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सोमवार, 19 दिसंबर 2022

3612 / भ्रम से हमें निकलना होगा

 

नमस्कार !  देखते देखते ये साल भी बीतने जा रहा है ......... और अब सब नए वर्ष की प्रतीक्षा में   कुछ नए संकल्प ले कर प्रारम्भ करेंगे नया वर्ष ........ कौन  अपने संकल्पों पर खरा उतरेगा ये भी वक़्त ही बताएगा ......  लेकिन कुछ बातें साल दर  साल नहीं बदलतीं ....... इसी से सम्बंधित पढ़ लीजिये ये रचना .....



कमाई   नौ   दो  ग्यारह      

हो    चली,

हथेली    तप-तप    कर     

तवा        हुई। 

मुश्किल     एक      से        

सवा      हुई।

आप ही बताइए  कि  क्या आज भी यही बात नहीं है ?  छः  साल बाद भी समस्या ज्यों की त्यों है ... और न जाने कब से यही चल भी रही है .... खैर ..... मुश्किल भले ही आपको बढती हुई लगे , लेकिन सच तो ये है कि आज कल साधन ज्यादा हैं और हम इंसान उनके बन्दर बने हुए हैं ... कैसे ? ..... तो समझिये इस रचना को पढ़ कर ...

साधन बने मदारी


सोच मशीनी बनती सबकी

भावों का है सूखा

लिप्साएँ हों मन पर हावी

कैसा बनता भूखा

बंदर जैसे मानव नाचे

साधन बने मदारी।


कितनी सरलता से यह बात समझा दी गयी है कि आज मानव साधन रुपी मदारी की उँगलियों पर नाचता है ....... यदि अभी भी समझ नहीं आया तो चलिए एक और पोस्ट पढवाते हैं कि आज के युग में लोग जितना अधिक  कमा रहे हैं उतना ही  अपने बच्चों के प्रति विमुख होते जा रहे हैं .....


मॉर्निंग वॉक – बाल हठ

हाँ तो आधुनिक बच्चेचूँकि अधिक एक्स्पोसेड़ हैंउनमें जागरूकता या कहें

अंतर्जाल पर उपलब्ध ज्ञान भी अधिक है। जो बड़ों की निगरानी के अभाव में

 उन्हें अनचाहे रास्तों पर धकेल सकते हैं। कच्ची उम्र में जब उन्हें मार्गदर्शन

की ज़रूरत होती हैतब उन्हें नौकरों और आयाओं के सुपुर्द कर दिया जाता है।


इस पोस्ट का शीर्षक मॉर्निंग वॉक  क्यों रखा है ? मैंने पूछा है सरस जी से ...... जवाब मिलते ही  बताउँगी . ......मुख्य मुद्दा शीर्षक नहीं है ...... बात है कि हम बच्चों के प्रति कितने जागरूक हैं ....... अब जागरूक होने की बात करें तो ऐसा नहीं है की लोगों को अच्छे बुरे का ज्ञान नहीं होता ...... सब होता है लेकिन कब किस  संगत में पड़ कर  बुरी आदतों का शिकार हो जाते हैं और अपना ही नुकसान करते रहते हैं ...... लेकिन जानते हुए भी उनको छोड़ नहीं पाते  . बात केवल बुरी आदतों की नहीं है , बात व्यवहार की भी है ...... ज़िन्दगी की तल्खियाँ मन पर किस कदर हावी हो जाती हैं  उनको महसूस कीजिये इस कहानी में .....

मन के घेरे ( कहानी )

'ओहो! कितना प्‍यार करती हो न तुम उनसे..! न जाने मन के कि‍स कोने से एक तंज भरी आवाज आई थी।

 साथ रहते-रहते तो सभी को प्‍यार हो जाता है...क्‍या हुआ जो उनके बीच का प्रेम चुक गया। न, चुका नहीं था, सच तो यह है कि प्यार जैसा लगा था, पर प्यार था ही नहीं... प्यार न हो, न सही, मगर एक बंधन तो हैजि‍समें बंधे है दोनों। वैसे भी कि‍तने शादीशुदा जोड़े हैंजि‍नके बीच प्‍यार नदी सा बहता और सागर सा उफनता है! मगर रहते हैं न साथ...  और इस रि‍क्‍तता की भरपाई के लि‍ए ही तो सब बच्‍चे पैदा करते हैं। सहसा उसे अपने बेटे अंशु की याद हो आई।

