निवेदन।


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रविवार, 31 मार्च 2024

4082 तुम्हारी यादें गाहे-बगाहे आकर घेर लेती है मुझे


सादर अभिवादन
मास का अंतिम दिन
कल से अप्रैल चालू
आइए देखें कुछ रचनाएं ....




ना पैसा, ना दौलत - शोहरत
ना कोई रखवाला था,
अपने दम पर गगन झुकाने
वाला वो मतवाला था।
शोषण और दमन से लड़ने
का उसने आहवान किया,
सदियों से अन्याय सह रहे
लोगों को नेतृत्व दिया।
पद की खातिर सब मिटते हैं,
जन की खातिर मिटता कौन ?
जो जल को चवदार बना दे
जादूगर था ऐसा कौन ?




दूर तक पसरा है कुहासा
शायद है असर प्रदूषण का 
पर फिर भी 
छमकती दिख रही हो तुम
ही कहीं ऐसा तो नहीं
कुहासे के मध्य
जैसे फ़ैल गया हो
सूर्यप्रकाश का उजास




तुम्हारी यादें
गाहे-बगाहे आकर
घेर लेती है मुझे
बिना दस्तक दिए
चली आती है मेरे साथ।




राजा - आओ मेरे साथ। तन्विक राजा द्वारा बुलाने पर डर गया, लेकिन उसे राजा की आज्ञा माननी ही थी। वह धीरे-धीरे राजा की तरफ आगे बढ़ा। राजा उसे सिंहासन के पास ले गए और बोले - तुम ही इस राज्य के असली उत्तराधिकारी हो। राजा के इस फैसले से वहां मौजूद हर कोई हैरान रह गया।

राजा ने कहा - मैंने जो बीज दिया था वह नकली था। उससे पौधा आ ही नहीं सकता था। आप सब ने बीज बदल दिया, लेकिन तन्विक ने ईमानदारी के साथ 4 महीने मेहनत की और अपनी असफला स्वीकार करते हुए मेरे सामने खाली गमला लाने का साहस दिखाया। तन्विक में वह सारे गुण हैं, जो एक राजा में होने चाहिए। इसलिए इस राज्य का अगला उत्तराधिकारी मैं तन्विक को बनाता हूं।





प्राइवेट बस थी। खचाखच भरी थी। प्रयागराज से बनारस जा रही थी। इसी भीड़ में एक औरत जो गर्भवती थी। वह भी बनारस जा रही थी। सीट पर से कोई उठना नही चाह रहा था कि उस महिला को कोई सीट दे दे। कोई आगे नहीं आया। काफी देर तक खड़ी रही पर कोई भारतीय संस्कार दिखाने को तैयार नहीं था। स्वार्थ भरा था। किसी का दिल नहीं पसीजा। नालायक माहौल था। बेहूदा कहीं के।



आज बस. ...

सादर वंदन

शनिवार, 30 मार्च 2024

4081 ...मैं बहारों के घर कल गया , आँधियों को पता चल गया


सादर अभिवादन
लोग गाने गा रहे हैं
और प्रतीक्षा कर रहे हैं
एक फिल्मी गीत सुनिए
आइए देखें कुछ रचनाएं ....


संतरे वाली गोली ...

उन दिनों संतरे वाली टॉफी भी मेरी पसंदीदा टॉफियों में से एक हुआ करती थी। संतरे की फाँक के आकार में ये टॉफियाँ आती थी और स्वाद भी सूखे संतरे जैसा ही होता था। छोटे छोटे पैकेट में ये आती थी जिसे हम लोग अक्सर बस में सफर के दौरान लेते थे। अक्सर बस अड्डे में खड़ी बसों में ही इन्हें बेचा भी जाता था। इस कारण इस टॉफी को अक्सर यात्रा करने के दौरान ही लिया जाता था। इसका और उपयोग उन दिनों लोग करते थे। पहाड़ के रास्ते घुमावदार होते हैं। कई बार इन घुमावदार रास्तों में जब बस चलती है तो यात्रियों को उल्टी इत्यादि होने लगती थी। कई लोग इन टॉफियों के पैकेट रख लेते थे और एक एक टॉफी चूसते हुए जाते थे ताकि बस में सफर के दौरान वो जी मिचलाये तो उल्टी न करें।






मायाविनी रात्रि में खोजता हूँ व्यर्थ का अज्ञातवास,
मोहक जुगनू कभी हथेली पर और कभी अंतर्ध्यान,

