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सोमवार, 30 सितंबर 2019

1536...हम-क़दम का नब्बेवाँ अंक ...सुर..

सादर अभिवादन
--------
सोमवारीय विशेषांक में
आप सभी का स्वागत है।
सुर शब्द का प्रयोग संगीत में किया जाता है।
संगीत में प्रयुक्त सात निश्चित शब्द या ध्वनि जिसका स्वरुप,तीव्रता,तन्यता आदि स्थिर है। इसे सरगम कहा जाता है।
सुर शब्द में निहित जीवन-दर्शन अत्यंत वृहद है।
सुर पर आधरित एक गीत दूरदर्शन पर आता था जिसे सुनकर हम सभी उल्टा सीधा,अगडम-बगड़म गाते थे अपने सुर में।
  लगता था जैसे कोई देशभक्ति गीत हो।

इस गीत में निहित अर्थ "विविधता में एकता"के भाव को अक्षरशःमहसूस किया जा सकता है।
आप भी सुनकर आनंदित होइये और अपनी स्मृतियों को तरोताज़ा करिये।

★★★■★★★

हमारे प्रिय रचनाकारों के द्वारा
बहुत ही सुंदर एवं
रचनात्मक सुर सजाये.गये हैं।
आप सभी भी पढ़िये
और भाव विभोर हो जाइये

★★★★★

आदरणीया अनुराधा चौहान
न सुर होता न सरगम बनती
सोचो कैसी होती ज़िंदगी
रस ही जीवन संसार का
जीवन के रंग भी हैं रस से
फूलों के रस से ले मधुकर
मधुवन सींचते मधुरस से

★★★★★★

आदरणीया सुजाता प्रिय


मिल्लतों की  रीत  हो,
सबको सबसे प्रीत हो।
सबके सुरों में  आज,
एकता  के  गीत  हो।
एक लय में गा लें जरा,
एक  नए  अंदाज  में।
साथ गुनगुना लें जरा,
एक  सुर  के राग  में।

★★★★★

आदरणीय अनीता सैनी
अहर्निश पहर-दर-पहर सुरम्य संगीत मल्हाता,   
प्रकृति का कण-कण सुर में मधुर संगीत है गाता 


★★★★★

आदरणीया साधना वैद
हमें तो रोज़ ही गाना है
यह स्वर साधना हमारी
दिनचर्या का
अनिवार्य अंग है !
हम नित्य इन सुरों को
साधते हैं और तुम
नित्य अनसुना कर देते हो

★★★★★

आदरणीया आशा सक्सेना
गीत में स्वरों का संगम
वीणा के तारों की झंकार
तबले की थाप पा कर
मधुर ध्वनि उत्पन्न होती
कर्ण प्रिय सुर साधना होती
मन मोहक बंदिश सुन कर
जो प्रसन्नता होती ले जाती
अतीत की गलियों में !

★★★★★

आदरणीया कामिनी सिन्हा
इस गीत के सिर्फ एक पंक्ति से  ही गीतकार भरत व्यास ने जीवन में सच्चे प्रेम और ख़ुशी को पाने का हर रहस्य खोल दिए हैं। यदि  सुर और गीत की तरह एक हो गए तो जीवन में शास्वत प्रेम की धारा स्वतः ही बहने लगेगी। फिर ना कोई बिक्षोह का डर होगा ना कोई मिलने की तड़प। फिर इस  नश्वर जगत में  भी जीवन  इतना सुरमयी हो जायेगा कि जीते जी स्वर्ग सुख की अनुभूति हो जाएगी। 

★★★★★★

आदरणीया कुसुम कोठारी
एक सुर निकला  उठ चला
जाके विधाता से तार  मिला।

संगीत में ताकत है इतनी
साज से उठा दिल में मचला
मस्तिष्क का हर तार झनका
गुनगुन स्वर मध्धम सा चला

★★★★★

आदरणीया अभिलाषा चौहान
मैं उषा और तुम दिनकर बनो तो बात बने।

बिखरा दो इंद्रधनुषी रंग तो कोई बात बने,
जीवन बने सप्त सुरों का संगम तो बात बने।

★★★★★

आदरणीया शुभा मेहता
सात सुरों का संगम है ये
शुद्ध -विकृत मिल बनते बारह
श्रुतियाँ हैं बाईस.....
स्वर और श्रुति में भेद है इतना
जितना सर्प और कुंडली में
जब फैले है सुरों का जादू
मन आनंदित हो जाता
सुर की महिमा क्या गाऊँ मैं
परम लोक ले जाए सुर ।

★★★★★

आदरणीय सुबोध सिन्हा
कपसता है सुर ...

