सादर अभिवादन।
'पाँच लिंकों का आनन्द' के विशेष साप्ताहिक आयोजन 'हम-क़दम' के ताज़ा अंक में आपका हार्दिक स्वागत है जिसका विषय था - 'ख़ामोशी'/'ख़ामोश '
उदाहरणस्वरूप रचना दी गयी थी -
'ख़ामोशी से बातें करता था
न जाने क्यों लाचारी है
कि पसीने की बूँद की तरह
टपक ही जाती थी
अंतरमन में उठता द्वंद्व
ललाट पर सलवटें
आँखों में बेलौस बेचैनी
छोड़ ही जाता था'
रचनाकारः अनीता सैनी
ख़ामोशी अर्थात ख़ामोश रहने की अवस्था, चुप्पी, मौन, सन्नाटा,शान्ति आदि अर्थों में समझा जा सकता है। मूल रूप से
ख़ामोशी को फ़ारसी भाषा में ख़मोशी लिखा या बोला जाता है।
पुरानी हिंदी फ़िल्मों के गानों में इस शब्द के उच्चारण को बख़ूबी
समझा जा सकता है। ख़ामोशी और ख़मोशी अब दोनों ही शब्द
प्रयोग में समान अर्थ में मान्य हैं ठीक वैसे ही जैसे मोहब्बत/ मुहब्बत, मोहताज / मुहताज जैसे शब्द दोनों रूप में मान्य हैं।
ज़िन्दगी में ख़ामोशी अपने विशालतम अर्थों में हमारे ज़हन में समायी रहती है। कोई जीवन को मात्र एक ख़्वाब समझकर दुनिया से ख़ामोशी के साथ गुज़र जाना चाहता है तो कोई किसी का मुंतज़िर होकर भी ख़ामोशी को जीवनभर ओढ़े रहता है।
आइये पढ़ते हैं 'ख़ामोशी' विषय पर पिछले सप्ताह रची गयीं कुछ उत्कृष्ट रचनाओं में इस विषय पर रचनाकारों का अलग-अलग नज़रिया -
दहशतगर्दी इस हद तक
पसरी
श्वास लेना भी हुआ दूभर
रीते नयन तलाश रहे
बिछुड़े हुए अपनों को
आसपास घरों में भी
है खामोशी का आलम
जहां रहती थी सदा
चहलपहल बचपन की
लेकिन यह सच है कि
ना अब दर्पण मुस्कुराता है
कि मन को शक्ति मिले
ना कोई चेहरा स्नेह विगलित
मुस्कान से आश्वस्त करता है
कि सारी पीड़ा तिरोहित हो जाये ,
ना खामोशी की धीमी-धीमी
आवाजें सुनाई देती हैं
अब कुछ धुँधला सा भी दिखाई नहीं देता ! जैसे मैं किसी अंधकूप में गहरे और गहरे उतरती चली जा रही हूँ ! मेरी सभी इंद्रियाँ घनीभूत होकर सिर्फ कानों में केंद्रित हो गयी हैं ! हल्की सी सरसराहट को भी मैं अनुभव करना चाहती हूँ शायद कहीं कोई सूखा पीला पत्ता डाल से टूट कर भूमि पर गिरा हो, शायद किसी फूल से ओस की कोई बूँद ढुलक कर नीचे दूब पर गिरी हो, शायद किसी शाख पर किसी घोंसले में किसी गौरैया ने पंख फैला कर अपने नन्हे से चूजे को अपने अंक में समेटा हो, शायद किसी दीपक की लौ बुझने से पूर्व भरभरा कर प्रज्वलित हुई हो !
