शुक्रवारीय अंक
तट पर है तरुवर एकाकी,
नौका है, सागर में,
अंतरिक्ष में खग एकाकी,
तारा है, अंबर में,
भू पर वन, वारिधि पर बेड़े,
नभ में उडु खग मेला,
नर नारी से भरे जगत में
कवि का हृदय अकेला!
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन
आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-
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उसके हाथों में
आश्वस्ति की गंध थी
जिसे महसूस किया जा सकता था
अपने देह में किसी कस्तूरी मृग की तरह
वक्त, इतना वक्त, देता है कभी - कभी
इक ग़ज़ल भूली हुई हम गुनगुना बैठे।
लौटकर हम अपनी दुनिया में, बड़े खुश हैं
काँच के टुकड़ों से, गुलदस्ता बना बैठे ।
काल के क़दमों से तेज़
तीव्र वेग से दौड़ता कुंठित मन-सा
सूखे पात-सा लिप्सा में लीन
तृष्णा की टहनी पर बैठा
काया को कलुषित करता।
लिख रखी है एक अर्ज़ी कुछ पता दे देवता।
शौक से तुमने गढ़े हैं आदमी जिस ख़ाक से,
और थोड़ी-सी नमी उसमें मिला दे देवता।
सादर नमन बच्चन जी को
जवाब देंहटाएंशानदार चयन
सादर..
दिनभर में एक दो बार जरूर बोल देता है , –"माँ केवल शरीर से कैलिफोर्निया आ पायी।"
जवाब देंहटाएंगुरुवार हैप्पी थैंक्सगिविंग
शुक्रवार ब्लैक फ्राइडे
उम्दा लिंक्स चयन..
बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर चयन और उम्दा प्रस्तुतीकरण के लिए आप बधाई की पात्र हैं,श्वेता जी ,मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका आभार..।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर संकलन आदरणीय श्वेता दी।मेरी रचना को स्थान देने हेतु दिल से आभार।
जवाब देंहटाएंनर नारी से भरे जगत में
जवाब देंहटाएंकवि का हृदय अकेला....
बहुत बार महसूस किया है इस अकेलेपन को ! भीड़ में भी, सभा समारोह में भी, भरे परिवार के बीच भी !
प्रिय श्वेता, देखकर खुशी हुई कि मेरी रचना की पंक्ति आपको अच्छी लगी और आपने उसे शीर्षपंक्ति बनाया है।
हर सहयोग व प्रोत्साहन के लिए हृदय से आभार।
सुंदर अंक की प्रस्तुति के लिए बधाई।
सुंदर रचनाओं का संकलन ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को 5 लिंकों का आनंद में सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार।
सादर।
सार्थक संकलन ।
जवाब देंहटाएंआभार !
बहुत ही सुंदर संकलन आदरणीय श्वेता दी CareerAlert
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