अनवरत निरपेक्ष ...
किए बिना भेद ... किसी धर्म-जाति का
या फिर किसी भी देश-नस्ल का
षड्ज से निषाद तक के
सात स्वरों के सुर से सजता है सरगम
मानो ... इन्द्रधनुष सजाता हो जैसे
बैंगनी से लाल तक के
सात रंगों से सजा वर्णक्रम


..........................

आज का यह अंक आपसभी को
कैसा लगा?
आपकी प्रतिक्रियाओं की
प्रतीक्षा रहती है।

 हमक़दम का अगला विषय जानने के लिए
कल का अंक पढ़ना न भूलें।

#श्वेता सिन्हा


रविवार, 29 सितंबर 2019

1535....बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ

जय मां हाटेशवरी....

आज से शारदीय नवरात्रि प्रारंभ हो गये हैं.....
 हिन्‍दू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्‍व है......
नवरात्र पर्व के आठवें और नौवें दिन कन्या पूजन का विधान होता है.....
हमारे देश की प्राचीन संस्कृति में   कन्याओं को पूजने की परंपरा
समाज में बेटिओं को संमान दिलाने का प्रयास है.....
नवरात्र पर्व  में नारी के हर रूप की पूजा होती है.....
फिर महिलाओं का शोषण, भ्रूण-हत्या.....
घरेलु हिंसा व रेप आदी.....
कहां से आ गये हमारे समाज में....?
मां भरती झोली खाली!
मां अम्बे वैष्णो वाली!
मां संकट हरने वाली!
मां विपदा मिटाने वाली!
दूर की सुनती हैं माँ, पास की सुनती हैं माँ,
माँ तो अखिर माँ हैं, माँ तो हर भक्त की सुनती हैं.
मां के सभी भक्तों को शारदीय   नवरात्र की शुभ कामनाएं!!!
 शारदीय   नवरात्र  के शुभ आरंभ व   पावन अवसर पर.....
इस आवाहन के साथ पेश है आज की हलचल.....

घर -घर में अभियान चलाओ
Photo:
बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ
जन - जन की पहचान है बेटी ,
खुशियों का अरमान है बेटी
आँखों - में कुछ सपने लेकर
जीवन का निर्माण है बेटी |
पढ़ेगी - बेटी- बढ़ेगी बेटी
नए शिखर पर चढ़ेगी - बेटी
नव नूतन के अग्रिम पथ पर ,
कदम मिलाकर बढ़ेगी बेटी
घर की खुश हाली है बेटी
महकी फुलवारी है - बेटी
जीवन का आधार बनाओ ,
बेटी बचाओ -बेटी पढ़ाओ|


               
इस आवाहन के साथ.....


       
जो भी है बस यही एक पल है ....

निगाहें व्यतीत सी ,छलकती रहीं
यादें अतीत सी ,कसकती ही रहीं

सामने वर्तमान है ,सूर्य किरण सा
परछाईं सी बातें , पग थामती रहीं



रूबरू

ताब ए दर्द कुछ यूँ बड़ चला
है रूह पर,
खुद में ही खुद को अब,
ख़त्म हम कर जाते है।



बुझती आकांक्षा

"हाँ, ठीक है गुड़ नाइट।"
इससे ज़्यादा के शब्दों की उम्मीद उसे बहुत साल पहले ख़त्म हो चुकी थी।
आकांक्षा  बैडरूम की तरफ मुड़ गयी।  रूम में ऐंटर करने से पहले उसने इक बार फिर अपनी रूखी, उदासीनता और निराशा से भरी, सुखी आँखों से पीछे मुड़ के देखा। वो अभी
भी उसकी तरफ देख रही थी आँखों में पानी भरे। 



कल्पना नहीं कर्म :(

अब बाहर निकलो इस संकीर्ण दायरे से
कल्पना को नहीं
कर्म को भोगो
अपने कंधे मजबूत करो
इन्ही कंधो को तो
यह देश यह समाज निहारता है
अपनी आशामयी, धुंधली सी
बूढ़ी आँखों से.........!!



