चुनावी बाज़ार में
सपनों के सौदागर
वायदों की चाश्ननी में लिपटे
मीठे सपने बेच रहे हैंं।
कुछ जागते लोग
उनींदें अधखुली आँखों को
जबरन खोले रतजगा कर
चाश्ननी की कड़ुवाहट
जाँच रहे हैंं
कोई न सोने की कसम खाकर
सपनों की हक़ीकत माप रहा है
कोई सोने का उपक्रम कर
सौदागर के मंसूबे नाप रहा है
कोई सौदागरों के सपनों
को क़ीमत के मुताबिक
छाप रहा है
इन सबसे परे
कुछ मासूम,कुछ मजबूर
अब भी वायदों की फटी चद्दर में
अपना मुक़द्दर भरकर
सपनों से तुरपाई कर
सुख भरे दिन की आस लिये
अपनी ख़्वाहिशों को काछ रहे हैंं।
#श्वेता सिन्हा
सारे उतरन उतरते गए, नज़दीक से देखने की ज़िद्द में,
दाग़ ए दिल देखते ही आईना बहोत पशेमां सा लगे है,
लफ्ज़ तक सिमट के रह जाते हैं सभी तरक़्क़ी के दावे
इंतिख़ाब क़रीब है वज़ीर कुछ ज़्यादा परेशां सा लगे है,
छिछली नदी की तरह पड़े रहें
और बीत जाये जीवन... का यह क्रम
लिए जाए मृत्यु के द्वार पर
खड़े होना पड़े सिर झुकाए
देवता के चरणों में चढ़ाने लायक
फूल तो बनना ही होगा
इतनी शिद्दत से जीना होगा…!
अपना व्याह रचाए।
दूर देश में जाकर के वे,
अपना गेह बसाए।।
ना चिठ्ठी ना सन्देश।
वो जाके बसे परदेश।।३।।
अपना जीवन कुछ शेष।
अब रहने के दिन शेष।।
लेकिन ज़िंदगी चक्को पर ही विराजमान रहती है
समय कब निकल जाता है पता भी नहीं चलता
चक्का चक्का करते करते एक दिन,
उन्हीं चक्कों पर यह जिंदगी गुजर जाती है
कभी हमें कोई धक्का दे रहा होता है
सुंदर चिंतन से आगाज
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक
आभार
सादर
सुप्रभात ! ज़ोरदार भूमिका के साथ सुंदर लिंक्स का चयन, 'मन पाये विश्राम जहां' को स्थान देने हेतु बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन
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