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मंगलवार, 23 जनवरी 2018

921...मां का प्राणों से प्यारा, पुत्र आखिर गया कहां,

जय मां हाटेशवरी....
आज का दिन अर्थात 23 जनवरी 1897 का दिन विश्व इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है क्योंकि इस दिन स्वतंत्रता आंदोलन के महानायक सुभाषचन्द्र बोस का जन्म हुआ था। वही सुभाष चन्द्र बॉस जिन्होनेदेश के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया
आज की प्रस्तुति उन्ही को समर्पित करते हुए.....
मैं इस महानायक को कोटी-कोटी नमन करता हूं....
तुम मुझे खून दो...मैं तुम्हें आजादी दूँगा
मैं जिनके बारे में लिखने जा रहा हूँ। उनके लिए मेरी लेखनी बहुत छोटी पड जाती है । और अल्फ़ाजों से जिनकी तारीफ़ नही की जा सकती।   
वतन से किस कदर मोहब्बत की जाती है । ये उन से सीखी जा सकने वाली बात है । इन्हें मोहब्बत थी अपने वतन की फ़िजाओ से , अज्जाओ से , ख़ाक से राख से हर उस शख्स से जो उनके वतन का बाशिंदा था । वो मांगने के बजाय अपने अधिकार छीन लेने में विश्वास करते थे ।
जिनके दिलों दिमाग में बस एक ही बात थी वतन की आजादी और एक ऐसी युवा कोम जो अपने इल्म से , अपनी तालीम से वतन-ए-हिन्द को वो मुक्काम दिला सके जिसका वो सदियों से हकदार था और रहा ।इनके जन्मदिवस को देशप्रेम के रूप में मनाया जाता है । हमे सीखना चाहिए की सर-ज़मीं से मोहब्बत किस कदर की जा सकती है ।

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पूरा नाम  – सुभाषचंद्र जानकीनाथ बोस
जन्म       – 23 जनवरी 1897
जन्मस्थान – कटक (ओरिसा)
पिता       – जानकीनाथ
माता       – प्रभावती देवी
शिक्षा      – 1919 में बी.ए. 1920 में आय.सी.एस. परिक्षा उत्तीर्ण।
सुभास चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता थे। जिनकी निडर देशभक्ति ने उन्हें देश का हीरो बनाया। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया था। बाद में सम्माननीय नेताजी ने पहले जर्मनी की सहायता लेते हुए जर्मन में ही विशेष भारतीय सैनिक कार्यालय की स्थापना बर्लिन में 1942 के प्रारम्भ में की, जिसका
1990 में भी उपयोग किया गया था।

महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता संग्राम के लिए शांतिपूर्ण व अहिंसक मार्ग को अपनाया था जिसके केंद्र में मूल विचार अहिंसा थी। जबकि बोस का मानना था कि सिर्फ व्यापक हिंसा ही अंग्रेजों को देश छोडऩे के लिए मजबूर कर सकती है। भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के जारी रहने के पीछे सबसे बड़ा कारण था भारतीय सैनिकों की ब्रिटिश राज के प्रति वफादारी। एक बार यह समाप्त हो जाए तो फिर ब्रिटिश राज भारत में एक दिन भी कायम नही रह सकता था। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बोस वैश्विक शक्तियों की सहायता लेना चाहते थे, जिससे औपनिवेशिक साम्राज्य पर सैनिक दबाव बनाया जा सके और ब्रिटिश राज को उखाड़ फेंका जा सके। आज उपलब्ध तिहासिक अंत: दृष्टि ने यह साबित कर दिया है कि यह बोस की वृहत रणनीतिक सोच व बोस और उनकी आईएनए का ही साया था जिसने रॉयल भारतीय सेना तथा भारतीय सेना की इकाइयों में बगावत को प्रेरित किया था, जिससे अंग्रेज देश छोडऩे को विवश हुए। आज उस ऐतिहासिक बहस को पुन: समझना मार्गदर्शक हो सकता है, क्योंकि जिस व्यक्ति के प्रयास वास्तविक रूप से भारत को स्वतंत्रता दिलाने के केंद्र में रहे, 
उस व्यक्ति की समझ और निष्ठा पर सवाल उठाए जा रहे हैं। सावधानीपूर्वक निर्मित की गई लोकप्रिय समझ के विपरीत 
हकीकत यह है कि अहिंसा स्वतंत्रता दिलाने में असफल हो 
चुकी थी। इसको काफी कुछ बांध कर रखा गया था और 
दूसरे विश्व युद्ध के बाद तो यह समाप्त सा हो चुका था। कांग्रेस ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन छेड़ा था। अंग्रेजों ने इसका जवाब पूरे कांग्रेस नेतृत्व को जेल में डालकर दिया था। 