सोने दो उसे
बिल्कुल याद नहीं उसे
वे तमाम दर्द,
जो उसने सहे हैं.
सपने,जो वह देख रहा है,
जागते में नहीं देख सकता,
उसके होंठों पर अभी
एक दुर्लभ-सी मुस्कान है,
अपने सबसे हसीन पल
अभी जी रहा है वह.

यूँ मुस्कुरा रहा हूँ मैं

लिखने का फ़न तो रस्मे अदायगी ही सही
पढ़ पढ़ के तेरे गीत यूँ मुस्कुरा रहा हूँ मैं



कुछ और नहीं चाहिए

तेरे सजदे कर के |
सब मिलजुल कर रहें
प्यार बांटे  एक दूसरे से
है यही  तमन्ना दिल से
जिसकी पूर्ती कर दे |



धन्यवाद।

शनिवार, 28 सितंबर 2019

1534... चुप्पी



चार दिनों के बाद 150 वाँ जन्मदिन है..
 भारत के राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी जिन्हें बापू या महात्मा गांधी के नाम से भी जाना जाता है, के जन्म दिन २ अक्टूबर को गांधी जयंती के रूप तथा विश्व अहिंसा दिवस के रूप में भी मनाया जाने लगा...

दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की 115वीं जयंती मनाई जायेगी

- जन्‍म से वर्मा लाल बहादुर शास्‍त्री जाति प्रथा के घोर विरोधी थे. इसलिए उन्‍होंने कभी भी अपने नाम के साथ अपना सरनेम नहीं लगाया. उनके नाम के साथ लगी 'शास्‍त्री' की उपाधि उन्‍हें काशी विद्यापीठ की तरफ से मिली थी.

बीते कल ये 21 साल के हुए... 21 साल की उम्र में अगर आपसे कोई पूछे कि 'जीवन में किया क्या है'? तो शायद आप ये कह दें कि "अभी तो सिर्फ 21साल के..." लेकिन इनके चलते पूरा विश्व एक क्लिक में सिमट गया है..
हम आप रोज मिल लेते हैं.. 

पल प्रतिपल दिशा-देशांतर
खड़ी कर ऊँची मीनारें
करे धन संचय अति भयंकर
कला-साहित्य-ज्ञान-विज्ञान का मालिक बनकर
धर्म के धूम्रावरण की चादर फैलाकर
जब न्याय, इंसाफ, कानून बन जाये
कुछ लोगों की मिलकियत,
जब याचना की अर्जी
जो अपनी नर्म रोशनी में पिघला देता है हर सख्ती को
कि ‘सबसे ख़तरनाक वो चांद होता है
जो हर हत्याकांड के बाद
वीरान हुए आंगन में चढ़ता है
लेकिन आपकी आंखों में मिर्चों की तरह नहीं गड़ता’
क्योंकि वह चुप रहता है
नजरें फेर लेता है
तब भी तुम्हें पता नहीं चलता
कि मौन के इस सागर के नीचे धधक रही है कैसी बड़वाग्नि
उन लोगों को अपनी सीमा का अहसास रहता है
और शायद अपने समय का इंतज़ार भी।
कायदे से देखो
रात के इस राग में
झींगुर विसर्जित कर रहा है
अपना राग
यह विलाप नहीं
फिर भी
कुएं की उदासी
आंकी जा सकती है इस आवाज में
पर हम कर क्या रहे हैं
कुटुम्ब के सदस्य को
मार देतें हैं
या बस्तियां बहिष्कृत कर देते हैं
उनकी अर्थियां भी नहीं उठाते
बस घसीट कर ले जाते हैं
लाशें शमशान तक
आज अब बस..
चुप्पी आसान थी सो साध ली
><
पुन: मिलेंगे...
पर बाकी है विषय क्रमांक नब्बे
विषय
सुर
उदाहरण 

