निवेदन।


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शनिवार, 31 दिसंबर 2022

3624...अंत ही आरंभ है

 


इतवार से करूँगा ! 

पहली तारीख से करूँगा !!

नए साल से करूँगा !!!

बरसों से रूके काम शुरू करने के लिए ये तीनों मुहूर्त एक ही दिन आ रहे हैं !!!!

रविवार 1 जनवरी 2023

हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...

नया सोचना जैसे नई राहों से मिलाता है, वैसे ही नई शुरूआत नई जिंदगी से मिलाती है।
फिर से नई शुरूआत करना आसान नहीं, लेकिन मुश्किल भी नहीं है, बस कोशिश करिए।
जिस दिन बदल लोगे अपनी सोच को उसी दिन से तुम्हारी नई शुरूआत होगी।
जिस रिश्ते का भविष्य न हो उसे बिना किसी शर्त के छोड़ दो और नई शुरूआत करो।
नई शुरूआत के लिए सकारात्मकता को चुनो और उम्मीद का दामन थाम लो और धैर्य से काम लो।
बैठ कर सोचने से समय नहीं रुकेगा, तुम्हें नई शुरूआत के लिए प्रण लेना होगा।
हर दिन खुद में कुछ नया जोड़ो यही तुम्हारी नई शुरूआत होगी।
यादों के बोझ उतार फेंकों और आज के लिबास के साथ कल का रास्ता चुनो, चलो नई शुरूआत करो।
हर सुबह की तरह थोड़े बदलो हर दिन, कुछ अर्जित करो हर दिन, यही असल नई शुरूआत है।
नाउम्मीदी का अंधेरा आशा की एक किरण से दूर हो जाता है और फिर होती है नई शुरूआत।
हर दिन एक नई शुरूआत का मौका साथ लाता है,
समय किसी के लिए नहीं रुकता, यही वो बताता है।
सिर्फ बातों से नहीं हौसले से शुरूआत होती है,
कोशिश करने वालों की ही नई जिंदगी की मुलाकात होती है।
अतीत को पीछे छोड़ कर बढ़ो आगे,
बीते हुए वक्त को छोड़ भविष्य के लिए बढ़ो आगे।
नई शुरूआत के लिए मन में संकल्प होना चाहिए,
मंजिल हंस कर मिलेगी बस एक कदम बढ़ाना चाहिए।
कोशिश, हौसला, उम्मीद और पहला कदम ही नई शुरूआत की नींव है।
मौके की तलाश न करना,
जिंदगी जंग है बस कूच करना।
नई शुरूआत का ऐसे मन बना लो,
यादों को छोड़ो पीछे, भविष्य के मोह को गले लगा लो।
जितनी मुश्किलें होंगी नए सफर में मंजिल का सुख उतना ही शानदार होगा।
कल की कमियों से निराश न हों, नई शुरूआत गलतियों की सीख से ही होती है।
मान लोगे तो हार मिलेगी, ठान लोगे तो जीत मिलेगी,
सब सोच का खेल है, हौसला है तो मंजिल जरूर मिलेगी।
शुरूआत जरूरी है, रास्ते तो हर कदम पर बनते जाते हैं।
मत बैठो उदास, किस बात की है तुमको आस,
उठो बढाओ उजालों की तरफ कदम और करो नई शुरूआत।
जिंदगी मौके देती है, सुबह उम्मीद देती है,
जिंदगी की सुबह को बदल दो, नई शुरुआत करो और जीवन बदल दो।
उसने बिछड़ कर नया रिश्ता जोड़ लिया,
हमने नई शुरूआत की और जीवन बदल लिया।
पुराने रिश्ते जख्म तो देंगे,
यादों के घाव समय भी लेंगे,
तुम समय के धागे को पकड़कर गांठ लगा लेना,
वहीँ से हम नई शुरूआत की शुरूआत कर लेंगे।
बिना शुरूआत के कोई काम नहीं होता, आगे बढ़ो और शुरूआत करो।
यादो को भूल जाओ, आशाओं को हाथ बढ़ाओ,
जीने के लिए करनी होगी शुरूआत, आओ कदम उठाओ।
मंजिल की तलाश है, आंखों ने देखे ख्वाब हैं,
शुरूआत करने की देर है, हाथों में जीत का ताज है।
हौसला, उम्मीद और कोशिश मेरे पास है,
दूर है मंजिल अभी तो ये शुरूआत है।
फुर्सत से भी बैठेंगे एक दिन,
अभी तो नई शुरूआत हुई है।
कहां से चले थे याद नहीं,
सोचा पहले नई शुरुआत तो करें सही।
अंत का जश्न मनाना साथियों,
नई शुरूआत से पहले इसका हिसाब भी बनता है।
बड़ा सोचो, करो और दिल की सुनो
नई शुरूआत से पहले छोटी बातों पर ध्यान मत दो।
अपने आप को कमतर न आंकें, हमारी पूरी लाइफ एक प्रयोग है। जितना अधिक आप प्रयोग करते हैं उतने अच्छे परिणाम मिलते है। – राल्फ वाल्डो एमर्सन
मैं उन सभी लोगों को शुक्रिया कहता हूं, जिन्होंने मुझे हमेशा ना कहा। ये उन्ही की वजह से है कि मैं आज खुद ये किया हूं। अल्बर्ट आइंस्टीन
सफलता ये नहीं है कि आप कभी कोई गलती ना करें, बल्कि इसमें है कि आप एक गलती दोबारा ना करें। – जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
