शीर्षक पंक्ति: आदरणीया रेखा जोशी जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पढ़िए आज की पसंदीदा रचनाएँ-
कुछ खिलाड़ी
तो चाय पीकर ही सोने चले जाते थे और बाकी खेलते रहते थे। इस चौपाल के खेल में नए – नए शाट खेलने की आदत पड़ी। इसने खेल में
एक नया मोड़ ला दिया। बोर्ड पर कहीं की भी गोटी मारने की महारत हासिल करने की तरफ
बढ़ने लगे थे। इसी दौरान श्री चौधरी भास्कर कैरम में मेरे स्थायी साथी बने। दोनों
की जोड़ी इतनी जमी कि मुहल्ले की कोई भी जोड़ी हमारा सामना करने से डरती थी। 1975 में इंजिनीयरिंग में भर्ती होने तक यह
चौपाल चला। इसके बाद कैरम का सिलसिला रुक गया।
बहुत ली सलाह
भिन्न भिन्न लोगों से ली
कभी किसी की
नक़ल कर
पर जरासा
सुकून भी न मिला मन
मन का ताप कम
न हो सका
अब किसी ने
कहा अपने दिल की सोचो
गहराई मैं
उतरो
लिया है जन्म जिसने इस धरा पे,
बहता है खून जिसकी भी रगों में,
तड़पता है दर्द से हर जीवधारी,
क्योंकि दर्द का कोई धर्म नहीं होताl
काश! आज वो यहाँ होते...
ये
सोचकर
मैंने
आसमान
की ओर देखा
और सच
मानो
तबसे
अब तक
लगातार
बारिश
हो रही है
मेरी आत्मा के तल में
जवाब देंहटाएंअसल में
मेरे जीवन में तुम्हारा स्थान है
ईश्वर से बड़ा।
सुंदर अंक
आभार
सादर
सुप्रभात ! सुंदर प्रस्तुति, महिला दिवस और शिवरात्रि की अग्रिम शुभकामनाएँ !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रवींद्र जी, मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए आपका आभार
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