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रविवार, 29 नवंबर 2020

1960...प्रकृति की तरह ... प्रकृति का सूक्ष्म अंश है मानव

सादर नमस्ते..
भाई कुलदीप जी आज और कल
साहब के साथ दौरे पर हैं 
सही व सटीक व्यक्ति को 
हर कोई पसंद करता है
वैसे ही हैं हमारे भाई कुलदीप जी
बिलकुल यस मैन....

आइए पिटारा खोलें ....

सृष्टि के रेशों में बंधी
प्रकृति की तरह ...
प्रकृति का सूक्ष्म अंश
है मानव
फिर भी...
सीख क्यों न पाया
प्रकृति की तरह
निःस्वार्थ,
निष्कलुष एवं
निष्काम होना?

 

सुन रही हो न
अतिम बार कह रहा हूँ
गाँठ बाँध कर याद रखना

किसी ने कहा भी,
चित्रकार
जिंदगी में सर्वोत्तम कलाकृति एक बार ही गढ़ता है

मोनालिसा हर दिन नहीं गढ़ी जाती न !





जाने कैसे मर-मर कर कुछ लोग जी लेते हैं 
दुःख में भी खुश रहना सीख लिया करते हैं

मैंने देखा है किसी को दुःख में भी मुस्कुराते हुए
और किसी का करहा-करहा कर दम निकलते हुए




आँगन में एक फूल खिला जो  
जंगल से अस्वीकारा गया  
है रंग रूप इतना सजीला  
मन को मोह रह |
रंग नीला है  उसका  आसमान सा
प्याले सा  दिखाई देता है





सभी घूम रहे हैं मास्क लगाकर,
सभी एक से लगते हैं,
वैसे भी क्या फ़र्क है
आदमी और आदमी में?
...
बस
सादर


10 टिप्‍पणियां:

  1. खूबसूरत रचनाएं आज के अंक की |मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह!सुंदर रचनाओं से सजा संकलन ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुन्दर व प्रेरणादायक प्रस्तुति आज की हलचल में। सदा की तरह सभी रचनाएँ मन में सद्विचार भरतीं हैं और मन आनंदित करतीं हैं। सुंदर प्रस्तुति के लिए हृदय से आभार व आप सबों को प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहद सुंदर रचना प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर संकलन में मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत-बहुत आभार आदरणीय सर।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर संकलन. मेरी कविता शामिल की. शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  7. सुप्रभात
    उम्दा संकलन आज का |मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं

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