जो तुम्हारी आलोचना करते हैं उन्हें अपनी सफलता से मारो और मुस्कराहट के साथ दफना दो– अर्नाल्ड श्वाज़नेगर
अपनी नई रणभूमि से डरो नहीं। – इलोन मस्क
सिर्फ डिक्शनरी ही एक ऐसी जगह है जहां काम से पहले सफलता आती है। – विडाल सैसून
तुम्हारी जिंदगी तभी बेहतर हो सकती है जब तुम बेहतर होते हो। – ब्रायन ट्रेसी
हर वो चीज जो तुम कभी भी पाना चाहते हो, वो तुम्हारे डर के उस पार है। – जॉर्ज अडैयर
बड़ा सोचो और उनकी कभी मत सुनो जो तुमसे कहते हैं कि ये नहीं हो सकता, छोटा सोचने के लिए जिंदगी बहुत छोटी है। – टिम फेरिस
मायने नहीं रखता कि तुम कहां से आये हो, बस मायने रखता है कि तुम कहां जा रहे हो।- ब्रायन ट्रेसी
अंत का जश्न मनाओ, क्योंकि वो नयी शुरुआत से ठीक पहले होता है। – जोनाथन लॉकवुड हुई
शुरुआत किसी काम का सबसे अहम हिस्सा है। – प्लेटो
हर सुबह एक नया सूरज स्वागत करता है और हमारा नया जीवन शुरू होता है। – मार्टी रुबिन
एक अच्छी शुरुआत का अच्छा अंत भी होता है। – अंग्रेजी कहावत
शुरूआत करने वाले को टोकना नहीं चाहिए। – चायनीज कहावत
कुछ बेहतर काम करते हैं,
उठो, चलो नई शुरूआत करते हैं।
कई उलझने हैं राहों में घबराईये मत जनाब,
कोशिशें कीजे, करते जाइए इसी नाम जिंदगी है जनाब।
अपने रास्ते खुद चुनो और बेहतर बनके दिखाओ, यही नई शुरूआत है।
असफलता ही सफलता की पहली सीढी है, तो डरो नहीं पहला कदम बढ़ाओ।
लौटेंगी खुशियां फिर, ये मुश्किलों का दौर है,
करोगे जब नई शुरुआत मिटेगा अंधेरा, ये उजाले का शोर है।
दुआओं का सहारा है और यकीन है खुद पर,
जीत होगी मेरी उम्मीद है अपनी कोशिशों पर।
किसी के चले जाने पर क्यों फरियाद करें,
जिंदगी लंबी है चलो फिर नई शुरुआत करें।
कोशिश करोगे तो सपना जरुर पूरा होगा,
असफलता के बाद सफलता का सफर जरूर पूरा होगा।
छोटी सी जिंदगी में कितने गम देखोगे,
समय कम है अपने सपने कब देखोगे।
वक्त सभी को मौके देता है,
जो कदम बढ़ा ले उसे फिर जीत देता है।
हौसले की उड़ान हो, कदमों में जान हो,
मंजिल तुम्हें जरूर मिलेगी अगर सही शुरूआत हो।
हार न मानो, पल न हारो,
आज बुरा तो कल बेहतर भी होगा,
अंधेरे के बाद उजाला आएगा, यकीन मानो।
कोई गलत कर गया, जाने दो
सीख क्या दे गया, वो जानो।
हक की जंग लड़ते हैं तन्हा,
जिंदगी सबकी ऐसे ही बनती है।
सोच बदलो, दुनिया बदल जाएगी,
नई शुरूआत करो, जिंदगी बदल जाएगी।
जिंदगी के सबक याद रखना, नई शुरूआत पर काम आएंगे।
सही समय कभी नहीं आता, समय सही बनाना पड़ता है।
कोशिश करते रहो, एक दिन हार के बाद जीत जरुर मिलेगी।
नई शुरूआत का सही समय तब है, जब तुम्हें लगे सब गलत हो रहा है।
खुद से तय करो तुमको क्या करना है और फिर शुरूआत करो।
रिश्ता टूटने का दर्द तुम्हारी हार के आगे छोटा है, एक नई शुरुआत तुम्हारे दर्द और हार दोनों को मरहम देगी।
अपने सपनों को अपनी ढाल बना लो,
उम्मीदों को तलवार बना लो,
कदम बढ़ाओ नई शुरुआत की तरफ,
और संघर्ष कर अपनी पहचान बना लो।
सफलता तुम्हें तुम्हारा असल दिखाएगी,
असफलता दुनिया का असल दिखाएगी।
पछतावे का दामन छोड़ कर शुरुआत की तरफ कदम बढ़ाओ,
कुछ कर गुजरने का हौसला ही इंसान को हर मुश्किल से ऊपर उठाता है।
समय किसी का साथ नहीं देता,
वो गुजरता है, गुजरता ही रहेगा,
तुमको सही समय को पहचान करना होगा,
खुद आगे बढ़ना होगा,
और लक्ष्य हासिल करना होगा।
हारो नहीं, थको नहीं,
जीवन है, जीवन जीना है,
रुको नहीं, शुरुआत करो अभी नई।
सागर जीतना है तो पानी से बैर कैसा,
जिंदगी जीनी है तो नई शुरूआत से डर कैसा।
जिंदगी में रिस्क बड़ी चीज है,
हार कर जो मिलती है वो सीख है,
नई शुरूआत करना आसान नहीं लेकिन,
जीने के लिए एक मौका लेना बड़ी चीज है।
हार के डर से क्या लड़ना छोड़ दोगे,
मौत के डर से क्या जीना छोड़ दोगे,
पीछे आने के डर से क्या नई शुरुआत करना छोड़ दोगे,
आगे बढ़ते चले जाओगे, जब जीतने का मन बना लोगे।

