निवेदन।


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गुरुवार, 30 सितंबर 2021

3167...बुढिया रही बरसात अब, फूले हैं काँस केश से...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया सुधा देवराणी जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ।


हम जितना 

आधुनिक समाज कहलाने में

 फ़ख्र करते हैं

 उतना ही 

अतीत को याद करते हुए 

कहते हैं-

'आज का ज़माना बहुत बुरा है।

ऐसा हमारे बुज़ुर्ग 

सौ साल पहले कहते थे,

आज हम कहते हैं 

और कल भावी पीढ़ी भी यही कहेगी। 

सार बस इतना है 

कि समय परिवर्तनशील है 

किंतु हमारे ज़ेहन में बैठे स्थायी तत्त्व 

समय की चुनौती से हार जाते हैं 

और धारणा बनती है 

कि ज़माना बहुत ख़राब हो गया है।

-रवीन्द्र 

*****

आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-

मौसम बदल जाने को है

सिमट रही नदी भी अबनालों का साथ ना मिला

सैकत भरे इस तीर काउफान अब जाने को है

बुढिया रही बरसात अबफूले हैं काँस केश से

दादुर दुबक रहे कहीं, 'खंजनभी अब आने को है


 स्त्रियोंं ने जिलाए रखा है

बुद्धि और तर्क से रिक्त

समानता के अधिकारों से विरक्त

अंधविश्वास और अंधपरंपराओं के

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तटस्थ

पति और बच्चों में

एकाकार होकर

खुशियाँ मनाती हैं


 खिन्न कविता

मगरइसी तंद्रा से उगतेकाव्य अलौकिक शील मनन में

चरण संलयन पूरा होतास्पंदन का संचार सृजन में।

है इसी भाव को रख देताकविद्रवित रूप में स्याही सा

उच्छलित काव्य की सरिता मेंबहता जाता है राही सा।।

 

हर दुःख का अंत जरूरी है

माना कि तुम में और मुझ में

अब भी मीलों की दूरी है

पर रात की सुबह तो निश्चित है

हर दुःख का अंत जरूरी है


और चलते-चलते पढ़िए एक चुटीला व्यंग्य-

नाम पर मत जाइए ध्वाखा हुई गा

धर्मवीर भारती का उपन्यास – ‘गुनाहों का देवताएक फ़िल्म निर्देशक को बहुत पसंद आया था. फ़िल्म-निर्देशक महोदय धर्मवीर भारती के पास पहुँच गए. जब इस प्रसिद्द उपन्यास पर फ़िल्म बनाने की बात चली तो भारती जी फ़िल्म-निर्देशक से उनकी पहले निर्देशित की गयी फ़िल्मों के नाम पूछ डाले. इस सवाल के जवाब में जब आधा दर्जन घटिया फ़िल्मों के नाम सुनाए गए तो भारती जी ने अपने उपन्यास की हत्या करवाने से इनकार कर दिया. फ़िल्म-निर्देशक ने धर्मवीर भारती को टाटा करते हुए जम्पिंग जैक जीतेंद्र और राजश्री को ले करगुनाहों का देवताटाइटल से ही एक निहायत घटिया फ़िल्म बनाई और हमारे जैसे धर्मवीर भारती के हजारों-लाखों प्रशंसकों के पैसों और वक़्त को बर्बाद करवाया.

*****


आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले गुरुवार।

रवीन्द्र सिंह यादव

 

बुधवार, 29 सितंबर 2021

3166..सपनों के गाँव में..

 ।। उषा स्वस्ति।।


ऊषे!

किसका सन्देशा लाई हो

चिर प्रकाश या चिर अन्धकार का?

अरुणिम वेला में आकर अम्बर पर

बनकर प्रकाश की पथचरी

चिर अनुचरी!

उसके आने का सन्देशा देकर

फिर पथ से हट जाती हो..!!

 विजयदान देथा 'बिज्‍जी'

 लायी हूँ शब्दों की कुछ खास बातें..महसूस करिये इन्हें पढकर ,तो चलिये जल्दी जल्दी हो आते हैं इन लिंकों की ओर...✍️

अस्तित्त्व और चेतना 

ज्यों हंस के श्वेत पंखों में 

बसी है धवलता 

हरे-भरे जंगल में रची-बसी हरीतिमा 

जैसे चाँद से पृथक

🔅🔅


आज रात बहुत कठिनाई से

किसी की चाहत से बड़ा  

उसका कोई खरीदार  नहीं है |

दुविधा में हूँ जाऊं या न जाऊं

स्वप्नों के उस बाजार

🔅🔅


      - डॉ शरद सिंह

नदी 
पहाड़ों के अपने 
उद्गम से निकल कर
बहती है
पठारों की ओर
अनगिनत घाटों में
स्नान करते हैं लोग
उसके जल में

🔅🔅

बस्तर की अभिव्यक्ति -जैसे कोई झरना....

लाल रंग से चिन्हित भारतीय क्षेत्र में बसाया गया है एक और नया चीनी गाँव 

हिमांचल प्रदेश और उत्तराखण्ड के बाद अब अरुणांचल प्रदेश में भी चीनी बसाहट का दूरदर्शी अभियान प्रारम्भ हो चुका है जिसका प्रतिकार करने के लिये भारत को कोई ठोस कदम उठाना होगा ।

छीन-झपट और गुण्डई में विश्वास रखने वाले चीन का सामाजिक और राजनीतिक इतिहास उथल-पुथल से भरा रहा है । चीन में प्रचलित कन्फ़्यूसियनिज़्म

🔅🔅

ज़िन्दगी तुझसे अब पहली वाली मुलाकात नही होती...

कुछ कभी अच्छा नही लगता,कुछ मेरे जैसी बात नही होती,

ज़िन्दगी तुझसे अब पहली वाली मुलाकात नही होती,

वक़्त के दरिया में तिनके सा बहा जाता हूँ,

कोई मौजे नही उठती कोई बरसात नही होती,..

।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️


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