शीर्षक पंक्ति: आदरणीया साधना वैद जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
मंगलवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
आइए पढ़ते हैं पाँच चुनिंदा रचनाएँ-
चाहता हूँ गूँथना
एक मोहक सा गजरा
तुम्हारी वेणी के लिए
सुरभित हो जाए जिससे
ये फिजा और महक जाए
हमारा भी जीवन
बेला के इन फूलों की तरह!
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पैदल चलने
वाले लोग
पसीना
पोंछते एक ओर
ठहर कर
ढूँढते हैं जब छाँव,
हिला कर
हाथ बुलाता है पास
झूमर जैसा
अमलतास!
उतर आता है
ज़मीं पर
उस पल
स्वर्ग से नंदनवन!
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उभरने
दे अंतर्मन से
सुप्त नदी
का
विलुप्त उद्गम,
कोहरे में ढके हुए हैं अनगिनत संभ्रम,
बेहद प्रासंगिक है 'कबिरा सोई पीर है'
‘कबिरा सोई पीर है’ उपन्यास
में इस विषय पर बहुत गहनता से गौर किया गया है। एक प्रेम-कहानी है जिसके
इर्द-गिर्द वास्तविक दुनिया कितनी प्रेम-विहीन और निष्ठुर है..ये उकेरा गया है।
यकीन मानिए प्रेम की भी राजनीति होती है। प्रेम भी समय और समाज के कलुष से अछूता
नहीं रह पाता। चाहे जितना प्रगाढ़ हो..प्रेम पर भी कुरीतियों के कुपाठ का प्रभाव
पड़ता है।
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सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुंदर रचनाओं के संकलन से सजा एक सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंआज की किताब के हर पन्ने में खुशबू का बुकमार्क रखा है। हर पन्ने के कलमकार का आपको शुक्रिया। नमस्ते का भी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित आज की हलचल ! मेरी रचना को आज के संकलन में स्थान दिया ! आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !
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