2023 नव वर्ष की शुभकामना - नवल वर्ष की हार्दिक शुभकामना

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पुनः भेंट होगी...
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शुक्रवार, 30 दिसंबर 2022

3623.....रह गये हैं ठूँठ सारे

इस वर्ष के अंतिम
शुक्रवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
--------- 
मेरे आँगन के पीले,सफेद,बैंगनी, कत्थई, नारंगी 
गुलाबी नाजुक नरम फूलों की तरफ से,
फूलों की हरी-हरी,बिना फूलों वाली 
गहरी हरी पत्तियों की तरफ़ से,
पत्तियों की झँवई परछाईंयों की तरफ से,
भोर में आते कबूतरों के बड़े से झुंड की तरफ से
काली मैना,भूरी गौरेया,नन्हीं बुलबुल 
मुझसे मेरा हाल पूछने आती
अनाम पीली चिड़ियों और कौओं की तरफ से,
मेरी बालकनी से दिखने वाले पीपल,बड़ की तरफ़ से
जीवन की रोशनी भरते सूरज की तरफ से
थके तन को थपकियाँ देकर सुलाते चाँद की तरफ से
कभी दिखते,कभी नहीं दिखते,
कभी देखकर मुस्कुराते ,कभी बिना देखे
यूँ ही क़तरा के जाने वाले पड़ोसियों की तरफ से...
सड़क पर गुज़रने वाले अनाम मुसाफिरों की तरह 
अनदेखे पलों की यात्रा के लिए
आपको और मुझे भी जाने वाले साल की तरफ से
आने वाले नये साल की खुशियों की उम्मीद भरी झोली भरके शुभकामनाएँ ...।


तो आइये चलते हैं आज की रचनाओं की दुनिया में

उम्मीद की बीज मुट्ठियों में भींच लो, आओ इस अंधेरी रात की कोख को सींच दो,भोर की माथे से फूटेंगी नयी राहें,बस कुछ पल के लिए आँखें मींच लो...।
जाते हुए साल की दुआओं का असर हो जाए
आने वाला साल हँसी-खुशी के काँधे पर बसर हो जाए

सारे कर्तव्य हमारे लिए ,
कुछ तुम भी तो निभाओ ।
सदा अपनी ही नहीं ,
औरों की भी सुनते जाओ।

कुछ शब्दों का स्पंदन मन को छूकर गीला कर जाता है क्योंकि ये शब्द भावनाओं की नोंक से लिखे जाते हैं..
यादों की छाँव में बैठे अक़सर सीते हैं कुछ टीसते घाव,
हँसाते कभी रूलाते हैं, नहीं भुलाये जाते क्यों दर्द के पाँव..।

वर्षभर रहता यहाँ है,
अब तो मौसम पतझड़ों का।
रह गए हैं ठूँठ सारे
ले गया सब छाँव कोई !