 अंशु का चेहरा आंखों में कौंधते ही भय की एक तेज सी लहर कृतिका की रीढ़ में दौड़ गई।


 उम्मीद है  कि मन के घेरे  से निकल एक लम्बी साँस तो ज़रूर ली होगी .......  अब इस गंभीर  कथानक के बाद लग रहा  है कि कुछ मन को प्रफ्फुलित करने के लिए हल्का - फुल्का विषय लाया जाय ...........  हँसी ख़ुशी का माहौल रहे ...... तो चलिए ले आई हूँ एक बतकही ...... मजेदार कहानी ...... 


मिर्ज़ा चाचा की सवारियां


मिर्ज़ा चाचा की बाल-मिठाई की मोबाइल दुकान और उनका चलता-फिरता भोजनालय पूरे कुमाऊँ में मशहूर हो गए थे लेकिन हमारे पैदा होने से बहुत पहले ही रुस्तम के इंजिन का हार्टफ़ेल हो गया और उसे एक्टिव सर्विस से रिटायर कर दिया गया पर उसने चाचा की सेवा उसके बाद भी की.

रुस्तम को मिर्ज़ा चाचा ने सड़क के किनारे एक खाली जगह में उल्टा खड़ा कर दिया और उसे कार्पेन्टर की मदद से एक दुकान में बदल दिया. रुस्तम को एक प्रोविज़न स्टोर में बदल दिया गया है.

 इस किस्से को पढ़ते हुए मैं सोच रही थी कि लेखक की कल्पनाशीलता भी कितनी कमाल की है ....किस तरह बात से बात  निकालते  हुए कहानी  बुन डाली है ....... चलिए कल्पना को छोड़ अभी यथार्थ की बात करें ........उम्र दर उम्र बीतते हुए कितनी स्मृतियाँ  संजो ली जाती हैं  और उनको एक धरोहर की तरह ही सहेज ली जाती हैं ..... पढ़िए इस रचना में ...

बटुआ

एहसास भर से स्मृतियाँ

बोल पड़ती हैं कहतीं हैं-

तुम सँभालकर रखना इसे

अकाल के उन दिनों में भी

खनक थी इसमें!


यहाँ स्पर्श की बात हो रही है तो दूसरी ओर  न जाने क्यों मौन पसर जाता है ....  वैसे मौन मेरा प्रिय विषय है ...... यूँ ही घूमते हुए इस रचना से साक्षात्कार हो गया  और खुद ही आश्चर्य  हुआ  कि ये रचना मैं पहले भी पढ़ चुकी हूँ ....... मतलब की जब लिखी गयी थी तब ही ........ उस समय ब्लॉग जगत में सक्रीय नहीं थी फिर भी इस रचना तक  पहुँची थी ... शायद ये विषय ही मुझे  वहाँ तक ले गया होगा ........  वैसे ऐसे मौन पर यही कहना है  कि अपने भीतर के मौन को बाँट लेना चाहिए ........ 



उठो ! खोल दो मन के द्वार !
सुनो गौरैया की चहचहाहट और -
भँवरे की गुनगुनाहट में उल्लास का शंखनाद ! 
देखो बसंत आ गया है  -- - -- 
निहारो रंगों को  , महसूस करो गंध को  ,
 एक हमारी अनीता जी हैं ....... जो न जाने  क्यों  9  दिसंबर से मौन हैं ....... इनकी कोई पोस्ट नहीं आई इन दिनों .  ...... जो हर दूसरे दिन पोस्ट डालता हो तो स्वाभाविक है  उनके लिए चिंतित होना  .....  उसने पुकारा या नहीं , लेकिन हम ज़रूर पुकार रहे हैं ...... एक उनकी ही  पुरानी रचना के साथ ... 


कभी मौन हो गहन शून्य सा
विस्तृत हो फैले अम्बर सा,
वह अनन्तानन्त हृदय को
हर लेता सुंदर मंजर सा !

इस रचना में भी मौन की बात थी ....... लेकिन हर बार मौन सार्थक नहीं होता ....... कहीं न कहीं  और किसी न किसी को आगाह करना ही  होता है .....  इसी विषय पर एक खूबसूरत ग़ज़ल  पढ़िए और मनन  कीजिये ..... 




