हिन्दी दिवस कल सम्पन्न हुआ...
भाई कुलदीप जी आज आवश्यक कार्य से बाहर हैं
चलिए आपको ले चलती हूँ...आज की रचनाओं की ओर....
हिंदी ....
एक बात प्रमाणित है हिंदी साहित्य के छोटे-बड़े सभी लेखकों ने बागडोर थामी हुई है हिंदी के भविष्य के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझते हुये।
हमारे देश के ग्यारह हिंदी भाषी राज्यों में बोली जाने वाली विविधापूर्ण हिंदी प्रचलित भाषा में मिश्रित करके बोली जाती है। जैसे उत्तरप्रदेश से बिहार आते-आते हिंदी में गवईंपन बढ़ जाता है। हिंदी भाषा की शुद्धता का मानक स्तर तय करने का दारोमदार हिंदी साहित्य पर है। हिंदी पत्रिकाएँ और युवा साहित्यकारों की बढ़ती संख्या एक सकारात्मक संकेत है, पर अगर वो भाषा की शुद्धियों पर ध्यान दें तो और भी सुखद होगा हम उम्मीद कर सकते है कि हिंदी की शिथिल पड़ती धुकधुकाती साँसों में प्रयासों द्वारा अब भी कृत्रिम उपकरणों की मदद से ऑक्सीजन भरकर नवजीवन प्रदान किया जा सकता हैं।
राष्ट्रभाषा स्वतंत्र देश की संपत्ति होती है
किसी राष्ट्र की संस्कृति उस राष्ट्र की आत्मा है। राष्ट्र की जनता उस राष्ट्र का शरीर है। उस जनता की वाणी राष्ट्र की भाषा है। डाॅ. जानसन की धारणा है, ’भाषा विचार की पोषक है।’ भाषा सभ्यता और संस्कृति की वाहक है और उसका अंग भी। माँ के दूध के साथ जो संस्कार मिलते हैं और जो मीठे शब्द सुनाई देते हैं, उनके और विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय के बीच जो मेल होना चाहिए वह अपनी भाषा द्वारा ही संभव है। विदेशी भाषा द्वारा संस्कार-रोपण असम्भव है।
अंतर्विरोध और बुनियादी सरोकार : मोहसिन ख़ान
भाषा त्वचा की तरह होती है. क्या कभी त्वचा भी बदली जा सकती है. इस देश की विडम्बनाओं का कोई अंत नहीं. शायद अकेला देश है जो अपनी भाषा का दिवस मनाता है.
संकट जन भाषा हिन्दुस्तानी को लेकर नहीं है विश्व में बड़ी तीन भाषाओं में वह है और वैश्विक स्तर पर सम्पर्क भाषा के रूप में उभर रही है.
भारत एक राष्ट्र बने और उसकी एक राष्ट्रभाषा हो इसी इच्छा के कारण अधिकतर क्षेत्रों में बोली और समझी जाने वाली ‘हिंदी’ को राष्ट्र भाषा के लिए उपयुक्त समझा गया. उसे भारत में सम्पर्क और सरकारी कामकाज की भाषा बननी थी.
गाँव में यादों के ....
नज़र को आस नज़र की है मयकशी के लिए
तड़प रहे हैं बहुत आज हम किसी के लिए
ये ग़म हयात के न जाने ख़त्म कब होंगे
मुंतज़िर है ये दिल इक लम्हें की खुशी के लिए
सरकारी हिन्दी ....
डिल्लू बापू पंडित थे
तो वैद्य भी उन्हें होना ही था
नाड़ी देखने के लिए वे
रोगी की पूरी कलाई को
अपने हाथ में कसकर थामते
आँखें बन्द कर
मुँह ऊपर को उठाये रहते
फिर थोड़ा रुककर
रोग के लक्षण जानने के सिलसिले में
जो पहला प्रश्न वे करते
वह भाषा में
संस्कृत के प्रयोग का
एक विरल उदाहरण है
यानी ‘पुत्तू ! क्षुधा की भूख
लगती है क्या ?’
निराशा की जगह संभावनाएं तलाशें ...