उदास मन में
कुछ नहीं बदलता अन्तर्मन में
अनवरत विचार मग्न मन
अपना सुख जिसमें पाता
चाहो न चाहो बस वही सोचता है
कहाँ मानता है मन का पंछी
 उद्वेलित,बेचैन मन बहुत उदास होकर
कहता है कभी-कभी...।

व्यथित मन 
आज भी चाह रहा है 
छांव तुम्हारी 

यादों के सागर में 
बिन पतवार चल रही है 
नाव तुम्हारी 


मनुष्य की सोच और व्यवहार परिस्थितियों के 
अनुरूप अपनी दिशा निर्धारित करते हैं।
देश,समाज,मानव के अनेक विषयों को छूता एक 
बेहतरीन लेख।


फिर मुझे तो कुछ करना ही था आखिर जबाबदेही तो मेरी ही थी , वह भी खुद अपनेआप से । तो कुछ सोच विचार कर मैंने इसकी जगह बदल दी । अब मैंने इसके गमले को उस स्टैंड से हटाकर अलग-थलग कुछ दूर अकेला रख दिया , कि जा ! जाकर अकेले पड़ा रह। बड़ा आया दूसरों के घर घुसपैठ कर दूसरों का हिस्सा हड़पने वाला। बड़ा भटकने का शौक है न तेरी टहनियों को , तो जा अकेले इस बीरानी में भटक कर दिखा । 

और चलते-चलते पढ़िए आज के इस दौर में जब खून के रिश्ते भी शर्मसार करने वाले व्यवहार करते हैं वहाँ ऐसी घटनाएँ इंसानियत और अच्छाई आज भी जीवित है यह एहसास दिलाते है। सकारात्मकता से भरपूर एक सुंदर संदेशात्मक संस्मरण-

दवाई की दूकान आगे है, इतना कह कर वह अपना पल्लू झाड़ सकता था ! क्या था जो अनजाने लोगों के लिए कोई अपना समय दे रहा था ! क्या था जो बिना किसी अपेक्षा के कोई अनजान लोगों की जरुरत पूरी करने पर उतारू था ! क्या था जो कोई दूसरे की तकलीफ को अपनी समझ उसको दूर करने की सोच रहा था ! यही इंसानियत है ! यही मानवता है ! यही हमारी संस्कृति है ! यही हमारे संस्कार हैं ! यही वह सोच है कि सारी वसुंधरा ही हमारा परिवार है !



आज के लिए इतना ही कल का विशेष अंक लेकर आ रही है प्रिय विभा दी।










गुरुवार, 29 दिसंबर 2022

3622...मेरे चेहरे पर होगी वही मुस्कान...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय ए.के. शुक्ला जी की रचना से।

सादर अभिवादन।

2022 का अंतिम गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ। 

कहावत है-"वक़्त गुज़र जाता है, यादें रह जाती हैं।" 

तीन दिनों के बाद 2022 भी इतिहास बन जाएगा।

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

उसकी उदासी

रंग बिरंगी तितलियाँ  उड़तीं

पुष्पों से अटखेलियाँ करतीं

बहुत सुन्दर  दिखतीं

मन उनके साथ भागता

चाहता सभी को समेट ले

अपनी बाहों में।

मृत्यु विहीन पुनर्जन्म--

पारदर्शी पंखों में लिखा
होता है जन्म जन्मांतरों
का अभियान, उन्हें
रोक नहीं पाते
हिम शिखर,
विक्षिप्त
मेघ
दल,

स्मृति प्रसंग

इन सारे प्रश्नों का हल है मेरे पास

होंठों पर एक मुस्कान

बच्चे खेलने गये हैं आस-पास

उनके लौटते ही

मेरे चेहरे पर होगी वही मुस्कान।

विश्वास का खून

हंसा की खूबसूरती ने दीपेंद्र को अपना दीवाना बना रखा था।वो  दीपेंद्र मनोज और हंसा की दोस्ती से बहुत जलता था।वह उन दोनों में गलतफहमी पैदा करने का को एक मौका भी नहीं छोड़ता था। हंसा दीपेंद्र की नियत समझ गई थी इसलिए मनोज को उससे दूर रहने की सलाह देती रहती थी।

