नमस्कार ....... कल हर जगह शिक्षक दिवस का बोलबाला रहा ....... बहुत सी रचनाएँ इससे सम्बंधित पढने में आयीं .....यूँ तो शिक्षक वही जो कुछ भी सिखाये ... केवल किताबी ज्ञान देने वाला ही शिक्षक नहीं होता ..... वैसे एक प्रश्न मन में आया है कि क्या आज कल शिक्षकों को उतना सम्मान मिलता है जितना कि मिलना चाहिए .......... और यदि नहीं मिलता तो क्या कारण हो सकते हैं ? मैं क्योंकि खुद भी अध्यापिका रही हूँ इसलिए बहुत सी बातों से वाकिफ़ हूँ . यदि आप में से कोई इस प्रश्न पर प्रकाश डालना चाहे तो स्वागत है .....कल की कुछ रचनाओं पर कहीं कुछ सीख दी गयी तो कहीं अध्यापकों पर भी तंज़ करे गए ...... और जो भी लिखा गया बिल्कुल सत्य के करीब ही था ........ लेकिन एक पोस्ट जो मन को भा गयी ........ बहुत लोगों ने हो सकता है पढ़ भी ली होगी ...... लेकिन जो वहां पहुँचने से वंचित रह गए उनके लिए मैं आज यहाँ ले कर आई हूँ ...........
हर व्यक्ति का प्रथम गुरु माँ ही होती है और तत्पश्चात पिता ..... बाहर की दुनिया से परिचय माता पिता ही कराते हैं ..... .......या फिर दुर्भाग्यवश माता - पिता के न रहने पर कोई परिवार का सदस्य गुरु के रूप में स्थापित होता है ... विद्यालय की शिक्षा तो बहुत बाद में मिलती है .. ... माता - पिता को समर्पित अमृता तन्मय जी की रचना ......
जब माँ किलक कर कहती है .......
टूटी कश्तियों से ज़हाज़ बनाऊँगी।।
ककहरे में ओज, नवचेतना भर दूँ,
बदले दुनिया वो आवाज़ बनाऊँगी।
बादल बरस रहा है अंगना
सजनी का जब खनके कंगना
हरियाली में प्रीत सुहानी
जीवन नव रस घोल रही है
ये रिमझिम बूंदें कहीं मन को खोल देती हैं ......... तो कहीं यादों को भिगो देती हैं ........ ये बारिश न जाने क्या क्या गुल खिलाती है ..... आईये पढ़ते हैं रोली पाठक जी की ------
बरखा के संगीत ने
छेड़ दिये फिर मन के तार
उमड़-घुमड़ होने लगा
कुछ वहाँ,
जिसे मन कहते हैं।
वो धुन वो उमंग
जैसे जलतरंग,
जैसे मेघ-मल्हार
और बादलों पर सवार
अब देखिये ये उमंग और जल तरंग सब बज उठा है ....... तो हम भी आपको पहाड़ी लड़की की उन्मुक्त हँसी से परिचय करा देते हैं जो शहर आ कर भौंचक्की सी है .....क्या शहर में ये भी सीखना पड़ता है ..... उषा किरण जी की एक लघुकथा ....
शादी के बारह साल बाद भी मोहन के कोई बच्चा नहीं था। घरवाले सब दूसरी शादी के लिए दबाव बना रहे थे।जब वो छुट्टी में पहाड़ जा रहा था तो मैंने कहा मीना को यहाँ ले आओ इलाज करवाते हैं।तो गाँव जाने पर मेरे कहने से अपनी बीबी मीना को भी ले आया साथ।
सालों बाद दोनों साथ-साथ रहते बहुत खुश थे।किचिन में काम करते समय धीरे- धीरे पहाड़ी गीत गाते रहते।मैं किसी काम से किचिन में जाती तो उनका मीठा सा पहाड़ी गान सुन कर दबे पाँव मुस्कुरा कर वापिस लौट आती।
वैसे तो सच्ची बात तो ये है कि शहर ही क्या हर जगह बहुत कुछ सीखना पड़ता है ....... अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए न जाने कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं ....... एक नज़र इस व्यंग्य रचना पर जिसे लिखा है श्री गिरीश पंकज जी ने .....
गीत/ ढोते उसकी पालकी...
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शुभ प्रभात दीदी
जवाब देंहटाएंसंगीत नहीं मैं सदा साज बनाऊँगी।
टूटी कश्तियों से ज़हाज़ बनाऊँगी।।
आज उठने में विलंब हुआ..
शानदार अंक..
आभार..
