तुति बनी या नहीं
ये आप ही बतलाएँगे
प्रस्तुत है उन्हीं की स्टाईल में
हमारी प्रस्तुति...
मोहितपन
रहनुमा अक्स
पिघलती रौशनी में यादों का रक़्स,
गुज़रे जन्म की गलियों में गुम शख़्स,
कलियों की ओस उड़ने से पहले का वक़्त।
शबनम में हरजाई सा रंग आया है,
जबसे तेरे अक्स को रहनुमा बनाया है...
मोहितपन
अंतर्मन-"काश मैं अमिताभ बच्चन का अंतर्मन होता।"
मोहित-"फिर पूरी ज़िन्दगी में 4 फिल्में करते अमिताभ साहब। इतना सर्व चूज़ी अंतर्मन लेके
फँस जाते...कच्छों के डिज़ाइन तक में उलझ जाता है और बात अमित जी की करता है!"
अंतर्मन-"मतलब ये कहानी फाइनल है?"
मोहित-"हाँ! हाँ! हाँ!"
अंतर्मन-"एक मिनट, बाहर की शादी के शोर में सुना नहीं मैंने। ये 'हा हा हा' किया या तीन बार हाँ बोला?"
यादों की तस्वीर
आज रश्मि के घर उसके कॉलेज की सहेलियों का जमावड़ा था।
हर 15-20 दिनों में किसी एक सहेली के घर समय बिताना इस समूह का नियम था।
आज रश्मि की माँ, सुमित्रा से 15 साल बड़ी मौसी भी घर में थीं।
प्रतिक्रियाओं पर प्रतिक्रिया
आम जनता हर रचनात्मक काम को 3 श्रेणियों में रखती है -
अच्छा, ठीक-ठाक और बेकार।
हाँ, कभी-कभार कोई काम "बहुत बढ़िया /
ज़बरदस्त" हो जाता है और कोई काम
"क्या सोच कर बना दिया? / महाबकवास" हो जाता है।
काल्पनिक निष्पक्षता
"जगह देख कर ठहाका लगाया करो, वर्णित!
तुम्हारे चक्कर में मेरी भी हँसी छूट जाती है।
आज उस इंटरव्यू में कितनी मुश्किल से संभाला मैंने...
हा हा हा।"
इंटरनेटिया बहस के मादक प्रकार
धप्पा बहस,लिहाज़ बहस,शान में गुस्ताख़ी बहस,
लाचार बहस,छद्म बहस, गलतफहमी बहस, .
टाईम पास बहस, अनुसंधान बहस
झुलसी दुआ
हमेशा हँसमुख, आशावादी रहने वाला,
आज जीवन में पहली बार हार मान चुका सोमेश
ऊपर देखते हुए रुंधे गले से बोला - "भगवान बहुत दर्द सह लिया इसने,
प्लीज़ इस औरत को मार दो भगवान। इसे अपने पास बुला लो...प्लीज़ इसे मार दो..."
सुप्रभातम् दी,
जवाब देंहटाएंएक ही लेखक की इतनी सारी विविधापूर्ण रचनाएँ बेहद अनूठी लगी। ये प्रयोग सच में अलग है। सारी रचनाएँ बहुत अच्छी लगी। इस अलग प्रस्तुति के लिए आभार आपका दी।
पापा की परियां
हटाएंकंधो पर झूलती बेटियों की किलकारियां
शरारत से जेब से सिक्के चुराती तितलियां
लेटे हुऐ बाप पर छलांग लगाती शहजादियां
टांगों पर झूले झूलती यह जन्नत की परियां
सोचता हूं बार बार सोचता हूं
बाप बेटियों को कितना प्यार करता होगा
सुबह सुबह जब काम के लिये निकलता होगा
दिल में नामालूम सी कसक तो रखता होगा
उसके जहन में ख्यालात कहर मचाते होंगे
सुबह देर तक सोई बेटी के माथे को चूमना
जल्द उठने पर उसको साथ पार्क ले जाना
कभी उदास मन से बालकनी में तन्हा छोड़ जाना
बाप कितना प्यार करता होगा आखिर कितना ?