अनगिनत प्रयास फिर भी आँचल में शून्य निवास,
विश्व भ्रमण के बाद भी, स्वयं से व्यक्ति है अनजान,




मैं बहारों के घर कल गया ,
आँधियों को पता चल गया ।   

ये आख़री रात है कह कर ,
रोज अँधेरा मुझे छल गया ।




यही भावनाएं उलझीं
कवि की रचना में  
है इतनी शक्तिशाली
उलझी शब्द शैली
उसी में रही उलझीं
हमारे मन की भावनाएं




मनुष्य ने
ओढ़ा हुआ है
मनुष्यता का लबादा।
उतारकर फेंक देता है,
मौका मिलते ही
और बन जाता है
जानवर





अपना मजा

और
अपना

एक
नशा होता है

किसी की
दो चार लोग
सुन देते हैं

किसी
के लिये
मजमा
लगा होता है



आज बस. ...
इन्तेजार ही करती रही
शायद दीदी ने अगले सप्ताह का
प्लान बनाया है
सादर वंदन

शुक्रवार, 29 मार्च 2024

4080 ..हिंसा के दौर में चुनाव अच्छे या बुरे का नहीं रहा

 सादर अभिवादन

आज गुड फ्राइडे
और संकट चतुर्थी  दोनों है
अगले शुक्रवार को मिलेगी सखी श्वेता
आइए देखें कुछ रचनाएं ....




इसीलिये ए अज़ीम इंसानो!
आज की बेटियों को उडने दो
वक़्त के बाज़ से भी लड़ने दो
चांदनी भेड़िये की जंग में
नारा ए इंक़लाब पड़ने दो
कि बेटियों के लहू के छीटे
जब कभी भी ज़मी पे पड़ते हैं
फूल खिलते हैं






अभागिन अमीना अपनी कोठरी में बैठी रो रही है। आज ईद का दिन, उसके घर में दाना नहीं! आज आबिद होता, तो क्या इसी तरह ईद आती ओर चली जाती! इस अंधकार और निराशा में वह डूबी जा रही है। किसने बुलाया था इस निगोड़ी ईद को? इस घर में उसका काम नहीं, लेकिन हामिद! उसे किसी के मरने-जीने से क्या मतलब? उसके अन्दर प्रकाश है, बाहर आशा। विपत्ति अपना सारा दल-बल लेकर आये, हामिद की आनंद-भरी चितवन उसका विध्वंस कर देगी।



उनकी
बेशर्मी
बस
कभी कभी
किसी एक
ईद का
छोटा
सा चाँद



अश्लीलता फूहड़ता और
हिंसा के दौर में
चुनाव अच्छे या बुरे का नहीं रहा
'टार्चर हो सकने की सहनशक्ति' का है.





कभी मीरा, कभी तुलसी कभी रसखान लिखता हूँ
ग़ज़ल में, गीत में पुरखों का हिंदुस्तान लिखता हूँ

ग़ज़ल ऐसी हो जिसको खेत का मज़दूर भी समझे
दिलों की बात जब हो और भी आसान लिखता हूँ




आर्ट ऑफ़ लिविंग की तरफ़ से कुछ दिनों के लिए ऑन लाइन स्टे फिट कार्यक्रम चलाया जा रहा है। सुबह-सुबह उनके साथ व्यायाम और योगासन करने से शरीर हल्का लग रहा है। अब दो दिन ही शेष हैं। एक सखी ने दुलियाजान में बीहू उत्सव की तस्वीरें फ़ेसबुक पर पोस्ट की हैं। कितनी यादें मन में कौंध गयीं। वहाँ क्लब में बीहू बहुत उत्साह से मनाया जाता है। साज-सज्जा नृत्य-संगीत और पारंपरिक पकवान, सभी की तैयारी पहले से शुरू हो जाती है। पड़ोस वाले घर में दीवार उठनी शुरू हो गई है।

आज बस. ...
शायद कल विभा दीदी आ सकती है
कोशिश तो है
अग्रिम आभार
सादर वंदन

गुरुवार, 28 मार्च 2024

4079...नोच-नोच शाखों से बहार लेके जाएगा...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय उदय वीर सिंह जी की रचना। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पढ़िए अपनी पसंदीदा रचनाएँ-

बाहर लेके जाएगा...

टूटे    टूटा  कभी  मौसम की मार से,

दिल में संजोया  ऐतबार  लेके लाएगा।

रंगे- बिरंगेगुल, गुलशन  में  आये थे,

नोच-नोच शाखों से बहार लेके जाएगा।

जीना है जीवन भूल गए

तुलना करना सदा व्यर्थ है

दो पत्ते भी नहीं एक से,

व्यर्थ स्वयं को तौला करते

जीना है जीवन भूल गए !