 राष्ट्रवाद मानव जाति के उच्चतम आदर्शों
सत्यम, शिवम्, सुन्दरम से प्रेरित है.
 भारत में राष्ट्रवाद ने एक ऐसी शक्ति का
संचार किया है जो लोगों के अन्दर सदियों से निष्क्रिय पड़ी थी..
 याद रखिये सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना
और गलत के साथ समझौता करना है.
 
(नेताजी का अंतिम भाषण) जरूर पढ़ें.... 
भारत और भारत के बाहर अनेक भारतीय हैं, जो यह मानते हैं कि संघर्ष के ऐतिहासिक तरीके से ही भारत की आजादी प्राप्‍त की जा सकती है। ये लोग ईमानदारी से यह अनुभव करते हैं कि ब्रिटिश सरकार नैतिक दबावों अथवा अहिंसक प्रतिरोध के समक्ष घुटने नहीं टेकेगी, फिर भी भारत से बाहर रह रहे भारतीय, तरीकों के 
मत-भेद को घरेलू मत-भेद जैसा मानते हैं। जबसे आपने दिसंबर 1929 की लाहौर कांग्रेस में स्‍वतंत्रता का प्रस्‍ताव पारित कराया था, भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस के सभी सदस्‍यों के समक्ष एक ही लक्ष्‍य था। भारत के बाहर रहने वाले भारतीयों की दृष्‍टि में आप हमारे देश की वर्तमान जागृति के जनक हैं और वे इस पद के उपयुक्‍त सम्‍मान आपको देते हैं। दुनिया-भर के लिए हम सभी भारतीय राष्‍ट्रवादी हैं। हम सभी भारतीय राष्‍ट्रवादियों का एक ही लक्ष्‍य है, एक ही आकांक्षा है। 1941 में भारत छोड़ने के बाद मैंने ब्रिटिश प्रभाव से मुक्‍त जिन देशों का दौरा किया है, उन सभी देशों में आपको सर्वोच्‍च सम्‍मान की दृष्‍टि से देखा जाता है-पिछली शताब्‍दी में किसी अन्‍य भारतीय 
राजनेता को ऐसा सम्‍मान नहीं मिला।

नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 18 अगस्त 1945 में ताइवान के फोरमोस में हुई विमान दुर्घटना की गुत्थी अभी तक अनसुलझी है। कुछ का कहना है कि इस दुर्घटना में जैसा की आधिकारिक रूप से बताया गया है कि वे सचमुच दुर्घटना के शिकार होकर मारे गए थे। लेकिन कई का मानना है कि यह एक साजिश थी और नेताजी को सुरक्षित निकल जाने के लिए यह साजिश रची गई। कई का मानना है कि नेताजी इसके बाद सर्बिया चले गए तो कुछ का मानना है कि वे भारत में भी कहीं गुमनाम जीवन गुजारने लगे। सच्चाई क्या है पिछले 70 साल से लोग जानना चाहते हैं, लेकिन अभी तक इसका जवाब नहीं मिल पाया है।

भ्रष्टाचार के पितामह थे जवाहर लाल नेहरू
देश आजाद कहां हुआ। आजादी के हीरो को ही देश की सरकार ने लापता कर दिया तो आम आदमी का क्या होगा। मुझे राजनीति नहीं करनी है। आज की राजनीति सड़ी हुई है। इसमें सच्चाई को छिपाओ, लूटो, खाओ चल रहा है।

नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने जाति-पांति के भेदभाव को कभी भी महत्व नहीं दिया। वे हिन्दू-मुसलमानों में भेद नहीं रखते थे। दोनों को भाई मानते थे। इसका एक उदाहरण है- एक दिन उनकेे मोहल्ले में छोटी जाति के एक व्यक्ति ने  उनके घर वालों को खाने पर बुलाया। सबने न जाने का निश्चय किया, लेकिन सुभाष बाबू ने अपने माता-पिता की आज्ञा का उल्लंघन कर उनके यहां जाकर खाना खाया। एक अन्य प्रसंग पर कटक में हैजे के दौरान उन्होंने रोगियों की घर-घर जाकर सेवा की। इस रोग से पीडि़त एक गुण्डे हैदर के घर जब कोई डाॅक्टर, वैद्य उनके बुलावे पर नहीं आये तो उन्होंने स्वयं उसके घर जाकर अपने साथियों के साथ मिलकर उसके घर की साफ सफाई की, जिसे देखकर वह कठोर हृदय वाला गुण्डा द्रवित होकर एक कोने में जाकर रोने लगा। उसे बड़ी आत्मग्लानि हुई। तब नेता सुभाषचंद जी ने उसे सिर पर हाथ फेरते कहा-“ भाई तुम्हारा घर गंदा था, इसलिए इस रोग ने 
तुम्हें घेर लिया। अब हम उसकी सफाई कर रहे हैं।

हर आते जाते मुसाफिर से पूछ रही है भारत मां,
मां का प्राणों से प्यारा, पुत्र आखिर गया कहां,
कोई कहता जीवित है, शायद शहीद हो गये
इस असीम संसार में, नेता जी कहीं खो गये।
न यान मिला न शव मिला, न मानती सत्य अनुमान को,

30 जनवरी 1948 यही वह तारीख है 
जब विश्व में सत्य और अहिंसा के 
प्रेरणास्रोत महात्मा गांधी की हत्या हुई थी. 
30 जनवरी 2018 को   गांधी जी की 70वीं  पुण्यतिथि है
इस बार दिन है...मंगलवार....इस लिये 30 जनवरी की 
प्रस्तुति इस युगपुरुष को समर्पित है.....
आप से निवेदन है कि आप भी ऊपरोक्त विषय ज्यादा से ज्यादा जानकारी पर भेजें.....रचनाओं की प्रतीक्षा में कुलदीप ठाकुर।
धन्यवाद।

एक क़दम आप.....एक क़दम हम
बन जाएँ हम-क़दम का तीसरा क़दम 
इस सप्ताह का विषय
एक चित्र है...
इस चित्र को देखकर एक रचना लिखिए
आप अपनी रचनाऐं शनिवार (27  जनवरी 2018 ) 
शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं। चुनी गयी श्रेष्ठ रचनाऐं आगामी सोमवारीय अंक (29 जनवरी 2018 ) में प्रकाशित होंगीं। 
इस विषय पर सम्पूर्ण जानकारी हेतु हमारा पिछले गुरुवारीय अंक 
(11 जनवरी 2018 ) को देखें  या नीचे दिए लिंक को क्लिक करें 




7 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात भाई कुलदीप जी
    अच्छी प्रस्तुति
    आदरणीय नेता जी को नमन
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. आदरणीय नेता जी को नमन
    सुंदर प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  3. हृदयंगम प्रस्तुति नेताजी को एक नही कोटि कोटि वंदन भी कम है, देश के लिये जीया आखिरी दम तक, अपनी बाजूओं पर भरोसा था उनको और शेर सी दहाड़ थी उनकी।
    नेताजी को कोटिशः नमन।

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह बहुत सुन्दर प्रस्तुति कुलदीप जी।

    जवाब देंहटाएं
  5. आदरणीय नेता जी,को नमन।
    बहुत सुंदर ज्ञानवर्धक प्रस्तुति
    आभार।

    जवाब देंहटाएं
  6. महापुरुष, देश के गौरव नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को शत शत नमन .....बहुत ही महत्वपूर्ण और ज्ञान वर्धक प्रस्तुतिकरण ......

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत अच्छी सामयिक प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
    आदरणीय नेता जी,को नमन!

    जवाब देंहटाएं

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