सादर अभिवादन

सृष्टि के रचयिता, पालनहार, कर्ता-धर्ता तो सब प्रभु हैं, फिर अभिमान किस बात का? इस संसार में सभी जीव-जंतु, पशु-पक्षी, वृक्ष यहां तक कि मनुष्य भी ईश्वर के बनाए हुए हैं। इस निर्माण के पीछे सृष्टि के रचयिता का मुख्य उद्देश्य किसी भी कार्य को पूर्ण कराने के लिए माध्यम के रूप में इस्तेमाल करना है। जब प्रभु की बनाई वस्तु का उद्देश्य पूर्ण हो जाता है, तब वह दुनिया से समाप्त हो जाती है। कहते हैं, अहंकार तो अपने-अपने समय के सबसे शक्तिशाली कहे जाने वाले कंस और रावण का भी नहीं रहा। आधुनिक समय में विश्व विजेता कहलाने वाले एडोल्फ हिटलर और नेपोलियन जैसे शक्तिशाली व्यक्ति का भी अहंकार चूर-चूर हो गया।
जिसके अभिमान की गति जितनी तेज होती है, उस मनुष्य का पतन उतनी ही जल्दी होता है। यह तब होता है जब मनुष्य को लगता है कि इस संसार में उससे ज्यादा श्रेष्ठ और कोई नहीं है। जब वह यह सोच लेता है तो निश्चित तौर पर वह अपना विनाश खुद कर लेता है। वह जिस बात का गुमान करता है, उस क्षेत्र में तरक्की नहीं कर पाता। वह घमंड में इतना डूब जाता है कि उसे सही गलत, कुछ भी नजर नहीं आता है। वह अपने ही दंभ के जाल में फंस जाता है।
होते हैं रचनाओं से रूबरू
“चापाकल की तस्वीर माँ ने दिखलायी! नहाने के दौरान मझले नाना की मौत जिस नहर में डूब कर हुई उसे देखकर अब कोई विश्वास ही नहीं करेगा कि उसमें कभी पानी रहा होगा. . .!”
भोर हुए तो आंगन महके
उसके बिन सब बहके-बहके
बिन उसके दृग बोझिल हाय !
क्या सखी धूप ? ना सखी चाय ।।
शालीनता के सूत्र किताबों में छोड़ना,
बदले समय में बस ये सफलता का द्वार है.
हर सत्य के निवास पे कालिख पुती हुई,
वातावरण में झूठ का इतना प्रचार है.
धरा कहे संतान से,मत भूलो कर्तव्य।
बने सजग प्रहरी चलो,लिए नव्य गंतव्य।।
हरित रंग की चूनरी,भू आंचल में प्यार।
कोटि-कोटि संतान के,जीवन का आधार।।
नव कुसुमित पुष्पों से वन में
करते हैं तरुवर श्रृंगार
मधु पीने को व्याकुल भँवरे
करते हैं मधुरिम गुंजार
*****
आज बस
सादर वंदन