कौन यहाँ रहता है हरदम
हमको भी तो ढलना होगा

आज मिला है किस्मत से जो
मौका शायद कल ना होगा

 सच तो यही है कि हमें अपने देश की आन -  बान - शान के लिए ही जीना है तो मरना भी है ........ किसी का भी क़र्ज़ चुकाए बगैर नहीं जाना चाहिए ....... 
एक और खूबसूरत ग़ज़ल ...

 क़र्ज़ - -


हर इक को गुज़रना होता है उतार चढ़ाव के ग्राफ से,
मंज़िल नहीं आएगी  कभी ग़र अपने ही में ठहर गए,

हम यहाँ अलग अलग किस्म के क़र्ज़ की बात कर रहे हैं ........ माता - पिता का क़र्ज़ भी हमें हर हाल में चुका देना चाहिए ....... ये क़र्ज़ पैसों के रूप में नहीं चुकाया जा सकता ...... आप सब समझदार हैं तो सब अपने अपने तरीके से कोशिश कीजिये ...... जैसे इस लघुकथा में देर  से ही सही पर मन में ठान तो लिया ही न  .....

बँटवारा 


माधव की आर्थिक स्थिति कमज़ोर होने से पापा ने मुझे कई बार समझाया तो कई बार फटकारा भी। उनका कहना था कि बराबर नहीं तो व्यवसाय का कम से कम चालीस प्रतिशत हिस्सा तो माधव को दिया ही जाना चाहिए था। मेरी पत्नी ने मुझे स्पष्ट कह दिया था कि उनकी यह बात मुझे नहीं माननी चाहिए। पत्नी को ही क्यों दोष दूँ, मैं स्वयं भी तो उसे और अधिक देना नहीं चाहता था।

केशव तो समझ गया ........ हम सब भी इस कथा से सीख लें और इस तरह की नौबत न आने दें ....... और मन में परिवार के हर सदस्य के प्रति स्नेह बनाये रखें ...... इसके साथ ही आज की हलचल को विराम देती हूँ .... लेकिन आप सब हलचल मचाये रखियेगा ....... पाठक वृन्दों से कह रही हूँ ...... थोडा वक़्त निकाल कर प्रतिक्रियाओं से भी नवाजें ......

नमस्कार
संगीता स्वरुप




25 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार अंक
    सिलसिलेवार सब पढ़ी
    और साढ़ेचार बजे से पढ़ ही रही हूँ
    अब छः अट्ठाईस हो गए
    इच्छा तो नही कि पढ़ना छोड़ दूँ
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात आदरणीया
    बहुत ही सुन्दर अंक, आपकी प्रस्तुति हमेशा ही बेजोड़ होती है।सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. सरस जी ने बताया कि मॉर्निंग वॉक शीर्षक नहीं है ये एक श्रृंखला है । शीर्षक तो बाल हाथ है । मॉर्निंग वॉक करते हुए जो विचार आते हैं उनको सरस जी इस श्रृंखला में शामिल करती हैं । सरस जी आभार , मेरी जिज्ञासा को शांत करने के लिए ।

    जवाब देंहटाएं
  4. जिज्ञासा सिंह19 दिसंबर 2022 को 4:42 pm बजे

    रोचक एवम पठनीय सूत्रों से सजी सुंदर प्रस्तुति !

    जवाब देंहटाएं
  5. आपने मुझे पुकारा संगीता जी, अच्छा लगा, पिछले दिनों दो यात्राओं का अवसर प्राप्त हुआ, जहाँ विवाह समारोहों में सम्मिलित होना था, और एक बार फिर असम जाने का अवसर मिला, जहाँ हम तीन दशकों से अधिक रह चुके हैं। आपकी पारखी नज़र के साथ आज का अंक बहुत शानदार है, आभार !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अनिता जी ,
      आप यात्राओं का आनंद उठा रहीं थी , अच्छा लगा जान कर । अंक की सराहना हेतु हार्दिक आभार ।।

      हटाएं
  6. एक से बढ़कर एक रचनाओं को संजो लाई है आप। अभी सब पर जाना तो नहीं हुआ मगर जाऊंगी जरुर क्योंकि आप की व्याख्यात्मक टिप्पणी ने उत्सुकता बढ़ा दी है।आपके श्रम को सादर नमन दी 🙏