चलते-चलते पढ़िए एक सारगर्भित जीवनोपयोगी लेख-

आंतरिक शारीरिक रक्षा शक्ति -सतीश सक्सेना

कम से कम एक डॉक्टर मित्र आपके परिवार में अवश्य होना चाहिए जो आपातकाल में सही सलाह देकर आपको अनावश्यक दवाओं से बचाने में आपकी मदद करे, उसके अलावा शारीरिक रक्षा शक्ति को कम न आंकिये, यह आपकी रक्षा करने में पूर्ण समर्थ है !

*****

फिर मिलेंगे 2023 में पहले गुरुवार को। 

रवीन्द्र सिंह यादव।  


बुधवार, 28 दिसंबर 2022

3621..बदलते लम्हें और बदलते,जुड़ते रिश्ते..

 ।।उषा स्वस्ति।।

"रसमसाती धूप का ढलता पहर,

ये हवाएं शाम की, झुक-झूमकर बरसा गईं,

रोशनी के फूल हरसिंगार-से,

प्यार घायल सांप-सा लेता लहर,

अर्चना की धूप-सी तुम गोद में लहरा गईं..!!"

धर्मवीर भारती

हानि-लाभ,जीवन-मरण,यश-अपयश विधि-विधान,कर्ज-फर्ज का दामन थामे आगे बढ़ चले कि ये जिदंगी अब सवाल कम करेगी।लिजिए ये साल भी चला और हम सभी की प्रस्तुतियाँ अपने अपने अंदाज में..

वफ़ा  कहाँ  है, कहीं  कसर है

नजर  उठाओ, नज़र   अगर है

भली  मुहब्बत, कभी   नहीं थी

भला  यही  है, बचा  भँवर  है..

ब्लॉग से इतर..हम..कुछ दिनों से फर्ज के दामन से..ये रस्में जानी पहचानी सी कुछ अपनी सी,पनीली आँखों की कहानी सी..



🔶🔶

इल्लियाँ और तितलियाँ

 बेचैन हैं कुछ इल्लियाँ
तितलियाँ बन जाने को
कर रही हैं पुरज़ोर कोशिश
निकलने की
कैद से अपने कोकून

🔶🔶

अस्आर मेरे


 कुछ अस्आर मु-फा-ई-लुन (1-2-2-2)×4

सुनों ये बात है सच्ची जहाँ दिन चार का मेला।

फ़कत दिन चार के खातिर यहां तरतीब का खेला। 

शजर-ए-शाख पर देखो अरे उल्लू लगे दिखने।

नहीं ये रात की बातें ज़बर क़िस्मत लगे लिखने।

🔶🔶

नई करेंसी धूम करेगी

 
रेशे-रेशे घुसे पड़े हैं दांतों में

भजिया अब घर नहीं बनेगी ।

जली पराली धुआँ भरा है साँसों में

भंडरिया क्या ख़ाक भरेगी ?


तपी दोपहर, चला नहीं..

 खास अंदाज में बयान करतीं कविता के साथ.. इक नजर इधर भी..

संबधों के आँच में पकी अनुबंध सारे..


🔶🔶


निगाहों की जद में आओ तो कहूँ,

गुनाहों की हद में आओ तो कहूँ।

कितनी मायाळी छुँयाळ* है ये आँखें,  

आँखों से आँख लड़ाओ तो कहूँ।

🔶🔶

हमारी मिट्टी की ख़ुशबू, हमारे लोक के आलोक की अनुपम झलक इन लोकगीतों संग कुछ पल








।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️


मंगलवार, 27 दिसंबर 2022

3620 ...... कहते हैं प्रेम तपस्या हैं प्रेम त्याग है, एक ही ब्लॉग से ..जिज्ञासा की जिज्ञासा

 सादर अभिवादन


एक ही ब्लॉग से
जिज्ञासा सिंह
ये कौन है कैसी हैं पढ़िए इन्हीं की जुबानी
व्योम के विशालकाय परिदृश्य में, सिन्धु के गर्भ में, धधकते मरुस्थल में, संपूर्ण सृष्टि और ब्रम्हांड के चर अचर प्राणियों में विचरण करने के उपरांत परिकल्पनायें कुछ कहने के लिए अधीर हो उठती हैं , जिन्हें अमर्त्य बनाने के लिये मानव मानस को कुछ सृजनात्मक और सारगर्भित कार्य करने चाहिए । उसी सन्दर्भ में कुछ रेखांकित करने का नव प्रयास है मेरा लेखन .