जब सुर खनकते हैं,
बेजान साजों से,
आवाज़ के पंखों पर उड़ने लगता है कोई गीत जब,
झूम झूम लहराते हैं ये दिल क्योंकि..
संगीत दिलों का उत्सव है,
संगीत दिलों का उत्सव है...उत्सव है.....
रचनाकार-सजीव सारथी

अंतिम तिथि- 28 सितम्बर
शाम 3 बजे तक
प्रविष्ठियाँ ब्लॉग सम्पर्क फार्म द्वारा


शुक्रवार, 27 सितंबर 2019

1533 पुरुष प्रधान समाज में स्त्रियों की आवाज़

स्नेहिल अभिवादन
------

ईश्वरचंद्र विद्या सागर का नाम तो स्मरण होगा न आपको।
26 सितंबर 1820 को जन्मे समाज सुधार की मशाल को भला कौन विस्मृत कर सकता है।

पुरुष प्रधान समाज में स्त्रियों की आवाज़ विद्या सागर
अपने समय की सोच से काफी आगे थे। महिलाओं की दयनीय 
स्थिति को समाज में सम्मानजनक बनाने के लिए 
उन्होंने अथक प्रयास किया।
जात-पात,
स्त्री-शिक्षा और मुख्यतः विधवाओं की तात्कालिक सामाजिक स्थिति के लिए उनका संघर्ष सदैव पूजनीय है। विधवाओं को नारकीय जीवन से मुक्ति देने का अथक प्रयास किया।
संस्कृत और अंग्रेजी के प्रकांड विद्वान जिन्होंने आधुनिक 
भारत की नींव रखी थी।
आज के समाज को भी ईश्वरचंद्र जैसे समाज सुधारक की विशेष आवश्यकता है जो स्त्रियों के प्रति खासकर बच्चियों के प्रति होते अमानवीय आचरण का विरोध करके जागरूकता पैदा करे।

★★★★★★

आइये अब आज की नियमित रचनाएँ
पढ़ते है--

★★★★

तुम्हारे काँधे की तितली

पकेगा इक दिन समय भी मेरा
बदल जाएगा ये रूप मेरा 
सतरंगी परों से मैं सज उठूँगी
हर धागा काट मैं उड़ पड़ूँगी 
हर इक बंधन फिर खुल उठेगा  
गिरहों से छूट ये मन उड़ेगा 

★★★★★★

अब तो उसके धैर्य का बांध ही टूट गया,
मेरी तरफ उँगली हिलाते हुए,
गुस्से में बोला..
मैं आपकी ही बात कर रहा हूँ मिस्टर!
दिन में आप 
रसगुल्ला नहीं खा रहे थे?
डिनर में, 
बर्फी नहीं काट रहे थे?

★★★★★★

हर मुश्किल लम्हे को हँस के जी लेना
गज़ब सी बूटी मन में तूने बोई है

शक्लो-सूरतहाड़-मासतनहर शक्ति   
धडकन तुझसेतूने साँस पिरोई है

★★★★★

पूँजीवाद का बीजारोपण राष्ट्रहित में


हम स्वतंत्र हैं !
क्या यह जनतंत्र है ?
अधीन है, 
 एक विचारधारा के, 
 कुंठा के कसैलेपन का कोहराम मचा है, 
 अंतःस्थ में, 
कुपोषित हो गये, 
 हमारे आचार-विचार,संवेदनाएँ-सरोकार, 
अमरबेल-सा गूँथा है जाल, 
हवा में नमी,पोषक तत्त्व का नित्य करते हैं, 
वे सेवन, 
   देखो ! पालनकर्ता हुए न वे हमारे, 
और मैंने फिर अपने आप से कहा !

