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आज काफी शादियां हैं
चार ई-कार्ड आए हैं
कहते हैं आमंत्रण तो है
हम आपको स्वस्थ देखना जाहते हैं
घऱ से ही दुआएं दे दीजिए
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रचनाएँ देखें..
सादर
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
सभी को यथायोग्य प्रणामाशीष
गुरुवार, 26 नवंबर 2020 को -थैंक्सगिविंग डे 2020 (यूनाइटेड स्टेट्स) था। नवम्बर माह के आखरी गुरुवार को पूरे अमेरिकन का एक दूसरे को धन्यवाद कहने का दिन है। और शुक्रवार को 'ब्लैक फ्राइडे' । आखरी सोमवार से सभी छुट्टी का मन बना लेते हैं। गुरुवार-शुक्रवार दो दिन पूरी तरह से सभी कार्यालय-विद्यालय बन्द रहता है। शनिवार-रविवार छुट्टी का दिन होता ही है। अपनों-रिश्तेदारों से मिलना.. धन्यवाद पार्टी करना।
टर्की में बेबी कॉर्न का भरावन मुख्य रूप से बना होता है।
इन दो दिनों की प्रतीक्षा पूरे साल किया जाता है–ख़रीदारी' के लिए..। प्रत्येक वस्तुओं पर 60-70% छूट रहती है ताकि गरीब जनता भी अपनी आवश्यकतानुसार सामान खरीद सकें और खुश रह सकें।
यदि अहंकार या अज्ञान के कारण आपको यह प्रतीत होता है कि वह तो आप का अधिकार था तो आप आभारी महसूस करने में सफल ही नहीं हो पाएंगे। इस के फलस्वरूप आप को ना तो प्रसन्नता मिलेगी ना आप को शांति और आनंद का अनुभव होगा।
वह किसी प्रकार की संवेदना और दया का पात्र नहीं है
संसार में बहुत से ऐसे लोग है
जो किसी भी व्यक्ति के द्वारा किये
उपकार को भूल जाते है
और उसी व्यक्ति की आलोचना करने लगते है
जिन्होंने बहुत सारे उपकार किये है
इन सैद्धातिक अवधारणाओं को व्यावहारिक अमल में लाने केे लिए पूरी इच्छा शक्ति और सोच विचार के साथ की गयी कोशिश की जरूरत होती है। ऐसे सामाजिक टीकाकारों की संख्या बढ़ती जा रही है जिनका मानना है कि आधुनिक युग में लोगों में कृतज्ञता जैसे गुणों की कमी होती जा रही है
कुछ ऐसी ही स्थिति आज मेरी है. मुझे संयुक्त राज्य अमेरिका में आये हुए एक सौ दिन हो गए है और यहाँ आकर ही मैंने इंटरनेट पर अपना ब्लाग ‘जाले’ लिखना शुरू किया. जिसमे अपनी कल्पनाओं के आधार पर अनेक आंचलिक कहानियाँ व दृष्टान्त लिख डाले. अपने जीवन के द्वितीय प्रहर में लिखी हुई कई कविताओं को भी इसमें प्रकाशित किया. समसामयिक विषयों पर भी लिखा तथा ब्लॉग को रोचक बनाये रखने के लिए इधर उधर के मसाले व चुटकुले भी इसमें डाले हैं आज मैं संतुष्ट हूँ कि मैंने इस अवधि में पूरे एक सौ रचनाएं प्रकाशित करके अपनी सेंचुरी मार दी है.
समय आ गया है कि!!
जितना न हुआ तो तेरा,
आज फिर से हो जा उतना ही मेरा।
और मैं एक साधारण, सभ्य और पारदर्शी,
आत्मा बोल रही हूँ।
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पुनः भेंट होगी...
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शुक्रवारीय अंक
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन
आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-
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उसके हाथों में
आश्वस्ति की गंध थी
जिसे महसूस किया जा सकता था
अपने देह में किसी कस्तूरी मृग की तरह
वक्त, इतना वक्त, देता है कभी - कभी
इक ग़ज़ल भूली हुई हम गुनगुना बैठे।
लौटकर हम अपनी दुनिया में, बड़े खुश हैं
काँच के टुकड़ों से, गुलदस्ता बना बैठे ।
।। भोर वंदन ।।
हो रहा सुन्दर सबेरा।
लहलहाए खेत श्यामल,
पवन लेकर चला परिमल,
आ रहा आलोक खग सा —
छोड़ सपनों का बसेरा..!!
मन्नूलाल द्विवेदी 'शील'
बदलते मौसम की दस्तक के साथ
एहतियात बरतने की जिम्मेदारी भी बढ़ती जा रही है,
चलिये इसी जद्दोजहद के बीच कुछ पल बिताते हैं चुनिंदा लिंकों पर...