प्रेम संसार है ।
प्रेम निराकार है ।।
है तो ये,
बड़ा ही विशाल ।
नहीं है कोई
इसकी मिसाल



कहते हैं प्रेम तपस्या हैं प्रेम त्याग है ।
प्रेम संगीत है राग है ।।
वंदन है नर्तन है ।जीवन है मरन है ।।
अपना है पराया है  ।
रग रग में समाया है ।।


बचपन में सुनी
कहानियों व मुहावरों
की याद दिलाती रचना



शीश ऊपर सजा एक चिकना घड़ा
खुर उधारी में देकर गया चौगड़ा
दौड़ लगती रही जीतने के लिए
धार धरकर घड़ा शीश माथे चुए

जल जो इस्तेमाल में लाते हैं!
उसके के प्रति सजग होना
बहुत ही जरूरी है नहीं तो
इसका परिणाम बहुत ही फायदा होगा
जिसकी हम कल्पना तक नहीं कर सकते!



उद्योगों की पौध लगाई
खड़े सभा में बनके शिष्ट
हरित क्रांति का नाम दिया
उगा दिया जंगल अपशिष्ट
बूँद बूँद है हमें बचाना
हम पे लागू नारा क्यूँ है ?
निर्मल पानी खारा क्यूँ है ?

स्व में
विश्व समेटे निमग्न अलंकृत,
सर्व ज्ञान दायिनी पुस्तक हमारी है ॥...
वाह! पुस्तकों का सीधा संबंध
हमारी जिज्ञासा से ही है।

न जानों तो अंजान सी लगी
खाका छान लिया जग का
पलट कर उधेड़ा, बार बार देखा
वो नर है न नारी है ॥


मंच पर स्त्री-सशक्तिकरण पी व्याख्यान
और घर पर शोषण का मिला जुला संगम
फ़ोन की तरफ़ जाती साहब की निगाह और इशारे ने उसे एक बार फिर ये समझा दिया था कि रीनू के कुछ राज़, जो साहब ने फ़ोन में क़ैद कर रखे हैं, रीनू के मुँह खोलते ही मेमसाहब के साथ-साथ, दुनिया के सामने आ जाएँगे.. और लोग उसका और उसके माता-पिता का जीना दूभर कर देंगे ।




कल, आज और कल, में डूबती-उतरातीं “अवधी कहावतें” दर-बदर होती हुईं, अपना अस्तित्व बनाने में लगी हुई हैं, उन्हें आज भी जीवंत बनाता, हमारा आँचलिक समाज “अवधी भाषा” के लिए संजीवनी का काम कर रहा है, आशा और विश्वास है, कि जब तक अवध प्रांत के वासी, देश-विदेश में, कहीं पर भी, अवधी भाषा को सम्मान देते हुए विराजमान हैं, तब तक वहाँ “अवधी भाषा” के साथ-साथ “अवधी कहावतें” भी ज़रूर विद्यमान होंगी ।
नमूना ......
गूलरी के फूल होइगे
जब किसी को बहुत दिन तक न देखो और किसी की झलक देखने को तरस जाय तो ऐसी स्थिति में ये कहावत प्रयुक्त होती है । क्योंकि गूलर का फूल कभी दिखाई नहीं देता


आदरणीय सखी जिज्ञासा जी को उत्तरोत्तर प्रगति के लिए शुभकामनाएं
सादर

सोमवार, 26 दिसंबर 2022

3619 / और फिर रात गुजर गई

 

नमस्कार  ! आज  , जब मैं प्रस्तुति बना रही हूँ तो सब   क्रिसमस  मना रहे हैं ...... भारतीयों की दृष्टि से देखें तो आज हमारे  दो महान नायकों का  जन्मदिन भी रहा है ........ महामना  मदन मोहन मालवीय  जी और अटल बिहारी वाजपेयी जी  का  . ..... यानि  कि आज का दिन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है ........ क्रिसमस का त्यौहार अनेक देशों में अलग अलग तरीके से मनाया जाता है ...... इस पर विस्तृत जानकारी लेते हैं इस पोस्ट से ..... 

