शीर्षक पंक्ति: आदरणीय उदय वीर सिंह जी की रचना।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पढ़िए अपनी पसंदीदा रचनाएँ-
बाहर लेके
जाएगा...
टूटे न टूटा कभी मौसम की
मार से,
दिल में
संजोया ऐतबार
लेके लाएगा।
रंगे-
बिरंगे, गुल,
गुलशन
में
आये थे,
नोच-नोच
शाखों से बहार लेके जाएगा।
जीना है जीवन
भूल गए
तुलना करना सदा व्यर्थ है
दो पत्ते भी नहीं एक से,
व्यर्थ स्वयं को तौला करते
जीना है जीवन भूल गए !
1167-मुझमें तुम शामिल हो
तुम मोहन मैं राधा
क्यों ना बाँटें हम
हर दुख आधा- आधा।
आज की कविता आकिब जावेद के साथ
मौका मिलते ही
और बन जाता है
जानवर
क्रूर, वहसी,जंगली
समाज ने
कम्फर्ट जोन
बना लिया है।
विलुप्ति की कगार पर पारंपरिक कलाएं, बीन वादन
उस दिन जॉय गाँव में घूमते-घूमते मैं, डॉ गोयल और हीरा लाल जी, अपनी पारंपरिक
वेश-भूषा में अकेले बैठे श्री मुकेश नाथ जी के पास जा पहुंचे। अति विनम्र और
मृदुभाषी मुकेश जी का बातों-बातों में, उपेक्षित होते
बीन वादन को लेकर दर्द उभर आया ! हालांकि इसी बीन की बदौलत वे एक बार इटली में
सम्मानित हो चुके हैं पर धीरे-धीरे पहचान खो रही अपनी इस पुश्तैनी कला के भविष्य
को लेकर वे खासे चिंतित भी हैं ! उन्होंने हमें इस वाद्य पर जो धुनें सुनाईं, वे किसी को भी मंत्रमुग्ध करने की क्षमता रखती हैं !
उन्होंने इस साज की बेहतरी के लिए अपनी तरफ से कुछ बदलाव भी किए हैं। यू-ट्यूब (Haryana Jogi Music) पर भी उनको देखा-सुना जा सकता है।
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
शानदार अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुप्रभात ! बेहतरीन रचनाओं का सुंदर संयोजन, आभार !
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर रचनाओं से सजा ये सुन्दर अंक।
जवाब देंहटाएंअच्छा अंक है
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया
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