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रविवार, 19 सितंबर 2021

3156 ..थोड़ा अंधेरा भी लिखना जरूरी था

सादर नमस्कार
आज में हूँ
छुट्टी का सदुपयोग

रचनाएँ देखिए..



हिन्दी के वासी हिन्दी की बधाई देते हैं
इक दिवस की नहीं प्यासी हिन्दी
आंग्ल की है नहीं न्यासी हिन्दी
हँसते, रोते हैं कभी हम उदास होते हैं
सांस हिन्दी है, सदा इसके पास होते हैं।




खिलता है शतदल, हर किसी को कहाँ
मिलता है सपनों का ताजमहल।




कभी गाढ़ी नहीं छनी
इन आँखों की नींद से
बहाना होता है
इनके पास जागने का
कभी थकान का
तो कभी काम का
खुली छत पर..




एक तलहटी
जिसकी गहराई मे
जा बैठती है वह
मौन हो
एक नई प्रतीक्षा की
नदी फिर जी उठती है
सूर्योदय के साथ





उजाले पीटने के दिन
थोड़ा अंधेरा भी लिखना जरूरी था
बस लिखने चला आया था
....
बस
सादर


6 टिप्‍पणियां:

  1. असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
    श्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन सूत्रों से सुसज्जित संकलन में मेरे सृजन को सम्मिलित करने हेतु आपका असीम आभार.

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर,सार्थक रचनाओं से परिपूर्ण अंक के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐

    जवाब देंहटाएं

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