।।प्रातःवंदन।।
"गले लग-लगकर कलियों को।
खिला करके वह खिलता है।
नवल दल में दिखलाता है।
फूल में हँसता मिलता है॥
अंक में उसको ले-लेकर।
ललित लतिका लहराती है।
छटाएँ दिखला विलसित बन।
बेलि उसको बेलमाती है..!!"
हरिऔध
बुधवारिय प्रस्तुतिकरण की आगाज और मिज़ाज
1.
हवा
कब जाहिर करता है
अपना प्रेम!
2.
पानी का प्रेम
तो होता है
रंगहीन, स्वादहीन!
✨️
एक लापता स्रोत, दूर से थम थम कर
आती है जिसकी मद्धम आवाज़,
कोहरे में धुंधले से नज़र आते
हैं कुछ अल्फ़ाज़, किसी
अज्ञात स्वरलिपि में
ज़िन्दगी तलाशती..
✨️
"ओह ! कम ऑन मम्मा ! अब आप फिर से मत कहना अपना वही 'बी पॉजिटिव' ! कुछ भी पॉजिटिव नहीं होता हमारे पॉजिटिव सोचने से ! ऐसे टॉक्सिक लोगों के साथ इतने..
✨️
खो गये वे शब्द सारे
नाव हम जिनकी बनाकर
पहुँच जाते थे किनारे !
✨️
मैंने देखा साथ वक्त के
कैसे लोग बदल जाते हैं
बीज वृक्ष बन जाता उसमें,
फूल और फिर फल आते हैं ..
✨️
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह ' तृप्ति '...✍️
सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुप्रभात ! मनोहर भूमिका के साथ पाँच रचनाओं की खबर देता शानदार अंक, बधाई वआभार पम्मी जी !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति उम्दा एवं पठनीय रचनाओं के साथ ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से आभार एवं धन्यवाद ।