वक्त ही कितना होता है कितनी तेज है जिंदगी
वो रुकना चाहता है लेकिन वो रुक नहीं सकता
कभी कभी तो गली के नुक्कड़ से मुड़ते हुऐ
एक नजर डालने के लिये भी वो रुक नहीं सकता
उसे जाना होता है फिर लौट आने के लिये,
मनमोहक मोहितपन मोह में बाँध लिया
जवाब देंहटाएंसस्नेहाशीष संग शुभ प्रभात छोटी बहना
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति
हूबहू विभा जी जैसी
वाह नया अन्दाज।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम प्रस्तुति दी।
जवाब देंहटाएंएक लेखनी भिन्न रंग सभी सुंदर सरस।
सुप्रभात शुभ दिवस।
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह!!बहुत सुंदर प्रस्तुति। एक ही लेखक के लिखे विभिन्न रंग वाह!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रयास पसंद आया आभार आपका
जवाब देंहटाएंएक लेखक के विभिन्न रंग..
जवाब देंहटाएंएक और सुंंदर सफल प्रयास
आभार।
पापा की परियां
जवाब देंहटाएंकंधो पर झूलती बेटियों की किलकारियां
शरारत से जेब से सिक्के चुराती तितलियां
लेटे हुऐ बाप पर छलांग लगाती शहजादियां
टांगों पर झूले झूलती यह जन्नत की परियां
सोचता हूं बार बार सोचता हूं
बाप बेटियों को कितना प्यार करता होगा
सुबह सुबह जब काम के लिये निकलता होगा
दिल में नामालूम सी कसक तो रखता होगा
उसके जहन में ख्यालात कहर मचाते होंगे
सुबह देर तक सोई बेटी के माथे को चूमना
जल्द उठने पर उसको साथ पार्क ले जाना
कभी उदास मन से बालकनी में तन्हा छोड़ जाना
बाप कितना प्यार करता होगा आखिर कितना ?
वक्त ही कितना होता है कितनी तेज है जिंदगी
वो रुकना चाहता है लेकिन वो रुक नहीं सकता
कभी कभी तो गली के नुक्कड़ से मुड़ते हुऐ
एक नजर डालने के लिये भी वो रुक नहीं सकता
उसे जाना होता है फिर लौट आने के लिये,
http://deshwali.blogspot.com/2018/01/blog-post_25.html?spref=bl
मनमोहक प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय यशोदा दी -- आज का लिंक संयोजन देख मन आह्लादित हो उठा | प्रिय मोहित ' जहन ' की सुंदर रोचक रचनाएँ एक ही दिन देख बहुत आनंद हुआ | मोहित जी को मैं शब्द नगरी पर अनेक बार पढ़ चुकी हूँ | उनके लेखन का रंग औरों से एकदम जुदा और रोचक है | छोटे - छोटे से मर्मान्तक प्रसंग मन को छु लेते हैं | '' काश मैं अमिताभ बच्हन का मन होता !'' जैसी कल्पना सिर्फ मोहित जी ही कर सकते हैं |कंक्रीट के जंगलों में उपजी असंवेदनशीलता और शातिरपन की कई कहानियां हतप्रभ कर देती हैं | वे किस कथित वर्जित विषय पर रचना लिख डालें --कुछ कह नहीं सकते | उनकी रचनाएँ मन में करुना भी जगती हैं तो उन्हें पढ़कर बरबस मुस्कुराने को मन भी करता है | उन्हें हार्दिक बधाई देती हूँ --कि आज पांच लिंकों में अपनी छटा बिखेर रही है | और आपकी पारखी दृष्टि की सराहना करती हूँ और संयोजन की सफलता पर बधाई देती हूँ | मेरी शुभकामनाएं --
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बधाई प्रिय मोहित |
जवाब देंहटाएंनमस्ते! आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद! यह मंच और यहाँ से जुड़े पारखी पाठक/लेखक/कवि जन मेरे लिए भी प्रेरणा के स्रोत हैं। पाँच लिंकों के आनंद पर मेरे साथ ऐसा दूसरी बार हुआ है जब एक पोस्ट पर सभी लिंक मेरे ब्लॉग्स से हों। इस सम्मान से अभिभूत हूँ। :)
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