★★★★★


हम नहीं जानते कि हमें उस से ही इश्क़ क्यूँ हुआ। हम याद करने की कोशिश करते हैं कि वक़्त की किसी इकाई में हमने उसे देखा नहीं था और हम सिर्फ़ इस तिलिस्म से बाहर जाने का रास्ता तलाश रहे थे। किसी शाम बहुत सारे चंद्रमा अपनी अलग अलग कलाओं के साथ आसमान में चमक रहे थे और हम किसी एक बिम्ब के लिए थोड़ी रोशनी का रंग चुन रहे थे। गुलाबी चाँदनी मीठी होती थी, नीली चाँदनी थोड़ी सी फीकी और कलाई पर ज़ख़्म देती थी… आसमान के हर हिस्से अलग रंग हुआ करता था। सफ़ेद उन दिनों सबसे दुर्लभ था। कई हज़ार सालों में एक बार आती थी सफ़ेद पूरे चाँद की रात। ऐसी किसी रात देखा था उसे, सफ़ेद कुर्ते में, चुप आसमान तकता हुआ। 

★★★★★★

आज का यह अंक आप सभी को.कैसा लगा?
आपकी प्रतिक्रियाओं की सदैव प्रतीक्षा रहती है।



हम-क़दम का नया विषय

कल का अंक पढ़ना न भूले कल आ रही हैं
विभा दी अपनी विशेष
प्रस्तुति के साथ।

#श्वेता सिन्हा

गुरुवार, 26 सितंबर 2019

1532...रहते इंसान ज़मीर से मुब्तिला...


सादर अभिवादन। 
ये 
ऊँची 
मीनारें  
इमारतें 
बहुमंज़िला 
रहते इंसान 
ज़मीर से मुब्तिला। 

वो 
बाढ़ 
क़हर 
न झोपड़ी 
न रही रोटी 
राहत फंड से 
कौन करेगा मौज?
-रवीन्द्र 

आइए पढ़ते हैं कुछ पसंदीदा रचनाएँ -   

My photo 


मतलब में अपने कुछ ऐसे डूबे,

देश पर मर मिटना भूल गए ।

नींद में देखते रहे जिसे रात भर ,
आँख खुली तो वो सपना भूल गए।



मेरी फ़ोटो

* यही है मेरा अपना देश ,विश्व में जिसका नाम विशेष, धार कर विविध

रूप रँग वेष, महानायक यह भारत देश. सुदृढ़ स्कंध, सिंह सा ओज, सत्य 

से दीपित ऊँचा भाल, प्रेम-तप पूरित हृदय-अरण्य, बोधमय वाक्,रुचिर

स्वरमाल. वनो में बिखरा जीवन-बोध,उद्भिजों का अनुपम संसार, धरा पर 

जीवन का विस्तार सभी जीवों का सम अधिकार, सहज करुणा से निस्सृत

छंद,जहाँ जीवन दर्शन आनन्द, प्रकृति से आत्मीय अनुबंध, आत्म-

विस्तारण हेतु प्रबंध.




जब किसी निर्दोष को सरेआम पीटा जाता ।
जब किसी शूरवीर का सबूत मांगा जाता।।
अपने स्वार्थ साधने को भूमि को जिसने बांटा ।
अपना घर भरने को, वनों को जिस ने काटा ।
ऐसे अपराधी बेटों से,मां भी  शर्मिंदा होती है ।।
तब भारत माता रोती है............

 भले ही उर्दू-फारसी के जानकार हिन्दी ग़ज़लकारों पर हँसेंबहरों के टूटने की शिकायत करें, लेकिन हिन्दी का ग़ज़लकार ग़ज़ल की नयी वैचारिक दिशा तय करने में लगा हुआ है।




हिन्दी बेल्ट की राजनीति करने वाले पिता शत्रुघ्न सिन्हा की बेटी और 

हिन्दूघर में जन्मने वाली  बॉलीवुड अभ‍नेत्री सोनाक्षी सिन्हा द्वारा 

जब केबीसी में पूछे गए प्रश्हनुमान किसके लिएसंजीवनी लाए 

थेका जवाब नहीं दिया जा सका और वो बगलें झांकने लगीं,फिर 

लाइफलाइन भी ले डाली तो मीडिया ने तो उनके इसज्ञानको लेकर 

खिचाई की, उसके फॉलोवर्स ने भी अपना माथा ठोंक लियासोनाक्षी के

 इसज्ञानने उसकी परवरिश,उसके परिवार और उन मूल्यों का सच

भी उगल दिया जो गाहे-बगाहे उसके पिता हांकते रहते हैं। 



हम-क़दम का नया विषय


आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगली प्रस्तुति में। 


रवीन्द्र सिंह यादव 


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