    जवाब देंहटाएं
  7. आज की विशेष एवं उत्कृष्ट प्रस्तुति में मेरी रचना 'आजकल' को शामिल करने हेतु सादर आभार आदरणीया दीदी। आपके द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले अंक का निस्संदेह पाठक बेसब्री से इंतज़ार करते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  8. प्रिय दी,
    ये जो ब्लॉग सागर में घंटों घूम-घूमकर,इतनी मेहनत से अपना कीमती समय लगाकर
    चुन-चुनकर पन्ना,मूँगा औ सच्ची मोती का खज़ाना इकट्ठा करके और स्नेहिल धागों में गूँथकर जो सुंदर माला पिरोई है सचमुच अनूठी छटा बिखर रही है।
    बेहतरीन अंक दी
    सारी रचनाएँ पढ़े पर प्रतिक्रिया नहीं लिख पायें हैं कोशिश करेंगे कल लिख आयें।
    रचनाओं के लिए क्या कहें दी
    आजकल
    साधन बने मदारी
    मार्निंग वॉक का बाल हठ
    बटुआ ख़ाली
    कर्ज़ लें, बँटवारा करें,
    करें मिर्ज़ा चाचा की सवारियाँ...।

    तुम्हारा मौन
    मन को घेरे
    देखो उसने पुनः पुकारा
    इस भ्रम से हमें निकलना होगा ...।
    ---
    अगले विशेषांक की प्रतीक्षा में-
    सप्रेम प्रणाम दी।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय श्वेता ,
      व्यस्तता के बीच भी समय निकाल कर सारे लिंक्स पढ़े यही प्रस्तुति की सार्थकता है ।
      आभार । प्रोत्साहित करने के लिए ।

      हटाएं
  9. प्रिय दीदी, समग्रता से संजोये आपके श्रम साध्य अंक से पठन-पाठन का अनूठा आनन्द मिला।रश्मि जी की कथा झझकोर गयी।लम्बी टिप्पणी भी लिखी पर प्रकाशित होने से पहले ही मिट चली।पर जो भी हो कहानी का मार्मिक चित्रण बहुधा कृतिका सरीखा जीवन जी रही है अनगिन बहुओं की कहानी कहता है।शेष सभी रचनाओं को पढ़ कर अच्छा लगा।गद्य रचनाओं के माध्यम से कहानियों और लेख के सुन्दर शिल्प सामने आये।मेरी पुरानी पोस्ट को यहाँ सम्मिलित करने के लिए आभारी हूँ।मौन मेरा भी प्रिय विषय है।मौन चिंतन की ऊर्जा को बढ़ाता है तो सृजन की उर्वर भूमि भी है।मौन स्वयं से साक्षात्कार कराता है।बीत रहे साल में कैलेंडर बदलने के अलावा कुछ बदलने वाला नहीं है।पर फिर भी एक काल खण्ड का विदा होना कहीं न कहीं भीतर कसक जगाता ही है।एक प्रेरक और शानदार प्रस्तुति के लिए आभार प्रणाम प्रिय दीदी।आपकी प्रस्तुति में ब्लॉग के प्रति आत्मीयता देखते ही बनती है।🙏

    जवाब देंहटाएं
  10. प्रिय रेणु ,
    ब्लॉग्स के प्रति मेरी आत्मीयता को तुमने महसूस किया , मन तृप्त हुआ ।
    गद्य रचनाएँ थोड़ा ज्यादा समय माँगती हैं , लेकिन उन पर विमर्श होना चाहिए । इसी लिए लंबी कहानियाँ होने के वावजूद कभी कभी उनको शामिल करती हूँ ।
    इस प्रस्तुति पर इतना समय देने के लिए आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  11. उत्कृष्ट लिंको से सजी लाजवाब प्रस्तुति ।कल तो लिंक पढ़ते पढ़ते मौन परजाकर मौन हो गयी आज देखा तो अत्यधिक मौन भी उचित नहीं कहा गया है आगे बढ़े तो अब जाकर मंजिल मिली ।क्या करें लिंक से जुड़ी आपकी समीक्षाएं इतनी कमाल होती हैं कि दो तीन बार तो उन्हें ही पढ़कर मन नहीं अघाता ।
    कमाल की प्रस्तुति हेतु साधुवाद🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय सुधा ,
      हृदयतल से आभार ।
      इतना मन लगा कर पद्धति हो कि मन तृप्त हो जाता है । 😍😍 बहुत स्नेह ।

      हटाएं

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