1167-मुझमें तुम शामिल हो

तुम मोहन मैं राधा
क्यों ना बाँटें हम

हर दुख आधा- आधा।

आज की कविता आकिब जावेद के साथ

मौका मिलते ही

और बन जाता है
जानवर
क्रूर, वहसी,जंगली
समाज ने
कम्फर्ट जोन
बना लिया है।

विलुप्ति की कगार पर पारंपरिक कलाएं, बीन वादन

उस दिन जॉय गाँव में घूमते-घूमते मैं, डॉ गोयल और हीरा लाल जी, अपनी पारंपरिक वेश-भूषा में अकेले बैठे श्री मुकेश नाथ जी के पास जा पहुंचे। अति विनम्र और मृदुभाषी मुकेश जी का बातों-बातों में, उपेक्षित होते बीन वादन को लेकर दर्द उभर आया ! हालांकि इसी बीन की बदौलत वे एक बार इटली में सम्मानित हो चुके हैं पर धीरे-धीरे पहचान खो रही अपनी इस पुश्तैनी कला के भविष्य को लेकर वे खासे चिंतित भी हैं ! उन्होंने हमें इस वाद्य पर जो धुनें सुनाईं, वे किसी को भी मंत्रमुग्ध करने की क्षमता रखती हैं ! उन्होंने इस साज की बेहतरी के लिए अपनी तरफ से कुछ बदलाव भी किए हैं। यू-ट्यूब (Haryana Jogi Music) पर भी उनको देखा-सुना जा सकता है।  

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

बुधवार, 27 मार्च 2024

4078..हर कदम पर घात है...

 ।।प्रातःवंदन।।

"भोर की दस्तक हुई है, जग !

पूर्व में छायी अरुणिमा, 

बह चली सुखकर हवा,

फिर नये अंदाज में 

गाने लगे मिल खग !


तितलियाँ मकरंद वश

उड़ने लगी हैं,

भ्रमर, मधु का मीत,

खुश हो गुनगुनाता,

राग में पागल हुआ सा

रहा इत-उत भग !"

त्रिलोक सिंह ठकुरेला

 होली के दूसरे  दिन की दशा समेटते,सहेजते और बुधवारिय प्रस्तुति की छटा ...✍️

होली पर कविता 

हम उत्सवधर्मी देश के वासी सभी पर मस्ती छाई 

प्रकृति भी लेती अंगड़ाई होली आई री होली आई,

मन में फागुन का उत्कर्ष अद्भुत होली का त्योहार 

बूढ़वे हो जाते युवा, चहुंओर आशा प्रेम का संचार..

✨️

रंगों की झोली 

1.

विजयी भव

होली का आशीर्वाद

हर माँ देती।

2.

माँ-बाबा पास

रॉकेट से भेजती

रंगों की झोली!

✨️

कैसे पाऊँ प्रेम दोबारा...


बता सखी अब

कैसे पाऊँ प्रेम दोबारा,

तृष्णा मिटे अब कैसे फिर से,

कैसे अब मैं पुनः तृप्त हूँ…

✨️

हँस के मिल लें..

हँस के मिल लें अब रक़ीबों ,अचकचाहट छोड़ दें

भर लें खुद में बस मोहब्बत,तिलमिलाहट छोड़ दें ..

है भले ही जग ये धोखा , हर कदम पे घात है

अहल-ए-दिल कैसे मगर यूँ मुस्कुराहट छोड़ दें ..

✨️

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह ' तृप्ति '..✍️

मंगलवार, 26 मार्च 2024

4077 ...वासन्ती हवाओं से बात की है

 सादर अभिवादन

आज सखी श्वेता प्रवास पर हैं
अगले तीन अंक हमारी पसंद की
पढ़िए आज की रचनाएँ ....





कण-कण में विश्वास भरा है
अणु-अणु में गति भर दी किसने,
सुमधुर, सुकोम, सरस स्वर में
कोई भीतर से गाता है !




गुलालों के गुबार में
रंगों की बौछार में
रंगों जैसे हम खिले
आओ हम सब
गले मिलें होली के त्यौहार में...