 हैप्पी क्रिसमिस

सयुंक्त राष्ट्रीय की  यूनीवर्सल   पोस्ट यूनियन के अनुसार "सांता क्लाज़ को ढेरों नन्हें मुन्ने बच्चों की  पाती मिलती हैं "सांता कितने लोकप्रिय हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगया जा सकता है कि कम से कम २० देशों के डाक विभाग सांता के नाम से आने वाली चिट्ठियों  को अलग करने और फ़िर उनका जवाब देने के लिए अलग से कर्मचारी भरती करते हैं ...


लीजिये , बच्चों के मनोविज्ञान को देख विशेष रूप से पत्र पढ़ने के लिए कर्मचारियों की न्युक्ति की जाती है लेकिन बूढ़े होते माँ बाप का मनोविज्ञान कौन समझ पायेगा ?  एक ऐसी ही मर्मस्पर्शी रचना .....

और फिर रात गुजर गई


क्यों जीसो गये क्या?'

'नहीं'

'अभी अमरीका में क्या बजा होगा?'

'अभी घड़ी कितना बजा रही है?'

'यहाँ तो १ बजा है रात का.'

'हाँतो वहाँ दोपहर का १ बजा होगा. समय १२ घंटे पीछे कर लिया करो.'

'अच्छासंजू दफ्तर में होगा अभी तो'


न जाने कितनों का सच होगा ये .....और कितने ही लोगों की रातें यूँ ही गुज़रती होंगी ..... चलिए ये तो परिवार की बात है ...... बच्चे इस गलाकाट  प्रतियोगिताओं में मशीन बन कर रह गए हैं .....  संवेदनाएँ मृत  हो चुकी हैं  लेकिन उन मृत संवेदनाओं का क्या जो अपने ही स्वार्थ में  संबंधों को  ही बदनाम कर दें .......  जब प्रगाढ़ सम्बन्ध दरकने लगें तो क्या उचित और क्या अनुचित है , इस पर रोशनी डाल रही है ये पोस्ट .....

कुछ इस तरह

मतलब साफ है कि वो रिश्ता सिर्फ़ उनके अहंकार को पुष्ट करने का मात्र जरिया भर था बाकी अन्दर भूसा ही भरा था। सारे कोमल  रेशमी धागे बुरी तरह उलझ जाते हैं ।वे जरा नहीं सोचते कि अपने पुराने संबंधों की कुछ तो मर्यादा रखें। मैं- मैं का गान खुद करेंगे औरों से भी करवाएंगे। 


पता नहीं लोग संबंधों को कैसे अनदेखा कर देते हैं और ज़रा सी दूरी आने पर बदले की भावना घर कर जाती है ....... जबकि होता यह है  कि भले ही कुछ पीछे छूट गया हो , जीवन नित आगे ही बढ़ता है ...... लेकिन यादें धरोहर होती हैं ....... इसी विषय पर एक प्यारी सी पोस्ट .... 

स्मृतियाँ साथ चलती हैं

स्मृतियाँ चाहे अनचाहे मन की चौखट पर दस्तक दे ही देती हैं । अधिकार जताती हैं और हमारे समय और ऊर्जा को लेकर स्वयं को पोषित करती हैं । इन्हें तो हमारा दखल भी बर्दाश्त नहीं । जितना उपेक्षित करो उतनी ही दृढ़ता मन के द्वार खटखटाती हैं । यादों के आगे मन की विवशता भी देखते ही बनती है .


कुछ यादें साथ चलती हैं तो कुछ न जाने कहाँ गिर कर विलीन हो जाती हैं ........ आइये पढ़ते हैं कुछ यादों को लिए ये ग़ज़ल ....

उफ़ुक़ से रात की बूँदें गिरी हैं ...


इसे मत दर्द के आँसू समझना,
टपकती आँख से यादें गिरी हैं.


मिले तिनका तो फिर उठने लगेंगी,
हथेली से जो उम्मीदें गिरी हैं.



और ये आँख से टपकती  यादों  की बात है  , यूँ तो आँख से जो टपका वो दर्द ही होता है ....... . कुछ दर्द लिखे जाते हैं तो कुछ बस सोच कर रह जाते हैं ........ अब  लेखिकाएँ जो रच रही हैं उन पर एक नज़र देखिये ..... 