फिर क्या हमेशा की तरह वे पूर्वा के पास पहुँच गए। डाँटते हुए उसके गाल खींचे।अपनी लाल लाल आँखों से उसकी आँखों में झाँकते हुए कुछ बुदबुदाए और उसकी कमर में हाथ डाला।इतने में कुछ खड़खड़ाहट -सी महसूस हुई।उनहोंने बगल की झाड़ियो की ओर देखा।झाड़ी के पीछे से मुहल्लेवाले की महिलाएँ जिनकी बेटी या तो अभी यहाँ पढ़ रहीं थीं या पहले पढ़ चुकीं थी,सभी घरेलु हथियारों से लैस उनकी ओर बढ़ी आ रहीं थीं । -देखते -ही-देखते उनपर बेलन कलछुल चिमटे मथानी और झाड़ुऔं से प्रहार होने लगा।पुष्पा उनकी पिटाई करती हुई कह रही थी-कमीने,मक्कार तूने तो गुरू- शिष्य के रिस्तों को भी दागदार कर दिया।मैं समझती थी बुजुर्ग हो ।बच्चों की देख - भाल अच्छी तरह करोगे लेकिन तू तो संन्यासी की वेस में भेड़िया निकला ।आज तुम्हारी जुबान काटकर तुम्हें हमेशा के लिए खामोश कर दूंगी।
उनके विद्यार्थी विडियोग्राफी बनाने में लगे थे।तभी पुलिस की गाड़ी आकर रुकी और लोगों ने अजीत सर को पुलिस के सुपुर्द कर दिया।
रहता है प्रयास यही,
न दिल दुखे किसी का,
न हो किसी की सेवा में कमी,
बन जाती हूं चट्टान!!
विपत्ति के क्षणों में,
ओढ़ कर खामोशी!
करती हूं सामना बुरे वक्त का,
पर एक कड़वा सच,
जो आता है सामने,
ये खामोशी पंजों में दबोचे जीवन
खती जाती है जीवन के रस
तन्हाई और अकेलेपन बनते साथी
सर जाती है भीतर-बाहर खामोशी।
देती है आने वाले तूफानों का संदेशा
,
सका किसी को कहां होता अंदेशा।
रख देती हूँ इन्हें सहेजकर
यह यादें ख़ामोशी से
टटोलकर मन को मेरे
आँसू दे जाती आँखों में
मैं फिर से बंद कर रख देती
यादों को
खामोशी से ताले में
कहीं कोई ,
हलचल नहीं,
ठहर गई ,
किसी खामोश,
ताल की तरह ,
अंतर्मन के ,
इस पार से
उस पार तक ,
खामोशी,
बस खामोशी......
खामोशी तीन तरह की होती है.
एक वो जिसमें होने वाली
बातों का तक़ाज़ा होता है.
जैसे दूर से एहसास हो जाता है
खामोशी का मतलब बेज़ारी नही होता
और मूर्खता तो कभी नही
कुदरत ने हमें बख़्शी है
बोलने के लिए एक जुबान
और सुनने को दो कान
ख़ामोश कर ही दिया जाता है बार-बार
चौक-चौराहों पर मिल समझदारों के साथ
"हल्ला बोल" का सूत्रधार
पर ख़ामोशी भी चुप कहाँ रहती है भला !?
अपने शब्दों में आज भी चीख़ती है यहाँ ... कि ...
"किताबें कुछ कहना चाहती हैं
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं"
खा़मोश बचपन……शुभा मेहता
भारी बस्तों के
बोझ तले दबा
कंधों और पीठ दर्द की
फरियाद करता बचपन
घर से शाला ,
शाला से घर
गृहकार्य के बोझ से
लदा बचपन
ऊपर से ये क्लास
वो क्लास ..
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगली प्रस्तुति में।
कल अगले हम-क़दम अंक (नावासी / 89 वां)
का विषय दिया जायेगा अतः हमारे मंगलवारीय अंक
की प्रतीक्षा कीजिए।
आपकी सारगर्भित प्रतिक्रियाओं का स्वागत है।
रवीन्द्र सिंह यादव
मनुष्य विभिन्न परिस्थितियों के कारण जब वेदना से विकल हो जाता है , तो मौन का प्रागट्य होता है। इस स्थिति में आदमी कुछ दिनों अथवा महीनों या वर्षों भी रहता है। इस दौरान यदि इस एकांत का प्रयोग वह जीवन के रहस्य समझने में लगाता है ,तो उसे नश्वर संसार और संबध का बोध होता है। खैर , मैंने भी एक साधारण सी रचना लिख रखी है। सादर...