इस नैराश्य वातावरण में भी ऐसे बहुत लोग मिलेंगे जो हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में सदैव जुटे रहते हैं । लोगों में अपनी मात्रभाषा के प्रति प्रेम की अलख जगाते रहते हैं । तकनीक जितनी अधिक विकसित हो रही है संभावनाएं भी उतनी ही बढ़ रही हैं । आज ना केवल कम्पूटर की बोर्ड हिंदी में आ रहा है, बल्कि ई-मेल आदि भी हिंदी में भेजे जा रहे है। मोबाइल फोन पर भी हिंदी के अक्षर पढ़े व् लिखे जा सकते हैं । इंटरनेट के जरिये ना केवल भारत देश में बल्कि सुदूर प्रवासी भारतीयों भी हिंदी भाषा लिखने-पढ़ने के प्रति रुझान बढ़ा है , संभवतः ये सकारात्मक संकेत हैं हिंदी के उज्जवल भविष्य के ।
टीवी ने हिंदी को जन-जन तक पहुँचाने में अहम भूमिका निभाई है। समाचार, सीरियल्स, गीत-संगीत पर आधारित कार्यक्रमों ने जनमानस पर हिंदी के महत्व की छाप छोड़ी है ।
राजभाषा के 70 साल : आज भी वही सवाल ?
विचारणीय सवाल यह है कि हिन्दी को 70 साल पहले राजभाषा का दर्जा तो मिल गया ,लेकिन वह आखिर कब देश की सर्वोच्च अदालत सहित राज्यों के उच्च न्यायालयों और केन्द्रीय मंत्रालयों के सरकारी काम-काज की भाषा बनेगी ? स्वतंत्र भारत के इतिहास में १४ सितम्बर १९४९ वह यादगार दिन है जब हमारी संविधान सभा ने हिन्दी को भारत की राजभाषा का दर्जा दिया था . इसके लिए संविधान में धारा ३४३ से ३५१ तक राजभाषा के बारे में ज़रूरी प्रावधान किए गए .
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आज बस इतना ही
यशोदा..
प्रणाम दी,
जवाब देंहटाएंआज और कल की प्रस्तुति में अनेक लेखकों के विचार पढ़ने मिले।
वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी डा० विश्राम जी ने कल मुझे यह एक प्यारी सी रचना भेजी है-
मैं हिन्दी हूँ ।।
मैं सूरदास की दृष्टि बनी
तुलसी हित चिन्मय सृष्टि बनी
मैं मीरा के पद की मिठास
रसखान के नैनों की उजास
मैं हिन्दी हूँ ।।
मैं सूर्यकान्त की अनामिका
मैं पन्त की गुंजन पल्लव हूँ
मैं हूँ प्रसाद की कामायनी
मैं ही कबीरा की हूँ बानी
मैं हिन्दी हूँ ।।
खुसरो की इश्क मज़ाजी हूँ
मैं घनानंद की हूँ सुजान
मैं ही रसखान के रस की खान
मैं ही भारतेन्दु का रूप महान
मैं हिन्दी हूँ ।।
हरिवंश की हूँ मैं मधुशाला
ब्रज, अवधी, मगही की हाला
अज्ञेय मेरे है भग्नदूत
नागार्जुन की हूँ युगधारा
मैं हिन्दी हूँ ।।
मैं देव की मधुरिम रस विलास
मैं महादेवी की विरह प्यास
मैं ही सुभद्रा का ओज गीत
भारत के कण-कण में है वास
मैं हिन्दी हूँ ।।
मैं विश्व पटल पर मान्य बनी
मैं जगद् गुरु अभिज्ञान बनी
मैं भारत माँ की प्राणवायु
मैं आर्यावर्त अभिधान बनी
मैं हिन्दी हूँ।।
मैं आन बान और शान बनूँ
मैं राष्ट्र का गौरव मान बनूँ
यह दो तुम मुझको वचन आज
मैं तुम सबकी पहचान बनूँ
मैं हिन्दी हूँ।।
हिन्दी दिवस की
हार्दिक शुभकामनाएं...
📝📝📝
बेहतरीन प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआपने हमसे कहा था..
हम इतना बढ़िया नही बना पाते..
सादर..
सस्नेहाशीष व असीम शुभकामनाओं के संग साधुवाद
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुतीकरण
बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहिंदी दिवस विशेषांक में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंवाह दी बहुत अच्छे सूत्र पिरोये हैं आपने..बेहतरीन रचनाएँ पढ़वाने के लिए अति आभार दी।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए सादर शुक्रिया।
वाह!
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