प्रकृति ने
हर बार की तरह
इस बार भी..,
वासन्ती हवाओं से बात की है ।
आसमान के नीले रंग में
सागर के पानी का रंग घोल
पहाड़ों की मिट्टी के साथ




तुम प्रिय
तुम प्रियता
सांसारिक निजता
हिय दृष्टा हो

तुम अंतर्दिष्ट सखा हो




राजा रघु बहुत विचार कर अपने गुरु वशिष्ठ के पास गये। गुरु के पास पहुंचकर उन्होंने विनम्रतापूर्व उनसे ढूंढा राक्षसी के बारे में समस्या का समाधान जानने के लिए बड़ी नम्रता से चरण स्पर्श किए और वहीं गुरु वशिष्ट के समीप बिछे कुशासन पर बैठकर और अपने आने का कारण बताया। उन्होंने गुरु वशिष्ट से पूछा कि कि यह राक्षसी कौन है? इसके अत्याचारों को निवारण का उपाय बताइये? वशिष्ट थोड़ी देर चुप रहकर बोले- राजन! यह माली नाम के राक्षस की कन्या है। एक समय की बात है। इसने शिव की आराधना में बड़ा उग्र तप किया। भगवान भोलेनाथ ने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसको वर मांगने को कहा। इस पर वह कुछ भी न बोली तो फिर शिव जी ने कहा- “संकोच मत करो बालिके! जो कुछ तुम्हारे मन में हो वह मांग डालो। मैं तुम्हारी इच्छा पूर्ण करूंगा।




भावना के वृक्ष तरसें
अग्नि की उस लालिमा से
रंग जीवन के व्यथित हैं
टेसु लगते कालिमा से
सो गया उल्लास थक कर
याद करके प्रीत अनुपम।।
आज के प्रह्लाद..
....

आज बस
कल आएगी पम्मी सखी
सादर

सोमवार, 25 मार्च 2024

4076 ..सूखा रंग लगाया तुमने, फिर मैं इतना कैसे भीग गया

 सादर अभिवादन

आज रात होली है
गुलाल जरूरी है
आज की रचनाएँ





तुम्हारे हाथों में
न पिचकारी थी,
न बाल्टी,न गुब्बारा था,
सूखा रंग लगाया तुमने,
फिर मैं इतना कैसे भीग गया?




वो कौन, जो पहले, स्वप्न सा आया,
फिर, पलकों में समाया,
इंद्रधनुष सी, कैसी, वो परछाईं,
छुई-मुई सी, मुरझाई,
है वो कोई भरम, टूटे जो पल-पल,
कैसा वहम, छूटे ना इक पल!




आहिस्ता आहिस्ता करके,
पिघलना पड़ता है।
आसान नहीं मुहब्बत,
बहुत जलना पड़ता है।
बुझती भी नहीं आग दिल की,
जलकर राख भी नहीं होता है।





बुरा न मानो बोल के ,
होली की हुडदंगी जात ,
तोड़फोड़ और गालियाँ  से ,
मन की निकाले भड़ास .

लोढ़त पोढ़त  दिन गयो ,
गयो न मदहोशी का फेर .
मधु मुन्नका मिठाई संग ,
ज्यों  सेवन किये रहे ढेर .




ऐ जानम ! ..
आओ ना आज ..
आज की रात ..
मिलकर साथ-साथ ..
छत पर चाँदनी में
डुबकी लगायी जाए
और डाले हुए गलबहियाँ
................

.....................

आज बस
कल सखी आएंगी
सादर

रविवार, 24 मार्च 2024

4075 ..इस होली में दिखेगी चालीस का हीरो और पिचहत्तर की प्रेमिका जोगी रा सा रा रा रा

 सादर अभिवादन

यूँ तो ..
चालीस पचहत्तर का मेल नहीं न होता है
पर इस होली में दिखेगी
चालीस का हीरो
और पिचहत्तर की प्रेमिका
जोगी रा सा रा रा रा
आज की रचनाएं



कुर्ता होली खेलता, अंगिया के सँग आज।
रँगा प्यार के रंग में, अपना देश-समाज।1।

रंग-बिरंगे हो रहे, गोरे-श्यामल गाल।
हँसी-ठिठोली कर रहे, राधा सँग गोपाल।





“कढ़ी में आयरन की भरपूर मात्रा होती है.. इसके सेवन से शरीर में हीमोग्लोबिन को बढ़ाने में मदद मिलती है और शरीर भी स्वस्थ रहता है.. कढ़ी बहुत लाभदायक होती है.. इसका सेवन त्वचा संबंधित समस्याओं से निजात दिलाने में मदद करता है…,” मेरी बात पूरी भी नहीं हो सकी,

“बस! बस बस! माँ! बेसन लाने किसी को भेजो! सभी प्रतीक्षा में हैं! और आप कहती हैं ‘अप रूपी भोजन, पर रूपी शृंगार’ हमें उसका हलवा बेहद पसंद है…!”





बच्चे   आँगन   में   खड़े, रंग   रहे   हैं   घोल।
बजा  रहे हैं भागमल, ढम-ढम अपना ढोल।।

कर  में  पिचकारी  लिए, पीकर  थोड़ी  भंग।
देवर  जी   डारन   चले, भौजाई   पर   रंग।।




रंग गहरा ऐसा कि निगाह से रूह में उतर जाए,
छुअन ऐसी हो कि रिसते घाव छूते ही भर जाए,

कुछ जुड़ाव जो दूर रह कर भी जिस्म को जकड़े,
ख़ुश्बू वो कि रगों से बह कर दिल में बिखर जाए,




परबत ले उतरत बिन लगाम के पानी के धार गंगा कस....
टोरत, फोरत , एईठत, रमजत, कूदत, फांदत, अपन मऊज म...
उतरथे ऊपर ले तरी त बोहाके ले जाथे ...संग म सब्बो जिनिस ल
नई देखय नवा, रद्दा, नवा डहर, ओई ह बनाथे नवा रद्दा...
ओकर बेग ल अपने ह  नई थामे सकिस ओई ह गंगा आय
बहदा .....जेकर बेग ओकरे मन ले आर पार रेंग देथे




गोकुल ,वृन्दावन की हो
या होली हो बरसाने की ,
परदेसी की वही पुरानी
आदत  है तरसाने की ,
उसकी आँखों को भाती है
कठपुतली आमेर की |




बड़े सयाने बोलते, करती हानि शराब।
बदनामी तो होत ही, सेहत होत खराब।
जोगीरा सारा रा रा रा
लगे लत जो दारू की, बिक जाए घरबार।
देखो पहुँची जेल में, दिल्ली की सरकार।।
जोगीरा सारा रा रा रा

कल फिर
सादर

शनिवार, 23 मार्च 2024

4074 ....होली रे रिसिया बरजोरी रे लिया

 सादर अभिवादन

बस दो दिन और
कुछ भी गालो
कुछ भी खालो
फिर या तो सेंवई मिलेगी
या फिर लाइची दाना

आज की रचनाएं




घर मेरा छोड़ के मत जाना ।
दाना चुगने हर दिन आना ।
प्याऊ जान जल पीने आना ।
नीड़ निडर हो यहीं बनाना ।




ये उलझी उलझी सांसों का
बे मतलबी सी बातों का
हाथों में मेरे, हाथों का
कांधो पे ढलके बालों का
मेरी ख्वाहिशों का



कविता
मन की चारदीवारी से निकला
इमोशनल कंटेंट
...
कविता
एक परिभाषा
‘टेम्पोरेरी’ की



कोई भी इंसान जब कभी भी किसी अन्य दुःखी इंसान के लिए पनपी सहानुभूति के दायरे को फाँद कर समानुभूति के दामन में समाता है, तो .. उसकी भी मनोदशा .. कुछ-कुछ रेशमा जैसी ही हो जाती है। कहते हैं कि .. बहुत ही उत्तम प्रारब्ध होता है उनलोगों का .. जिनके लिए हर परिस्थिति में हर पल किसी अपने या पराए की समानुभूति की प्रतीति होती हैं .. शायद ...




जो दलीलें हों झूठी, और इल्ज़ाम भी
सच के साहस के आगे टिकेंगे नहीं

दिल के रिश्तों को जोड़ा फिर तोड़ा, मगर
खून के हैं जो रिश्ते , मिटेंगे नहीं




बनारस एवं ब्रज, मथुरा और वृंदावन क्षेत्र में अधिक लोकप्रिय है। रसिया ‘रस की खान’ कहे जाते हैं। इसमें लोकमानस अपने जीवन के सुख-दुख, हर्ष-विषाद, उमंग और उल्लास की कथा का वर्णन अधिकतर रसिया शैली में ही व्यक्त किया जाता है। यह शैली लोकशैली के अंतर्गत मानी जाती है। रसिया शैली को होली के समय गाया जाता है। एक प्रचलित लोकगीत रसिया शैली में इस प्रकार से है:

“आज बिरज में होली रे रसिया।
होली रे रिसिया बरजोरी रे लिया।”


कल फिर
सादर
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