शुक्रिया यशोदा
हटाएंसुप्रभात ! हार्दिक आभार हृदय स्पर्शी संवाद के लिए । आपके द्वारा उठाए गए उपरोक्त प्रश्न सबों को स्वाधीन चिंतन के लिए विवश कर रहा है । गहन मंथन के उपरांत विभिन्न मतों का उत्तर हो सकता है । पर हम सब सर्वप्रथम शिष्य हैं और हमें अपने प्रथम गुरुओं का सम्मान करना सबसे पहले सीखना होगा । तत्पश्चात् उत्तरोत्तर गुरुओं के हम सच्चे शिष्य बनकर ज्ञानॠण से मुक्ति का सर्वोत्तम प्रयास कर पायेंगे । शेष भ्रमण के उपरांत ....
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया उत्साह बनाये रखने के लिए पर्याप्त है अमृता जी । आपके चिंतन , मंथन का परिणाम जानने की उत्कंठा है । मुख्य बात यही कि अपने प्रथम गुरुओं का सम्मान करना सीखना अधिक ज़रूरी ।
हटाएंसुंदर प्रतिक्रिया के लिए आभार ।
बहुत ही सुन्दर सूत्रों का संकलन।
जवाब देंहटाएंआभार प्रवीण जी ।
हटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंकविता जी , शुक्रिया ।
हटाएंशिक्षक दिवस पर सार्थक चर्चा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शिखा ।
हटाएंआभार-ही आभार-आपका।
जवाब देंहटाएंगिरीश जी
हटाएं🙏🙏🙏🙏🙏
आज की इस सारगर्भित चर्चा में मेरी रचना को स्थान देने के लिए ह्रदय से धन्यवाद् दी !! आपका मार्गदर्शन और स्नेह यूँ ही मिलता रहे !! बहुत आभार !!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अनुपमा
हटाएंबहुत ही शानदार लिंक्स एवम प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंआभार सीमा ।
हटाएंबहुत सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंआभार
शुक्रिया पम्मी ।
हटाएंहरदम की तरह
जवाब देंहटाएंस्तरीय रचनात्मक रचनाएं
सादर नमन..
शुक्रिया दिव्या ।
हटाएंवाह अनुपम अभिव्यक्ति, बेहतरीन संकलन
जवाब देंहटाएंभारती जी , शुक्रिया ।
हटाएंआज का सुंदर सामयिक अंक पढ़कर अच्छा लगा,विविधता से भरपूर रचनाएँ अपने आप में विशेष हैं,लाफिंग क्लब कहानी विशेष आकर्षित कर गई । एक अच्छे अंक के सुंदर प्रस्तुति के लिए आपको बहुत शुभकामनाएं आदरणीय दीदी ।
जवाब देंहटाएंसराहना के लिए शुक्रिया जिज्ञासा । वक़्त निकाल कर आप हमेशा आती हैं , अच्छा लगता है ।
हटाएंबहुत सुन्दर रंग- बिरंगा अंक !
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम आज की इस सारगर्भित चर्चा में मेरी रचना को स्थान देने के लिए ह्रदय से धन्यवाद् !
आज के अंक में सभी गुरुओं का सम्मान है!
शिक्षक की मनोदशा है !
प्रकृति का सौन्दर्य है !
नेताओं की चमचागिरी है!
सभी कुछ मजेदार है परन्तु एक आपत्ति है आप कहार नहीं हंस हैं संगीता जी जो बेहद परिश्रम से चुन-चुन मोती लाती हैं!
बहुत आभार उषा जी , हम तो जनता के रूप में कहार हैं 😂😂😂 । आपकी टिप्पणी नया उत्साह जगाती है ।
हटाएंएक से बढ़कर एक उत्कृष्ट लिंको से सजी लाजवाब हलचल प्रस्तुति... भीगी यादें में कमेंट नहीं हो पाया....। सही कहा आपने अब शिक्षकों को पहले सा सम्मान नहीं देते उनके शिष्य..। हाँ दिया हुआ प्यार और सम्मान कभी व्यर्थ नहीं जाता।
जवाब देंहटाएंमैनें क ई विद्यार्थी देखे जो स्कूलिंग से निकलने के बाद अपने टीचर्स को श्रद्धा से याद करते हैं।उनका दिल से सम्मान करते हैं। शिक्षक दिवस की आप सभी को अनंत शुभकामनाएं।
सुधा जी ,
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया का हमेशा इंतज़ार रहता है । भीगी यादों में शायद अप्रूवल लगा रखा होगा ।
आपने सही कहा कि कुछ विद्यार्थी स्कूल से निकलने के बाद भी अपने शिक्षकों को श्रद्धा से याद करते हैं । बहुत कुछ शिक्षकों के अपने व्यवहार पर भी निर्भस्र करता है ।
अंक पसंद करने के लिए आभार ।
सभी को शुभकामनाएं
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