औरत की कहानी


हँसते होंठो के पीछे उदासी की परत ,
पनीली आँखों के सपनों की झलक ,
लहराती लटों में रातों की स्याही
कहीं जुल्फों पर जो, चाँदी थी उतर आई ,
रंगत आबनूसी, कहीं सुनहरी – रुपहली - आसमानी लिखी |

ये तो जो लिखा सो लिखा ...... लेकिन सच तो यह है कि स्वयं औरत ही अपना शोषण कराने पर आमदा हो जाती है ....इससे सम्बंधित एक बेहतरीन लघु कथा पढ़िए .....

 पीली  चिड़िया ....

इसका अंदाज़ा मुझे नहींतुझे होना चाहिए।“ प्रभा को रोशनदान की ओर से आव़ाज आती-सी लगी। उसने देखा वहाँ बैठी पीली चिड़िया ने पंख फड़फड़ाए और आसमान की ओर उड़ गयी थी। प्रभा ने दूसरे हाथ में पकड़ी किताब मच्छर के ऊपर पटक दी। अचानक हुए प्रहार से मच्छर वहीं ढेर हो गया।


कुछ ज्यादा ही गंभीर चिंतन हो गया ...... चलिए इस पर मनन  करते हुए  प्रकृति का भी आनंद लिया जाए ..... पहाड़ ,  नदी , झरने , सभी सबके मन को आनंदित करते हैं  तो किसी को  बादल  , रात , चंद्रमा   प्रभावित करते हैं ......... आइये इन्ही विषयों पर पढ़ते हैं कुछ रचनाएँ  जो अद्भुत सौन्दर्य को वर्णित कर रही हैं ..... 

शशधर

अहा इस रात का सौंदर्य वर्णन  कौन कर सकता।

कवित की कल्पना में भी न ऐसी रात ढल पाई।।

 

रजत के ताल बैठा शशि न जाने कब मचल जाए।

भ्रमित से स्नेह बंधन में जकड़ कर रात गहराई।। 

चंद्रमा  के अनेक नाम से सुसज्जित रचना पढ़ कहीं तो मन में  ये   पंक्तियाँ  गूँज गयीं  -  चारु चन्द्र की चंचल किरणे ......... खैर अब रात की बारी ........ 

निशा 

नित ले आती, निशा, नव कल्पना!

पंख पसारे,
ये विहग‌ आकाश निहारे,
विस्तृत आंचल के, दोनो छोर किनारे,
उन तारों से, न जाने कौन पुकारे,
हृदय के, गलियारों में,

जागे वेदना!
 

रात तो वेदना जगा रही लेकिन मेघ जो हैं सब कुछ कुर्बान करने को तत्पर रहते हैं , नीचे लिखी पंक्तियाँ लेखिका ने स्वयं के लिए कही हैं शायद .....

अभी मै कुछ हूं नहीं,
अभी मेरा नाम बाकी है 
ये तो बादल है,

अभी तो बरसात होना बाकी है...❣️


ये बादल....


ये बादल....

कभी इन बादलों को गौर से देखो

कितनी आकृतियां बनाती हैं ये

मानो बादलों में अटखेलियां करती हैं . 

ये सब कल्पना की उड़ान में कवि  या कवयित्रियाँ  न जाने क्या क्या रच देती हैं ........ लेकिन  कभी कभी जीवन से  रु - ब - रु  हो कर भी बहुत कुछ लिखा जाता है ......  आइये इस हलचल की यात्रा समाप्त करने से पहले  इस यात्रा में शामिल हों ..... 

यात्रा

यात्रा के हैं अनगिन रूप
कभी छाँव मिले कभी धूप
प्रथम यात्रा परलोक से
इहलोक की
नौ महीने की विकट यात्रा
बन्द कूप में सिमटी हुई यात्रा

चलिए जी अब ये यात्रा तो सबने ही करनी है ....... सबके पास कन्फर्म  टिकट है  , लेकिन इस यात्रा की तारीख किसी को नहीं पता ....... बस जी चल पड़ेंगे जब हुकुम आएगा ....... तो तब तक पढ़िए आज की दी हुई सारी पोस्ट और अवगत करिए अपने विचारों से ...... 

जाते जाते ये साल कुछ खुशियाँ  लाया है । वरिष्ठ और प्रवासी  ब्लॉगर  शिखा वार्ष्णेय  के हिंदी के प्रति किये गए कार्यों  के लिए मध्य प्रदेश सरकार  ने निर्मल वर्मा राष्ट्रीय पुरस्कार देने की घोषणा  की है । हम सभी ब्लॉगर परिवार की तरफ से उनको हार्दिक बधाई - 



अब मिलेंगे अगले साल ..... तब तक के लिए .......


नमस्कार 

संगीता स्वरुप . 


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