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स्वप्न मेरे..जगमग बुलंदियों पे ही ठहरे नहीं हैं हम ...
बहला रहे हो झूठ से पगले नहीं हैं हम.
बोलो न बात जोर से बहरे नहीं हैं हम.
हमसे जो खेलना हो संभल कर ही खेलना,
शतरंज पे फरेब के मोहरे नहीं हैं हम.
सोने सी लग रही हैं ये सरसों की बालियाँ
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पसीने से लथपथ
बूढ़ा लकड़हारा
पेड़ काट रहा है
शजर की शाख़ पर
तार-तार होता ..
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कली क्या करती है फूल बनने के लिए
विशालकाय हाथी ने क्या किया
निज आकार हेतु
व्हेल तैरती है जल में टनों भार लिए
वृक्ष छूने लगते हैं गगन अनायास
आदमी क्यों बौना हुआ है
शांति का झण्डा उठाए
युद्ध की रणभेरी बजाता है
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एक मिनट की क़ीमत (माँ बेटे का संवाद )
बंद कमरे में घंटों गेम खेलने के बाद,
अचानक एक तेज़ अवाज़ आई ।
दरवाज़ा पीटते हुए माँ,
ग़ुस्से में ज़ोर से चिल्लाई ।।
मैं भी अपने को सच साबित करते हुए,
उतनी ही ज़ोर से चिल्लाया ।
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ब्लॉग कमल उपाध्याय की अफ़वाह...
दाऊद लौटेगा भारत - कहा पैंसठ साल का और सीनियर सिटीजन होने के कारण
पुलिस उसे नहीं पकड़ सकती
दाऊद इब्राहिम ने एक पत्र लिखकर
भारत सरकार से अपने भारत आने के फैसले के बारे में संज्ञान करवाया है।
दाऊद इब्राहिम का मानना है कि कागजी कार्यवाही पूरी होते - होते
वो पैंसठ साल का हो जाएगा और केंद्र के साथ - साथ
राज्यों के नियमों में भी वो वरिष्ठ नागरिक की मान्यता प्राप्त कर लेगा।
दाऊद का मानना है कि पिछले कुछ दिनों से
उन्होंने कई लोगों को कहता हुआ सुना है
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।। इति शम ।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️
शीर्षक पंक्ति: आदरणीय डॉ. सुशील कुमार जोशी जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
धुआँ धुआँ हो कहीं हो फिर भी... डॉ. सुशील कुमार जोशी
बहुत कुछ जलता है
ना धुआँ होता है ना आग दिखती है कहीं
राख भी हो जाती है राख तक
नामों निशा नहीं मिलता है कहीं
फिर भी
ऐसे हड्डियों को ना फँसाइये ....अमृता तन्मय
आपके दरबार में अनारकलियों का क्या जलवा है
अकबर भी सलीम मियां का चाटते रहते तलवा है
कैसे आप ख्वाबों, ख्यालों की दुनिया बसा लेते हैं
और खट्टे अंगूरों को भी देख- देख कर मजा लेते हैं
न बदलो मौलिकता... शांतनु सान्याल
शहर है कांच
से गढ़ा हुआ इसका -
कोई नगरप्राचीर नहीं क्योंकि
इसे किसी
बहिः शत्रु
का
डर नहीं,
जो ज़ख्म
देखते हो मेरे
अस्तित्व
पर
खाली कोना... पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
तेरा ही दर्पण है,
लेकिन!
टूटा है किस कोने, जाना ही कब तूने,
मुख, भूले से, निहार ना लेना!
बिंब, कोई टूटी सी होगी,
डरा जाएगी!
पछतावा सा होगा,
चाहो तो,
पहले,
समेट लेना,
बिखरा सा, टुकड़ा-टुकड़ा!
चली फगुनहट बौरे आम
ग्रामीण भारत के प्रतिनिधि साहित्यकार थे विवेकी राय
फिर बैतलवा डाल पर, जुलूस रुका है, मन बोध मास्टर की डायरी, नया गाँवनाम, मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ ,जगत तपोवन सो कियो, आम रास्ता नहीं है, जावन अज्ञात की गणित है, चली फगुनाहट, बौरे आम आदि अन्य रचनाओं का प्रणयन भी डॉ. विवेकी राय ने किया है। इसके अलावा डॉ. विवेकी राय ने 5 भोजपुरी ग्रन्थों का सम्पादन भी किया है। सर्वप्रथम इन्होंने अपना लेखन कार्य कविता से शुरू किया। इसीलिए उन्हें आज भी ‘कविजी’ उपनाम से जाना जाता है।
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे दिसंबर के दूसरे सप्ताह में।
रवीन्द्र सिंह यादव