जवाब देंहटाएंख़ामोश होने से पहले
***********************
ख़ामोश होने से पहले हमने
देखा है दोस्त, टूटते अरमानों
और दिलों को, सर्द निगाहों को
सिसकियों भरे कंपकपाते लबों को
और फिर उस आखिरी पुकार को
रहम के लिये गिड़गिड़ाते जुबां को
बदले में मिले उस तिरस्कार को
अपनो से दूर एकान्तवास को
गिरते स्वास्थ्य ,भूख और प्यास को
सहा है मैंने , मित्रता के आघात को
पाप-पुण्य के तराजू पे,तौलता खुद को
मौन रह कर भी पुकारा था , तुमको
सिर्फ अपनी निर्दोषता बताने के लिये
सोचा था जन्मदिन पर तुम करोगे याद
ढेरों शुभकामनाओं के मध्य टूटी ये आस
ख़ामोशी बनी मीत,जब कोई न था साथ
दर्द अकेले सहा ,नहीं था कोई आसपास
चलो अच्छा हुआ तुम भी न समझे मुझको
अंधेरे से दोस्ती की ,दीपक जलाऊँ क्यों !!
- व्याकुल पथिक
जीवन की पाठशाला
इस सुंदर प्रस्तुति के लिये आभार, प्रणाम।
जी बहुत सुंदर प्रस्तुति। एक से बढ़कर एक रचनाओं का अनमोल संकलन। सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामना।मेरी भी छोटी-सी रचना को सोमवारीय विशेषांक में साझा करने के लिए बहुत-बहुत धन्यबाद।ि
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक..
जवाब देंहटाएंकाफी दिनों के बाद आपको देखा आज
सुन्दर अंक..
सादर..
हमक़दम के इस बेहतरीन संकलन वाले अंक के साथ मेरी रचना साझा करने की लिए हार्दिक आभार आपका ...
जवाब देंहटाएंसराहनीय संकलन सजाने के लिए साधुवाद
जवाब देंहटाएंवाह!!बहुत ही उम्दा प्रस्तुति रविन्द्र जी ।सभी लिंक एक से बढकर एक । मेरी रचना को स्थान देने हेतु आभार ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भूमिका के साथ बहुत खूबसूरत संकलन रविन्द्र जी ! मेरी रचना को संकलन में स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंखामोशी के बिभिन्न आयामों से सजी कवितायेँ बहुत आनंददायक लगीं |
जवाब देंहटाएंमेरी रचना खामोशी को शामिल करने के लिए धन्यवाद सर |
बहुत सुंदर प्रस्तुति।मेरी रचना को स्थान दिया इसके लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए सहृदय आभार आदरणीय 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा अंक आदरणीय भाई रवीन्द्र जी , ख़ामोशी पर आज रचनाकारों ने बहुत कुछ रचा जो हर लिहाज से बेहतरीन रहा | भूमिका से भाषा ज्ञान में बहुत वृद्धि हुई | बहुत से मानक शब्दों के बारे में जाना | साथ में ख़ामोशी की परिभाषा में जोड़ना चाहूंगी -- यदि ख़ामोशी सार्थक हो तो अमर सृजन का कारक होती है यदि निरर्थक हो तो असहनीय वेदना और अवसाद में बदल जाती है | सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें | आपको भी हार्दिक आभार सार्थक हमकदम अंक के लिए | सादर
जवाब देंहटाएंख़ामोशी के कई रूप से सजी उन्दा प्रस्तुति ,एक एक रचना लाजबाब ,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन....
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
खामोशी पर बहुत कुछ कहतीं सुनती सुनातीं रचनाएं ! हर रचना बहुत खूबसूरत एवं सार्थक ! मेरी रचनाओं को भी आज के विशेषांक में स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएं