।।प्रातःवंदन।।
"भोर की दस्तक हुई है, जग !
पूर्व में छायी अरुणिमा,
बह चली सुखकर हवा,
फिर नये अंदाज में
गाने लगे मिल खग !
तितलियाँ मकरंद वश
उड़ने लगी हैं,
भ्रमर, मधु का मीत,
खुश हो गुनगुनाता,
राग में पागल हुआ सा
रहा इत-उत भग !"
त्रिलोक सिंह ठकुरेला
होली के दूसरे दिन की दशा समेटते,सहेजते और बुधवारिय प्रस्तुति की छटा ...✍️
हम उत्सवधर्मी देश के वासी सभी पर मस्ती छाई
प्रकृति भी लेती अंगड़ाई होली आई री होली आई,
मन में फागुन का उत्कर्ष अद्भुत होली का त्योहार
बूढ़वे हो जाते युवा, चहुंओर आशा प्रेम का संचार..
✨️
1.
विजयी भव
होली का आशीर्वाद
हर माँ देती।
2.
माँ-बाबा पास
रॉकेट से भेजती
रंगों की झोली!
✨️
बता सखी अब
कैसे पाऊँ प्रेम दोबारा,
तृष्णा मिटे अब कैसे फिर से,
कैसे अब मैं पुनः तृप्त हूँ…
✨️
हँस के मिल लें अब रक़ीबों ,अचकचाहट छोड़ दें
भर लें खुद में बस मोहब्बत,तिलमिलाहट छोड़ दें ..
है भले ही जग ये धोखा , हर कदम पे घात है
अहल-ए-दिल कैसे मगर यूँ मुस्कुराहट छोड़ दें ..
✨️
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह ' तृप्ति '..✍️
है भले ही जग ये धोखा ,
जवाब देंहटाएंहर कदम पे घात है
शानदार अंक
आभार
सादर
वाह! सुन्दर संकलन।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर प्रस्तुति
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